BREAKING NEWS
भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत 49.35 डॉलर प्रति बैरल
अलकायदा के संदिग्ध सदस्यों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल
मध्य प्रदेश : राज्यसभा चुनाव ने कांग्रेस नेताओं को एकजुट किया
किस योगदान का ईनाम है टैक्स माफी ? जवाब दे सरकार, निरस्त हो छूट
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए ओबामा का हिलेरी को समर्थन
'उड़ता पंजाब' विवाद में सेंसर बोर्ड की भूमिका चौंकाने वाली : अनुपम
दर्शकों के प्रति मां-बाप जैसा रवैया नहीं अपनाएं : कंगना रनौत
अफगानिस्तान में भारतीय सहायताकर्मी का अपहरण
राजनीतिक दोषारोपण के खेल में असल मुद्दा खोया : अनुराग
जौ खाने से दूर होगा हृदय रोग का खतरा

LIVE News

भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत 49.35 डॉलर प्रति बैरल

अलकायदा के संदिग्ध सदस्यों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल

मध्य प्रदेश : राज्यसभा चुनाव ने कांग्रेस नेताओं को एकजुट किया

किस योगदान का ईनाम है टैक्स माफी ? जवाब दे सरकार, निरस्त हो छूट

अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए ओबामा का हिलेरी को समर्थन

विश्व जल दिवस पर विशेष: तो क्या अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा? Featured

ऋतुपर्ण दवे
जल के बिना जीवन की कल्पना असंभव है, लेकिन इसकी कमी के बीच जीवन कितना कष्टकर होगा ये उससे भी बड़ी जीवंत विडंबना है। देश के कई हिस्सों में अभी से जबरदस्त जल संकट गहरा गया है।

यह किसी त्रासदी से क्या कम है कि महाराष्ट्र के लातूर में पानी के लिए खूनी संघर्ष को रोकने के, 'विश्व जल दिवस' के दिन धारा 144 लागू है। कमोवेश यही स्थिति अभी मार्च के दूसरे पखवाड़े में ही आधे से ज्यादा देश में बनी हुई है। मार्च ही क्यों, हर साल लगभग 7-8 महीने पानी का घनघोर संकट कई प्रांतों में बना रहता है।

कई राज्य अभी से जबरदस्त सूखे की कगार पर हैं। कुएं, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावड़ियों का अस्तित्व समाप्त प्राय है। भूजल का स्तर बेहद नीचे जा चुका है। मशीनरी युग में और कितना नीचे तक पानी के लिए खुदाई की जाएगी यह एक डरावनी कल्पना की हकीकत में बदलती तस्वीर है। अब लगने लगा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा।

तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल-कारखाने, उद्योगों और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया, जिस कारण आज गिरता जल स्तर बेहद चिंता का कारण बना हुआ है।

रियो डि जेनेरियो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 'विश्व जल दिवस' की परिकल्पना की गई थी और तभी 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' के रूप यानी जल संरक्षण दिवस सुनिश्चित किया गया।

आंकड़े बताते हैं कि अभी दुनिया में करीब पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल पाता। यह सोचना ही होगा कि केवल पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रकृति प्रदत्त जल का संरक्षण करना है। एक-एक बूंद जल के महत्व को समझना होना होगा। हमें वर्षाजल के संरक्षण के लिए चेतना ही होगा।

अंधाधुंध औद्योगीकरण और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से, हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है लेकिन पीने लायक कितना यह सर्वविदित है! रेगिस्तानी इलाकों की भयावह तस्वीर बेहद डरावनी और दुखद है। पानी के लिए आज भी लोगों को मीलों पैदल जाना पड़ता है।

आधुनिकता से रंगे इस दौर में भी गंदा पानी पीना मजबूरी है। भले ही इससे जल जनित रोग हो जाएं और जान पर बन आए लेकिन प्यास तो बुझानी ही होगी! आंकड़े बताते हैं, पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन इसमें पीने लायक अर्थात मीठा पानी केवल 40 घन किलोमीटर ही है।

दूसरे शब्दों में पृथ्वी पर मौजूद 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र का है जो खारा है, केवल 2.7 प्रतिशत पानी ही मीठा है। दैनिक आवश्यकताओं की अगर बात की जाए तो अमूमन एक व्यक्ति औसतन 30-40 लीटर पानी रोजाना इस्तेमाल करता है।

उल्लेखनीय है कि 2015 में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। यह 1992 के संयुक्त राष्ट्र संरचना सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) का 21वां और 1997 के क्योटा प्रोटोकॉल का 11वां सत्र था। इसमें भारत सहित 195 देश जुटे थे, जहां सभी ने वायुमंडल में नुकसानदेह गैसों के उत्सर्जन और अवशोषण पर गंभीर चर्चा की लेकिन कितनी बड़ी विडंबना थी कि भूगर्भीय जल को भूल गए। रासायनिक ²ष्टि से भी देखा जाए तो पानी और हवा के संयोजन से ही जलवायु का अस्तित्व है।

