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ब्रसेल्स हमले के हमलावरों की पहचान हुई (लीड-1)
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रूसी अदालत ने यूक्रेनी पायलट को 22 साल कैद की सजा सुनाई

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ब्रसेल्स हमले के हमलावरों की पहचान हुई (लीड-1)

नैटहेल्थ के अध्यक्ष बने

ब्रसेल्स हमले में घायल भारतीय की स्थिति में सुधार : सुषमा स्वराज

यस, आई स्टेंड विद जेएनयू

भंवर मेघवंशी

यह जानते हुये भी कि
वानरसेना मुझको भी
राष्ट्रद्रोही कहेगी ।
काले कोट पहने
गुण्डों की फौज
यह बिल्कुल भी
नही सहेगी ।
तिरंगा थामे
मां भारती के लाल
मां बहनों को गरियायेंगे ।
दशहतगर्द देशभक्त
जूते मारो साले को
चीख चीख चिल्लायेंगे ।
जानता हूं
मेरे आंगन तक
पहुंच जायेगा,
उन्मादी राष्ट्रप्रेमियों के
खौफ का असर ।
लम्पट देशप्रेमी
नहीं छोड़ेंगे मुझको भी ।
फिर भी कहना चाहता हूं
हॉ, मैं जेएनयू के साथ खड़ा हूं।

क्योंकि जेएनयू
गैरूआ तालिबानियों
की तरह,
मुझे नहीं लगता
अतिवादियों का अड्डा
और देशद्रोहियों का गढ़ ।
मेरे लिये जेएनयू सिर्फ
उच्च शिक्षा का इदारा नहीं है ।
मुझे वह लगता है
भीड़ से अलग एक विचार ।
कृत्रिम मुल्कों व सरहदों के पार ।
जो देता है आजादी
अलग सोचने,अलग बोलने
अलग दिखने और अलग
करने की ।
जहां की जा सकती है
लम्बी बहसें ,
जहां जिन्दा रहती है
असहमति की आवाजें ।
प्रतिरोध की संस्कृति का
संवाहक है जेएनयू ।
लोकतांत्रिक मूल्यों का
गुणगाहक है जेएनयू ।
यहां खुले दिमाग
वालों का डेरा है ।
यह विश्व नागरिकों का बसेरा है ।

मैं कभी नहीं पढ़ा जेएनयू में
ना ही मेरा कोई रिश्तेदार पढ़ा है।
मैं नहीं जानता
किसी को जेएनयू में ।
शायद ही कोई
मुझे जानता हो जेएनयू में ।
फिर भी जेएनयू
बसता है मेरे दिल में ।
दिल्ली जाता हूं जब भी
तीर्थयात्री की भांति
जरूर जाता हूं जेएनयू ।
गंगा ढ़ाबे पर चाय पीने,
समूहों की बहसें सुनने
वहां की निर्मुक्त हवा को
महसूस करने ।
जेएनयू में मुझको
मेरा भारत नज़र आता है।
बस जेएनयू से
मेरा यही नाता है ।

रही बात
देशविरोधी नारों की
अफजल के प्रचारों की
यह करतूत है
मुल्क के गद्दारों की ।
बिक चुके मीडिया दरबारों की ।
चैनल चाटुकारों की ,
चीख मचाते एंकर अय्यारों की ।
वर्ना पटकथा यह पुरानी है।
बुनी हुई कहानी है ।
नारे तो सिर्फ बहाना है।
जेएनयू को सबक सिखाना है।
स्वतंत्र सोच को मिटाना है।
रोहित के मुद्दे को दबाना है ।
अकलियत को डराना है।
दशहतगर्दी फैलाना है।
राष्ट्रप्रेमी कुटिल गिद्दों ,
तुम्हारी कही पर निगाहें
कहीं पर निशाना है।
असली मकसद
मनुवाद को वापस देश में लाना है।

पुरातनपंथियों,
वर्णवादी जातिवादियों,
आजादी की लड़ाई से
दूर रहने वाले
अंग्रेजों के पिठ्ठुओं ,
गोडसे के पूजकों ,
गांधी के हत्यारों ,
भगवे के भक्तों,
तिरंगे के विरोधियों,
संविधान के आलोचकों ,
अफजल को शहीद
कहनेवाली पीडीपी के प्रेमियों,
हक ही क्या है तुमको
लोगों की देशभक्ति पर
सवाल उठाने का ?

