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रासायनिक रंग कहीं होली न कर दें बदरंग

लखनऊ, 22 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। होली की आमद के साथ बाजारों में जहां रौनक छाई हैं। वहीं गुझिया, पापड़, चिप्स, शक्कर पारे, नमक पारे, समेत तरह-तरह के व्यंजनों और मिष्ठानों की खुशबू घरों को महका रही है। उधर बाजार भी होली के त्योहार के लिए पूरी तरह तैयार है।

कई तरह के रंगांे से बाजार सज गया है, जहां एक तरफ फूलों से बनाए गए रसायन रहित प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ी है। वहीं रंगों के इस त्योहार में शुद्धता के नाम पर केमिकल युक्त रंग बाजार में बेचे जा रहे हैं, जिससे चेहरे पर लगते ही आंखो की रोशनी चली जाती है तो चर्मरोग की भी शिकायत होने लगती है।

इसे देखते हुए चिकित्सकों ने होली पर बाजारों में उपलब्ध रंगों के कम इस्तेमाल की सलाह देते हुए कहा कि केमिकल युक्त रंग गुलाल त्वचा के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकते हैं, अगर रंग अथवा गुलाल आंखों में गिर जाए तो आंखों की रोशनी तक को खतरा पैदा हो सकता है, जबकि कई रंग तो शरीर की त्वचा के लिए बेहद खतरनाक साबित होते हैं।

इन रंगों के प्रयोग से त्वचा के झुलसने तथा अन्य कई प्रकार की बीमारियां पनप सकती है। त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार, होली पर केमिकल युक्त रंगों से पूरी तरह बचना चाहिए।

वरिष्ठ नेत्र रोग चिकित्सक शिवम मेहता ने बताया कि होली धूमधाम के साथ मनाएं, लेकिन आखों को बचाकर, अगर यह रंग आखों में चला जाता है तो काफी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।

उन्होंने कहा कि अगर आप होली का रंग खेल रहे हैं तो आंखों का विशेष ध्यान रखें। इसमें अगर रंग पड़ जाता है तो पुतलियों का काफी नुकसान दे सकता है। इस कारण होली खेलने के दौरान आंखों में चश्मा पहनें, ताकि सामने वाला व्यक्ति चेहरे पर रंग लगाने के दौरान आंखो में न लगा सके। हो सके तो आप भी लोगों के आंखो को बचाकर ही दूसरे को रंग लगाए।

वहीं चर्म रोग डॉक्टर ने बताया कि होली में हम कई बार जाने-अनजाने में केमिकल युक्त रंगों का इस्तेमाल करते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक है।

उन्होंने कहा कि होली खेलते समय कुछ बातों का ध्यान नहीं रखा गया तो शरीर को नुकसान पहुंच सकता है। चर्मरोग विशेषज्ञ ने बताया कि होली रंगो का त्यौहार है। लेकिन मिलवाटी रंगों के कारण लोगों के शरीर पर इंफेक्शन हो जाता है, जो छह माह या साल तक परेशान करता है।

इन इंफेक्शन से बचने के लिए होली खेलने से पहले पूरे शरीर में कड़वा तेल या कोई चिकनाई युक्त लोशन या क्रीम लगाएं, ताकि चिकनाई होने के कारण शरीर में रंग असर नहीं करेगा।

उन्होंने कहा कि यदि इसके बाद भी कोई रंग लगने पर खुजली या कोई तकलीफ होती है तो रंग को साफ पानी से धो लें और क्रीम लगाएं। उसके बाद भी तकलीफ रहती है तो किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • केंचुओं से फैलता है 'एस्कारियसिस' संक्रमण

    नई दिल्ली, 11 जून (आईएएनएस)| 'एस्कारियसिस' भारत में परजीवी से मनुष्य को होने वाली सबसे आम बीमारी है। पूरी दुनिया में इस बीमारी से एक अरब से ज्यादा लोग पीड़ित हैं। 'एस्कारियसिस ल्युंब्रिकोयडिस' नामक केंचुए के परजीवी से फैलने वाली इस बीमारी की मुख्य वजह नमी युक्त वातावरण का होना है, जो इस परजीवी के पनपने के लिए एक उचित माहौल प्रदान करता है।

