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कम उम्र में सेक्स के लिए उकसा सकता है रैप म्यूजिक!

न्यूयार्क, 1 मार्च (आईएएनएस)। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि बार-बार रैप म्यूजिक सुनने वाले किशोर-किशोरियां जल्दी सेक्स की शुरुआत कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि दूसरी तरह के संगीत की अपेक्षा रैप म्यूजिक में स्पष्ट यौन संदेश ज्यादा होते हैं।

अमेरिका के ह्यूस्टन राज्य में स्थित टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मध्य विद्यालय के जो किशोर-किशोरी तीन घंटे या उससे अधिक देर तक रोजाना रैप संगीत का आनंद उठाते हैं, वे नौवीं कक्षा से ही सेक्स करने लगते हैं और समझते हैं कि उनके संगी-साथी भी ऐसा कर रहे हैं।

शोध प्रमुख और यूटीहेल्थस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के संकाय सहयोगी किमबर्ले जोनसन बेकर का कहना है, "रैप संगीत आपके उस विश्वास को बढ़ाता है कि आपके साथी क्या कर रहे हैं। यह हमें समझाता है कि कुछ चीजें करना ठीक है, जैसे शराब पीना या सेक्स करना। यह आपको यह सोच देता है कि हर कोई यही कर रहा है।"

जोनस बेकर कहते हैं कि जितना आप इसे सुनते हैं, उतना आप इस पर यकीन करते हैं।

सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, जो किशोर-किशोरी रोजाना तीन घंटों या उससे ज्यादा समय तक संगीत सुनते हैं, वे दो सालों बाद 2.6 गुना ज्यादा सेक्स करते हैं।

जोनसर बेकर कहते हैं कि जब किशोरावस्था में कोई रैप गाने में सेक्स की बातें सुनता है तो वह अपने दोस्तों से ताकीद करता है कि उसके आसपास लोग ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं या नहीं।

अगर उसके दोस्त इसकी पुष्टि करते हैं तो फिर उनका यौन जीवन शुरू हो जाता है। लेकिन अगर दोस्त कहता है कि ऐसा नहीं होता है तो वे आश्वस्त हो जाते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता।

शोधकर्ताओं ने अभिभावकों को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करें। खासतौर पर रैप गानों और उनके बोल के बारे में अवश्य बातचीत करें और उनमें यौन व्यवहार और डेटिग के बारे में उनकी समझ स्पष्ट करें।

वहीं, जोनसन बेकर अब 5वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के यौन व्यवहार पर अपना अगला अध्ययन कर रहे हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • निजी संस्थाएं नहीं सुधार सकतीं स्वास्थ्य सेवाएं : डॉ. सेनगुप्ता
    भोपाल, 4 मार्च (आईएएनएस)। सामाजिक कार्यकर्ता व पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के कार्ताधार्ता डॉ. अमित सेनगुप्ता का कहना है कि गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और निजीकरण के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं को नहीं सुधारा जा सकता, इससे लाभ तो उन लोगांे को होगा जो सेवा करने नहीं, पैसा कमाने आए हैं।

    मध्यप्रदेश की राजधानी आए डॉ. सेनगुप्ता ने शुक्रवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की बजाय उन्हें सरकारें एनजीओ और निजी हाथों में सौंप रही हैं। इसके साथ ही औद्योगिक घराने भी इस क्षेत्र में अपना दखल बढ़ा रहे हैं।

    उन्होंने बताया कि कर्नाटक में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में करुणा ट्रस्ट ने जब प्रवेश किया तो लगा कि स्थितियां सुधर रही हैं, मगर कुछ वर्षो बाद इस ट्रस्ट की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल भी वही हो गया, जैसा सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं हैं। अब मध्यप्रदेश में एक दीपक फाउंडेशन को स्वास्थ्य सेवाएं सौंपने का सिलसिला चल पड़ा है।

    डॉ. सेनगुप्ता ने बताया कि मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य समिति ने दीपक फाउंडेशन से करार करके दो अस्पताल सौंप दिए है। दीपक फाउंडेशन का वार्षिक टर्नओवर 12 करोड़ रुपये है, इसमें से स्वास्थ्य सेवाओं में सिर्फ 27 प्रतिशत ही है। सवाल उठता है कि यह संस्था राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने आई है या फंडिंग एजेंसियों से अपना फंड बढ़ाने की जुगत लगाने आई है।

    अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. सेनगुप्ता ने कहा कि जब सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं में एनजीओ और निजी भागीदारी बढ़ाती हैं तो उससे संबंधित क्षेत्र की जनता को कम, संस्था को ज्यादा लाभ होता है, क्योंकि उन्हें यह बताने का मौका मिल जाता है कि कई राज्य की सरकारें भी उन्हें काम सौंप रही हैं। इस आधार पर निजी कंपनियां देश और दुनिया की अनुदान देने वाली संस्थाओं से और ज्यादा अनुदान हासिल कर लेती हैं।

