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माँ

नैना शर्मा

ख़ुद कर्म की रेत में तपकर,
हमे कुंदन सा निखारती है माँ,
ख़ुद भूखी रहकर,
हमारा पेट भरती है माँ।

ख़ुद काँटों पर चलकर,
हमारी राहों में फ़ूल बिखेरती है माँ,
कभी अंधियारों में रहकर,
तमाम रंज सहकर,
हमारे जीवन में,
आशा,ज्ञान,की लौ,
प्रज्वलित करती है माँ।

ख़ुद वीराने में अकेले रहकर,
दुनिया से लड़कर,
हमे संस्कारों से पोषित करती है माँ,
ख़ुद सब कुछ सह के,
हमे हमारे लिए बोलना सिखाती है माँ।

माँ के रूप में ईश का वरदान है माँ,
तुलसी,सूर,कबीरा, की लेखनी से परे है माँ,
मेरी माँ,तेरी माँ,
हम सबकी माँ,
माँ,प्यारी माँ।।

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  • काव्य संग्रह ’बिखरने से बचाया जाए’ का लोकार्पण

    दिल्ली: 9 मई/ दिल्ली के कन्सटीट्यूशन क्लब (डिप्टी चेयरमैन हॉल) में 7 मई शनिवार  शाम लेखिका श्रीमती अलका सिंह के काव्य संग्रह ’बिखरने से बचाया जाए’ का लोकार्पण प्रख्यात साहित्यकार एवं आलोचक डॊ. नामवर सिंह ने किया. इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि हिंदी में ग़ज़ल लिखना मुश्किल काम है. बहुत कम लोग ही लिखते हैं, लेकिन अलका सिंह की किताब एक उम्मीद जगाती है कि कविता, ग़ज़लें और मुक्तक को आने वाली पीढ़ी ज़िंदा रखेंगी. यह अनूठा काव्य संग्रह है.

    उन्होंने कहा कि लोकार्पण कार्यक्रम में इतने लोगों का जुटना अपने आप में मायने रखता है. राजनीति करने वालों ने दिल्ली को उजाड़ दिया है, यह केवल राजधानी बन कर न रहे, बिखरने से बचे. इसके लिए कविताएं ज़रूरी हैं. ’ज़रूरी तो नहीं खुशियां ही मिलें दामन में, कुछ ग़मो को भी तो सीने से लगाया जा’ बेहतरीन शेअर है.

    समीक्षक अनंत विजय ने कहा कि यह संग्रह कॉकटेल है, जिसमे ग़ज़लें, कविताएं और मुक्तक हैं. हिंदी साहित्य में प्रेम का भाव है, लेकिन इस संग्रह ने नई उम्मीद जगाई है. रिश्तों को लेकर लेखिका की बेचैनी साफ़ झलकती है.

    ’दाग़ अच्छे है’ में अंग्रेज़ी के शब्दो का प्रयोग धूप में मोती की तरह है. आधुनिक युग की त्रासदी ’सुख बेच दिए, सुविधाओं की ख़ातिर’ में साफ़ झलकती है. शब्दों के साथ ठिठोली क़ाबिले-तारीफ़ है.

    कवयित्री अनामिका ने कहा कि लेखिका की सोच व्यापक है, समावेशी है समेटने की कोशिश है. स्पष्ट और मुखर होकर बेबाकी से हर बात कही गई है. कई आयामों को छूती ये रचनाएं सीधे मन को छूती हैं.

    अमरनाथ अमर ने कहा की कविता कई सवाल उठाती है और समाधान देती है. "अपना कफ़न ओढ़ कर सोने लगे हैं लोग" विश्व स्थिति को व्यक्त करती है. मंच संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक डॊ. सौरभ मालवीय ने किया. सार्थक पहल का यह आयोजन प्रवक्ता डॉट कॉम तथा नया मीडिया मंच के संयुक्त तत्वावधान में हुआ. इस अवसर पर साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र की जानी मानी हस्तियां मौजूद थीं.

