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प्रदूषण का आंखों पर भी होता है असर

नई दिल्ली, 18 जनवरी (आईएएनएस)। प्रदूषित पर्यावरण, बढ़ते वायु प्रदूषण और अल्ट्रा वॉयलेट किरणों के बढ़ते प्रभाव की वजह से आंखों पर भी प्रभाव पड़ रहा है। कॉर्निया, पलकों, सिलेरिया और यहां तक कि लेंस पर भी पर्यावरण का असर होता है।

बढ़ते तापमान और पर्यावरण के चक्र में आते बदलाव के चलते क्षेत्र में हवा खुश्क हो रही है। इस वजह से आंखें में ज्यादा खुश्की आ रही है, जिसके चलते आंसू नहीं बनते या बहुत जल्दी सूख जाते हैं।

वायु प्रदूषण लंबे समय से सांस प्रणाली की समस्याओं का कारण बन रहा है। हाल ही में इसका असर आंखों पर भी नजर आने लगा है।

लकड़ी या कोयले जलते समय उसके संपर्क में आने से विकासशील देशों में ट्रोचमा की वजह से आंखों में जख्म हो जाते हैं। उम्रभर संक्रमण होने से पलकों के अंदर जख्म हो सकते हैं, जिससे पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं और कोर्निया से रगड़ खाने लगती हैं और क्षति पहुंचा देती हैं, जिससे नजर भी चली जाती है।

इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं कि ओजोन की क्षति होने से अल्ट्रावायलेट किरणों का असर बढ़ रहा है, जिससे कोर्टिकल कैटेरेक्ट का खतरा बढ़ जाता है। सूर्य की खतरनाक किरणों के लगातार संपर्क में आने से आंखों के लेंस के प्रोटीन की व्यवस्था बिगड़ सकती है और लेन्ज एपिथीलियम को क्षति पहुंच सकता है, जिससे लेंस धुंधला हो जाता है।

वह कहते हैं कि हैट पहनने से यूवी का असर 30 प्रतिशत तक कम हो सकता है। यूवी प्रोटेक्शन वाला साधारण धूप का चश्मा लगाने से 100 प्रतिशत तक सुरक्षा हो सकती है।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पूरे समाज को आंखों को होने वाले गंभीर नुकसान के बारे में जागरूक होना चाहिए। भारतीय लोगों में पहले ही विटामिन-डी की कमी है, इसलिए इन सावधानियों पर गौर करना बेहद जरूरी है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • आईसीसी, यूनीसेफ, बीसीसीआई का संयुक्त स्वच्छता अभियान शुरू
    नई दिल्ली, 18 जनवरी (आईएएनएस)। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने सोमवार को सामाजिक संस्था यूनीसेफ और भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ मिलकर 'क्रिकेट फॉर गुड एंड टीम स्वच्छ' अभियान का शुभारंभ किया।

    इस मौके पर आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेविड रिचर्ड्सन, यूनीसेफ की दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय निदेशक कारीन हुलशेफ, बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर और यूनीसेफ के सद्भावना राजदूत पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर मौजूद थे।

    अभियान का मकसद स्वच्छता को बढ़ावा देना और लोगों को खुले में शौच करने से रोकना है।

    इस अभियान को मार्च माह में भारत की मेजबानी में होने वाले टी-20 विश्व कप में अमली जामा पहनाया जाएगा। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता को देखकर आईसीसी और यूनीसेफ ने इसमें बीसीसीआई को शामिल किया है।

    अभियान के बारे में रिचर्डसन ने कहा, "हम यूनीसेफ के साथ काम करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। हमारी कोशिश बच्चों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता हालात को सुधारने की है।"

    यूनीसेफ की दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय निदेशक ने आईसीसी के साथ की गई इस साझेदारी पर कहा, "यूनीसेफ आईसीसी के साथ आने से काफी खुश है। क्रिकेट की लोकप्रियता को देखते हुए आईसीसी का हमारे साथ आना इस अभियान के लिए काफी फायदेमंद होगा। इससे हम उन देशों में आसानी से अपने अभियान पर काम कर सकते हैं, जहां क्रिकेट लोकप्रिय है।"

    उन्होंने कहा, "हम मिलकर बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए काम करेंगे। हमें बच्चों के लिए एक साथ आना होगा। हम सब मिलकर जगरूकता फैला सकते हैं। हमारा मकसद लोगों को खुले में शौैच करने से रोकना और स्वच्छता को बढ़ावा देना है।"