बिहार के एक
गरीब मां बाप का बेटा
जो गरीबी, भुखमरी,
बेराजगारी,बंधुआ मजदूरी,
साम्प्रदायिकता और जातिवाद
से चाहता है आजादी

फासीवाद समर्थक
आधुनिक कंसों !
तुम्हें संविधानवादी
एक कन्हैया भी बर्दाश्त ना हुआ।
तुम्हें कैसे बर्दाश्त होंगे
हजारों कन्हैया,
जो किसी गांव, देहात
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक
या पिछड़े वर्ग से आते हो,
और पढ़ते हो जहां रह कर,
वो जगह ,कैसे बरदाश्त होगी तुमको ?
मनुस्मृति और स्मृति ईरानी
दोनों को नापसंद है यह तो।
इसलिये शटडाउन
करने का मंसूबा पाले हो।
वाकई तुम बेहद गिरी
हरकतों वाले हो ।

जेएनयू को तुम
क्या बंद कराओगे ?
जेएनयू महज
किसी जगह का नाम नही ।
मात्र यूनीवर्सिटी होना ही
उसकी पहचान नही ।
जेएनयू एक आन्दोलन है,
धमनियों में बहने वाला लहू है।
विचार है जेएनयू
जो दिमाग ही नही
दिल में भी बस जाता है।
इसे कैसे मारोगे ?
यह तो शाश्वत है,
जिन्दा था, जीवित है
जीवंत रहेगा सदा सर्वदा।
तुम्हारे मुर्दाबादों के बरक्स
जिन्दाबाद है जेएनयू
जिन्दाबाद था जेएनयू
जिन्दाबाद ही रहेगा जेएनयू ।
उसे सदा सदा
जिन्दा और आबाद
रखने के लिये ही
कह रहे है हम भी
स्टेंड विद जे एन यू ।

जेएनयू
अब पूरी दुनिया में है मौजूद
हर सोचने वाले के
विचारों में व्यक्त हो रहा है जेएनयू ।
शिराओं में रक्त बन कर
बह रहा है जेएनयू ।
लोगों की धड़कनों में
धड़क रहा है,
सांसे बन कर
जी रहा है जेएनयू ।
वह सबके साथ खड़ा था
आज सारा विश्व
उसके साथ खड़ा है
और कह रहा है -
वी स्टेंड विद जेएनयू ।

मैं भी
अपनी पूरी ताकत से
चट्टान की भांति
जेएनयू के साथ
होकर खड़ा
कह रहा हूं,
यस ,आई स्टेंड विद जेएनयू
फॉरएवर ।
डोन्ट वरी कॉमरेड कन्हैया
वी शैल कम ओवर ।
वी शैल फाईट
वी शैल विन ।

मुझे यकीनन यकीन है
जेएनयू के दुश्मन
हार जायेंगे ।
मुंह की खायेंगे ।
दुम दबायेंगे
और भाग जायेंगे।
जेएनयू तो
हिमालय की भांति
तन कर खड़ा रहेगा
अरावली की चट्टानों पर,
राजधानी के दिल पर,
लुटियंस के टीलो की छाती पर ....

About Author

भंवर मेघवंशी

लेखक राजस्थान में दलित, आदिवासी एवं घुमन्तु वर्गों के प्रश्नों पर कार्यरत है.

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    - 1 फरवरी 2016 को एक राज्यस्तरीय अख़बार ने इसे एक कॉलम की छोटी सी खबर बनाया, हमारे साथियों को इसकी खबर मिली.

