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टी वी पर हंगामेदार बहस: मुस्लमान महिलाऐं 'क़ाज़ी' बन सकती हैं? Featured

शीबा असलम फ़हमी

यह टी वी पर हंगामेदार बहस का हिस्सा है, विषय है की क्या मुस्लमान महिलाऐं 'क़ाज़ी' बन सकती हैं? डिबेट में शामिल मौलानाओं को ऐतराज़ है की मुस्लमान औरतों को क़ाज़ी बनने का सपना नहीं पालना चाहिए.
टीवी स्टूडियो में एक निहायत खुदगर्ज़ और मर्दवादी मौलाना से मेरा टकराव हो जाता है, मैंने सवाल शुरू किये की, औरत को क़ाज़ी बनने में इस्लाम तो रुकावट नहीं फिर मर्दों को क्यों ऐतराज़ है? ये बहस शो में शुरू हुई और ब्रेक के दौरान जारी रही.
मुल्ला: क़ुरआन में महिलाओं को इजाज़त नहीं दी गयी क़ाज़ी बनने की.
सवाल: क़ुरआन में महिलाओं के क़ाज़ी बनने पर रोक भी नहीं, जैसे कार ड्राइव करने पर या खाना पकाने पर रोक नहीं और वो ये काम करती हैं.
मुल्ला : क़ुरआन में कही नहीं कहा है की औरतें मर्दों की बराबरी करें. औरतों का काम है घर का देखना, मर्दों का काम है बाहर का देखना.
सवाल: क़ुरआन में तो कहीं नहीं लिखा है की औरतों को बावर्ची बनना चाहिए, फिर वो खाना भी क्यों बनाएं? क़ुरआन तो पतियों को हुक्म देता है की अपनी बीवी को पका हुआ खाना उपलब्ध करना पति का फ़र्ज़ है.
मुल्ला: नहीं तो क़ाज़ी ही क्यों बनना है? औरत मर्द के बराबर कभी नहीं हो सकती ये आप अच्छी तरह से समझ लीजिये.
सवाल: औरतों को पढ़ना चाहिए की नहीं?
मुल्ला: जी बिलकुल! घर में रह कर तालीम हासिल करें.
सवाल: घर में रह कर वो डॉक्टर, पुलिस, वकील, जज आदि बन जाएंगी?
मुल्ला: ज़रूरी है की हर औरत ये सब बने? वो घर में बच्चों की बेहतर देखभाल करे.
सवाल: बच्चे पैदा करने जब वो बार-बार अस्पताल जाएगी तो अस्पताल में उसे नर्स, सहायक, डॉक्टर की ज़रुरत होगी कि नहीं? क्या मुस्लमान औरतें ये सब काम नहीं सीखेंगी ?
मुस्लमान औरतों के बच्चे जनवाने के लिए बस ग़ैर मुस्लिम महिलाऐं नर्स-डॉक्टर की ट्रेनिंग करेंगी क्या? मुस्लमान औरतें क्यों नहीं सीखेंगी ये काम?
मुल्ला: अस्पताल जाने की ज़रुरत क्या है? घर में बच्चे पैदा हो सकते हैं. ये तो डॉक्टर ने ठगी करने के लिए धंधा बना रखा है. (मुल्ला ने ये सब भयानक बातें स्टुडिओ में ८-१० लोगों के सामने कहीं, जिनमे दीपक चौरसिया और रशीद हाश्मी नाम के दो एंकर भी शामिल थे)
सवाल: अच्छा तो बच्चा पैदा करने के लिए मुस्लमान माओं को अस्पताल भी नहीं जाना चाहिए? आपके पैसे बचाने के लिए घर में ही बच्चा पैदा करने का रिस्क लेना चाहिए?
मुल्ला: पहले सबके बच्चे घर में होते ही थे, अस्पताल जाने की क्या ज़रुरत?
सवाल: तो पहले बच्चा पैदा करने में महिलाओं की जान भी तो जाती थी?
मुल्ला: अगर अच्छा खाना पीना दीजिये तो कैसे जान जाएगी?
सवाल: क्या जान खाने-पीने की कमी की वजह से ही जाती है बस? और क्या हर मुस्लमान के घर में अच्छा खाना पीना है? मुस्लमान तो इस देश का सबसे ग़रीब तब्क़ा है ये आपको नहीं पता? आप हर घर में अच्छे खान-पान की व्यवस्था करवाएंगे?
मुल्ला: मेरी बहन आप पहले तो शरई तरीके से बाहर निकलिये. आपका बुर्क़ा कहाँ है? आप जिस तरह बेशर्मी से बहस कर रही हैं, मुंह खुला हुआ है , इसकी इजाज़त इस्लाम में नहीं।
एंकर दीपक चौरसिया : देखिये आप पर्सनल वेश-भूषा पर कमेंट नहीं करिये. ये नहीं चलेगा.
(इतने में एंकर राशिद हाश्मी ने विरोध जताया की मेरी माँ भी बुर्का नहीं पहनतीं तो क्या वो बेशर्म हैं?)
मुल्ला: (राशिद से) मेरे भाई ये हम मर्दों की कमी है की हम कुछ कहते नहीं.
सवाल: क्या आप अस्पताल जाते हैं बीमार पड़ने पर?
मुल्ला: अल्हम्दोलिलाह मैं बीमार नहीं पड़ता, न ही मेरी दोनों बीवियों में से किसी को बच्चा पैदा करने के लिए अस्पताल जाना पड़ा.
एंकर: आपकी दो बीवियां हैं?
मुल्ला: अल्हम्दोलिल्लाह !
सवाल: आप को क्या लगता है की ग़रीब मुस्लमान कहाँ से आप जैसी खुराक पाये? आप को बिना मेंहनत उमदा माल मिल जाता है, बेचारा ग़रीब मुस्लमान क्या करे? आखरी बार कब आपने अपनी मेहनत की रोटी खाई थी मौलाना?
मुल्ला: आप जो चाहती है वो नहीं होगा कभी भी, औरत को अल्लाह ने मर्द से कमतर बनाया है. औरत कुछ भी कर ले वो मर्द के बराबर नहीं हो सकती. वो जिस्मानी तौर पर कमज़ोर है.
सवाल: मौलाना आप पी टी ऊषा से तेज़ दौड़ लेंगे?
मुल्ला: देखिये अब आप ऐसी बातें करने लगीं ! (अब गुस्सा आ गया था मुल्ला को)
खैर तब तक ब्रेक ख़त्म हो गया और फिर से महिला-क़ाज़ी के सवाल पर ऐतराज़ और समर्थन पर बहस शुरू हो गयी.

लेखिका महिलाओं के सवालों को लेकर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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