  • राग की कविताएं अब उत्कर्ष की कविताएं हैं : संतोष चौबे

    भोपाल: 29 अप्रैल/ राग तेलंग समकालीन हिंदी कविता के उन विरले कवियों में से हैं जो अछूते विषयों को छूने का जोखिम उठाते हुए बेहद सरलता से चीज़ों और उनके जटिल समुच्चयों को हल करने का हुनर पाठक में प्रवेश कराते हैं. ये विचार सुपरिचित कथाकार, कवि और आलोचक संतोष चौबे ने राग तेलंग के नए कविता संग्रह " मैं पानी बचाता हूं" के लोकार्पण अवसर पर कही.

    वरिष्ठ आलोचक रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि राग तेलंग की रचनाएं दृश्य के पीछे के तमाम अदृश्य प्रतिबिंबों और अदृश्य के स्पष्ट दृश्यों का प्रभावी और विश्वसनीय खाका तैयार करती हैं,वे हमारे समय के ऐसे कवि हैं जिनके सरोकार सीधे तौर पर समाजोन्मुख हैं.

    राज्य संसाधन केन्द्र के सभागार में वनमाली सृजन पीठ और मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मलेन के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में इस अवसर पर राग की कविताओं की दो ई बुक्स का भी लोकार्पण किया गया.आमंत्रित अतिथियों में बीएसएनएल के महाप्रबंधक संदीप सावरकर, पलाश सुरजन, स्मिता नागदेव, अनघा राग, कला समीक्षक विनय उपाध्याय सहित अनेक वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का सफल संचालन युवा आलोचक आनंद कृष्ण ने किया.

    कार्यक्रम में राज्य संसाधन केन्द्र के निदेशक संजय सिंह राठौर,संदीप श्रीवास्तव,अनुराग सीठा,इम्तियाज़ खान,अशोक सिंह,रितु वर्गीस,राजू वानखेड़े सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.

  • जहीर कुरैशी के संस्मरणों के हवाले से साहित्य और व्यक्तित्वों की चर्चा

    भोपाल: 21 अप्रैल/ राजधानी स्थित मायाराम सुर्जन भवन में गुरुवार की शाम साहित्यकारों के नाम रही। जहां जनवादी लेखक संघ द्वारा रचना-पाठ और चर्चा का आयोजन किया गया।

    इस रचना-पाठ और चर्चा में गजलकार जहीर कुरैशी की हाल ही में प्रकाशित संस्मरणों की पुस्तक ‘कुछ भूला कुछ याद रहा’ का पाठ हुआ। वरिष्ठ साहित्यकारों ने जहीर कुरैशी के द्वारा लिखे गए संस्मरणों के हवाले से हमारे समय और उसके साहित्य और व्यक्तित्वों की चर्चा की।

    इस मौके पर वरिष्ठ कवि राजेश जोशी, कहानीकार रमाकांत श्रीवास्तव, मुकेश वर्मा, आलोचक व समीक्षक राम प्रकाश तथा उर्दू के रचनाकार इकबाल मसूद ने हिस्सेदारी की। शुरुआत में जहीर कुरैशी द्वारा अपने कुछ संस्मरणों का पाठ किया गया। जिसके उपरांत साहित्यकारों ने उस पर चर्चा की।