हमारे वेद और उपनिषद भी कहते हैं कि जल में ही ऊर्जा तत्व मौजूद होते हैं जो पृथ्वी के तापमान को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन पेरिस सम्मेलन जल के इस गुण को याद नहीं रख सका। यहां भी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर तो विकसित और विकासशील देशों के बीच खूब चर्चा हुई और मतभेद भी साफ नजर आए, लेकिन जल का संरक्षण कैसे हो, कुछ बात नहीं हुई।

अधिकांश देश अमूमन इस बात से सहमत थे कि सभी देशों को कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए काम करना चाहिए।

कार्बन उत्सर्जन को ही लू, बाढ़, सूखा और समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी का कारण माना जा रहा है, लेकिन इस सम्मेलन पर भूगर्भीय जल के गिरते स्तर पर गंभीर चर्चा को गैरजरूरी समझा गया।

अब सबसे जरूरी है कि बारिश के पानी को सहेजा जाए जो कि बहुत आसान है। छोटे-छोटे प्रयासों से संभव है जैसे गहरी जड़ों, धीरे-धीरे बढ़ने वाले वृक्ष अधिक से अधिक लगाए जाएं। घरों में वर्षा जल संचयन अर्थात वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए। 3-4 मीटर चौड़ी और 10-15 मीटर लंबी खाइयों को खाली जगहों पर बनाया जाए उसमें पत्थर, बजरी और मोटी रेत का भराव किया जाए जो पानी को सोखे और वो भूगर्भ तक पहुंचे।

इसी तर्ज पर गहरे गढ्ढे बनाकर भी ऐसा किया जा सकता है जो कि पानी सोखने का काम करते हैं। छोटे-छोटे तालाब, बांध, नाले, रपटा, स्टाप डैम भी जनभागीदारी से हर मोहल्ले, गांव, कस्बे और शहर में तैयार किए जा सकते हैं जो भूर्गभीय जल संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

पीने का पानी निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है और इसके लिए सरकार का मुंह देखना खुद के साथ बेमानी होगी। बेहतर यही होगा कि हर किसी को इसके लिए एक-एक आहुति देनी होगी और तभी हम पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की भयावहता को न केवल टाल पाएंगे, बल्कि जल ही जीवन का नारा सार्थक कर पाएंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Related items

  • वायु प्रदूषण से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित

    लंदन, 10 जून (आईएएनएस)| वायु प्रदूषण शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है और यह कई तरह के रोगों का कारण बनता है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, वायु प्रदूषण बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

    शोध के निष्कर्ष के मुताबिक, वायु प्रदूषण ने बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाया है और अध्ययन के दौरान इससे कम से कम एक बच्चा या किशोर मनोरोग का शिकार हुआ।

    आवासीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और कणिका तत्व हैं।

    कणिका तत्व को कण प्रदूषण भी कहा जाता है जो हवा में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूंदों के मिश्रण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।

    स्वीडन की ऊमेआ यूनिवर्सिटी में इस अध्ययन की मुख्य लेखक अन्ना उदिन ने कहा, "वायु प्रदूषण और सबसे अधिक यातायात से होने वाले वायु प्रदूषण की उच्च सांद्रता बच्चों और किशोरों में मानसिक विकारों को बढ़ा सकता है।"

  • उपवास के दौरान कैसे रखे मधुमेह का ध्यान

    नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)| रमजान के दौरान जो मधुमेह के मरीज उपवास करते हैं, उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए उन्हें डॉक्टरी सलाह के बाद ही उपवास करना चाहिए, ऐसा विशेषज्ञों का कहना है। रमजान के दौरान आमतौर पर सुबह से शाम तक उपवास रखा जाता है और यह एक महीने तक चलता है।

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक भोजन में इतने लंबे समय तक का अंतर जो अमूमन 12 से 15 घंटों तक का होता है, उसके कारण शरीर के चयापचय में परिवर्तन आ जाता है, जिससे मधुमेह के मरीजों को काफी गंभीर स्वास्थ्य परेशानियां हो सकती है।

    मैक्स सुपर स्पेशियिलटी अस्पताल, साकेत के निदेशक (मधुमेह व मोटापा केंद्र) विकास अहलुवालिया का कहना है, "अगर आपको मधुमेह है, इसके बावजूद आप रमजान के दौरान उपवास रखना चाहते हैं। तो उससे पहले डॉक्टर की सलाह लेना बेहद जरूरी है ताकि रोजे के दौरान आप सभी एहतियाती कदम उठा सकें।"