    इस मौके पर मौजूद बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर ने कहा,"बीसीसीआई, आईसीसी और यूनिसेफ के साथ इस अभियान को आगे ले जाने में हर संभव मदद करेगा। मुझे उम्मीद है कि इसमें हर भारतीय अपना सहयोग देगा। आने वाले टी-20 विश्व कप से हम इस अभियान की शुरुआत करेंगे।"

    ठाकुर ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि काफी लोग इस अभियान के साथ जुड़ेंगे। टी-20 विश्व कप में हम खिलाड़ियों के साथ इसे शुरू करेंगे और इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे।"

    ठाकुर ने भारत को इस अभियान की शुरुआत के लिए चुनने के लिए आईसीसी और यूनीसेफ का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने साथ ही कहा कि सचिन तेंदुलकर को सद्भावना राजदूत बनाकर यूनीसेफ ने सही फैसला किया है।

    साथ ही ठाकुर ने कहा कि बीसीसीआई इस अभियान के लिए प्रतिबद्ध है और कहा कि हम इसे टी-20 विश्व कप के बाद भी जारी रखेंगे। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम लक्ष्य नहीं हासिल कर लेते।

    यूनीसेफ के सद्भावना राजदूत और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सचिन तेंदुलकर ने इस अभियान को काफी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि खुले में शौच करने से डायरिया फैलता है, जिससे काफी बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

    उन्होंने कहा, "मैं यूनीसेफ के साथ एक दशक से जुड़ा हूं और इस दौरान मैंने उन्हें अपने लक्ष्य को पाते देखा है। इस अभियान की शुरुआत के लिए टी-20 विश्व कप से अच्छी जगह भारत में नहीं हो सकती थी।"

    उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जानकारी और जागरूकता न होने के कारण हमारा संदेश अभी तक सही तरह से पहुंचा नहीं है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक करें।"

    उन्होंने इस दौरान बच्चों में हाथ धोने की आदत डालने पर भी जोर दिया।

    उन्होंने इस अभियान के लिए क्रिकेट को सही बताते हुए कहा, "हम सभी जानते हैं कि भारत में क्रिकेट कितना लोकप्रिय है, हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। क्रिकेट के जरिए हम भारत में अपने अभियान को काफी लोगों तक पहुंचा सकते हैं।"

    इसके बाद सचिन ने एनजीओ 'नाइन इज माइन' के बच्चों के साथ क्रिकेट भी खेला और उनके सवालों के जवाब भी दिए।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • हार्ट केयर फाउंडेशन के ट्रस्टी कीमत राय का निधन
    नई दिल्ली, 18 जनवरी (आईएएनएस)। पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल के पिता व हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के फाउंडिंग ट्रस्टी कीमत राय अग्रवाल का 96 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से रविवार को को निधन हो गया। परिजनों ने यह जानकारी सोमवार को दी।

    कीमत राय अग्रवाल अपनी आखरी सांस तक वह पूरी तरह से सक्रिय व सेहतमंद थे। विनम्र व मितभाषी अग्रवाल ने संस्था के कई अहम आयोजनों परफेक्ट हेल्थ मेला, समीर मलिक हार्ट केयर फाउंडेशन फंड और हैंड्स ओनली सीपीआर 10 मुहिम में अहम भूमिका निभाई थी।

    लोहे के व्यापारी अग्रवाल ने अपना पूरा जीवन जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित कर दिया।

    अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए एचसीएफआई के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "मेरे पिता शांति पूर्ण तरीके से बिना किसी तकलीफ के इस संसार से गए हैं और अब बेहतर जगह पर पहुंच गए हैं। मैं आज जो भी हूं, उनकी बदौलत हूं।"

    हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया की शुरुआत 1986 में हुई थी। यह एक अग्रणी गैर सरकारी संस्था है, जिसका उद्देश्य लोगों को उनके जीवन के हर कदम और प्रत्येक पहलू से संबंधित स्वास्थ्य के संबंध में जागरूक करना व देश की स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में सहयोग देना है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • तिब्बत : जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में गिरावट
    ल्हासा, 18 जनवरी (आईएएनएस/सिन्हुआ)। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण दक्षिण पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में 2015 में रिकार्ड गिरावट दर्ज की गई है। यह बात क्षेत्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन आयोग ने कही।

    आयोग के आंकड़े के मुताबिक, 2015 में जच्चा मृत्यु दर प्रति 10 हजार पर 10 रही, जो 2009 में 23 थी।

