संदीप नाईक
अभूतपूर्व मेधा और विलक्ष्ण बुद्धि के स्वामी विवेकानंद का जिक्र आज होना स्वाभाविक है वह संत जिसने दुनिया को भारत की संस्कृति और सभ्यता के बारे में ज्ञान दिया. पूरी दुनिया के लोगों को भाई और बहन कहने वाले बिरले ही लोग होते है. दुनिया के देशों में भारत इस समय ऐसा देश है जहां युवाओं की आबादी सर्वाधिक है और इस समय पूरी दुनिया भारत की ओर बहुत उम्मीदों से देख रही है. भारत के युवाओं की प्रतिभा का लोहा दुनिया मान चुकी है और इस समय भारतीय युवा पूरी दुनिया में सॉफ्ट वेयर से लेकर मेडिकल, प्रौद्योगिकी, खान-पान उद्योग आदि में अपनी जगह बना चुके है और नित नए नूतन कामों से अपनी मेधा का बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे है. दुनिया के अनेक देशों में इन भारत वंशियों ने स्थानीय राजनीती में भी डंका बजाया है और महत्वपूर्ण पद हासिल किये है. भूमंडलीकरण के कारण जहां दुनिया एक छोटा मोहल्ला बन गयी है, आवागमन सुलभ हो गया है इसलिए दुनिया में आवाजाही बहुत बढ़ गयी है. भारत के छोटे कस्बों से युवा दुनिया के बड़े बाजार और उद्योगों में चहल कदमी कर रहे है और दुनिया का ज्ञान अपने यहाँ ला रहे है और अपने तई स्थानीय समाज, व्यवस्था और बाजार को एक ग्लोबल आकार देने की कोशिश कर रहे है. देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने दो सालों में जिस तरह से दुनिया भर के निवेशकों से बात करने के लिए विश्व भ्रमण किये है और लोगों से जीवंत बातचीत की है वह सराहनीय है. इन दौरों में दुनिया भर में बसे युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है और देश के लिए काम करने का उनका जज्बा अतुलनीय है. वे आर्थिक मदद से लेकर शौचालय निर्माण, मेडिकल और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा देने को भी उत्सुक है, निश्चित ही यह पहल और प्रयास सराहनीय है और ऐसे सभी प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए. उम्मीद की जाना चाहिए कि निकट भविष्य में इसके भारतीय समाज पर सार्थक परिणाम निकलेंगे.
                       
                      “मैं पिछले करीब आठ साल से अपने वतन से दूर रह रहा हूँ - पर देश के हालातों पर नजर हमेशा रहती हैं. कई बार मित्रो और सहकर्मियों से देश के सम-सामायिक मसलो पर चर्चा करते वक़्त कही न कही हम बढ-चढ़कर यही जताने की कोशिश मे लग जाते हैं कि दूसरे देश कहाँ से कहाँ पहुंच गए और हमारा भारत देश आज़ादी के 68 वर्षो के बाद भी शायद जहाँ था, वही हैं. जब मैंने कारण जानने की कोशिश की तो यह समझने मे देर नहीं लगी कि जनसँख्या और भ्रष्टाचार दो मुख्य कारण हैं और उस पर भी भ्रष्टाचार तो जैसे हमारी दिनचर्या का हिस्सा ही बन बैठा था. सिंगापुर मे काम करते हुए गुजारे सात सालों मे ये भरोसा तो हो गया था कि बिना रिश्वत दिए भी सरकारी कामकाज हो सकते हैं और अमेरिका आने के बाद इस भरोसे को और मजबूती ही मिली” समीप जैन कहते है जिन्होंने पिछले दिनों इंदौर के एक बड़े अखबार ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध छिड़ी लड़ाई के लिए दो व्यक्तियों को प्रति वर्ष पच्चीस- पच्चीस हजार रूपये के पुरस्कारों की घोषणा की है. मूलतः खंडवा के रहने वाले युवा उत्साही समीप जैन पिछले कई बरसों से देश के बाहर है. देवास की अन्शुमा जैन के साथ उनकी शादी  अभी दो साल पहले ही हुई है. समीप को लगता था कि जिस देश से उन्होंने इतना कुछ लिया उसके लिए वे बहुत कुछ करना चाहते थे, वे अपने ही जिले के खालवा ब्लाक में कोरकू आदिवासियों के बच्चों की कुपोषण से मौत पर भी संजीदा थे, “खराब व्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण नवजात बच्चे भी बलि चढ़ रहे है, और मुझे लगा कि जब हम बाहर रहकर मेहनत करके ईमानदारी से रुपया कमा रहे है, तो हमें देश निर्माण में कुछ देना चाहिए” उनकी सहचर अन्शुमा कहती है कि देवास से हमें शिक्षा के अच्छे संस्कार मिलें, और लगा कि शिक्षा का मतलब आगे चलकर समाज को एक विकसित राष्ट्र में तब्दील करना ही होता है इसलिए हमने मिलकर यह निर्णय लिया है.  
                       