    मधुमेह ऐसी स्थिति है जब इंसुलिन हार्मोन की कमी के कारण रक्त में शर्करा की अधिकता हो जाती है या शरीर के कोशिकाओं की रक्त में शर्करा के संचय के प्रतिरोध की क्षमता घट जाती है।

    रमजान के दौरान उपवास से डिहाइड्रेशन से लेकर रक्त में शर्करा के स्तर में तेज उतार-चढ़ाव हो सकता है।

    फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के वरिष्ठ सलाहकार (एंडोक्राइनोलॉजी विभाग) राकेश कुमार प्रसाद का कहना है, "लंबे समय तक उपवास और बेहद कम अंतराल पर 2 से 3 बार खाना खाने से शर्करा के स्तर में बेहद तेज उतार-चढ़ाव हो सकता है।"

    मधुमेह रोगी अगर उपवास करते हैं तो उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया (रक्त में शर्करा के स्तर में तेज कमी) हो सकता है, जिससे वे बेहोश हो सकते हैं और नजर का धुंधलापन, सिरदर्द, थकान और तेज प्यास लगने जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

    टाइप 1 मधुमेह के शिकार जिन्हें पहले भी हाइपोग्लाइसेमिया रहा है, उन्हें उपवास के दौरान खतरा और भी बढ़ जाता है।

    मुंबई के वॉकहार्ड अस्पताल की सलाहकार (एंडोक्राइनोलॉजिस्ट) शेहला शेख कहती हैं, "मरीजों को लगातार थोड़े-थोड़े अंतराल पर अपने रक्त में शर्करा के स्तर की जांच करनी चाहिए। अगर कोई मरीज इंसुलिन ले रहा है तो उसे उपवास के दौरान इसकी मात्रा में बदलाव की जरुरत पड़ सकती है।"

    डॉक्टरों ने बताया कि उपवास करने से मधुमेह रोगी की हालत इतनी खराब हो सकती है कि उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। उसे केटोएसिडोसिस हो सकता है, जिसमें शरीर रक्त अम्लों (कीटोन) का अत्यधिक उत्पादन करने लगता है, जिसके कारण उल्टी, डिहाईड्रेशन, गहरी सांस में परेशानी, मतिभ्रम और यहां तक कोमा में जाने जैसी गंभीर समस्या हो सकती है।

    इसके अलावा उनमें थ्रोमबोसिस विकसित हो सकता है जिसके कारण खून जम सकता है।

    डॉ. ए. रामचंद्रन्स डाइबिटीज अस्पताल चेन्नई के डॉ. ए. रामचंद्रन बताते हैं, "डॉक्टरों और मरीजों को मिलकर दवाईयां और आहार को व्यवस्थि करना चाहिए, ताकि रमजान के दौरान 30 दिनों तक मधुमेह का सही तरीके से प्रबंधन किया जा सके।"

    आदर्श रूप में किसी मधुमेह मरीज को रमजान से एक महीने पहले से ही किसी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और खानपान, इंसुलिन की मात्रा और अन्य दवाइयों को लेकर दी गई उसकी सलाह का पालन करना चाहिए।

    मधुमेह के मरीजों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे उच्च कार्बोहाइड्रेट खाने पर काबू रखें, क्योंकि यह उनके रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकता है। यह टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद जरुरी है।

    रोजा के दौरान चीनी, रॉक चीनी, पॉम चीनी, शहद और कंडेंस्ड मिल्क को सीमित मात्रा में लेनी चाहिए।

    हालांकि लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले कार्बोहाइड्रेट पदार्थो जैसे ब्राउन चावल, अनाज से बने ब्रेड, सब्जियां आदि ली जा सकती हैं, जबकि व्हाइट चावल, व्हाइट ब्रेड या आलुओं के सेवन से बचना चाहिए।

    रमजान के दौरान जब दिन भर लंबा उपवास तोड़ते हैं तो शरीर को पानी की बेहद जरूरत होती है, इसलिए इस दौरान शुगर फ्री और कैफीन फ्री पेय पदार्थ ही लेना चाहिए।

    जानी मानी डायटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट रितिका समादार ने आईएएनएस को बताया, "मधुमेह मरीजों के लिए यह जरूरी है कि वे प्राकृतिक शर्करा ही प्रयोग करें जैसे जूस की बजाए फल का सेवन करें।"

    शहरी के दौरान कम मात्रा में खाना खाएं। मिठाइयां, तले हुए स्नैक्स, ज्यादा नमक या ज्यादा चीनी वाले पदार्थो के सेवन से बचें। इसके अलावा भोजन के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए और कम से कम दो घंटे का अंतराल जरूर रखें।