    यह बीमारी उन इलाके में ज्यादा पाई जाती है जहां पर साफ-सफाई का ध्यान बहुत कम रखा जाता है, जिससे मिट्टी और पानी दूषित हो जाता है। इस बीमारी से पीड़ित सबसे ज्यादा लोग एशिया (73 प्रतिशत), अफ्रीका (73 प्रतिशत) और दक्षिणी अमेरिका (73 प्रतिशत) में पाए जाते हैं, जहां इसके मामलों की संख्या 95 प्रतिशत तक होती है।

    वैसे तो यह बीमारी सभी उम्र के लोगों में हो सकती है, लेकिन दो से 10 साल के बच्चों में यह ज्यादा पाई जाती है और 15 साल की उम्र आने तक इसका संक्रमण कम होने लगता है। इसका संक्रमण पूरे परिवार में फैल सकता है और परिवार में रह रहे लोगों की संख्या के अनुसार कीड़ों की संख्या होती है।

    85 प्रतिशत मामलों में इस संक्रमण के कोई लक्षण नजर नहीं आते, खासकर कीड़ों की संख्या अगर कम हो। कीड़ों की संख्या बढ़ते ही इसके लक्षण भी बढ़ने शुरू हो जाते हैं, जिनमें सांस का टूटना और शुरुआत में बुखार होना। इसके बाद पेट में सूजन, पेट दर्द और दस्त आदि भी हो सकते हैं।

    यह संक्रमण केंचुए के मल के जरिए उसके अंडों के खाने-पीने के चीजों में मिलने से फैलता है। यह अंडे आंत में पलते हैं, आंत की दीवारों को खोद कर रक्त के जरिये फेफड़ों में चले जाते हैं। वहां से यह एलवियोली में घुस जाते हैं और श्वास प्रणाली में चले जाते हैं, जहां पर वह ऊपर चढ़ने लगते हैं और पूरी तरह से फैल जाते हैं। फिर उनका लार्वा पेट से दूसरी बार गुजरता है और आंत में जाकर वह विकसित कीड़े बन जाते हैं।

    हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डा. के.के. अग्रवाल बताते हैं, "इस बीमारी का पता जांच करके लगाया जाता है। जिन क्षेत्रों में केंचुआ अधिक मात्रा में पाया जाता है, वहां इसकी रोकथाम काफी मुश्किल होता है। शौचालयों का प्रयोग करके, मल को सही तरह से निपटा कर, लोगों को हाथ धोने के महत्व के बारे में जागरूक करके इसकी रोकथाम की जा सकती है।"

  • जौ खाने से दूर होगा हृदय रोग का खतरा

    टोरंटो, 10 जून (आईएएनएस)| भोजन में जौ का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार बैड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को महत्वपूर्ण रूप से कम करता है। एक नए अध्ययन में इस बात का पता चला है कि जौ में जई की तरह ही कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले प्रभाव मौजूद होते हैं। शोध के निष्कर्षो के मुताबिक, शरीर में कम-घनत्व वाले लाइपोप्रोटीन (एलडीएल) और गैर-उच्च घनत्व वाले लाइपोप्रोटीन (नॉन एचडीएल) को सात प्रतिशत कम कर सकता है।

    कनाडा के सेंट मिशेल हॉस्पिटल से व्लादिमिर वुकसुन ने बताया, "यह निष्कर्ष टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जिन्हें हृदय रोगों का जोखिम सर्वाधिक होता है। ऐसे लोगों में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य रहता है, लेकिन गैर-एचडीएल या एपोलाइपोप्रोटीन बी का स्तर उच्च होता है।"

    जौ केवल बैड कोलेस्ट्रॉल के उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में ही नहीं, बल्कि बिना उच्च कोलेस्ट्रॉल के लोगों को भी फायदा पहुंचा सकता है।

    जौ में प्रोटीन की तुलना में दोगुना फाइबर होता है, जो वजन नियंत्रण या आहार चिंताओं का सामना कर रहे लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण है।