    - 1 फरवरी की शाम होने से पहले दलित आदिवासी अल्पसंख्यक एकता महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष देबीलाल मेघवंशी और प्रदेश महासचिव डाल चंद रेगर अपनी टीम के साथ भादवों की कोटड़ी पंहुचे और गाँव के विभिन्न लोगों से मुलाकात कर वस्तुस्थिति का जायजा लिया.

    - 2 फरवरी को मेरे साथ 10 साथी पुन भादवों की कोटड़ी गाँव पंहुचे। दूल्हे से बात की, उसके परिजनों से अलग अलग बात की गयी. सरोज और निरमा से बात की गयी, पूरा परिवार हर हाल में अपना संवैधानिक हक लेने को आतुर दिखाई पड़ा. हमने उनसे सारे दस्तावेज लिए. अब तक हुयी कार्यवाही जानी. उनके बयानों की विडियोग्राफी की और मुतमईन हुए कि ये लोग पीछे नहीं हटेंगे, तभी हमने गाँव छोड़ा. देर रात घर लौट कर ‘सरोज बैरवा का संघर्ष ‘ पोस्ट लिखी .उसे सोशल मीडिया पर फैलाया।

    - 3 फरवरी की सुबह होते ही फोन की घंटियाँ घनघनाने लगी, चारो तरफ से एक ही आवाज़ थी, हमें बताया जाये कि उस गाँव तक हम कैसे पंहुच सकते है, जब यह संख्या बहुत ज्यादा होने लगी तो मैंने कहा कि कहीं पूरी शादी की व्यवस्था नहीं बिगड़ जाये. खाना बगैरा कम नहीं पड़ जाये, साथियों का मजेदार जवाब एक नारे के रूप में आया- थैली में बांध कर रोटडी- चलो भादवो की कोटड़ी. साथी अपने अपने इलाकों से रवाना हो चुके थे.

    - बात फैल रही थी, आक्रोश पनप रहा था पर अभी तक पुख्ता कार्यवाही के संकेत नहीं मिल रहे थे. तब हमें प्रशासन को ऊपर से घेरा जाना जरुरी लगा, इस बीच दलित बहुजन समाज के आला अफसरों ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का शानदार तरीके से निर्वहन करना प्रारम्भ कर दिया. छतीसगढ़ में कार्यरत भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आर एल डांगी साहब ने मोर्चा संभाला, उन्होंने दुल्हे से बात की और फिर एस पी भीलवाड़ा से चर्चा करके सुरक्षा की आवश्यकता जताई. राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी दाताराम ने भीलवाड़ा के प्रशासनिक अधिकारीयों को झकझोरा, उन्होंने भी दलित दुल्हे के परिजनों से बात करके उन्हें हौंसला दिया. कई अन्य सेवारत अधिकारी कर्मचारियों ने बढ़िया तरीके से अपनी भूमिका भूमिका निभाई।