    शिशु मृत्यु दर इस दौरान घटकर प्रति हजार 16 हो गई, जो 2009 में 21 थी।

    इस दौरान अस्पताल में प्रसव की दर 51 से बढ़कर 90 हो गई।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • भारतीय नृत्यों में विदेशियों का रुझान बढ़ा है : बिरजू महाराज


    किशोरी सूद
    नई दिल्ली, 18 जनवरी (आईएएनएस)। 77 वर्ष की उम्र में भी बेजोड़ कथक नृत्य करते और अन्य नर्तकों का मार्गदर्शन करते भारत के प्रख्यात कथक नर्तक बिरजू महाराज का कहना है कि उन्हें सरकार की 60 साल की उम्र में सेवानिवृत्ति की नीति समझ नहीं आती।

    उन्हें लगता है कि 1998 में राज्य सरकार द्वारा संचालित शास्त्रीय नृत्य के स्कूल 'कथक केंद्र' के प्रमुख के पद से सेवामुक्त होने के बाद उन्होंने ज्यादा काम किया है।

    सेवानिवृत्त होने के बाद अपने डांस स्कूल 'कलाश्रम' के माध्यम से वह अपना नृत्य कौशल नृत्य के शौकीनों को सिखा रहे हैं।

    बिरजू महाराज ने अपने आवास पर आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "जब गुरुओं को काफी अनुभव हो जाता है तो सरकार कहती है कि हम सेवानिवृत्त हो गए हैं, लेकिन मैने सेवानिवृत्त होने के बाद और ज्यादा काम किया है।"

    केवल 13 वर्ष की उम्र में एक नृत्य संस्थान में नृत्य सिखाने की शुरुआत करने वाले बिरजू महाराज का कहना है, "सरकारी कथक केंद्र से सेवानिवृत्त होने से पूर्व मैंने महसूस नहीं किया था कि वह मेरा स्कूल नहीं है।"

    वाराणासी के निकट एक छोटे से गांव के कथक घराने में जन्मे बिरजू महाराज की सात पीढ़ियां कथक से जुड़ी थीं।

    उन्होंने अपने चाचा शंभू महाराज के साथ भारतीय कला केंद्र में भी नृत्य सिखाया, जिसे बाद में कथक केंद्र के नाम से जाना जाने लगा।

    उनका कहना है, पिछले कुछ सालों में भारतीय फिल्म उद्योग में पश्चिमी नृत्य शैलियों की अचानक आई बाढ़ के कारण और जैज, हिपहॉप और अन्य पश्चिम नृत्यों के स्कूल खुलने के कारण भारतीय शास्त्रीय नृत्य थोड़ा पिछड़ गया था, लेकिन भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति रुझान फिर से पैदा हो रहा है।

    दिग्गज कथक नर्तक ने कहा, "मुझे खुशी है कि विदेशों में लोग अब अपनी नृत्य शैलियों से ऊब चुके हैं और ज्यादा से ज्यादा विदेशी कुचिपुड़ी, ओडिसी, कथक जैसे भारतीय शास्त्रीय नृत्य सीखने आ रहे हैं। फिर से हमारी नृत्य शैलियों का सम्मान किया जा रहा है।"

    गुरु-शिष्य परंपरा के प्रबल समर्थक बिरजू महराज ने बदलाव को स्वीकार करते हुए नृत्य के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण को भी सही ठहराया।

    यहां तक कि उन्होंने प्रशिक्षित कथक नृत्यांगना और बॉलीवुड अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के साथ 2013 में उनके ऑनलाइन डांस स्कूल के लिए समन्वय भी किया था।

    पद्म विभूषण से सम्मानित बिरजू महाराज ने कहा, "ऑनलाइन सीखने के बाद जब भी आप और बारीकी से नृत्य सीखना चाहें तो आप लाइव कक्षाओं में सीख सकते हैं।"

    उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालीदास सम्मान और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद डिग्री जैसे कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

    लाइव कक्षा में गुरु के महत्व की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा, "गुरु आपकी मुद्राओं को सुधारता है और आपको बेहतर ढंग से सिखाता है। आप ऑनलाइन और लाइव कक्षाओं की तुलना नहीं कर सकते। ऑनलाइन एक अच्छा तरीका है, लेकिन सही ढंग से सीखने के लिए कक्षा और गुरु का होना बेहद जरूरी है।"