    इस शोध के लिए कनाडा समेत सात देशों के चिकित्सकीय परीक्षणों पर 14 अध्ययन किए गए।

    यह शोध 'यूरोपीयन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

  • 3-डी विजन वाले रोबोट करेंगे कैंसर का इलाज

    नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)| रोबोटिक सर्जरी अब तेजी से प्रगति के लिए तैयार है क्योंकि ज्यादातर अस्पताल अब नवीनतम कंप्यूटर संचालित सर्जिकल रोबोट लगा रहे हैं। ऐसी आशा है कि 2020 तक 25 भारतीय शहरों में 100 से अधिक अस्पतालों में 3डी विजन वाले डेक्सटरस रोबोट सर्जरी में मदद कर रहे होंगे। वटिकुटी फाउंडेशन के माध्यम से भारत में 2010 से रोबोटिक सर्जरी की दिशा में प्रगति हेतु प्रयासरत राज वटिकुटी का कहना है, "हम युवा सर्जनों को रोबोटिक सर्जरी अपनाने के लिए प्रेरित करने के अलावा कुशल रोबोटिक सर्जनों की संख्या 500 तक पहुंचाएंगे। अपनी ओर से योगदान करते हुए वटिकुटी फाउंडेशन अगले 5 वर्षो के दौरान सुपर स्पेशलिस्ट सर्जनों को रोबोटिक सर्जन बनने के लिए 100 पेड फेलोशिप प्रदान करेगा।"

    राज वटिकुटी ने बताया, "यद्यपि 2015 में रोबोट की सहायता से 4,000 सर्जरी की गईं, जो कि 5 वर्षों में पांच गुनी वृद्धि है, लेकिन भारत ने अपनी संभावनाओं का लाभ उठाना अभी शुरू ही किया है, क्योंकि इसके फायदे मेट्रो शहरों से आगे बढ़कर जन-जन तक पहुंचाए जा सकते हैं।"

    रोबोटिक सर्जरी प्रोस्टेट, गायनेकोलॉजिकल, सिर व गर्दन, फेफड़ों और आंतों व मलाशय के कैंसर से पीड़ित रोगियों के लिए मददगार हैं क्योंकि इनसे गलतियों की संभावना कम हो जाती है, प्रक्रियाओं में दाग नहीं बचते और रिकवरी तेज गति से होती है।

    इस समय भारत में 30 अस्पतालों में केवल 190 रोबोटिक सर्जन हैं। 2020 तक कुशल रोबोटिक सर्जनों की संख्या बढ़ाकर 500 करने और 100 अस्पताल तक पहुंचाने की योजना बनाई गई है।

  • वायु प्रदूषण से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित

    लंदन, 10 जून (आईएएनएस)| वायु प्रदूषण शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है और यह कई तरह के रोगों का कारण बनता है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, वायु प्रदूषण बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

    शोध के निष्कर्ष के मुताबिक, वायु प्रदूषण ने बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाया है और अध्ययन के दौरान इससे कम से कम एक बच्चा या किशोर मनोरोग का शिकार हुआ।

    आवासीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और कणिका तत्व हैं।

    कणिका तत्व को कण प्रदूषण भी कहा जाता है जो हवा में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूंदों के मिश्रण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।

    स्वीडन की ऊमेआ यूनिवर्सिटी में इस अध्ययन की मुख्य लेखक अन्ना उदिन ने कहा, "वायु प्रदूषण और सबसे अधिक यातायात से होने वाले वायु प्रदूषण की उच्च सांद्रता बच्चों और किशोरों में मानसिक विकारों को बढ़ा सकता है।"

  • उपवास के दौरान कैसे रखे मधुमेह का ध्यान

    नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस)| रमजान के दौरान जो मधुमेह के मरीज उपवास करते हैं, उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए उन्हें डॉक्टरी सलाह के बाद ही उपवास करना चाहिए, ऐसा विशेषज्ञों का कहना है। रमजान के दौरान आमतौर पर सुबह से शाम तक उपवास रखा जाता है और यह एक महीने तक चलता है।

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक भोजन में इतने लंबे समय तक का अंतर जो अमूमन 12 से 15 घंटों तक का होता है, उसके कारण शरीर के चयापचय में परिवर्तन आ जाता है, जिससे मधुमेह के मरीजों को काफी गंभीर स्वास्थ्य परेशानियां हो सकती है।

    मैक्स सुपर स्पेशियिलटी अस्पताल, साकेत के निदेशक (मधुमेह व मोटापा केंद्र) विकास अहलुवालिया का कहना है, "अगर आपको मधुमेह है, इसके बावजूद आप रमजान के दौरान उपवास रखना चाहते हैं। तो उससे पहले डॉक्टर की सलाह लेना बेहद जरूरी है ताकि रोजे के दौरान आप सभी एहतियाती कदम उठा सकें।"