    - सोशल मीडिया पर वायरल होने का फायदा यह रहा कि कई दलित बहुजन मूलनिवासी विचारधारा के संस्था संगठन स्वतस्फूर्त अपने अपने तरीके से सरोज बैरवा को न्याय दिलाने निकल पड़े. डॉ भीमराव अम्बेडकर सामाजिक विकास संस्था के बृजमोहन बेनीवाल के नेतृत्व में जयपुर जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया ह यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के राज्य समन्वयक ताराचंद वर्मा ने पुलिस महानिदेशक और राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष सुन्दरलाल जी से मुलाकात की .उन्होंने तुरंत एस पी भीलवाड़ा और जिला कलेक्टर से वार्ता कर दलित दुल्हे की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन को पाबंद किया ,इसी बीच सामाजिक न्याय और विकास समिति जयपुर के सचिव गोपाल वर्मा ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरपर्सन पी एल पुनिया से दूरभाष पर वार्ता की ,उन्होंने पूरी मदद के लिए आश्वस्त किया .मैंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के डायरेक्टर राजकुमार को एक अत्यावश्यक पत्र भेज कर सहयोग हेतु निवेदन किया ,उन्होंने तुरंत भीलवाड़ा जिला प्रशासन से बात की ,दोपहर होते होते सभी उपाय अपना लिए गए ,लगभग 1 बजे जिला प्रशासन ने लिखित पत्र के जरिये हमें आश्वस्त कर दिया कि सारी व्यवस्था चाक चौबंद है और हर हाल में दलित दुल्हे की बिन्दोली निकलेगी ,कोई भी समस्या नहीं आने दी जाएगी .इसके बावजूद भी शाम 4 बजे हम लोग एक प्रतिनिधिमंडल जिसमे पीयूसीएल की जिला कोर्डिनेटर श्रीमती तारा अहलुवालिया ,बैरवा महासभा भीलवाड़ा के नंदकिशोर बैरवा ,महादेव बैरवा ,यशराज बैरवा ,घनश्याम बैरवा ,दलित आदिवासी अल्पसंख्यक एकता महासंघ के देबीलाल मेघवंशी ,डालचंद रेगर एडवोकेट भेरू लाल ,पुखराज ,पूर्व पार्षद पुरुषोत्तम बैरवा और माकपा के कॉमरेड मोहम्मद हुसैन कुरैशी इत्यादि लोग जिला कलेक्टर से मिलने पंहुचे ,उनके बाहर चले जाने की वजह से अतिरिक्त जिला कलक्टर और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक से मुलाकात की गयी तथा उन्हें अवगत कराया गया कि हम लोग भीलवाड़ा और बाहर से काफी बड़ी संख्या में दलित दुल्हे की बिन्दोली में शिरकत करने जा रहे है ,आप माकूल इंतजाम कीजिये .दोनों अधिकारीयों ने कहा आप लोग निश्चिंत हो कर जाइए ,किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी ,हम हर हाल में बिन्दोली निकलवाएंगे।

    - शाम साढ़े पांच बजे भादवो की कोटड़ी पंहुच चुके समता सैनिक दल के प्रदेश कमांडर बी एल बौद्ध ने फोन पर बताया कि विरोधी पक्ष घोड़ी को विवाह स्थल तक लाने में अडचन पैदा कर रहे है. मैंने उन्हें कहा कि यह प्रशासन की ज़िम्मेदारी है, आप बेफिक्र रहिये, तब तक हम लोग भीलवाड़ा से रवाना हो कर रास्ते में थे. तक़रीबन 7 बजे हम लोग गाँव के बस स्टेण्ड पर पंहुचे जहाँ पर गाँव के एक दो लोगों ने हमारा गालियों से इस्तकबाल किया, हमने उनकी उपेक्षा की और बिन्दोली में शिकरत करने जा पंहुचे।

    - दलित दुल्हे की इस ऐतिहासिक बिन्दोली में सब तरह के लोगों की उपस्थिति प्रेरणादायी थी ,भाजपा ,कांग्रेस ,बसपा और कम्युनिष्ट तक एक साथ वहां मौजूद थे ,सामाजिक और मानव अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी थी .गैरअनुसूचित जाति के लोग भी वहां पंहुचे ,हालाँकि गाँव में तनाव साफ दिखाई पड रहा था ,जब दूल्हा गाँव के मंदिर चौक में पंहुचा तब दुल्हे और बारातियों पर पथराव की साज़िश की गयी ,जिसकी भनक हमारी साथी तारा अहलुवालिया जी को लग जाने पर उन्होंने तुरंत पुलिस को सुचना दी .मौके पर मौजूद पुलिस व प्रशासन के लोगों ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए मनुवादी असामाजिक तत्वों के इरादों को नाकाम कर दिया .पुरी आन बान और शान से दलित दुल्हे की घोड़ी पर बिन्दोली निकल गयी तब सभी भीमसैनिकों की इच्छा के मुताबिक एक सभा आयोजित की गयी ,जिसमे बी एल बौद्ध ,अमर सिंह बंशीवाल ,विजय कुमार मेघवाल ,अशोक सामरिया ,अवनीश लूनिवाल ,परमेश्वर कटारिया सहित कई साथियों ने विचार व्यक्त किये ,अपना अपना परिचय दिया और घर घर अम्बेडकर पुस्तक वितरित की गयी .बाद में दुल्हे चन्द्रप्रकाश , माँ सीता बैरवा ,पिता रामसुख बैरवा ,बहन सरोज बैरवा तथा निरमा बैरवा का नागरिक अभिनंदन किया गया ,उनकी हिम्मत और हौंसले की प्रंशसा की गयी ,इसके पश्चात रामसुख बैरवा के अत्यंत आग्रह पर सब मौजूद लोगों ने भोजन ग्रहण किया और जीत की खुशियों से सरोबार हो कर विदाई ली.

