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पश्चिम बंगाल : यौन दासता में भारत के उछाल का केंद्र Featured

हिमाद्री घोष
साल 2005-06 से पिछले 9 सालों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 76 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इस आर्थिक बदलाव का श्याह पहलू यौन तस्करी में वृद्धि भी है।

देश में सेक्स के लिए मानव तस्करी में इस दौरान 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जो वेश्यावृत्ति के उदेश्य से किए जाते हैं। वहीं, मानव तस्करी का हर पांचवां मामला पश्चिम बंगाल में पाया जाता है जो इस उद्योग का केंद्र बन गया है।

देश के कुल 42 फीसदी लड़कियों का अपहरण पश्चिम बंगाल के मानव तस्करों ने ही किया।

हमने अमीना और पिंकी से संलाप नाम की गैरसरकारी संस्था के जरिये मुलाकात की जो केंद्रीय कोलकाता से 16 किलोमीटर दूर नरेंद्रपुर में स्थित है। इन लड़कियों का भविष्य अनिश्चित है, लेकिन यौन दासी के रूप में बेच दी गई हजारों लड़कियों से कहीं बेहतर है जिन्हें इतनी भी राहत नसीब नहीं। पश्चिम बंगाल कम उम्र की लड़कियों के लिए काफी खतरनाक जगह बन चुका है, जो गरीब परिवारों की नाबालिग लड़कियों के लिए विशेष रूप से खतरनाक है।

इसके फलस्वरुप कोलकाता के मध्य में स्थित सोनागाछी एशिया की सबसे बड़ी देह की मंडी बन चुकी है। यहां हजारों नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर लाया जाता है और यहां से ज्यादातर के लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है।

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2014 (सबसे नवीनतम आकंड़े इसी साल तक उपलब्ध हैं) के आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी में देश में पिछले साल के मुकाबले 38.7 फीसदी की वृद्धि देखी गई। इस साल मानव तस्करी के देश भर में कुल 1,096 मामले दर्ज किए गए जिनमें से 20.1 फीसदी मामले पश्चिम बंगाल के हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर से अगवा की गई नाबालिग लड़कियों में से 42 फीसदी
(850) घटनाएं पश्चिम बंगाल में हुई।

संलाप की गीता बनर्जी बताती है कि कई सारे सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद पूरे पश्चिम बंगाल में मानव तस्करी के खतरे को लेकर 'जागरूकता की गंभीर कमी' है।

उनकी सहयोगी तापोती भौमिक पश्चिम बंगाल में इस तरह के व्यापार की सर्वव्यापकता के बारे में बताती हैं कि एक बार कोलकाता की एक चाय दुकान के मालिक का आचरण उन्हें 'कुटिल' दिखाई दिया और वह उन्हें परेशान करता था। इसके बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकारी दी और उसके संदिग्ध आचरण के बारे में बताया। दो हफ्ते बाद पुलिस ने भौमिक को जानकारी दी कि उन्होंने उस चाय दुकान के बेसमेंट से 50 नेपाली लड़कियों को आजाद कराया है। उनमें से 19 लड़कियों की उम्र 9 से 14 साल के बीच थी।

आखिरकार क्यों ये लड़कियां कभी मानव तस्करों और कोठों के चंगुल से छूट नहीं पाती? इसका जवाब राज्य और केंद्र सरकार के अकर्मण्यता में छुपा है।

2011 में अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर वैश्विक सम्मेलन के दौरान सरकार 335 मानव तस्करी निरोधक इकाई (एएचटीयू) की स्थापना पर सहमत हुई थी। यह भारत के लगभग आधे जिलों में स्थापित किया जाना था जो मानव तस्करी को लेकर खतरनाक थे। इसके तहत 10,000 पुलिसवालों, न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और अन्य साझेधारों को प्रशिक्षित किया जाना था। लेकिन पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त में नई दिल्ली ने राज्यों को महज 15 विस्तृत परामर्श जारी की है।

इस योजना के असफल होने के कई कारण है। इंडियास्पेंड की जांच में इसके दो प्रमुख कारण सामने आए हैं।