    रामचंद्रन बताते हैं, "यह बेहद महत्वपूर्ण है कि संतुलित भोजन ग्रहण किया जाए, जिसका 20 से 30 फीसदी हिस्सा प्रोटीन हो। इसमें फल, सब्जियां और सलाद को शामिल जरूर करें और खाना बेक या ग्रिल करके पकाएं।"

    शहरी में ज्यादा प्रोटीन और कम कार्बोहाइड्रेट खाएं जिसमें ढेर सारे फल, अनाज से बने ब्रेड, होल ग्रेन लो शुगर सेरेल्स, बीन और दालें शामिल हों।

    समादार का कहना है, "अहले सुबह लिए जाने वाले भोजन में प्रोटीन शामिल करें जैसे अंडे या दाल इत्यादि जो ऊर्जा को धीरे-धीरे दिन भर ऊर्जा का निस्तारन करती है। दिन भर ऊर्जा पाने के लिए एक संपुर्ण भोजन जरुरी है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और स्वास्थ्यकारी वसा का होनी चाहिए।"

    अहलुवालिया बताते हैं, "मधुमेह के मरीजों के लिए उपवास का फैसला इसमें दिए गए छूट के धार्मिक दिशानिर्देशों और सावधानीपूर्वक डॉक्टरी सलाह को ध्यान में रखकर करना चाहिए।"

  • छग : देवरी की खुदाई में पुरापाषाणकालीन औजार मिले
    रायपुर, 7 जून (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ की राजधानी से महज 100 किलोमीटर दूर बलौदाबाजार जिले के ग्राम देवरी में संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही खुदाई में आदिमानव की उपस्थिति के निशान मिले हैं। यहां मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के मानव द्वारा उपयोग में लाए गए पत्थर के कुछ औजार प्राप्त हुए हैं।

    पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के संचालक राकेश चतुर्वेदी और उपसंचालक राहुल सिंह ने कहा कि देवरी जिला बलौदा बाजार-भाटापारा में संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व द्वारा किए जा रहे उत्खनन कार्य के दौरान टीम को शिवनाथ की सहायक नदी जमुनिया के तटवर्ती क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के मानव द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले पत्थर के कुछ औजार प्राप्त हुए हैं।

    देवरी के उत्खनन से पहले दो प्रस्तर उपकरण मिले थे, जो इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानव की उपस्थिति का संकेत दे रहे थे।

    दोनों अधिकारियों ने उत्खनन निदेशक डॉ. वृषोत्तम साहू और टीम के सदस्यों डॉ. अतुल प्रधान, प्रवीण तिर्की, चेतन मनहरे और प्रभात कुमार सिंह ने जमुनिया नदी के तट का सर्वेक्षण किया।

    सर्वेक्षण के दौरान जमुनिया नदी के दोनों धाराओं के संगम के निकट से मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के प्रस्तर उपकरण जैसे फलक, ब्लेड, कोर और अर्धचंद्राकार औजार प्राप्त हुए हैं, जो चर्ट, अगेट और चेल्सिडोनी पत्थर से बनाए गए हैं। इन औजारों को आदिमानव द्वारा उपयोग में लाए जाने के भी चिन्ह देखे जा सकते हैं।

    देवरी के टीलों के उत्खनन कार्य के विस्तार के दौरान पहले प्राप्त ईंट निर्मित दो शिव मंदिरों के ठीक दक्षिण में एक-दो मीटर वर्गाकार ईंट निर्मित संरचना प्रकट हुई है। इन मंदिरों को चारों ओर से घेरे हुए लगभग एक मीटर चौड़ी एक भित्ति के अवशेष भी सामने आ रहे हैं। पूर्व में इस स्थल से कलचुरीकाल के तांबे के सिक्के, विष्णु और चंवरधारिणी की प्रतिमाएं भी प्राप्त हो चुकी हैं।

    --आईएएनएस
  • मथुरा कांड : सवालों का दौर अभी बाकी है!

    ऋतुपर्ण दवे
    अब उसे कंस कहें या नृशंस, कोई फायदा नहीं। पूरे देश के सामने जो सच सामने आया, उसने राज्य और केन्द्र के खुफिया तंत्र की कलई खोलकर रख दी। सवाल तो सुलगेगा, लंबे समय तक सियासत भी होगी, होनी भी चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की आहट के ऐन पहले इस हकीकत ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। अभी तो प्रश्नों की बौछार आनी शुरू हुई है। लगातार झड़ी बाकी है।

    मथुरा कई दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है। धार्मिक नगरी के रूप में आस्था और श्रद्धा का केंद्र है, यहीं बड़ी तेल रिफायनरी भी है। लगभग 1085 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के जरिए यहां तेल शोधन के लिए लाया जाता है। ऐसे में मथुरा राज्य और केन्द्र, दोनों के खुफिया तंत्र के राडार पर होना चाहिए। बड़ा सवाल, ऐसा क्यों नहीं हुआ?