                      पवन गुप्ता इस समय अमेरिका में नासा में वैज्ञानिक है और देवास जिले के इकलेरा गाँव के रहने वाले है. सरकारी स्कूल से हिन्दी माध्यम से पढाई करके पवन ने बहुत मेहनत की और अमेरिका से पीएचडी की और फिर पोस्ट डाक्टरेट किया, इन दिनों वे वही बस गए है परन्तु पवन अभी भी अपने गाँव के बच्चों की पढाई का इंतजाम करते है, हर वर्ष वे दो तीन बार आते है. वे खुद और अपने मित्रों की सहायता से हर वर्ष पचास-साठ बच्चों की फीस भरते है और गुणवत्तापूर्व पढाई की व्यव्स्था करते है और इसके लिए उन्होंने गाँव के एक शिक्षित युवा को इन बच्चों को पढ़ाने के लिए रखा है और बच्चों की फीस, किताब कॉपी का खर्च देते है.  ये बच्चे अधिकाँश बहुत गरीब और दलित परिवारों  से है. पिछले चार वर्षों में कई बच्चे जिनमे ज्यादा लड़कियां है, ने बारहवी की पढाई पूरी करके कॉलेज में पढाई जारी रख रहे है. इंदौर की फाल्गुनी पटाडिया होलकर कॉलेज से भौतिक विज्ञान की छात्रा रही है. उनकी भारतीय राजनीती में आ रहे बदलाव में बहुत रूचि है. फाल्गुनी ने अन्ना आन्दोलन के दौरान अरविन्द केजरीवाल के आन्दोलन को काफी मदद दी, अपने दोस्तों के साथ लगातार आन्दोलन के लिए बाहर रहकर काम किया, आर्थिक मदद जुताई और उनके लन्दन के एक साथी को नौकरी में ब्रेक दिलवाकर सोशल मीडिया सम्हालने के लिए भेजा. फाल्गुनी अमेरिका में ही वरिष्ठ वैज्ञानिक है पर हमेशा देश के नेताओं को विकास के लिए, नीती निर्माण के लिए मेल लिखकर, अपने ब्लॉग पर आलेख  लिखकर सक्रीय रहती है. जब भी वे इंदौर आती है यहाँ के युवाओं को प्रेरित करती है कि वे सक्रीय राजनीती में हिस्सेदारी बढाए.
                      