    उन्होंने आगे कहा, "हम पहले एस्कोर्ट को सिर्फ टेक्टर कंपनी के तौर पर जानते थे, आज उसकी पहचान एक अस्पताल या यूं कहें स्वास्थ्य सेवा देने वाली संस्था के तौर पर भी हो गई है। इसी तरह की कई अन्य कंपनियां भी इस क्षेत्र में दाखिल हो रही है।"

    उनका कहना है कि सरकारें जनकल्याण के लिए होती हैं, मगर औद्योगिक घरानें और व्यावसायिक संस्थाएं धन कमाने के लिए। ऐसे मंे जब स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में यह संस्थाएं आएंगी तो सेवा करेंगी, यह संभव नहीं लगता है। यही कारण है कि गैस की बीमारी पर मरीज के हृदय का ऑपरेशन कर दिया जाता है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • कुलेक्स मच्छर में भी जीका का पता चला
    ब्राजीलिया, 4 मार्च (आईएएनएस)। आम धारणा यह थी कि मानव के लिए खतरनाक जीका वायरस केवल विशेष तरह के मच्छरों में ही पाया जाता है, लेकिन यह गलत साबित हुई। ब्राजील के वैज्ञानिकों ने आम मच्छर कुलेक्स में भी जीका वायरस का पता लगाया है।

    इसका मतलब कि आम मच्छर भी इस वायरस से जुड़ी बीमारी को फैला सकते हैं। शुक्रवार को मीडिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

    समाचार एजेंसी सिन्हुआ की खबर के अनुसार, यह परीक्षण 200 से अधिक कुलेक्स मच्छरों पर किया गया। इसके परिणामों को अभी सत्यापित किया जा रहा है और ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिससे यह पता चले कि कुलेक्स मानव को दूषित कर सकते हैं।

    अब तक यह माना जा रहा था कि एडीज एइजिप्टी मच्छरों से ही जीका फैलता है। इसी मच्छर से डेंगू और चिकनगुनया भी फैलता है।

    यह खोज रियो-डि-जनेरियो स्थित ओस्वाल्डो क्रूज फाउंडेशन (फियोक्रूज) ने की है। उसने जीका पर बुधवार को आयोजित एक संगोष्ठी में इसकी घोषणा की।

    फियोक्रूज के शोधकर्ता अब जीका प्रभावित इलाके में कुलेक्स के नमूनों को खोज रहे हैं, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कुलेक्स इस वायरस को किस हद तक फैलाते हैं। अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले इस पर छह से आठ माह तक अध्ययन होगा।

    शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्राजील के शहरों में एडीज एइजिप्टी मच्छरों की तुलना में कुलेक्स मच्छर 20 गुना आम हैं। इस तरह के मच्छर दुनियाभर में पाए जाते हैं और वे गंदे पानी में अंडे देते हैं। ये एडीज एइजिप्टी के विपरीत हैं जो स्वच्छ पानी में पैदा होते हैं।

    कुलेक्स का शहरी क्षेत्रों में फैलाव सफाई नहीं रहने की वजह से होता है। यह देश के गरीब इलाकों के लिए एक गंभीर मुद्दा है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

    इंडो -एशियन न्यूज सर्विस
  • कैंसर सूचनाओं के प्रसार में प्रभावी है 'ट्विटर'

    न्यूयार्क, 4 मार्च (आईएएनएस)। माइक्रो-ब्लागिंग साइट ट्विटर कैंसर संबंधी जागरूकता को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है। शोधकर्ताओं ने यह जानकारी दी है।

    पेसिंल्वेनिया के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन से मीना एस.स्रेडक और साथी शोधार्थियों ने एक प्रारंभिक अध्ययन कर 1,516 ट्वीट का विश्लेषण किया।

    शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में पाया कि जनवरी 2015 मेंलगभग दो सप्ताह की अवधि में फेंफड़ों के कैंसर से संबंधित 15 हजार 346 ट्वीट किए गए।

    निष्कर्षो के अनुसार, इस नमूने के 83 प्रतिशत (1,516 में 1,260) ट्वीट फेफड़ों के कैंसर की जानकारी और रोकथाम के बारे में थे।

    इस शोध में कहा गया है, "सोशल मीडिया क्लिनिकल शोधकर्ताओं के लिए एक बहुत उपयोगी उपकरण हो सकता है लेकिन इसमें गैर-आक्रामक सामग्री और गोपनीयता के आश्वासन संबंधी चुनौतियां भी शामिल हैं। जिस पर आईआरबी (संस्थागत समीक्षा बोर्ड) को सावधानी से विचार करने की आवश्यकता होगी।"

    आईआरबी अमेरिका की एक समिति है जो चिकित्सा अनुसंधान संबंधी मामलों में अहम भूमिका निभाती है।

    उन्होंने कहा, "हमें भविष्य में इस दिशा में प्रयास करने की जरूरत है किट्विटर चिकित्सीय परीक्षणों के प्रसार-प्रचार के लिए शक्तिशाली माध्यम बन सके।"

