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तनावाग्रस्त व्यक्ति को महिला साथी के प्रति संवेदनशील बनाता है 'लव हार्मोन'

लंदन, 21 मार्च (आईएएनएस)। 'लव हार्मोन' कहे जाने वाले ऑक्सीटोसिन को गंभीर आघात या ऑपरेशन के बाद तनाव से ग्रस्त (पीटीएसडी) मरीजों को दिए जाने पर उनमें महिलाओं के प्रति करुणा और सहानुभूति पैदा हो सकती है। एक शोध में यह खुलासा हुआ है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में किसी जोड़े के इलाज में ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जा सकेगा, क्योंकि इससे उनके बीच सकारात्मक व्यवहार और संचार को बढ़ावा मिलता है, खासतौर से उन मामलों में जहां पति पीटीएसडी से पीड़ित हो।

इजरायल की हैफा विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सिमोन शामे-तसूरी ने एक बयान जारी कर कहा, "इस शोध से हमें ऑक्सीटोसिन द्वारा इस तरह के मरीजों के सामाजिक व्यवहार में सुधार के नए साक्ष्य मिले।"

प्रोफेसर सिमोन शामे-तसूरी और रामबाम मेडिकल सेंटर के उनके सहयोगियों ने इस बात की जांच की क्या पीटीएसडी से पीड़ित मरीजों में करूणा की भावना घट जाती है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सामाजिक व्यवहार को निर्धारित करनेवाले हार्मोन ऑक्सीटोसिन से करूणा की भावना बढ़ जाती है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि ऑक्सीटोसिन थेरेपी से जोड़ों की शादी की गुणवत्ता सुधर सकती है, जो विकार के कारण अक्सर बिगड़ जाती है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • युवाओं को तंबाकू की लत लगने से रोकें : नड्डा

    नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने सोमवार को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से लोगों को तंबाकू का उपयोग शुरू करने से रोकने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। तंबाकू के कुप्रभाव के बारे में अभी भी बहुत लोगों को नहीं मालूम है।

    स्वास्थ्य मंत्री नड्डा विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, "तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम से जुड़े साझीदार अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसकी रोकथाम वाले हिस्से पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।"

    उन्होंने कहा कि छात्रों को तंबाकू सेवन के कुप्रभावों की जानकारी नहीं है। वे तंबाकू की लत के शिकार होते चले जाते हैं। तब तक ऐसा होता है जब तक जांच के बाद उन्हें कैंसर या अन्य घातक बीमारियां हो जाने की जानकारी नहीं मिल जाती।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) एवं स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के विरोध में तंबाकू उत्पादक किसानों ने प्रदर्शन भी किया। वे तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर स्वास्थ्य की चेतावनी से जुड़ी बड़ी तस्वीर के नियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।

    नड्डा ने कहा कि इसके साझेदारों के लिए यह जरूरी है कि वे स्कूलों एवं कॉलेजों तक तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों को ले जाएं।

    मंत्री ने कहा कि इसके पीछे विचार यह है कि शुरुआत से ही उन्हें तंबाकू के नुकसानदेह प्रभावों से अवगत कराया जाए ताकि वे धूम्रपान या चबाने वाले रूप में इसकी शुरुआत ही न करें।

    उन्होंने कहा कि जागरूकता फैलाने के बावजूद भारतीय आबादी का 35 फीसदी युवा किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करता है।

    इस अवसर पर उन्होंने तंबाकू की आदत छोड़ने के लिए 'नेशनल टोबैको सेसेशन क्विटलाइन' का भी शुभारंभ किया।

    डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में 7.5 करोड़ लोग तंबाकू सेवन करते हैं और हर साल सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 फीसदी तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम एवं तंबाकू की वजह से होने वाले विभिन्न तरह के कैंसर से ग्रस्त मरीजों के इलाज पर खर्च होता है।

    --आईएएनएस
  • बास्केटबाल स्टार गासोल ने रियो में 'जीका' के खतरे पर चेताया
    मेड्रिड, 30 मई (आईएएनएस)। स्पेन के बास्केटबाल के स्टार खिलाड़ी पाउ गासोल ने रियो ओलम्पिक खेलों में जीका वायरस के खतरे के प्रति अपनी शंकाओं को जाहिर किया है।

    गासोल ने साथ ही मच्छरों से जन्मी इस बीमारी के प्रति यूरोप में ज्यादा चिंता न जताए जाने पर काफी हैरानी जताई है।

    समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, शिकागो बुल्स के लिए खेलने वाले 35 वर्षीय एनबीए के स्टार गासोल स्पेन की उस बास्केटबाल टीम का हिस्सा हैं जो मौजूदा यूरोपियन चैम्पियंस है और बीजिंग तथा लंदन ओलम्पिक की उप-विजेता रह चुकी है। इस हिसाब से वह रियो में जीका के खतरे के प्रति चिंता जताने वाले स्पेन के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं।

    समाचार पत्र 'एल पेस' में प्रकाशित बयान में गासोल ने कहा है कि वह इस बात से काफी हैरान हैं कि यूरोप में केवल कुछ ही लोग जीका वायरस और इसके भयंकर परिणामों को लेकर चिंतित हैं। वह मीडिया में इस खतरे के बारे में कम जानकारी देने और सार्वजनिक तौर पर इस बारे में न के बराबर होने वाली चर्चा को लेकर भी आश्चर्यचकित हैं।

    गासोल ने इस बात पर भी निराशा जताई कि अन्य देशों से स्पेन में आए जीका बीमारी के मामले यहां इस खतरे के प्रति जागरूकता फैलाने में नाकाम रहे।

    स्पेनिश बास्केटबॉल खिलाड़ी ने इस बात को भी दोहराया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जीका वायरस को 'ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी' करार दिया है। उन्होंने इसका भी जिक्र किया कि इस संबंध में विश्व के 150 विशेषज्ञों ने अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) को पत्र लिखकर रियो में ओलम्पिक खेलों को स्थगित या यहां से स्थानांतरित करने की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।

    --आईएएनएस
  • दमा मरीजों के लिए डिजिटल इनहेलर डिगिहेलर पेश
    मुंबई/नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। दमा के मरीजों के लिए ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स ने डिजिटल इनहेलर डिगिहेलर पेश किया है। इसमें सटीक डिजिटल डोज काउंटर के साथ कम खुराक के लिए चेतावनी सूचक भी मौजूद है, जो मरीजों को उनके चिकित्सा संबंधी नियमों के अनुपालन पर नजर रखने में सक्षम बनाता है।

    ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के भारत एवं अफ्रीका क्षेत्र के अध्यक्ष एवं प्रमुख सुरेश वासुदेवन ने कहा, "हमें विश्वास है कि डिजिटल क्रांति की उद्योग जगत में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। विशेष तौर पर, अस्थमा एवं सीओपीडी से संबंधित बीमारियों में, जिसमें मरीज द्वारा उपचार हेतु निर्धारित नियमों का पालन नहीं करना विष्वस्तर पर सदियों पुरानी चुनौती है, और यह हर आयु वर्ग के मरीजों में अस्थमा एवं सीओपीडी के अपर्याप्त नियंत्रण का एक प्रमुख कारण का भी है।"

    उन्होंने कहा, "डिगिहेलर भारत का प्रथम डिजिटल डोज इनहेलर (डीडीआई) है, जिसका लक्ष्य सदियों पुरानी इस चुनौती से निपटना है, क्योंकि यह उपकरण मरीजों को उसके द्वारा लिए गए खुराकों की संख्या पर नजर रखने में सक्षम बनाएगा, साथ ही इसमें लगा इंडिकेटर कम खुराक की चेतावनी भी देता है, जो मरीजों के लिए फायदेमंद है। इसके अतिरिक्त यह मरीजों द्वारा उपचार हेतु निर्धारित नियमों के अनुपालन की जांच में डॉक्टरों को सक्षम बनाएगा।'

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2007 के अनुमानों के अनुसार, वर्तमान में विश्वस्तर पर 30 करोड़ लोग दमा से पीड़ित है, और 2025 तक इसके 10 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है। विश्वस्तर पर दमा से प्रतिवर्ष 2,50,000 लोगों की मौत होती है, और इससे भारत में प्रतिवर्ष 57,500 लोगों की मौत होती है।

    भारत में लगभग 3.5 करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं, जिसमें लगभग 40 प्रतिशत मरीज अनियंत्रित अस्थमा से ग्रस्त हैं, जबकि 60 प्रतिशत मरीज आंशिक रूप से नियंत्रित दमा से ग्रस्त हैं।