    मधुमेह ऐसी स्थिति है जब इंसुलिन हार्मोन की कमी के कारण रक्त में शर्करा की अधिकता हो जाती है या शरीर के कोशिकाओं की रक्त में शर्करा के संचय के प्रतिरोध की क्षमता घट जाती है।

    रमजान के दौरान उपवास से डिहाइड्रेशन से लेकर रक्त में शर्करा के स्तर में तेज उतार-चढ़ाव हो सकता है।

    फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के वरिष्ठ सलाहकार (एंडोक्राइनोलॉजी विभाग) राकेश कुमार प्रसाद का कहना है, "लंबे समय तक उपवास और बेहद कम अंतराल पर 2 से 3 बार खाना खाने से शर्करा के स्तर में बेहद तेज उतार-चढ़ाव हो सकता है।"

    मधुमेह रोगी अगर उपवास करते हैं तो उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया (रक्त में शर्करा के स्तर में तेज कमी) हो सकता है, जिससे वे बेहोश हो सकते हैं और नजर का धुंधलापन, सिरदर्द, थकान और तेज प्यास लगने जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

    टाइप 1 मधुमेह के शिकार जिन्हें पहले भी हाइपोग्लाइसेमिया रहा है, उन्हें उपवास के दौरान खतरा और भी बढ़ जाता है।

    मुंबई के वॉकहार्ड अस्पताल की सलाहकार (एंडोक्राइनोलॉजिस्ट) शेहला शेख कहती हैं, "मरीजों को लगातार थोड़े-थोड़े अंतराल पर अपने रक्त में शर्करा के स्तर की जांच करनी चाहिए। अगर कोई मरीज इंसुलिन ले रहा है तो उसे उपवास के दौरान इसकी मात्रा में बदलाव की जरुरत पड़ सकती है।"

    डॉक्टरों ने बताया कि उपवास करने से मधुमेह रोगी की हालत इतनी खराब हो सकती है कि उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। उसे केटोएसिडोसिस हो सकता है, जिसमें शरीर रक्त अम्लों (कीटोन) का अत्यधिक उत्पादन करने लगता है, जिसके कारण उल्टी, डिहाईड्रेशन, गहरी सांस में परेशानी, मतिभ्रम और यहां तक कोमा में जाने जैसी गंभीर समस्या हो सकती है।

    इसके अलावा उनमें थ्रोमबोसिस विकसित हो सकता है जिसके कारण खून जम सकता है।

    डॉ. ए. रामचंद्रन्स डाइबिटीज अस्पताल चेन्नई के डॉ. ए. रामचंद्रन बताते हैं, "डॉक्टरों और मरीजों को मिलकर दवाईयां और आहार को व्यवस्थि करना चाहिए, ताकि रमजान के दौरान 30 दिनों तक मधुमेह का सही तरीके से प्रबंधन किया जा सके।"

    आदर्श रूप में किसी मधुमेह मरीज को रमजान से एक महीने पहले से ही किसी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और खानपान, इंसुलिन की मात्रा और अन्य दवाइयों को लेकर दी गई उसकी सलाह का पालन करना चाहिए।

    मधुमेह के मरीजों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे उच्च कार्बोहाइड्रेट खाने पर काबू रखें, क्योंकि यह उनके रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकता है। यह टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित मरीजों के लिए बेहद जरुरी है।

    रोजा के दौरान चीनी, रॉक चीनी, पॉम चीनी, शहद और कंडेंस्ड मिल्क को सीमित मात्रा में लेनी चाहिए।

    हालांकि लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले कार्बोहाइड्रेट पदार्थो जैसे ब्राउन चावल, अनाज से बने ब्रेड, सब्जियां आदि ली जा सकती हैं, जबकि व्हाइट चावल, व्हाइट ब्रेड या आलुओं के सेवन से बचना चाहिए।

    रमजान के दौरान जब दिन भर लंबा उपवास तोड़ते हैं तो शरीर को पानी की बेहद जरूरत होती है, इसलिए इस दौरान शुगर फ्री और कैफीन फ्री पेय पदार्थ ही लेना चाहिए।

    जानी मानी डायटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट रितिका समादार ने आईएएनएस को बताया, "मधुमेह मरीजों के लिए यह जरूरी है कि वे प्राकृतिक शर्करा ही प्रयोग करें जैसे जूस की बजाए फल का सेवन करें।"