    यह शोध पत्रिका 'जेएएमए ओन्कोलॉजी' में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • संयुक्त राष्ट्र सब्जी उत्पादन को देगा बढ़ावा
    मैक्सिको सिटी, 4 मार्च (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने लैटिन अमेरिका में एक अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत बेहतर पोषण के लिए सब्जियां उपजाने को बढ़ावा दिया जाएगा। एफएओ के प्रमुख जोस ग्रेजियानो ने यह जानकारी दी।

    एफएओ के महानिदेशक ने यहां आयोजित एक क्षेत्रीय सम्मेलन में कहा, "लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के लिए इस क्षण एक प्रमुख चुनौती है। हम खाद्य सुरक्षा की दिशा में अच्छे रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन हमें इसमें पोषण भी जोड़ना होगा।"

    उन्होंने कहा कि एफएओ ने 2016 को अंतर्राष्ट्रीय सब्जी वर्ष घोषित किया है। इस अभियान के तहत वे लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई सब्जियों को दूसरे क्षेत्रों में भी प्रचारित करेंगे, क्योंकि ये पोषण से भरपूर हैं।

    ग्रेजियानो ने कहा, "हर देश को सब्जियों के पोषण मूल्य को समझना चाहिए और उन्हें एफएओ को इस बारे में बताना चाहिए, ताकि हम उनका प्रचार-प्रसार कर सकें।"

    गरीब आबादी को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में सब्जियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरण के लिए मैक्सिको बीन्स में काफी रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और यह प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • उच्च रक्तचाप की समस्या वाली महिलाएं खूब खाएं दही

    न्यूयार्क, 4 मार्च (आईएएनएस)। सप्ताह में पांच या इससे ज्यादा बार दही का सेवन महिलाओं को उच्च रक्तचाप की समस्या से उबार सकता है। एक नए शोध में यह पता चला है।

    जो महिलाएं महीने में पांच बार दही खाती हैं, उनकी तुलना में सप्ताह में पांच बार दही का सेवन करने वाली महिलाओं में उच्च रक्तचाप का खतरा 20 फीसदी तक कम हो जाता है।

    आहार में दही को शामिल कर महिलाओं में उच्च रक्तचाप की लंबी अवधि के जोखिम को कम किया जा सकता है।

    इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 25-55 आयु वर्ग की महिलाओं के दो सर्वेक्षण के आकड़ों का अध्ययन किया था। साथ ही स्वास्थ्य पेशेवरों ने 40-75 वर्ष की आयु के पुरुषों का भी अध्ययन किया था।

    अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी से इस शोध की मुख्य लेखक जस्टिन ब्यूएनडिया का कहना है, "हमारे अध्ययन से पता चलता है कि डेयरी उत्पादों, विशेष रूप से दही की दैनिक खपत उच्च रक्तचाप के खतरे को कम करती है जो हृदय रोग और स्ट्रोक के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।"

    उन्होंने कहा, "दूध और पनीर का सेवन भी रक्तचाप पर लाभकारी प्रभाव दे सकता है, हालांकि दही का प्रभाव डेयरी के अन्य रूपों की तुलना में मजबूत लगता है।"

    यह शोध एक से चार मार्च के बीच हुए 'अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन एपिडेमियोलॉजी/लाइफस्टाइल 2016 साइंटिफिक सेशन्स' में पेश किया गया।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • जीवनशैली व अहार में परिवर्तन से दिल की बीमारियों का खतरा कम

    लंदन, 4 मार्च (आईएएनएस)। जीवनशैली में बदलाव से हृदय संबंधी रोगों से बचा जा सकता है, क्योंकि एक नए शोध के मुताबिक, आहार में वसा की मात्रा कम करना और फलों, सब्जियों तथा अनाज की मात्रा बढ़ाना दिल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

    अध्ययन के मुताबिक, जीवनशैली में परिवर्तन से कॉलेस्ट्रॉल में कमी आई और यह कमी बुजुर्गो और ऐसे लोग, जिन्हें हृदय रोग का खतरा अधिक होता है, उनमें अधिक देखी गई।

    इसका प्रभाव कम उम्र के लोगों की जगह बुजुर्गो में अधिक देखा गया। हालांकि पुरुषों व महिलाओं में इस प्रभाव में कोई अंतर नहीं पाया गया।

    यही नहीं, ऐसे व्यक्ति जिन्हें दिल की बीमारियों का खतरा अधिक था, उच्च रक्तचाप व मधुमेह का इलाज चल रहा था और एक बार दिल का दौरा पड़ चुका था, उनमें सर्वाधिक फायदा पाया गया।

    शोधकर्ताओं ने कहा कि परिणाम दर्शाते हैं कि लोगों के बीमार पड़ने या दिल के दौरे से होनेवाली मौत से बचाव कॉलेस्ट्रॉल में कमी लाकर की जा सकती है।

    स्वीडन के उमिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मात्स एलियासन ने कहा, "कॉलेस्ट्रॉल में कमी का सबसे महत्पूर्ण कारण जीवनशैली में परिवर्तन है, खासकर फल, सब्जियों व अनाजों का अधिक से अधिक सेवन।"

    यह अध्ययन पत्रिका 'यूरोपीयन हार्ट जर्नल' में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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