  • उत्सव के अलहदा रंग समेटे होगा वनमाली कथा सम्मान समारोह

    कहानियों का मंचन, रंग संगीत, रचना पाठ  और कथा विमर्श के अनूठे सत्र

    भोपाल: 1 अप्रैल/ आगामी 5 और 6 अप्रैल को  भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान समारोह साहित्य, संस्कृति और कलाओं के उत्सवी रंगों से सराबोर होगा। चित्रा मुदगल, प्रभु जोशी, मोहम्मद आरिफ, विनोद तिवारी और हरि भटनागर ( सम्पादक -रचना समय) जैसे ख्यातनाम हस्ताक्षर  अपने उल्लेखनीय रचनात्मक योगदान के लिए सम्मान अलंकरण ग्रहण करेंगे। प्रसिद्ध रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में वनमाली जी की कहानियों का मंचन और विहान कला समूह का रंग संगीत समारोह को नयी गमक प्रदान करेगा। "बिम्ब-प्रतिबिम्ब" फोटो प्रदर्शनी और विभिन्न साहित्यिक पुस्तिकाओं का लोकार्पण आयोजन को दस्तावेज़ी स्वरुप प्रदान करेगा। इस अवसर पर अनेक प्रबुद्ध लेखक, आलोचक और संस्कृतिकर्मी आमंत्रित किये जा रहे हैं.
       
    साहित्य और संस्कृति की मानक संस्था वनमाली सृजन पीठ का दो दिवसीय प्रतिष्ठा आयोजन विविध  रचनात्मक गतिविधियों के बीच आयोजित किया जा रहा है. पांच अप्रेल की शाम 6.30 बजे  भारत भवन में हिंदी के वरिष्ठ आलोचक डा.धनञ्जय वर्मा और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई की विशिष्ट उपस्थिति में प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुदगल(नई दिल्ली), प्रभु जोशी (इंदौर), मोहम्मद आरिफ(पटना) और विनोद तिवारी(दिल्ली) के साथ ही सहित्यिक पत्रिका "रचना समय"(संपादक-हरि  भटनागर) को सम्मान अलंकरण भेेंट किया जाएगा। कथाकार संतोष चौबे और मुकेश वर्मा सम्मानित लेखकों के साहित्यिक योगदान पर वक्तव्य देंगे।समारोह का संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय करेंगे। इस अवसर पर प्रख्यात नाट्यकर्मी डॉ.देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में रंग समूह "संभव" के कलाकार वनमाली जी की बहुचर्चित कहानियों - जिल्दसाज,शहर और माझी का मंचन करेंगे।

    समारोह के दूसरे दिन सुबह 10.30 बजे आईसेक्ट विश्वविद्यालय में "परंपरा, आधुनिकता और समकालीन हिंदी कहानी" विषय पर विचार सत्र होगा।अध्यक्षता संतोष चौबे करेंगे, आधार वक्तव्य आलोचक विनोद तिवारी का होगा। प्रभु जोशी, शशांक, शम्भू गुप्त, जयप्रकाश, पल्लव, अवधेश मिश्र, राजीव कुमार, राहुल सिंह विषय पर अपने विचार व्यक्त करेंगे। शाम 6.30 बजे स्वराज भवन में सम्मानित लेखकों का  रचना पाठ होगा । अध्यक्षता डा.ज्ञान चतुर्वेदी करेंगे। चर्चा में शशि भूषन,मुकेश वर्मा, वन्दना राग और बलराम गुमास्ता हिस्सा लेंगे।

  • संतोष चौबे का कहानी पाठ आज, कहानी संग्रह "नौ बिंदुओं का खेल" का भी होगा विमोचन

    भोपाल: 17 मार्च/ हिन्दी के बहुचर्चित कथाकार और उपन्यासकार लेखक संतोष चौबे 18 मार्च की शाम 6.30 बजे अपनी नई लंबी कहानी नौ बिंदुओं का खेल का पाठ भारत भवन में करेंगे। वनमाली सृजनपीठ और पहले पहल प्रकाशन द्वारा संयोजित इस रचना प्रसंग में उनके नवप्रकाशित कहानी संग्रह का विमोचन भी होगा।

    इस अवसर पर बतौर अध्यक्ष मूर्धन्य आलोचक-चिंतक नंदकिशोर आचार्य अपने मुख्य वक्तव्य में चैबे के कृति-व्यक्तित्व को रेखांकित करेंगे, जबकि युवा आलोचक वैभव सिंह लोकार्पित संग्रह पर अपना वक्तव्य देंगे। इस अवसर पर संतोष चौबे अपने संग्रह की शीर्षक कहानी नौ बिंदुओं का खेल का प्रयोगधर्मी पाठ करेंगे। कार्यक्रम के सूत्रधार कला समीक्षक विनय उपाध्याय होंगे।

    साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश शासन के दुष्यंत कुमार पुरस्कार सहित अनेक प्रादेशिक और राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित श्री चौबे के इससे पूर्व तीन कहानी संग्रह, दो उपन्यास, तीन कविता संग्रह और अनुवाद के अलावा समग्र साहित्य ग्रन्थ का प्रकाशन हो चुका है। वे आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलाधिपति है।

  • यस, आई स्टेंड विद जेएनयू

    भंवर मेघवंशी

    यह जानते हुये भी कि
    वानरसेना मुझको भी
    राष्ट्रद्रोही कहेगी ।
    काले कोट पहने
    गुण्डों की फौज
    यह बिल्कुल भी
    नही सहेगी ।
    तिरंगा थामे
    मां भारती के लाल
    मां बहनों को गरियायेंगे ।
    दशहतगर्द देशभक्त
    जूते मारो साले को
    चीख चीख चिल्लायेंगे ।
    जानता हूं
    मेरे आंगन तक
    पहुंच जायेगा,
    उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के
    खौफ का असर ।
    लम्पट देशप्रेमी
    नहीं छोड़ेंगे मुझको भी ।
    फिर भी कहना चाहता हूं
    हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।

    क्योंकि जेएनयू
    गैरूआ तालिबानियों
    की तरह,
    मुझे नहीं लगता
    अतिवादियों का अड्डा
    और देशद्रोहियों का गढ़ ।
    मेरे लिये जेएनयू सिर्फ
    उच्च शिक्षा का इदारा नहीं है ।
    मुझे वह लगता है
    भीड़ से अलग एक विचार ।
    कृत्रिम मुल्कों व सरहदों के पार ।
    जो देता है आजादी
    अलग सोचने,अलग बोलने
    अलग दिखने और अलग
    करने की ।
    जहां की जा सकती है
    लम्बी बहसें ,
    जहां जिन्दा रहती है
    असहमति की आवाजें ।
    प्रतिरोध की संस्कृति का
    संवाहक है जेएनयू ।
    लोकतांत्रिक मूल्यों का
    गुणगाहक है जेएनयू ।
    यहां खुले दिमाग
    वालों का डेरा है ।
    यह विश्व नागरिकों का बसेरा है ।

    मैं कभी नहीं पढ़ा जेएनयू में
    ना ही मेरा कोई रिश्तेदार पढ़ा है।
    मैं नहीं जानता
    किसी को जेएनयू में ।
    शायद ही कोई
    मुझे जानता हो जेएनयू में ।
    फिर भी जेएनयू
    बसता है मेरे दिल में ।
    दिल्ली जाता हूं जब भी
    तीर्थयात्री की भांति
    जरूर जाता हूं जेएनयू ।
    गंगा ढ़ाबे पर चाय पीने,
    समूहों की बहसें सुनने
    वहां की निर्मुक्त हवा को
    महसूस करने ।
    जेएनयू में मुझको
    मेरा भारत नज़र आता है।
    बस जेएनयू से
    मेरा यही नाता है ।

    रही बात
    देशविरोधी नारों की
    अफजल के प्रचारों की
    यह करतूत है
    मुल्क के गद्दारों की ।
    बिक चुके मीडिया दरबारों की ।
    चैनल चाटुकारों की ,
    चीख मचाते एंकर अय्यारों की ।
    वर्ना पटकथा यह पुरानी है।
    बुनी हुई कहानी है ।
    नारे तो सिर्फ बहाना है।
    जेएनयू को सबक सिखाना है।
    स्वतंत्र सोच को मिटाना है।
    रोहित के मुद्दे को दबाना है ।
    अकलियत को डराना है।
    दशहतगर्दी फैलाना है।
    राष्ट्रप्रेमी कुटिल गिद्दों ,
    तुम्हारी कही पर निगाहें
    कहीं पर निशाना है।
    असली मकसद
    मनुवाद को वापस देश में लाना है।