    शहरी के दौरान कम मात्रा में खाना खाएं। मिठाइयां, तले हुए स्नैक्स, ज्यादा नमक या ज्यादा चीनी वाले पदार्थो के सेवन से बचें। इसके अलावा भोजन के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए और कम से कम दो घंटे का अंतराल जरूर रखें।

    रामचंद्रन बताते हैं, "यह बेहद महत्वपूर्ण है कि संतुलित भोजन ग्रहण किया जाए, जिसका 20 से 30 फीसदी हिस्सा प्रोटीन हो। इसमें फल, सब्जियां और सलाद को शामिल जरूर करें और खाना बेक या ग्रिल करके पकाएं।"

    शहरी में ज्यादा प्रोटीन और कम कार्बोहाइड्रेट खाएं जिसमें ढेर सारे फल, अनाज से बने ब्रेड, होल ग्रेन लो शुगर सेरेल्स, बीन और दालें शामिल हों।

    समादार का कहना है, "अहले सुबह लिए जाने वाले भोजन में प्रोटीन शामिल करें जैसे अंडे या दाल इत्यादि जो ऊर्जा को धीरे-धीरे दिन भर ऊर्जा का निस्तारन करती है। दिन भर ऊर्जा पाने के लिए एक संपुर्ण भोजन जरुरी है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और स्वास्थ्यकारी वसा का होनी चाहिए।"

    अहलुवालिया बताते हैं, "मधुमेह के मरीजों के लिए उपवास का फैसला इसमें दिए गए छूट के धार्मिक दिशानिर्देशों और सावधानीपूर्वक डॉक्टरी सलाह को ध्यान में रखकर करना चाहिए।"

  • छग : देवरी की खुदाई में पुरापाषाणकालीन औजार मिले
    रायपुर, 7 जून (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ की राजधानी से महज 100 किलोमीटर दूर बलौदाबाजार जिले के ग्राम देवरी में संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही खुदाई में आदिमानव की उपस्थिति के निशान मिले हैं। यहां मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के मानव द्वारा उपयोग में लाए गए पत्थर के कुछ औजार प्राप्त हुए हैं।

    पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के संचालक राकेश चतुर्वेदी और उपसंचालक राहुल सिंह ने कहा कि देवरी जिला बलौदा बाजार-भाटापारा में संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व द्वारा किए जा रहे उत्खनन कार्य के दौरान टीम को शिवनाथ की सहायक नदी जमुनिया के तटवर्ती क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के मानव द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले पत्थर के कुछ औजार प्राप्त हुए हैं।

    देवरी के उत्खनन से पहले दो प्रस्तर उपकरण मिले थे, जो इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानव की उपस्थिति का संकेत दे रहे थे।

    दोनों अधिकारियों ने उत्खनन निदेशक डॉ. वृषोत्तम साहू और टीम के सदस्यों डॉ. अतुल प्रधान, प्रवीण तिर्की, चेतन मनहरे और प्रभात कुमार सिंह ने जमुनिया नदी के तट का सर्वेक्षण किया।

    सर्वेक्षण के दौरान जमुनिया नदी के दोनों धाराओं के संगम के निकट से मध्य और उच्च पुरापाषाण काल के प्रस्तर उपकरण जैसे फलक, ब्लेड, कोर और अर्धचंद्राकार औजार प्राप्त हुए हैं, जो चर्ट, अगेट और चेल्सिडोनी पत्थर से बनाए गए हैं। इन औजारों को आदिमानव द्वारा उपयोग में लाए जाने के भी चिन्ह देखे जा सकते हैं।

    देवरी के टीलों के उत्खनन कार्य के विस्तार के दौरान पहले प्राप्त ईंट निर्मित दो शिव मंदिरों के ठीक दक्षिण में एक-दो मीटर वर्गाकार ईंट निर्मित संरचना प्रकट हुई है। इन मंदिरों को चारों ओर से घेरे हुए लगभग एक मीटर चौड़ी एक भित्ति के अवशेष भी सामने आ रहे हैं। पूर्व में इस स्थल से कलचुरीकाल के तांबे के सिक्के, विष्णु और चंवरधारिणी की प्रतिमाएं भी प्राप्त हो चुकी हैं।

    --आईएएनएस

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