    हैरानी की बात है कि सत्याग्रह के नाम पर दो दिनों के लिए पनाह की खातिर मिली 270 एकड़ जमीन पर अपनी समानान्तर सरकार चलाने वाले कंस रूपी नृशंस रामवृक्ष पर दो वर्षों में ही 10 से ज्यादा मुकदमे कायम किए गए, लेकिन उसका कुछ भी नहीं बिगड़ पाया। जाहिर है यह सब केवल कागजी खानापूर्ति की रस्म अदायगी थी।

    भूखे, बेरोजगार, गरीब और मुसीबत के मारों को मिलाकर बना संगठन, किस खूबी से मथुरा में काम कर रहा था और प्रशासन किस कदर नाकाम था! आजाद हिन्दुस्तान के इतिहास में शायद ही ऐसा उदाहरण कहीं मिले कि प्रशासन की नाक के नीचे, खुले आम किसी की बादशाहत चलती रहे और पास में ही जिले के मुखिया पंगु बने बैठे रहें। उससे बड़ी शर्मनाक और खुफियातंत्र को धता बताने वाली घटना यह रही कि हथियार, गोला बारूद, बम और न जाने क्या-क्या इकट्ठे होते रहे और खुफिया तंत्र को कानों कान खबर तक नहीं हुई।

    इसे चूक कहना नाइंसाफी होगा। निश्चित रूप से यह बिना राजनीतिक शह के संभव नहीं है। लेकिन सवाल फिर भी यही कि मथुरा की सुरक्षा की जवाबदेही जितनी राज्य सरकार की बनती है, उतनी ही केन्द्र की भी। प्रशासन की नाक के नीचे कोई इतना बड़ा अपराधी बन जाए, यह रातोंरात संभव नहीं है। अहम यह कि लाखों की आबादी के बीच, शहर में सरकार के लिए चुनौती बना मुखिया देशद्रोह, विद्रोह, एकता-अखण्डता खण्डित करने की हुंकार भरे, पुलिस पर हमला करे सरकारी सम्पत्ति हथियाए और उस पर मामूली अपराधों के तहत मामले दर्ज हों!

    पूछने वाले जरूर पूछेंगे कि हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार और न जाने कितने वे जो जब-तब देशद्रोह के कटघरे में आ जाते हैं, उनसे कैसे अलग था रामवृक्ष यादव?

    अब तो रामवृक्ष यादव के नक्सलियों से तार जुड़े होने के सूबत भी मिल रहे हैं। जवाहर बाग की फैक्ट्री में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल से आतंक फैलाने का कच्चा माल आता था। इतना ही नहीं जरूरत के हिसाब से उपयोग के बाद ये गोला-बारूद वापस भी किया जाता था। सैकड़ों किलोमीटर दूर से आकर दो साल तक तबाही का यह बाजार सजता रहा और समूचा सुरक्षा तंत्र कुछ सूंघ तक नहीं पाया?

    रामवृक्ष यादव का अतीत सबके सामने है। इटावा के ही तुलसीदास यादव यानी जय गुरुदेव का चेला था। उन्हीं की तर्ज पर ये भी सुभाषचंद्र बोस के नाम का इस्तेमाल करता था। 18 मई 2012 को जय गुरुदेव की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर तमाम लोगों की निगाहें थी। रामवृक्ष यादव सहित तीन प्रमुख दावेदार थे। दो अन्य उनका ड्राइवर पंकज यादव और एक अन्य चेला उमाकान्त तिवारी थे। सम्पत्ति कब्जाने में पंकज यादव सफल रहा जिसने रामवृक्ष को आश्रम से बाहर का रास्ता दिखाया।

    रामवृक्ष के शातिर दिमाग ने राजनीति की ओर रुख किया और 2014 में फिरोजाबाद सीट पर जबरदस्त सक्रिय रहकर उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के लिए अपने 3 हजार से ज्यादा समर्थकों के साथ खूब काम किया और चुनाव में जीत भी हासिल हुई। इससे उसकी हैसियत बढ़ी। कहते हैं तभी इसके मन में मथुरा के जवाहरबाग का सपना पला और दो दिन के लिए धरने के नाम पर आसानी से अनुमति ले ली (राजनैतिक निकटता के चलते मिलनी ही थी) और अपनी कथित फौज के साथ रामवृक्ष यादव ने वहां जो अपना डेरा डमाया, उसका अंत कैसे हुआ, यह सबके सामने है। कहते हैं कि उसने मथुरा में कभी भी तेज तर्रार अधिकारियों की अपने राजनैतिक रसूख के दम पर नियुक्ति नहीं होने दी।

