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हरिद्वार में है भटके हुए देवता का मंदिर

हरिद्वार, 17 जनवरी (आईएएनएस)। आपने कभी सुना है कि भटके हुए देवताओं के भी मंदिर होते हैं? नहीं तो हरिद्वार जाकर भटके हुए देवता का मंदिर जरूर देखिए। गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने शांतिकुंज परिसर में यह मंदिर बनवाया है। यहां आने वाले साधक इस मंदिर में ध्यान करते हैं।

इस मंदिर के अंदर पांच बड़े-बड़े आइने लगे हुए हैं और इन पर आत्मबोध व तत्वबोध कराने वाले वेद-उपनिषदों के मंत्र लिखे हंै। आइनों पर चारों वेदों के चार महावाक्य लिखे हैं, जिनमें जीव-ब्रह्म की एकता की बात कही गई है। साधक यहां आकर 'सोùहं' से 'अहम्' या आत्मब्रह्म तक के सूत्रों की जाप करते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर साधकों में आत्मबोध की अनुभूति होती है।

शांतिकुंज से जुड़े गायत्री भक्त कीर्तन देसाई ने बताया कि यहां नौ दिन के सत्रों व एक मासिक प्रशिक्षण शिविर में आने वाला प्रत्येक साधक आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक 'मैं कौन हूं?' में निर्दिष्ट साधना प्रणाली का सतत अभ्यास करता है। भटके हुए देवता के मंदिर में उसी साधना-विधान का संक्षिप्त निर्देश है।

उन्होंने बताया कि यहां पत्थर की प्रतिमाओं पर धूप-दीप, गंध-पुष्प चढ़ाकर ईश्वर के प्रति भक्ति भावना निविदेत की जाती है। साथ ही भक्त दर्पण के सामने खड़े होकर अपने स्वरूप को निहारकर अंत:करण की गहराई में झांकने का अभ्यास करते हैं।

मान्यता है कि इससे मनुष्य रूपी भटके हुए देवताओं को देर-अबेर अपने देव स्वरूप, ब्रह्म स्वरूप यानी 'अहं ब्रह्माùस्मि' की अनुभूति अवश्य होगी।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • इस बार आम फलेगा कम, बिकेगा महंगा

    अजीत कुमार शर्मा
    रायपुर, 19 जनवरी (आईएएनएस)। इस वर्ष जनवरी का महीना बीतने को है, लेकिन आम के पेड़ में अब तक बौर नहीं लगे हैं। इस कारण इस वर्ष आम के कम उत्पादन की संभावना है। आम फलेगा कम, तो लाजिमी है, काफी महंगा बिकेगा।

    नर्सरी विशेषज्ञों की मानें तो आम के पेड़ पर फल का उत्पाद सीएन (कार्बोहाइड्रेट और नाइट्रोजन) अनुपात से तय होता है। इस वर्ष 'एन' अनुपात सक्रिय होने से आम उत्पादन की संभावना कम है और 'सी' अनुपात सुसुप्तावस्था में है, ऐसे में पेड़ पर फल व फूल के लिए अनुकूल प्रक्रिया नहीं चल रही है।

    रायपुर के सहायक उद्यानिकी अधिकारी वी.के. गौतम और उद्यान अधीक्षक डी.एस. कुशवाहा ने बताया कि आम के वृक्ष में फलों का लगना और पेड़ का विकास सीएन अनुपात से तय होती है। पिछले वर्ष 'सी' अनुपात सक्रिय होने से आम का उत्पादन अच्छा हुआ था, लेकिन इस वर्ष 'एन' अनुपात सक्रिय है, जिससे पेड़ों पर बौर नहीं दिख रहा है।

    उन्होंने बताया कि कार्बोहाइड्रेट जिस वर्ष सक्रिय होते हैं, उस वर्ष फूल और फल के लिए प्रक्रिया तेजी से होता है। यह प्रक्रिया इस वर्ष पेड़ पर दिखाई नहीं दे रही है। 'सी' अनुपात सुसुप्तावस्था में है, जबकि 'एन' अनुपात सक्रिय है, जिससे पेड़ में वनस्पति विकास तो हो रहा है, लेकिन फूल नहीं फूट रहे हैं। यही वजह है कि इस साल आम के पेड़ों में फल के उत्पादन कम होने की संभावना है।

    छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के बेंद्रानवा गांव में उद्यानिकी विभाग में आम की नर्सरी है। यहां आम के 24 तरह के पेड़ हैं। अधिकांश पेड़ों में इस वर्ष अब तक बौर नहीं लगा है। इस वजह से नर्सरी विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि इस वर्ष आम का उत्पादन कम होगा।

    वहीं आम की नर्सरी लगाने वाले सलीम रोकड़िया, अशोक पवार व इंदल सिंह ने बताया कि इस वर्ष उनके भी आम के पेड़ों में अब तक बौर नहीं लगा है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • मणिपुर के अस्पतालों में पहुंचते हैं म्यांमार के भी मरीज
    इबोयैमा लैथंगबम
    इंफाल, 19 जनवरी (आईएएनएस)। मणिपुर के सीमावर्ती जिलों चंदेल, चूड़ाचंद्रपुर और उखरुल के अस्पतालों में सुधार का फायदा न सिर्फ उत्तरपूर्वी भारत के निवासियों को मिल रहा है, बल्कि सीमावर्ती म्यांमार के निवासी भी इसका लाभ उठा रहे हैं।

    मणिपुर के स्वास्थ्य विभाग के निदेशक ओकरम इबोमचा सीमावर्ती अस्पतालों की हालत सुधारने और वहां डॉक्टर और अन्य सहायक कर्मियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।

    चूड़ाचंद्रपुर जिले में पारबंग सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में तीन जूनियर डॉक्टरों की तैनाती की गई है।

    जब आईएएनएस संवाददाता ने इस उपेक्षित सीमावर्ती गांव का दौरा किया तो वहां केवल एक डॉक्टर ही मिला। उसका कहना था कि यहां के स्वस्थ पहाड़ी आदिवासियों को इलाज की जरूरत काफी कम पड़ती है। इसलिए यहां हर 15 दिन के लिए बारी-बारी से डॉक्टर आते हैं।

    सीमावर्ती ख्वाथा गांव के लिए गर्व करने लायक बात यह है कि यहां के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में कुछ दिन पहले मोमबत्ती के उजाले में एक महिला का सफल प्रसव कराया गया। वहीं, उखरुल जिले के दूसरे सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में भी सामान्य ढंग से कामकाज शुरू हो चुका है।

    पहले इन इलाकों में रहने वाले आदिवासी असम राइफल्स के मिलिट्री अस्पतालों के भरोसे थे। उखरुल जिले के पोई गांव में अस्पताल न होने के कारण ग्रामीणों को असम राइफल्स के छोटे से अस्पताल की मदद लेनी पड़ती थी।

    असम राइफल्स समय-समय पर इस क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में मेडिकल कैंप लगाकर सांप काटने के शिकार लोगों की जान बचाने का प्रेस विज्ञप्ति जारी करती रहती है।

    मणिपुर के परिवार कल्याण विभाग के निदेशक के. राव बताते हैं, "हमने रविवार के पोलियो कार्यक्रम में 3.50 लाख बच्चों को पोलियो डॉप पिलाने की योजना बनाई है। इसके लिए दूरदराज के पहाड़ी गांवों में दोपहिया वाहनों से चिकित्साकर्मियों को भेजा गया है।"

    उनका कहना है कि ये स्वास्थ्यकर्मी बस स्टैंड या बाजार में अपना कैंप लगाते हैं जहां बड़ी संख्या में पड़ोसी देश म्यांमार के लोग भी अपने बच्चों को लेकर आते हैं।

    वहीं, इबोमचा सीमावर्ती ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की मौजूदगी सुनिश्चित करने में जुटे हैं। उनका कहना है कि वहां डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए क्वार्टर नहीं है, इसलिए उन्हें अस्पताल के कमरों में ही रहना पड़ता है। इसके अलावा वहां पानी-बिजली के अलावा अन्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक समस्या है। साफ पानी की कमी के कारण वहां पहाड़ी नदी के पानी का प्रयोग करना पड़ता है जो खतरनाक है।

    डॉक्टरों का कहना है कि गंभीर रूप से घायल मरीजों को जिला मुख्यालय या इंफाल के बड़े अस्पतालों में इलाज के लिए भेजा जाता है। लेकिन मरीजों को वहां ले जाने के लिए बस या एंबुलेस की सुविधा नहीं है। इसलिए तीमारदार किसी ट्रक या ट्रॉली में लादकर मरीजों को वहां तक पहुंचाते हैं।

