चेन्नई, 3 मार्च (आईएएनएस)। सरकारी बैंकों के हजारो करोड़ों रुपये के ऋण डूबने के बाद अब वक्त आ गया है कि शीर्ष अधिकारियों को भी सेवा/आचार/अनुशासनात्मक नियमों के दायरे में लाया जाए। यह बात बैंक श्रमिक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कही।
ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन (एआईबीईए) के महासचिव सी.एच. वेंकटचलम ने आईएएनएस से कहा, "बैंकों के बुरे ऋण और खासकर बड़े आकार के ऋण भ्रष्टाचार के संभावित क्षेत्र हैं। सिंडिकेट बैंक के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एस.के. जैन का मामला एक बड़े भ्रष्टाचार का सिर्फ संकेत भर है।"
उन्होंने कहा, "बैंकों के कार्यकारी निदेशक और प्रबंध निदेशक के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए कोई तय नियम नहीं है, क्योंकि वे आम अधिकारियों के आचरण नियम के दायरे में नहीं आते।"
उन्होंने कहा कि इन अधिकारियों पर जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया अभी काफी जटिल है और इनके विरुद्ध शिकायतों से निपटने के लिए पारदर्शी तथा प्रभावी नियम बनाए जाने चाहिए।
बैंककर्मियों ने आईएएनएस से कहा कि कार्यकारी निदेशकों और अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों के लिए कोई सेवा नियम नहीं है, सिर्फ शर्ते हैं।
इन शर्तो का संबंध वेतन और सुविधाओं से है तथा इनसे कार्यालय में उनके आचरण और फैसला लेने की प्रक्रिया को अनुशासित नहीं किया जा सकता।
एक सरकारी बैंक में एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "ऋण एक समिति जारी करती है, लेकिन अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तथा कार्यकारी निदेशक की इच्छा प्रभावी होती है। इन अधिकारियों के कार्यो से यदि बैंक बदनाम होता है या उसकी वित्तीय स्थिति खराब होती है, तो उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कोई व्यवस्था नहीं है।"
उन्होंने कहा कि एक मात्र भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का ही सहारा है, लेकिन उनके विरुद्ध पुख्ता प्रमाण चाहिए।
वेंकटचलम के मुताबिक, आज आम धारणा यह है कि छोटे कर्जधारकों को परेशान किया जाता है, लेकिन बड़े कर्जधारक मजा उठाते रहते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
'बैंक अध्यक्ष, कार्यकारी निदेशक को सेवा नियमों के दायरे में लाएं'
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