    सरोज बैरवा जैसी एक बहादुर बेटी के साहस और सब लोगों के सहयोग से गाँव की सैंकड़ों साल पुरानी मनुवादी व्यवस्था को एक हफ्ते में ही एक झटके में ध्वस्त कर दिया गया, यह बात पुरे इलाके में एक उदहारण के रूप में स्थापित हो गयी, इसे किसी समुदाय की हार या जीत के रूप में नहीं बल्कि मानवता और संविधान की विजय के रूप में लिए जाने की जरुरत है, इससे यह भी साबित हुआ कि अगर किसी भी गाँव में एक परिवार भी चाहे तो परिवर्तन आ सकता है और सब लोग अगर मिलकर प्रयास करें तो जीत सामान्य नहीं रह कर भादवो की कोटड़ी जितनी बड़ी हो सकती है और हर शादी समाज जागरण का अभियान बन सकती है .

  • ‘अकेलेपन’ का अहसास

    अरुण कान्त शुक्ला

    टूट रही थी सांस 'मेरी' और जुबां सूखी थी,
    तुझे नहीं पुकारा था, 'चंद बूँद' पानी की जरुरत थी,

    तू इश्क को समझने में बड़ा कच्चा निकला,
    मेरे लबों को नहीं, मेरे सर को तेरी गोदी की जरुरत थी,

    इश्क में तू करता रहा वादे पे वादे ,
    मुझे तेरे वादों की नहीं, तेरी वफ़ा की जरूरत थी,

    तेरे नाले मुझसे थे तेरा माशूक था कोई और,
    तुझसे इश्क मेरी गलती थी, तुझसे नफ़रत ‘उस वक्त’ की जरुरत थी,

    क़यामत के रोज पूछियेगा अख़लाक़ से ‘अकेलेपन’ का अहसास,
    हम प्यालों, हम निवालों के बीच अकेला, जब किसी 'अपने' की उसे शिद्दत से जरुरत थी.

  • शहादत

    पंकज शर्मा

    जिन कुत्तों को सुबह शाम जब लतियाने की बारी है
    बतियाना फिर है क्यों है ज़रूरी, क्या ऐसी लाचारी है.

    शीश कटा कर जांबाज़ों के तुम कश्मीर बचा लोगे
    लेकिन ये बतलाओ घर के अंदर क्या तैयारी है.

    मुश्किल नहीं है जाली की टोपी पर उंगली उठा देना
    ये भी तो देखो क्या बोले अय्यर और तिवारी है.

    कब टूटेगा मुंह दुश्मन का, कब ठंडी होगी छाती
    वीरगति के मेडल पर अब हर इक आंसू भारी है.

  • अधूरी नज़्म

    पंकज शर्मा

    जो छूट गया सो छूट गया
    जो टूट गया सो टूट गया
    जो होना है वह होगा ही
    जो रूठ गया सो रूठ गया
    मैं क्यों सोचूं...और क्या सोचूं
    आखिर उसका हासिल भी क्या
    बीते लम्हों की दौलत थी
    मुझे लुटना था..कोई लूट गया
    मैं शोक मनाऊं किसके लिए
    जब सबकुछ मिटना ही तो है
    मृदु सूख गया जीवन घट का
    जो फूट गया तो फूट गया.

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