    मथुरा कांड सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रहा है। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस अमिताभ ठाकुर की फेसबुक वाल खूब सुर्खियों और चर्चा में है, जिसमें लिखा है 'मथुरा की घटना गलत पैसे को हासिल करने की हवस और अनैतिक राजनैतिक शह का ज्वलंत उदाहरण है। हम शीघ्र ही मथुरा जाकर व्यक्तिगत स्तर पर पूरे प्रकरण की जांच करेंगे ताकि इस मामले में असली गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई कराने में योगदान दे सकें।'

    ठाकुर ने पोस्ट में मांग की है कि 'डीएसपी जिया उल हक के परिवार की तरह एसपी सिटी और एसओ के परिवार को भी 50 लाख रुपए और 2 नौकरी का मुआवजा दिया जाए।' लेकिन, उन्होंने सबसे ज्यादा गंभीर आरोप उत्तर प्रदेश के एक मंत्री का नाम लेकर, प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहयोग का आरोप लगाते हुए जांच की मांग कर सनसनी फैला दी जो कि सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी सुप्रीमो के रक्त संबंधी हैं।

    हैरानी वाली बात, रामवृक्ष यादव इतना सब कुछ करता रहा और प्रशासन नाकाम और पंगु कैसे बना रहा! अचरज जरूर होता है, पर बिना शह कैसे संभव है यह?

    इस घटना के बाद लोकतंत्र की दुहाई देने वालों के चेहरे भी अचानक लोगों को खुद-ब-खुद याद आने लगे हैं। विशेषकर वे, जो न्यायपालिका-कार्यपालिका-विधायिका की बातें करते हैं। कई मौकों पर न्यायपालिका को उसकी औकात जताने की कोशिश भी करते हैं, नसीहतें देते हैं। मथुरा में सपोला और भी बड़ा भक्षी बनता, उसके पहले ही न्यायपालिका ने तथ्यों से अवगत होते ही दो साल में ही आतंक का साम्राज्य बन चुके रामवृक्ष यादव के आतंक रूपी अतिक्रमण को हटाने के आदेश जारी कर दिए।

    भला हो याचिकाकर्ता अधिवक्ता विजयपाल तोमर का जिनकी वजह से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संज्ञान में पूरा मामला लाया। अगर विधायिका और कार्यपालिका पर सवाल उठते हैं तो क्या गलत? लगता नहीं कि इतना बड़ा मामला शुरू होते ही प्रशासन की जानकारी में न आया हो। बस जवाब इतना ही चाहिए कि प्रशासन, सरकार और सुरक्षा तंत्र नाकाम क्यों रहा? इसका जवाब मिलेगा या नहीं, यह तो पता नहीं पर इतना जरूर पता है कि भला हो भारत की न्यायपालिका का जो कई मौकों पर खुद आगे आकर लोकतंत्र के लिए कड़े फैसले लेती है। भला ये लोकतंत्र के शहंशाहों को क्यों अच्छा लगेगा?

    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

    --आईएएनएस

  • उप्र में धूप, उमस बढ़ी

    लखनऊ, 6 जून (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ व आसपास के इलाकों में सोमवार को सुबह से ही तेज धूप निकली हुई है, जिससे उमस में वृद्घि हुई है। मौसम विभाग ने अगले 24 घंटों के दौरान तापमान में किसी तरह के खास बदलाव की उम्मीद नहीं है।

    मौसम विभाग के निदेशक जे.पी. गुप्ता के अनुसार, दिन में तेज धूप निकलने से तापमान में मामूली वृद्घि दर्ज की जाएगी। दिन में पूर्वाचल के कुछ जिलों में हल्के बादल छाने की संभावना है।

    मौसम विभाग के अनुसार, सोमवार को राजधानी लखनऊ का न्यूनतम तापमान 24 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस दर्ज किए जाने का अनुमान है।

    लखनऊ के अतिरिक्त सोमवार को बनारस का न्यूनतम तापमान 22 डिग्री, कानपुर का 22.4 डिग्री, गोरखपुर का 23.3 डिग्री, झांसी का 26 डिग्री, इलाहाबाद का 25.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

    --आईएएनएस

  • मथुरा हिंसा और सत्याग्रह की केंचुल
    प्रभुनाथ शुक्ल
    मथुरा मंे सत्याग्रह की आड़ में कानून हाथ में लिया गया। 'सत्याग्रहियों' ने हिंसा का रास्ता अपनाया और बेगुनाह पुलिस अफसरों को पीटकर और गोलियों से भून डाला। क्या कसूर था उन पुलिस अफसरों का? क्यों की गई उनकी हत्या ? रामवृक्ष के बेतुकी और सनकी मांगों को दो सालों तक क्यों दिया गया संरक्षण?