    विश्वभर में विभिन्न मंचों पर प्रस्तुति दे चुके बिरजू महाराज ने सत्यजित रे की 'शतरंज के खिलाड़ी', माधुरी दीक्षित अभिनीत 'डेढ़ इश्किया' और संजय लीला भंसाली की 'देवदास' जैसी कई फिल्मों में भी नृत्य निर्देशन किया है।

    उन्होंने हाल ही में आई फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में 'मोहे रंग दो लाल' में दीपिका पादुकोण का नृत्य भी निर्देशित किया है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • जननी सुरक्षा कार्यक्रम से नहीं रुक रही प्रसव के दौरान मौतें

    लंदन, 18 जनवरी (आईएएनएस)। भारत में प्रसव के दौरान बड़ी संख्या में जच्चा-बच्चा की मौत हो जाती है। इसे रोकने के लिए गरीब गर्भवती महिलाओं का प्रसव अस्पताल में कराने के लिए कार्यक्रम शुरू किया गया। लेकिन इसके बावजूद प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में कमी नहीं देखी जा रही है। एक नए अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है।

    इस अध्ययन में कहा गया है कि 2005 में स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव कराने के लिए गरीब गर्भवती महिलाओं को नकद मदद मुहैया कराने का कार्यक्रम शुरू किया गया। जननी सुरक्षा योजना कार्यक्रम लागू होने के बाद बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं घर की बजाए स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर प्रसव कराने लगी। लेकिन भारत में घटिया स्वास्थ्य प्रणाली होने के कारण प्रसव के दौरान होने वाली मौत के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आई है।

    उमेया विश्वविद्यालय, स्वीडन के अध्ययनकर्ता भारत रणदिवे का कहना है, "नकद राशि के हस्तांतरण से स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोतरी नहीं होती।"

    रणदिवे ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा, "इस कार्यक्रम से सेवाओं का लाभ लेने में तो बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन इससे प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में कोई कमी नहीं देखी गई है। इसका कारण सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए अच्छे स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है।"

    रणदिवे ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत के गरीब राज्यों में गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आपातकालीन प्रसूति देखभाल सुविधाओं का अभाव है जोकि प्रसूति के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के लिए बेहद जरूरी है।

    इस शोध में रणदिवे ने नौ राज्यों में गरीब और अमीर लोगों के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लिया।

    उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि इन नौ कम विकसित राज्यों में एक लाख प्रसूति में अतिरिक्त 135 मृत्यु देखी गई, जो कि कार्यक्रम शुरू होने के बाद अमीर क्षेत्रों की तुलना में चार गुणा पीछे था।

    अध्ययन में कहा गया, "कार्यक्रम चलाए जाने के बाद पिछले 5 सालों में स्वास्थ्य केंद्रों पर होने प्रसव का आंकड़ा 20 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी हो गया। लेकिन इसके बावजूद जिला स्तर पर प्रसूति के दौरान होने वाली मौत के आंकड़ों में कोई कमी नहीं देखी गई।''

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • श्रीनगर : बच्चों की मौत की अफवाह से अफरातफरी
    श्रीनगर , 17 जनवरी (आईएएनएस)। कश्मीर घाटी में रविवार को उस समय अफरातफरी और भय का वातावरण पैदा हो गया, जब अफवाह आई कि अनंतनाग जिले में बच्चों को पोलियो की खुराक दिए जाने से कुछ बच्चों की मौत हो गई।

    जम्मू एवं कश्मीर के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने रविवार को अनंतनाग या पुलवामा जिलों में मौत की अफवाह का खंडन किया है।

    स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "शरारती तत्व फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया नेटवर्क के माध्यम से अफवाह फैला रहे हैं कि दक्षिण कश्मीर में पोलियो की खुराक देने के बाद कुछ बच्चों की मौत हो गई।"

    उन्होंने कहा, "कश्मीर घाटी में कहीं भी पोलियो की खुराक देने के कारण कोई बच्चा नहीं मरा है। माता-पिता से अनुरोध किया जाता है कि वे इस निराधार अफवाहों पर ध्यान न दें।"

    लेकिन अधिकारी द्वारा खंडन किए जाने के बावजूद कई सारे चिंतित परिजन यहां और घाटी के अन्य शहरों में अस्पतालों में पहुंचे, जिनके बच्चों को पोलियो की खुराक दी गई थी। इसके कारण श्रीनगर में यातायात जाम की स्थिति देखने को मिली।

    अधिकारियों ने रेडियो और टेलीविजन केंद्रों से अनुरोध किया है कि वे आधिकारिक खंडन को प्रसारित करें और शांति बनाए रखें।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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