स्मिता कुमारी
आत्महत्या एक प्रकार की हत्या है, जिसे करने के लिए मजबूर किया जाता है। हरेक व्यक्ति के अंदर जीने की चाहत होती है, मरना इतना आसान नहीं होता। क्षण भर की दिमागी संतुलन में भटकाव आया और उसी क्षण भर में व्यक्ति खुद के जीवन को ख़त्म कर देता है। अक्सर सुनती हूँ कि आत्महत्या करने वाले अपने परिवार के बारे में नहीं सोचता।
ऐसा नहीं है। वह उसी वक्त अपनों के बारे में ज्यादा सोचता है, बात करने की कोशिश भी करता है। तभी तो परिजन यह बताते हैं कि "कुछ समय पहले ठीक से बात किया था। "दरसल वह बात करके कुछ कहना चाहते हैं, अपने मन के विचलन के बारे में, लेकिन अपने ही अपनों के भाव को गंभीरता से नहीं समझ पाते। दुनियादारी के उलझनों से निकल नहीं पाते की अपनों के जीवन में आये उतार -चढ़ाव में साथ दे सकें।
परिवार से दूर रहना और फोन पर संवाद होना तो इस स्थिति को और गंभीर बना रहा है। सामने वाले की भाव को समझ ही नहीं पाता कोई। पर वह व्यक्ति चाहता है कि उसे समझा जाये, शायद जिंदगी को एक मौका देने की चाहत में ही आखिरी बार अपने परिवार और दोस्तों से बात करके यह मौका देता है कि कोई उसके अंदर की वेदना को समझ सके।
आत्महत्या के लिए कभी स्कूल में टॉप होने का दवाब, कभी जाति -धर्म के नाम पर तो कभी चरित्र को लेकर दवाब तो कभी जमीर बेच कर काम करने का दबाव, कभी मत भेद तो कही मन भेद का दबाव दिया जाता है।
दुःख तो इस बात की है कि ये तमाम दबाव कभी परिवार तो कभी दोस्त तो कभी समाज द्वारा बनाकर इस घटना को अंजाम देने के लिए मजबूर किया जाता है और बाद में उसी बेगुनाह को कायर, दोषी,आदि करार कर दिया जाता है। ना जीते जी उसके मानसिक दवाब को समझा जाता है ना उसके जाने के बाद।
इस स्थिति से बचाव के लिए कुछ बेसिक उपायों को अपनाया जा सकता है, जैसे कि -
1- 24 घंटे में कम से कम आधा घंटा भी अपने परिवार या दोस्त के प्रति दिन के मुख्य घटनाओं को जानने के लिए दिया जाये।साथ ही अहम बात यह होनी चाहिए कि बातों को गंभीरता से लेकर यह सदा भरोसा दिलाया जाये कि हम सदैव साथ हैं और उनके भावना की कद्र करते हैं,ताकि वह व्यक्ति खुल कर अपनी बातें साझा कर सके।
2- बार - बार किसी बच्चे की तुलना अन्य बच्चे से नकारात्मक रूप से ना किया जाये।
3- कैरियर को थोपने के बजाय उनके मनपसंद कैरियर को चयन करने में सहयोग किया जाये। इसके लिए मनोवैज्ञानिक जाँच की मदद ली जा सकती है।
4- ऑफिस का तनाव बच्चों पर नहीं निकाला जाये।
5- रिजल्ट बेहतर नहीं आने पर बच्चों के उम्र के अनुसार परामर्श प्रदान करायी जाये।
6- किशोरावस्था के बदलाव को समझा जाये और सही मार्गदर्शन दिया जाये।
7- हीन भावना से ग्रसित होकर ताना ना दिया जाये।
8- घर में दोस्ताना माहौल बनाने की कोशिश करें।
9- शादी के लिए किसी प्रकार का दबाव या मर्जी ना थोपा जाये।
10- कार्यस्थल पर राजनीति नहीं किया जाये।
11- किसी के अवगुणों के साथ -साथ उसके गुणों से भी परिचय कराया जाये।
12- अच्छे कार्यों को सराहा जाये और उसे मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।
13- जाति, धर्म, उच्च -नीच ,विकलांगता, लिंग आधारित भेद भाव ना फैलाया जाये, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इंसानियत को बढ़ावा दिया जाये।
14- अपने आस-पास के लोगों के व्यवहार और गतिविधियों का अवलोकन करते रहें और परेशानियों को समझने तथा उनसे उबरने में उनकी मदद करें।
15- आत्महत्या की भावना या अवसाद या किसी अन्य मानसिक परेशानियाँ होने पर तत्काल मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें और व्यक्ति को अपने अवलोकन में रखें।