1. उदाहरण के लिए, प्रस्तावित 335 एएचटीयू को 2013 तक स्थापित किया जाना था। लेकिन जनवरी 2016 तक महज 270 इकाई की स्थापना ही हो पाई है। यह जानकारी राज्यसभा में सरकार द्वारा एक सवाल के जबाव से सामने आई है।

2. इन इकाइयों को 2010-11 से 2014-15 तक 20 करोड़ रुपये जारी किए गए। यानी सभी इकाइयों को एक लाख रुपये प्रति महीने जो कि केंद्र की गणना के मुताबिक जरूरत के 54 करोड़ रुपये के आधे से भी कम है।

इनमें से भी कई जिलों में इस पैसों का प्रयोग ही नहीं किया गया। एएचटीयू की बैठकों से यह खुलासा हुआ है कि एक मामले में 10 टैबलेट, एक कम्प्यूटर और 3,000 रुपये का एक फोन खरीदने में ही सारा बजट खर्च हो गया।

इन मानव तस्करी निरोधी इकाइयों की असफलता के क्या कारण हैं?

बंगलुरू के एएचटीयू इकाई जो देश के अन्य हिस्सों से अपेक्षाकृत बेहतर हालत में है, के पुलिस उपाधीक्षक डी. एन. शेट्टेनावार ने बताया कि यह एक कमरे में छह कंप्यूटरों और कुछ टेलीफोन लाइनों से चल रहा है। इसके प्रमुख एक अधीक्षक हैं जिनके पास तीन डीसीपी, तीन इंस्पेक्टर, चार हवलदार और दो सिपाही का दल है।

वे बताते हैं कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त नहीं है।

जबकि कोलकाता जो मानव तस्करी का केंद्र बना हुआ है। वहां एएचटीयू का एक अपना टेलीफोन लाइन तक नहीं है। यह अपने टेलीफोन लाइन को महिलाओं और बच्चों के संरक्षण सेल के साथ मिलकर चलाता है।

पश्चिम बंगाल के एएचटीयू प्रमुख सरबरी भट्टाचार्जी से जब इस बारे में संपर्क किया गया तो संपर्क नहीं हो सका। वहां के गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी मलय कुमार को ईमेल से कुछ सवाल भेजे गए जिसका कोई जवाब नहीं दिया गया।

साल 2011 में पश्चिम बंगाल में चार एएचटीयू केंद्र थे, जबकि जून 2015 तक प्रस्तावित 19 जिलों में से महज 9 जिलों में ही यह केंद्र स्थापित हो पाया है। आश्चर्यजनक यह है कि 2011 में चार केंद्र के बाद 2012 में इकाइयों की संख्या घट कर तीन रह गई।

लोकसभा के आंकड़ों के मुताबिक एएचटीयू की स्थापना के लिए केंद्र द्वारा भेजे गए 30 लाख रुपये का 25 फीसदी पश्चिम बंगाल इस्तेमाल ही नहीं कर पाया और महज 22.7 लाख रुपये का इस्तेमाल हुआ।

बांग्लादेश के साथ 2,217 किलोमीटर, नेपाल के साथ 92 किलोमीटर और भूटान के साथ 175 किलोमीटर लंबी सीमा के कारण पश्चिम बंगाल मानव तस्करी का केंद्र बन गया है। पुलिसिंग की कमी के कारण कोलकाता के बाहरी इलाकों में पबों और बार की बाढ़ सी आ गई हैं जहां भारी सख्या में लड़कियां काम कर रही हैं।

अब देशभर में मानव तस्कर नई तकनीकों का प्रयोग करने लगे हैं और इस मामले में पुलिस से आगे निकल गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के ड्रग एंड क्राइम ऑफिस (यूएनडीओसी) के आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी अपराध जगत का सबसे तेजी से फलने-फूलने वाला कारोबार बन गया है। जो कि ड्रग और हथियारों की तस्करी के बाद तीसरा सबसे अवैध कारोबार है और यह 32 अरब डॉलर का है।

(इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Read 256 times Last modified on Sunday, 24 April 2016 11:27
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