नैना शर्मा
आज इंसान से इंसानियत निकल कर,
आदम ही रह गया,
सागर की गहराई को छोड़कर,
तालाब का उथलापन ही,
शेष रह गया।।
क्यूँ आज लोग भौतिकता में,
इतना रम गए,
इंसानियत है उनकी क़ौम,
क्यूँ ये बिसार गए,
ईर्ष्या, लोभ, लालच के संग,
इस क़दर बह गया,
इंसान होकर,
इंसानियत की जात भूल गया।।
क्यूँ चन्द नोटों के लिए,
ईमान अपना बेचते हैं,
क्यूँ बाहरी दिखाबे को,
अंदर से मैला हो गया,
इंसानियत को बेच दिया,
दुष्टता के बाजार में,
आज ख़ुद के लोभ में,
मानव ख़ुद से ही बाग़ी हो गया।।
क्यूँ भूल गया गहराई,
गम्भीरता नदी की वो,
आधुनिकता की होड़ में,
आज इंसान छिछला हो गया।।
त्यागी है उसने गम्भीरता समुद्र सी,
क्यूँ धन के नशे में,
वो तालाब सा उथला हो गया।।