    ऐसी जानकारी भी मिली है कि ज्यादातर डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी दूरदराज के गांवों में जाना नहीं चाहते हैं। डॉक्टर खुद इंफाल या उसके आसपास स्थित अपने घरों पर रहते हैं और उनकी जगह फार्मासिस्ट और नर्सो के भरोसे स्वास्थ्य केंद्र चलता है।

    यही कारण है कि म्यांमार के एक विस्थापित डॉक्टर विन ओ ने मोरेह बाजार में अपना एक चार बिस्तरों वाला निजी अस्पताल खोला है, जहां म्यांमार के ग्रामीणों का इलाज किया जाता है। विन ओ लोकतंत्र समर्थक हैं और 1988 में पलायन कर मणिपुर आ गए थे।

    मोरेह में तैनात एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि पुलिस अब म्यांमार के नागरिकों को यहां के अस्पतालों में इलाज कराने के लिए आने से नहीं रोकती। हालांकि बहुत पहले उन्हें रोका जाता था और कुछ को तो गिरफ्तार भी किया गया था।

    लेकिन सरकार की 'पूर्व की ओर देखो' नीति के मद्देनजर अब म्यांमार सरकार भी भारतीय पर्यटकों और व्यापरियों को सीमा से 5 किलोमीटर अंदर स्थित तमू तक जाने से नहीं रोकती। वहां भारतीय नागरिकों को किसी किस्म का वीजा कागजात नहीं दिखाना पड़ता। केवल 10 रुपये का इमीग्रेशन शुल्क अदाकर वे शाम तक म्यांमार में रह सकते हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • शरद पवार लखनऊ में फूंकेंगे चुनावी बिगुल

    जितेंद्र त्रिपाठी
    लखनऊ, 19 जनवरी (आईएएनएस/आईपीएन)। उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षो से क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का बोलबाला है। इस बीच राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने भी सूबे की सत्ता पर काबिज होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, बावजूद इसके सत्ता यह दल सत्ता के करीब नहीं पहुंच सके।

    उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और वर्तमान में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकारों का शासन देख चुकी यहां की जनता को ईमानदार, जनभावनाओं से जुड़़े, किसान हित एवं विश्वसनीय राजनीतिक दल की तलाश है। ऐसा कहने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार अपने दल को उप्र की सत्ता के लिए बिल्कुल फिट पाते हैं।

    अपनी नीतियां स्पष्ट करते हुए पवार ने आईपीएन से कहा, "यदि यूपी की जनता हमें सत्ता की चाभी सौंपती है तो हम महाराष्ट्र मॉडल पर यूपी को भी विकसित करेंगे। महाराष्ट्र में हमारे द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार किसानों, महिलाओं का ध्यान रखते हुए स्थानीय निकायों का विकास करेंगे।"

    बकौल पवार, उप्र में काम करने के लिए उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के.के. शर्मा पूरी निष्ठा के साथ काम में जुटे हैं।

    शर्मा ने आईपीएन से विशेष बातचीत में कहा, "हमारी पार्टी का संगठन प्रदेश के सभी 75 जिलों में बन चुका है और सभी लोग सक्रिय हैं। पार्टी से जुड़े सभी लोगों के अंदर पवार जी की नीतियों को लेकर काफी उत्साह है, और यही कारण है कि यूपी में विकास करने की हमारी मंशा को हिम्मत मिली है।"

    उन्होंने बताया कि अंदरखाने पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पूरी मुस्तैदी के साथ जुटी है। उन्होंने बताया कि उप्र में वर्ष-2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में राकांपा सभी सीटों पर पूरी गर्मजोशी के साथ उतरेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी प्रमुख शरद पवार का उन्हें पूरा सहयोग मिल रहा है।

    शर्मा ने बताया, "पांच मार्च को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार लखनऊ में उप्र विधानसभा चुनाव का चुनावी बिगुल फूंकेंगे। लखनऊ में उनका भव्य स्वागत किया जाएगा। इस दौरान प्रदेश भर के पार्टीजनों को पवार संबोधित करेंगे और उन्हें दिशा-निर्देश देंगे।"

