स्मिता कुमारी
फाँसी की सजा किसी समस्या की समाधान नहीं है। फिर भी इस सजा की माँग अकसर लोग करते हैं। अब तक फाँसी की सजा कई लोगों को मिली है, तब भी अपराध कम नहीं हुए। आतंकवाद हो या बलात्कार या हत्या, अपराध की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो ही रही है।
क्या आपने कभी सोचा कि अपराध होते क्यों हैं? अपराध को करने में हमारे नज़रिया यानि विचारों कीअहम भूमिका होती है, अब फाँसी की सजा से किसी के विचार को कैसे बदला जा सकता है? फाँसी देना है तो इंसान के नकारात्मक विचार को दीजिये, व्यक्ति को नहीं।
मैं सदैव फाँसी की सजा का विरोध करती हूँ क्योंकि यह सजा अपराधी की ज़िन्दगी ख़त्म करने के साथ - साथ उसके परिवार की जिंदगी भी ख़त्म कर देती है। फिर आपमें और उस आरोपी के विचार में क्या फर्क है। दोनों ने एक परिवार को ताउम्र मानसिक प्रताड़ना की सजा दे दिया।
माँग करना है तो बेहतर सुधार गृह, प्रशिक्षित मनोविशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक और बेहतर पुनर्वास की माँग कीजिये। ताकि अपराध को जड़ से ख़त्म किया जाये। विचार को सकारात्मक रूप दिया जाये।
जीवन ले लेना आसान है लेकिन किसी को सुधारना कठिन कार्य। जीवन लेकर अपराध खत्म नहीं किया जा सकता, बल्कि एक और अपराध किया जाता है। जेल में या सुधार गृह में हो रही लापरवाहियों पर निगरानी रखना चाहिए, ताकि आरोपी के व्यवहार में बेहतर सुधार किया जा सके।
बच्चों में बचपन से ही जाति, धर्म, भेदभाव का बीज बोया जा रहा है, माँग करना है तो उनके सही परवरिश की माँग कीजिये। शिक्षण संस्थान में एकता, प्रेम और ईमानदारी की पाठ पढ़ाई जाये, इसकी माँग कीजिये। समाज विरोधी व्यवहार (एंटीसोशल बिहैवियर) को ख़त्म करने की माँग कीजिये।
कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता। मानसिक और सामाजिक परिस्थितियाँ अपराध कराती हैं, इस लिए इन परिस्थितियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने और सुधारने की जरूरतों की माँग होनी चाहिए। विचार बदलेगा तभी अपराध मिटेगा।