राजेश जोशी
देशभक्ति और देशद्रोह की नयी परिभाषाएँ बन रही हैं । अगर जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय के छात्र अफजल गुरू की फाँसी पर चर्चा करना चाहें तो वो देशद्रोही है। और मोदी जी अगर अफजल गुरू को शहीद मानने वाली और उसकी फाँसी को जुडीशियरी हत्या करार देने वाली राजनीतिक पार्टी से मिलकर सरकार बनायें तो यह देशभक्ति के अंतर्गत आयेगा। अगर कन्हैया भूख से आज़ादी कहे, बेरोजग़ारी से आज़ादी कहे, जातिवाद से, मनुवादी सोच से आज़ादी कहे तो देशद्रोह है। बैंकों का नौ हजार करोड़ रूपया डकार कर माल्या जी चुपचाप बाहर भाग जायें तो वह देशभक्ति है । वित्तमंत्री जी उनकी मदद करें, भागने की सलाह दें, वह देशभक्ति है।
देशभक्ति की परिभाषा अब या तो भाजपा तय करेगी या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तय करेगा। अब यह हक न तो संसद को है न संविधान को कि वह तय करे कि देशभक्ति क्या है या देश द्रोह क्या है? कभी कभी मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी यह मान चुकी है कि सिर्फ सरकार बनाने का ही बहुमत उसे नहीं मिला है, यह देश भी उसे जागीर की तरह सौंप दिया गया है। हालांकि मात्र 31 प्रतिशत वोट उसे मिले हैं और लोकसभा में उसका बहुमत सिर्फ सात या आठ सांसदों का ही है। राज्य सभा में अभी तक भाजपा अल्पमत में ही है। लेकिन कौन समझाये कि भाई साहब यह देश आपके पिताजी की जागीर नहीं है। आप तय नहीं करेंगे कि किसी को क्या पहनना चाहिये, क्या खाना चाहिये और क्या बोलना चाहिये?
राममंदिर, देशभक्ति-देशद्रोह के बाद एक नया झुनझुना इस समय बजाया जा रहा है .....भारतमाता की जय का। कहा जा रहा है कि जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा उसे देश में रहने का हक नहीं है। मैं लगातार इन भारतमाता को ढूंढ रहा हूँ। ये भारतमाता कब आयीं? याने इस अवधारणा का जन्म कब हुआ? किस रूप में हुआ? संस्कृत साहित्य में भारतमाता नहीं है। भारतेन्दु केे यहाँ भी मुझे भारतमाता नहीं नजऱ आयीं। क्या संघ का जन्म जब 1925 में हुआ तो उसके पास भारतमाता की कोई अवधारणा थी? अगर थी तो वह कैसी भारतमाता थी? उसकी तस्वीर क्या थी? क्या उसके पीछे भारत का नक्शा था? क्या वही नक्शा आज भी भारतमाता के पीछे है? अगर वही नक्शा अब भी भारतमाता के पीछे है तो उसमें तो पाकिस्तान और बंगलादेश भी होगा।
अगर ऐसा है तो भारत माता की जय का मतलब तो पाकिस्तान की जय और बंगलादेश की भी जय हो जायेगा! फिर इस देशभक्ति का क्या होगा? जिसमें पाकिस्तान की जय भी छिपी हुई है? अगर वह नक्शा बदल गया है। भारत माता का स्वरूप बदल गया। उनकी बेड़ी खुल चुकी है। तो यह भारत माता 1947 के बाद की भारत माता है, कविपंत इसकी पहचान भारतमाता, ग्रामवासिनी की तरह करते हैं। अवनीन्द्रनाथ टैगोर की भारतमाता में भारत का नक्शा नहीं है। वह एक चारभुजा धारी स्त्री है। उस तस्वीर को भारतमाता कैसे माने? क्या कल से कोई भी किसी भी तरह का चित्र बना देगा और उसके नीचे लिख देगा कि यह भारतमाता है तो हम मान लेंगे कि वह भारतमाता है?
भारतमाता की प्रमाणिक तस्वीर क्या है? वह हमारे किसी भी राष्ट्रीय चिह्न का हिस्सा क्यों नहीं है? लाल किले से इतने सारे प्रधानमंत्री बोले, किसी ने भी भारतमाता की जय का नारा नहीं लगाया .... क्यों? अचानक ही भाजपा को ये भारतमाता क्यों याद आगयी? भारतमाता क्या एक राजनीतिक शगूफा मात्र है? अगर भारत माता सारे देशवासियों की माँ है तो भी उसकी जय बोलने से क्या होगा? क्या आप अपने घर में अपनी माँ की जयकारा का नारा लगाते हैं? माँ के साथ तो प्रेम का, आदर का या उससे जि़द करने का रिश्ता होता है। एक आत्मीय रिश्ता होता है। इतना दूर का रिश्ता तो नहीं होता कि हम उसका जयकारा लगायें। यह नकली मातृ प्रेम भाजपा और संघ को मुबारक हो ...।