                      महू के मोहित ढोली टेक्सास में रहकर पेट्रोलियम रसायन में एमएस कर रहे है वहाँ रहकर भी वे भारतीय युवाओं से सघन रूप से जुड़े हुए है और उन्हें शिक्षा के लिए मदद करते रहते है. देवास के अपूर्व दुबे सिएटल में एचपी कम्प्यूटर्स में काम करते है पर जब भी देवास आते है अपने स्कूल में जाकर किशोरवय के बच्चों को कैरियर निर्माण के लिए प्रेरित करते है, अपने मित्रों को खेती, सामाजिक बागवानी में मदद करते है. इटारसी के नितिन वैद्य पिछले कई बरसों से अमेरिका में है, देवास के पवन इशर आस्ट्रेलिया में है और लगातार यहाँ के युवाओं बच्चों को मदद कर रहे है. काँटाफोड़ (देवास) के शैलेन्द्र व्यास स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को लगातार मदद करते रहते है जो अमेरिका में है पिछले कई बरसों से, ऐसे ढेरो युवा है जो लगातार बाहर रहकर भी देश के लिए सिर्फ नारेबाजी करने के लिए नही, अपना नाम करने के लिए नहीं, बल्कि सही मायनों में देश के लिए काम कर रहे है. यहाँ आने पर वे बाकायदा देशी संस्कारों के हिसाब से रहते है और घरों में, खेतों में कीचड में सनकर काम करते है. ये वे युवा है जो हमारे लिए रोल मॉडल है पर ये अँधेरे में रहकर गंभीरता से काम करने वाले लोग है जो यश नहीं चाहते.
                      
                      अब सवाल यह है कि हमारे युवा जो यहाँ गाँव, कस्बों और शहरों में रहकर कुछ नहीं कर रहे है या हमेशा बेरोजगारी का रोना रोते रहते है, देश, समाज के लिए क्या कर रहे है. वे भले ही कुछ ना करें पर कम से कम अपने आपको तो बदल सकते है जैसे वे खुद नया सीखते रहे, अपने कौशल और दक्षताएं बढाते रहे, समाज में उंच नीच और जाति जैसे सामंती व्यवहार को त्यागें और इसके लिए अलख जगाएं, अपने आसपास बच्चों को शिक्षा में मदद करें, स्वास्थ्य सुविधाएँ जो सरकारी स्तर पर उपलब्ध है, को आम लोगों तक पहुँचाने में मदद करें, अच्छे कामों के लिए हर जगह एनजीओ काम कर रहे है उनके रचनात्मक कार्यों में सहयोग करें, महिलाओं के लिए अपने आसपास का माहौल सुरक्षित बनाएं, उनके घरों में मोहल्लों में महिलाओं और लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ ना हो, यह सुनिश्चित करें, दहेज़ ना ले, स्वस्थ और सकारात्मक राजनीती में सक्रीय होकर समाज के भले के लिए काम करें- ये कुछ ऐसे कदम है जिसमे नौकरी या रुपयों की जरुरत नहीं है और इस बीच अपने कैरियर के लिए मेहनत करें. हमारे सामने जबलपुर के रौनक सैनी जैसे आयएएस का उदाहरण है जिन्होंने मात्र चौबीस साल की उम्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर काम किया और मात्र दो माह में नौकरी छोड़ दी और गरीब बच्चों के लिए पढ़ाने का काम आरम्भ किया है. जब तक युवा आगे नहीं आयेंगे तब देश के हालत नहीं सुधरेंगे. याद रखिये मित्रों ठीक तीस साल बाद हम दुनिया के सबसे ज्यादा बुजुर्गों की आबादी वाले देश होंगे और अगर अभी इस समाज को और देश को बदलने का काम युवाओं ने नहीं किया तो यह बनाता बिगड़ता समाज और ज्यादा घातक और रहें लायक नहीं रहेगा. अब जिम्मेदारी आप पर है. पिछले सत्तर सालों में युवाओं को ना जानकारी थी, ना वे बहुत शिक्षित थे, ना उनके पास सूचना प्रौद्योगिकी के उनत साधन और गजट थे और ना चेतना थी ना एक्सपोजर थे इसलिए आज यह देश इतनी समस्याओं से ग्रस्त है पर अभी भी यह देश आने वाले बरसों में ऐसा ही रहता है तो इतिहास आपको माफ़ नहीं करेगा.

                        
                      