    रामवृक्ष के सत्याग्रह केंचुल ने कई सवाल पैदा किए हैं।

    गाजीपुर के एक गांव से दो साल पूर्व पलायन कर मथुरा पहुंचने वाले रामवृक्ष का कुनबा और उसकी विचाराधारा इतनी अतिवादी और हिंसक हो जाएगी, यह किसी की कल्पना में नहीं था। आखिर यह कैसा सत्याग्रह था जिसका मकसद ही हिंसा और अतिवाद पर आधारित था। यह सत्याग्रह की मूल आत्मा को आघात पहुंचाने वाला है।

    अतिवाद पर आधारित हिंसा ने सत्याग्रह को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत पैदा की है। गांधीजी और विनोबा जी के सत्याग्रह और उसकी आत्मा को चोट पहुंचाई गई है। लोकतंत्र में विचारों का स्थान है, न कि विकारों और हिंसा का। देश में धर्म, जाति, संप्रदाय, विचाराधारा के नाम पर लाखों एकड़ सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा जमाया गया है जहां सरकार, सफेदपोश और अधिकारी जाकर खुद माथा टेकते हैं। धर्म और संप्रदाय की आड़ मंे इस तरह की संस्थाएं फलती-फूलती हैं।

    आशाराम और रामपाल, राधे मां और अन्य तमाम धर्मो में वैचारिक पाखंडियों ने इस तरह का विलासिता का साम्राज्य खड़ा किया है। इसका वास्तविक धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। इस तरह के लोग सिर्फ धर्म और उसकी आत्मा को बदनाम करते हैं और आघात पहुंचाते हैं। धर्म की आड़ में सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा किया गया है। हरियाणा में संत रामपाल को सलाखों के पीछे भेजने के लिए पुलिस को हिंसक दौर से गुजरना पड़ा, यह किसी से छुपा नहीं है। इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? किसकी शह पर इन्हें सरकारी जमीनें उपलब्ध कराई जातीं हैं?

    धर्म की आड़ में कानूनों, भू-कानूनों का दुरुपयोग जग जाहिर है। यह सब सरकारों के लचर रुख के कारण होता है। रामवृक्ष यादव और उसके अनुयायियों को जिस तरह राजनीतिक संरक्षण दिया गया, वह बिल्कुल गलत था।

    लोकतंत्र में गलत परंपराओं की शुरुआत पूरी व्यवस्था का गला घोंट रही है। अभिव्यक्ति की आजादी का अतिवाद लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर रहा है। देश में बढ़ता आतंकवाद, नक्सलवाद और अलगाववाद अभिव्यक्ति की स्वच्छंदता का ही परिणाम है।

    मथुरा हिंसा से पुलिस अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती है। प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा रहा कि भगवान कृष्ण की नगरी में रामवृक्ष सरीखे कंस ने खूनी खेल खेला। सत्याग्रह के नाम पर उसके सनकी विचारों को जिस तरह प्रशासनिक संरक्षण दिया गया, आज वही प्रशासन और सरकार की गले की फांस बन गया। दो साल में सत्याग्रह की आड़ में रामवृक्ष ने अपना पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया लेकिन पुलिस उसका कुछ नहीं कर पाई।

    सत्याग्रह के लिए महज दो दिन का वक्त लेने वाले रामवृक्ष के संगठन को दो साल का समय कैसे मिल गया? पुलिस विभाग का खुफिया तंत्र क्या कर रहा था? निश्चित रूप से इस मामले में पुलिस विभाग ने जरूरत से अधिक लापरवाही बरती। मथुरा जिला प्रशासन और सरकार ने रामवृक्ष की बढ़ती अतिवादी मांगों पर गौर नहीं किया। खुफिया विभाग ने अगर उसकी तैयारियों और नक्सलवादी विचाराधारा के बारे में जानकारियां जुटाईं होतीं तो आज यह स्थिति नहीं आती। दो पुलिस अफसरों के साथ 28 लोग हिंसक सत्याग्रह की बलि नहीं चढ़ते।

    सरकार और जिला प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाया। जयगुरुदेव आश्रम में मारपीट करने के बाद उस और समर्थकों पर मुकदमा भी हुआ। उस पर इस दौरान 10 मुकदमे हुए। लेकिन, पुलिस ने यह जांच कभी नहीं कराई कि रामवृक्ष के आजाद हिंद विचाराधारा से कौन, कैसे और कहां के लोग जुड़ रहे हैं और क्यों जुड़ रहे हैं? वह लोगों को अपनी सनक और बेतुकी मांगों से कैसे प्रभावित कर रहा है? इसकी वजह क्या है? जवाहरबाग में जमा ढाई हजार से अधिक लोग और युवा कहां से हैं? संगठन में शामिल इन लोगों की पृष्ठभूमि क्या है? समय रहते पुलिस ने अगर इस तरह की पड़ताल और आवश्यक खुफिया जानकारी जुटाई होती तो आज उसे अपने ही जाबांज पुलिस अफसरों को न खोना पड़ता। लेकिन, दुर्भाग्य से यह नहीं हुआ।

