प्राची साल्वे/सौम्या तिवारी
आम बजट 2016-17 में 14 फीसदी अधिक आवंटन हासिल करने वाला और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत आने वाला कार्यक्रम सरकार द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता कार्यक्रम है।
इंडियास्पेंड के एक विश्लेषण के मुताबिक यह कार्यक्रम कम से कम 5.2 करोड़ लोगों को रोजगार देगा और इस वजह से प्रति परिवार पांच सदस्य समझते हुए अगले 20 साल तक करीब 26 करोड़ लोगों की जीविका इसके सहारे रहेगी।
कार्यक्रम की राशि गत तीन साल में कुल 18 फीसदी बढ़ाई गई है। गत वर्ष कार्यक्रम की पूरी राशि दिसंबर में ही खप गई थी।
दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स एक्शन फॉर एंप्लॉयमेंट गारंटी के मुताबिक, 2015-16 में कार्यक्रम का धन समय से पहले खप जाने की स्थिति में 5,000 करोड़ रुपये का बफर था, लेकिन केंद्र सरकार ने सिर्फ 2,000 करोड़ रुपये ही जारी किए।
देश में 27 करोड़ लोग आज गरीबी रेखा से नीचे हैं। शहरों में प्रति व्यक्ति 47 रुपये और गांवों में प्रति व्यक्ति 32 रुपये खर्च करने वाले लोगों को गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है।
मनरेगा योजना में 27.79 करोड़ कामगार पंजीकृत हैं।
अकुशल श्रमिक इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की परिभाषा के मुताबिक कम से कम पांच साल की स्कूली शिक्षा पाने वालों को कुशल माना जाता है।
कितने लोगों को आने वाले वर्षो में मनरेगा योजना की जरूरत होगी, इसका अनुमान लगाने के लिए 2011 की जनगणना के मुताबिक गांवों की अशिक्षित आबादी पर ध्यान दिया गया। 16 से 30 वर्ष के उम्र समूह में 5.17 करोड़ लोग अशिक्षित हैं। इन्हें यहां मोटे तौर पर 5.2 करोड़ माना जा रहा है।
उम्र सीमा पार कर लेने के कारण ये लोग शिक्षा का अधिकार कानून का लाभ नहीं उठा सकते। इसलिए ये लोग कभी भी कुशल श्रमिक नहीं बन सकेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि इन्हें कम से कम अगले 20 साल तक मनरेगा योजना की जरूरत होगी।
इन 5.2 करोड़ में सिर्फ अशिक्षित हैं, जबकि ऐसे अनेक साक्षर लोग हैं, जो उद्योग में कुशल श्रमिक के तौर पर काम नहीं कर सकते।
वित्त मंत्रालय को ग्रामीण विकास मंत्रालय से मिले एक पत्र के मुताबिक मनरेगा की 17 फीसदी राशि पिछले साल के वेतन और सामग्री खर्च के भुगतान पर खर्च हो जाती है।
योजना के लिए इस साल का वास्तविक आवंटन करीब 29,000 करोड़ रुपये (4.6 अरब डॉलर) है।
यह भी गौरतलब है कि 2015-16 के लिए योजना को आवंटित 95 फीसदी राशि 30 दिसंबर 2015 तक खप चुकी है।
साथ ही योजना के तहत 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है, जबकि सूखा पीड़ित कुछ राज्यों में 150 दिनों का रोजगार दिया जाना है, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त राशि उपलब्ध नहीं है।
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)