    पुरातनपंथियों,
    वर्णवादी जातिवादियों,
    आजादी की लड़ाई से
    दूर रहने वाले
    अंग्रेजों के पिठ्ठुओं ,
    गोडसे के पूजकों ,
    गांधी के हत्यारों ,
    भगवे के भक्तों,
    तिरंगे के विरोधियों,
    संविधान के आलोचकों ,
    अफजल को शहीद
    कहनेवाली पीडीपी के प्रेमियों,
    हक ही क्या है तुमको
    लोगों की देशभक्ति पर
    सवाल उठाने का ?

    बिहार के एक
    गरीब मां बाप का बेटा
    जो गरीबी, भुखमरी,
    बेराजगारी,बंधुआ मजदूरी,
    साम्प्रदायिकता और जातिवाद
    से चाहता है आजादी

    फासीवाद समर्थक
    आधुनिक कंसों !
    तुम्हें संविधानवादी
    एक कन्हैया भी बर्दाश्त ना हुआ।
    तुम्हें कैसे बर्दाश्त होंगे
    हजारों कन्हैया,
    जो किसी गांव, देहात
    दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक
    या पिछड़े वर्ग से आते हो,
    और पढ़ते हो जहां रह कर,
    वो जगह ,कैसे बरदाश्त होगी तुमको ?
    मनुस्मृति और स्मृति ईरानी
    दोनों को नापसंद है यह तो।
    इसलिये शटडाउन
    करने का मंसूबा पाले हो।
    वाकई तुम बेहद गिरी
    हरकतों वाले हो ।

    जेएनयू को तुम
    क्या बंद कराओगे ?
    जेएनयू महज
    किसी जगह का नाम नही ।
    मात्र यूनीवर्सिटी होना ही
    उसकी पहचान नही ।
    जेएनयू एक आन्दोलन है,
    धमनियों में बहने वाला लहू है।
    विचार है जेएनयू
    जो दिमाग ही नही
    दिल में भी बस जाता है।
    इसे कैसे मारोगे ?
    यह तो शाश्वत है,
    जिन्दा था, जीवित है
    जीवंत रहेगा सदा सर्वदा।
    तुम्हारे मुर्दाबादों के बरक्स
    जिन्दाबाद है जेएनयू
    जिन्दाबाद था जेएनयू
    जिन्दाबाद ही रहेगा जेएनयू ।
    उसे सदा सदा
    जिन्दा और आबाद
    रखने के लिये ही
    कह रहे है हम भी
    स्टेंड विद जे एन यू ।

    जेएनयू
    अब पूरी दुनिया में है मौजूद
    हर सोचने वाले के
    विचारों में व्यक्त हो रहा है जेएनयू ।
    शिराओं में रक्त बन कर
    बह रहा है जेएनयू ।
    लोगों की धड़कनों में
    धड़क रहा है,
    सांसे बन कर
    जी रहा है जेएनयू ।
    वह सबके साथ खड़ा था
    आज सारा विश्व
    उसके साथ खड़ा है
    और कह रहा है -
    वी स्टेंड विद जेएनयू ।

    मैं भी
    अपनी पूरी ताकत से
    चट्टान की भांति
    जेएनयू के साथ
    होकर खड़ा
    कह रहा हूं,
    यस ,आई स्टेंड विद जेएनयू
    फॉरएवर ।
    डोन्ट वरी कॉमरेड कन्हैया
    वी शैल कम ओवर ।
    वी शैल फाईट
    वी शैल विन ।

    मुझे यकीनन यकीन है
    जेएनयू के दुश्मन
    हार जायेंगे ।
    मुंह की खायेंगे ।
    दुम दबायेंगे
    और भाग जायेंगे।
    जेएनयू तो
    हिमालय की भांति
    तन कर खड़ा रहेगा
    अरावली की चट्टानों पर,
    राजधानी के दिल पर,
    लुटियंस के टीलो की छाती पर ....

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