    रामवृक्ष किसी विचारधारा का पोषक नहीं था। वह विचाराधारा की आड़ में जयगुरुदेव का उत्तराधिकारी बन अकूत संपत्ति पर कब्जा करना चाहता था। उसकी तरफ से यह बेतुकी अफवाह फैलाई गई थी कि जयगुरुदेव नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नए अवतार हैं। वह अपने अनुयायियों की एक फौज खड़ी करना चाहता था जिसके लिए उसने नेताजी के विचारों को आगे लाकर गरीब युवाओं को अपना शिकार बनाया।

    मथुरा जिला प्रशासन ने वन विभाग की शिकायत पर उसे कई बार जवाहरबाग से बेदखल करने की कोशिश की लेकिन कोशिश नाकाम रही। उसके समर्थक इतने उग्र थे कि अधिकारियों को बंधक बना लेते और हिंसा पर उतर आते। पुलिस पीछे हट जाती। उसी का नतीजा है कि उसने बाग की 270 एकड़ जमीन पर कब्जा जमा लिया था। इसे खाली कराने के लिए पुलिस को अपने दो जांबाज अफसरों एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसएचओ फरह संतोष यादव को खोना पड़ा।

    सरकार प्रतिपक्ष के निशाने पर है क्योंकि अगले साल राजनीतिक लिहाज से सबसे बड़े राज्य में आम चुनाव होने हैं। लिहाजा भाजपा, बसपा और कांग्रेस जैसे दल चुप कहां बैठने वाले हैं। भाजपा के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है। उसे सरकार को घेरने का अच्छा मौका मिल गया है। हलांकि, यह वक्त राजनीति का नहीं है। सत्ता किसी के भी हाथ में हो, होनी को नहीं रोका जा सकता है। लेकिन, आवश्यक कदम उठा कर इसकी भयावहता कम की जा सकती थी।

    रामवृक्ष यादव को प्रदेश सरकार की तरफ से 15 हजार पेंशन भी दी जाती रही।

    इस आंदोलन के पीछे किसी राष्ट्रविरोधी संगठन की साठ-गांठ हो सकती है। कथित सत्याग्रहियों की पूरी कार्यप्रणाली नक्सलियों के तरीकों पर आधारित रही। नक्सलवाद, आतंकवाद आज इसी तरह की संस्थाओं और संगठनों का अतिवाद है। इसकी पीड़ा देश को अलग-अलग हिस्सों में झेलनी पड़ रही है।

    लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए सभी को समान अवसर उपलब्ध हैं। लेकिन, अधिकारों की आड़ में संबंधित आंदोलन की दिशा क्या है, इस पर भी विचार होना चाहिए। इस तरह के संगठन, संस्थाओं और संप्रदायों पर प्रतिबंध लगना चाहिए जो विचाराधारा और धर्म की आड़ में कानून को हाथ में लेकर खूनी खेल खेलते हैं। सरकारों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जिससे मथुरा जैसी कंसलीला पर प्रतिबंध लगाया जा सके। यह समय की मांग है।

    (ये लेखक के निजी विचार हैं। आईएएनएस/आईपीएन)

    --आईएएनएस

खरी बात

छत्तीसगढ़ के मुख्य सेवक रमन सिंह के नाम एक तुच्छ नागरिक का खुला पत्र

माननीय मुख्यमंत्री,छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर. महोदय, इस राज्य के मुख्य सेवक को इस देश के एक तुच्छ नागरिक का सलाम. आशा है, मेरे संबोधन को आप व्यंग्य नहीं समझेंगे, क्योंकि देश...

आधी दुनिया

14 फीसदी भारतीय कारोबार की लगाम महिलाओं के हाथ

ऋचा दूबे एक ऑनलाइन खुदरा कारोबार चलाती हैं, जो कारीगरों को उपभोक्ताओं से जोड़ता है। यह आधुनिक भारतीय महिला के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन हाल के आंकड़ों...

जीवनशैली

पुरुषों के पास डॉक्टर के पास जाने का समय नहीं!

न्यूयार्क, 10 जून (आईएएनएस)| पुरुष अपने पारिवारिक डॉक्टर के पास नियमित जांच के लिए जाने की जगह आमतौर पर वहां न जाने के बहाने ढूंढते हैं और उनका सबसे बड़ा...