सानू जार्ज
तिरुवनंतपुरम, 3 जनवरी (आईएएनएस)। केरल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर छोटी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी जगह बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। अधिकांश समय तक महत्वहीन बनी रहने वाली ये पार्टियां चुनाव में अपनी हैसियत से ज्यादा अपनी अहमियत जताने की कोशिश करती हैं।
कांग्रेस नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) में कम से कम ध्यान खींचने के ही मामले में जो पार्टियां चर्चा में बनी रह सकती हैं, उनमें जनथियापथिया संरक्षण समिति (जेएसएस) और कम्युनिस्ट मार्क्सवादी पार्टी (सीएमपी) हैं। बीते एक साल में इन दोनों ही दलों में टूट पड़ी है। दोनों दलों से अलग हुए गुट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रकि मोर्चे (एलडीएफ) में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन, इन दोनों ही दलों के लिए राह आसान नहीं है। इन दोनों के पास विधानसभा में एक भी सदस्य नहीं है। 2011 में जेएसएस ने चार और सीएमपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी पर इन्हें हार मिली थी।
यूडीएफ में शामिल जेएएस के के.के.शाजू ने कहा कि उनकी पार्टी को कोई सीट मिलना मुश्किल है।
दो बार विधायक रह चुके शाजू ने आईएएनएस से कहा, "मुझसे कहा गया है कि मुझे टिकट मिल सकता है, लेकिन इसके लिए मुझे कांग्रेस में शामिल होना होगा।"
माकपा के पूर्व दिग्गज एम.वी. राघवन द्वारा स्थापित सीएमपी में 2014 में राघवन के निधन के बाद फूट पड़ गई थी। पार्टी का नेतृत्व अब राज्य नियोजन बोर्ड के सदस्य सी.पी.जॉन के पास है, जोकि 2011 में चुनाव हार गए थे।
एक अन्य पार्टी केरल कांग्रेस (पिल्लई) यूडीएफ का साथ छोड़ चुकी है। इसके मुखिया आर.बालाकृष्णन पिल्लई हैं। पिल्लई यूडीएफ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 2011 में इस पार्टी ने एक सीट जीती थी। बीते साल के शुरू में मतभेदों के बाद यह पार्टी यूडीएफ से अलग हो गई। लेकिन, इसे विपक्षी एलडीएफ में भी जगह नहीं मिली है।
छह बार के विधायक पी.सी. जॉर्ज को बीते हफ्ते यूडीएफ के घटक केरल कांग्रेस (मणि) से पार्टी के एक आदेश का उल्लंघन करने पर निकाल दिया गया था। उन्होंने अपनी पार्टी केरल कांग्रेस (सेक्युलर) को फिर से जिंदा किया है। लेकिन, इस बात के आसार नहीं है कि उन्हें एलडीएफ में जगह मिलेगी।
जॉर्ज ने हाल ही में माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य पी.विजयन से मुलाकात की थी, लेकिन उन्हें टिकट पर कोई आश्वासन नहीं मिल सका। उन्होंने कहा, "अपने पूंजर विधानसभा क्षेत्र से जीतने के लिए मुझे किसी के समर्थन की जरूरत नहीं है। लेकिन, जीतने पर भी मैं महज विधायक ही रहूंगा, इसलिए हो सकता है कि मैं चुनाव न लड़ूं।"
इन तमाम छोटे दलों को चिंता है कि सीट बंटवारे में यूडीएफ में उनका ख्याल नहीं रख जाएगा। इसीलिए इन्होंने हाल ही में केरल यात्रा पर आईं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर टिकट वितरण में अपने साथ 'सम्मानजनक व्यवहार' का आग्रह किया था।
एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "छोटी पार्टियां सभी मोर्चो के लिए मुसीबत हैं। जब प्रतिद्वंद्वी मोर्चो में फासला कम होता है, तब ये अपना दबाव बनाती हैं। एक विधायक वाली पार्टी को मंत्री पद मिल जाता है। ये मोर्चे की मुख्य पार्टी की वजह से चुनाव जीतती हैं, लेकिन अपने विभाग का संचालन निजी जागीर की तरह करती हैं।"
यूडीएफ में आठ और एलडीएफ में छह पार्टियां हैं। जॉर्ज और पिल्लई की पार्टी इनमें से किसी का हिस्सा नहीं है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
केरल चुनाव : छोटी पार्टियों के लिए अहमियत जताने का वक्त
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