वर्ष 2016 में राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। इस वर्ष चार राज्यों में चुनाव होने हैं। इनके मद्देनदर देश में नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं।
वर्ष की पहली छमाही में ही असम, केरल, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं। इसके अलावा केन्द्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी में भी इसी वर्ष चुनाव होंगे। इन तमाम चुनावों का राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्व होगा। चुनाव में अपनी जीत की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए पार्टियों के नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं।
असम व केरल मे पहले से कांग्रेस की सरकार है, जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की सरकार है।
गांधी परिवार पर चल रहे कानूनी मामलों का भी कांग्रेस की राजनीति में असर देखने को मिल सकता है। माना जा रहा है कि आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कांग्रेस इस वर्ष पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंप सकती है। इस वर्ष कांग्रेस पार्टी का कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन भी देखने को मिल सकता है।
दिल्ली और बिहार में बुरी तरह हार का स्वाद चखने वाली भारतीय जनता पार्टी भी इस वर्ष नए सिर से देश में खुद को स्थापित करने का प्रयास करेगी।
मोदी सरकार व कांग्रेस के बीच रस्साकशी के चलते वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसा अहम विधेयक संसद में पास नहीं हो सका है। दोनों पार्टियों के बीच यह तकरार इस वर्ष भी देखने को मिल सकती है।
उधर, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में कथित भ्रष्टाचार को लेकर सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास करती रहेंगी।
इस वर्ष कांग्रेस और भाजपा में पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव भी होना है। माना जा रहा है कि इस बार भी अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष पद पर बने रह सकते हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद का कार्यभार ले सकते हैं। वर्ष 2015 में भी राहुल के पार्टी अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही थीं। साथ ही पार्टी में विभिन्न पदों पर फेरबदल की संभावना भी जताई जा रही है।
लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार सभी चुनावों में हार का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी ने बिहार में छोटे पार्टनर के रूप में जनता दल (युनाइटेड) व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ सत्ता का स्वाद चखा। इस दौरान राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस तीसरे व चौथे नंबर की पार्टी ही बन पाई।
असम में भाजपा का सामना करने के लिए कांग्रेस ने अन्य पार्टियों से गठबंधन करने की जिम्मेदारी अपने मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को सौंपी है। गोगई ने बीते तीन बार से लगातार पार्टी को राज्य में जीत दिलाई है।
उधर, केरल में सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) का नेतृत्व कर रही कांग्रेस को राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। केरल में सरकार के प्रति नाराजगी का फायदा भाजपा उठा सकती है जो राज्य में जड़ें जमाने में लगी हुई है। केरल के चुनाव वामपंथी पार्टियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। फिलहाल वे सत्ता से बाहर हैं, लेकिन वे केरल व बंगाल में आज भी बड़ी पार्टी हैं।
बंगाल में ममता बनर्जी व तमिलनाडु में जयललिता विधानसभा चुनाव के दौरान एक बड़ा चेहरा होंगी। दोनों फिलहाल सरकार में हैं। चुनावों इनकी रणनीति के साथ-साथ इनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता की भी परीक्षा होगी।
उधर, दिल्ली और बिहार में करारी हार झेल चुकी भाजपा भी नए साथी तलाश कर रही है। माना जा रहा है कि भाजपा आने वाले चुनावों में अपने राज्य नेतृत्व को पहले से अधिक तवज्जो देने को तैयार है।
मोदी सरकार इस वर्ष पांच साल के अपने कार्यकाल का आधा समय पूरा करने जा रही है। सरकार की कोशिश होगी कि उसकी योजनाएं परवान चढ़ें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिलें।
2016 में बन सकते हैं नए राजनीतिक समीकरण Featured
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