    --आईएएनएस
  • मौत के नजदीक लाता है सिगरेट का हर कश
    डॉ. रजत अरोड़ा
    नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। तंबाकू उत्पादों के डिब्बों पर इसके सेवन से होने वाले नुकसान के संदेश चाहे कितने ही डरावने क्यों न हों, इसके बावजूद महिलाओं में धूम्रपान की लत बढ़ती ही जा रही है। 21वीं सदी में सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक सबसे बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं को धूम्रपान की लत से बचाना होगा।

    खतरे वाली बात तो यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, तंबाकू के सेवन से वर्तमान में दुनिया भर में प्रत्येक साल 50 लाख लोगों की मौत होती है और अनुमान के मुताबिक, धूम्रपान से साल 2016 से 2030 के बीच की अवधि में 80 लाख लोग तथा 21वीं सदी में कुल एक अरब लोगों की मौत होगी।

    दुनिया भर में साल 2010 में महिलाओं को सिगरेट के विपणन के साथ लिंग तथा तंबाकू के बीच संबंध स्थापित करने के इरादे से वर्ल्ड नो टोबैको डे शुरू किया गया। यह विषय तंबाकू से महिलाओं व लड़कियों को होने वाले नुकसान से लोगों को जागरूक करने के लिए शुरू किया गया और इसे हर साल मनाया जा रहा है।

    महिलाएं/लड़कियां धूम्रपान को अभिव्यक्ति की आजादी समझने लगी हैं। यह आवश्यक है कि महिलाओं का सशक्तीकरण जारी रखना चाहिए, महिलाओं के बीच धूम्रपान की बढ़ती लत के संभावित खतरों तथा जिस प्रकार सिगरेट उद्योग कथित सामाजिक परिवर्तन के लिए महिलाओं को लक्षित कर रहा है, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

    किशोरावस्था में लड़कियां धूम्रपान की शुरुआत करती हैं और साल दर साल इनकी संख्या बढ़ती ही जाती है। इस बात के हालांकि सबूत हैं कि लड़कियों द्वारा धूम्रपान शुरू करने के कारण लड़कों द्वारा धूम्रपान करने के वजहों से अलग है।

    बच्चों का मात-पिता से संबंध भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किशोरों की चाहत माता-पिता, स्कूल व समुदाय से अधिक से अधिक जुड़ाव की होती है। दुर्भाग्यवश, आज के दौर में माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते, जिसके कारण उनके बच्चे की उनकी गलत संगति में पड़ने की संभावना अधिक हो जाती है।

    आधी सदी पहले फेफड़े के कैंसर से महिलाओं की तुलना में पांच गुना ज्यादा पुरुष मरते थे। लेकिन इस सदी के पहले दशक में यह खतरा पुरुष व महिला दोनों के लिए ही बराबर हो गया। धूम्रपान करने वाले पुरुषों व महिलाओं के फेफड़े के कैंसर से मरने का खतरा धूम्रपान न करने वालों की तुलना में 25 गुना अधिक होता है।

    धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बांझपन से जूझने की भी संभावना होती है। सिगरेट का एक कश लगाने पर सात हजार से अधिक रसायन संपूर्ण शरीर व अंगों में फैल जाते हैं। इससे अंडोत्सर्ग की समस्या, जनन अंगों का क्षतिग्रस्त होना, अंडों को क्षति पहुंचना, समय से पहले रजोनिवृत्ति व गर्भपात की समस्या पैदा होती है।

    अब भी वक्त है, धूम्रपान छोड़ दीजिए। धूम्रपान छोड़ने से लंबे समय तक स्वस्थ रहने व जीने का संभावना बढ़ जाती है।

    --आईएएनएस
  • छत्तीसगढ़ : डिलीवरी के बाद से शुरू नहीं होगा प्रसूति अवकाश

    रायपुर, 30 मई (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ में महिला सरकारी कर्मचारियों को अब डिलीवरी के पहले गर्भावस्था से या डिलीवरी के दिन से ही छह महीने का प्रसूति अवकाश मिलेगा। प्रसूति अवकाश में डिलीवरी का दिन भी शामिल रहेगा। डिलीवरी के बाद से प्रसूति अवकाश प्रारंभ नहीं होगा। इसके पहले प्रसूति अवकाश प्रारंभ होने की तिथि स्पष्ट नहीं थी।

    तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रवक्ता विजय झा का कहना है कि प्रसूति अवकाश प्रारंभ होने की तिथि स्पष्ट होने से अब महिला कर्मचारियों को प्रसूति अवकाश का सही लाभ मिल सकेगा।

    वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक छत्तीसगढ़ सिविल सेवाएं (अवकाश) नियम, 2010 में प्रावधान है कि प्रसूति अवकाश इसके प्रारंभ होने के दिन से 180 दिन तक की अवधि के लिए स्वीकृत किया जा सकता है। परीक्षण के लिए प्राप्त एक प्रसूति अवकाश के प्रकरण में वित्त विभाग से यह स्पष्टीकरण चाहा गया था कि नियम में प्रारंभ होने की तिथि का आशय स्पष्ट किया जाए। वित्त विभाग ने इस पर विचार करने के बाद स्पष्ट किया है कि प्रसूति अवकाश में प्रसूति के दिन को शामिल करते हुए गर्भावस्था की अवधि भी शामिल है, लेकिन डिलीवरी के बाद किसी अवधि के लिए स्वीकृत नहीं किया जाएगा। किसी महिला शासकीय सेवक जिसकी दो से कम जीवित संतानें हैं, को 180 दिन तक की अवधि के लिए प्रसूति अवकाश स्वीकृत किया जा सकेगा।

    बताया गया है कि प्रसूति अवकाश के कुछ प्रकरणों में यह बात सामने आई थी कि आवेदक महिला कर्मचारी डिलीवरी के समय मेडिकल अवकाश लेकर डिलीवरी के बाद 180 दिन के प्रसूति अवकाश के लिए आवेदन प्रस्तुत करती थीं। एक महिला कर्मचारी के इसी तरह के आवेदन को परीक्षण के लिए वित्त विभाग को भेजा गया था। इसके परीक्षण के बाद वित्त विभाग ने प्रसूति अवकाश की तिथि प्रारंभ होने का स्पष्ट प्रावधान किया है।

    --आईएएनएस
  • सिगरेट के धुएं के संपर्क में आना भी है खतरनाक

    नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। धूम्रपान करना ही नहीं, बल्कि तंबाकू के धुएं के संपर्क में आना भी बेहद खतरनाक है। ग्लोबल एडल्ट टौबैको सर्वे गेट्स इंडिया 2010 के हालिया अंकड़ों के अनुसार 52.3 फीसदी भारतीय अपने ही घर में, 29.9 फीसदी कार्य स्थल पर और 29 फीसदी सर्वजनिक स्थानों पर सैकेंड हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आते हैं।

    तंबाकूके धुएं में 7000 से ज्यादा रसायन होते हैं, जिनमें से लगभग 70 रसायन कैंसर पैदा करने वाले होते हैं। तंबाकू के धुएं के अप्रत्यक्ष संपर्क आना भी खुद धूम्रपान करने जितना ही खतरनाक है। धूम्रपान करने वालों और उनके करीब रहने वालों की सेहत पर इससे पड़ने वाले बुरे प्रभावों को देखते हुए सख्त कानूनों को लागू कराने के लिए लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।

    मैक्स बालाजी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, पटपड़गंज के सहायक निदेशक एवं कार्डियक कैथ लैब के प्रमुख डॉ.मनोज कुमार ने कहा कि डब्लयूएचओ के मुताबिक, तंबाकू की वजह से दुनिया में हर साल 60 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें से 6 लाख वैसे लोग भी शामिल हैं, जो खुद धूम्रपान नहीं करते, लेकिन इसके संपर्क में आ जाते हैं।

    कैलाश हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीच्यूट, नोएडा के सीनियर इंटरवेनशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संतोष अग्रवाल के मुताबिक, तंबाकू से निकले धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों को पैसिव स्मोकिंग कहा जाता है। जो लोग इस माहौल में सांस लेते हैं, वे धूम्रपान करने वालों के समान ही निकोटिन और विषैले रसायन लेते हैं, जो हमारे शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं।

    पैसिव स्मोकिग गंभीर समस्या बनती जा रही है और इसका हल जरूरी है। चिकित्सा क्षेत्र के लोगों, नीति बनाने वालों और आम लोगों को मिलकर इसके बारे में काम करना होगा। धूम्रपान करने वालों और उनके परिवार को इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना और छोड़ने में मदद करना चाहिए।

    शोध के मुताबिक, जो लोग 35 से 39 की उम्र में धूम्रपान छोड़ देते हैं, उनकी उम्र 6 से 9 साल बढ़ जाती है। छोड़ने से फेफड़ों और गले के कैंसर, अस्थमा, सीओपीडी, कैट्रेक्ट और मसूड़ों की बीमारियां के साथ साथ दिल के रोगों का खतरा टल जाता है।

    --आईएएनएस

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