    बतौर शर्मा, राकांपा जल्द ही पूर्वाचल के बलिया से 7, रेसकोर्स रोड (नई दिल्ली) तक रथयात्रा निकालेगी। यह यात्रा सभी जिलों से होते हुए दिल्ली पहुंचेगी और वहां अपने वायदों को पूरा न करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगेगी।

    उन्हांेने बताया कि रथयात्रा में करीब तीन महीने लगेंगे। जनहित के मुद्दों को लेकर जल्द ही उनकी पार्टी बसपा प्रमुख मायावती समेत अन्य नेताओं पर हमला बोलेगी।

    पवार को वर्तमान में सभी राजनेताओं से अलग और विश्वसनीय नेता मान रहे शर्मा ने कहा, "वह उप्र को महाराष्ट्र मॉडल पर विकसित करना चाहते हैं। जनहित से जुड़े तमाम विषयों को लेकर शरद पवार काम करना चाहते थे, लेकिन उनके उन विषयों को कांग्रेस ने दबा दिया।"

    शर्मा ने कहा कि शरद के पास उप्र के विकास का पैमाना काफी सुंदर है और वह जनता के लिए ही शासन करने की मंशा रखते हैं। यही कारण है कि वह राकांपा की नीतियों से प्रभावित होकर उप्र में काम कर रहे हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • नरसिम्हा राव ने गिरवाई थी बाबरी मस्जिद : हाशिम अंसारी
    लखनऊ/अयोध्या, 18 जनवरी (आईएएनएस)। बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर मामले के मुख्य मुद्दई हाशिम अंसारी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सोमवार को कहा कि कांग्रेस के दिवंगत नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अयोध्या में विवादित स्थल पर मौजूद मस्जिद तुड़वाई थी।

    अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए हाशिम ने बाबरी मस्जिद को बचाए न जाने पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा, "उन्हें (राव को) पहले से इस मामले की जानकारी थी, फिर भी कोई कदम नहीं उठाया गया। इसलिए मैं मानता हूं कि इस मामले में उनकी मुख्य भूमिका थी। लेकिन वह मस्जिद गिराने के मुकदमे में मुलजिम नहीं बने।"

    उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद नरसिम्हा राव ने मस्जिद को दोबारा बनवाने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने देश के मुसलमानों के साथ धोखा किया, मस्जिद नहीं बनवाई।

    बुजुर्ग मुद्दई सर्वोच्च न्यायालय में लंबित फैसले में देरी से नाराज दिखे। उन्होंने कहा, "शायद हमारे मरने के बाद मंदिर-मस्जिद का फैसला होगा।"

    हाशिम अंसारी ने भाजपा पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के लोग नेतागीरी के लिए देश के कानून को पैरों तले कुचलते रहे हैं। ये सब नेता राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के नाम पर सिर्फ नेतागीरी करते हैं। आखिर ये नेता इस विवाद का फैसला क्यों नहीं कराते?

    उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के तहत अयोध्या में एक जनसभा करने के बाद हिंदूवादी संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ता वर्षो से वीरान पड़ी बाबरी मस्जिद पर टूट पड़े थे। कुछ ही घंटों में उन्होंने सदियों पुरानी मस्जिद जमींदोज कर दी थी। हिंदूवादी संगठनों का दावा है कि जिस जगह मस्जिद थी, वही राम जन्मभूमि है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था, लेकिन यह फैसला किसी पक्ष को मंजूर नहीं हुआ।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • दलाई लामा ने ताइवान की नेता को दी राष्ट्रपति चुनाव में जीत की बधाई
    धर्मशाला, 18 जनवरी (आईएएनएस)। तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने ताइवान में राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की नेता साई इंग-वेन को सोमवार को बधाई दी।

    नोबेल पुरस्कार विजेता ने ताइवान में स्वतंत्रता की तरफ झुकाव रखने वाली पार्टी की जीत पर खुशी जताते हुए अपने बयान में कहा कि 'यह यहां लोकतंत्र की गहरी जड़ों को दर्शाता है।'

    विपक्षी पार्टी डीपीपी की नेता ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित हुई हैं। वह यहां राष्ट्रपति निर्वाचित होने वाली पहली महिला हैं। उन्हें पिछले सप्ताह घोषित चुनाव परिणाम में 56.1 प्रतिशत वोट मिले थे। उन्होंने चीन समर्थक कुओमिन्तांग (केएमटी) या नेशनलिस्ट पार्टी को हराया, जो यहां पिछले आठ साल से शासन में थी।

    ताइवान के लोगों को सलाम करते हुए दलाई लामा ने कहा, "यह स्वतंत्रता और जवाबदेह नेतृत्व चाहने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। मैं ताइवान के लोगों को सलाम करता हूं, कुछ लोग हैं जो लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए समर्पित हैं।"

    अपनी ताइवान यात्रा को याद करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि जब वह 2009 में साई इंग-वेन से मिले थे तो उन्होंने यहां देखा था कि किस प्रकार लोगों ने आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • सबरीमाला : पंबा नदी की सफाई के लिए 2 लाख हस्ताक्षर
    अर्चना राव
    पथानमथिट्टा, 18 जनवरी (आईएएनएस)। सबरीमाला मंदिर आने वाले दो लाख श्रद्धालुओं ने 'मिशन ग्रीन सबरीमाला' के तहत शपथ ली है कि वे पंबा नदी में वस्त्र फेंकने की परंपरा को त्याग कर नदी को साफ रखेंगे। इसके लिए इन लोगों ने बकायदा दस्तखत किए हैं।

    इस काम के लिए इतने दस्तखत इकट्ठा करने का लक्ष्य है कि यह एक विश्व कीर्तिमान बन सके और लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में यह दर्ज हो सके।

    शपथ छह भाषाओं, हिंदी, अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़, तमिल और तेलुगू भाषा में ली जा रही है। इसमें कहा गया है : "मैं पंबा नदी में वस्त्र नहीं फेंकूंगा। मैं इसे कूड़े के साथ निपटाऊंगा।"

    पथानमथिट्टा के जिला अधिकारी एस. हरिकिशोर ने आईएएनएस से कहा, "सभी श्रद्धालु पंबा नदी में स्नान करने आते हैं। इसलिए हमारे लिए यह अनिवार्य है कि हम इसे स्वच्छ रखें। यह एक मिथक है कि नदी में डुबकी लगाने के बाद कपड़े को नदी में छोड़ देना चाहिए। ये सच नहीं है। हम रोजाना 10 कालेज छात्रों की सेवा ले रहे हैं। वे श्रद्धालुओं से अनुरोध करते हैं कि वे वस्त्र नहीं फेंकने की शपथ लें और चित्रपट (कैनवस) पर इससे संबंधित दस्तखत करें। "

    अधिकारी के मुताबिक, हर व्यक्ति जो सबरीमाला आता है, अपने पीछे 250 ग्राम प्लास्टिक छोड़कर जाता है। बीते साल 8750 टन प्लास्टिक और इससे बनी चीजें इकट्ठा की गई थीं। इसकी वजह से मंदिर को पर्यावरणीय खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

    नदी की सफाई का यह विचार कोकाकोला कंपनी के सार्वजनिक मामलों के राष्ट्रीय प्रमुख अजय कुमार के दिमाग में आया था। मिशन ग्रीन सबरीमाला की शुरुआत बीते नवंबर में शुरू की गई थी।

    अजय कुमार ने आईएएनएस से कहा, "शुरुआती बैठकों के बाद जिलाधिकारी ने मुझसे पूछा कि क्या हमारे पास लोगों को स्वच्छता अभियान से जोड़ने का कोई और तरीका है? इसके बाद हमने रोजाना पंबा नदी के पास यह लिखा चित्रपट लगाने का फैसला किया कि कृपया नदी में कपड़े और कूड़ा न फेंकें।"

    उन्होंने बताया कि शुरू में काफी कम लोगों ने चित्रपट पर दस्तखत किए। बाद में इसमें गति आई। ऐसे भी दिन आए जब चित्रपट पर पांच हजार लोगों ने दस्तखत किए। हमने हस्ताक्षरयुक्त सभी चित्रपट जमा कर लिए हैं। तीर्थयात्रा खत्म होने के बाद हम इसे लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स को सौंपेंगे।

    सबरीमाला मंदिर में 15 नवंबर से 15 जनवरी के बीच 60 दिनों की अवधि में करीब 3.5 करोड़ श्रद्धालु पहुंचते हैं। कुछ श्रद्धालु हालांकि 20 जनवरी तक यहां ठहरते हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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