-
दिल्ली के उपराज्यपाल ने दी होली की शुभकामनाएं
नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने बुधवार को यहां के लोगों को होली की शुभकामनाएं दी और इस अवसर पर एक-दूसरे, खासकर महिलाओं का सम्मान किए जाने का आह्वान किया।
जंग ने एक बयान में कहा, "ईश्वर करे रंगों का यह त्योहार मानवीय संबंधों को मजबूत बनाए और सौहार्द बढ़ाए।"
उन्होंने लोगों से होली का त्योहार सच्ची भावना के साथ मनाने की अपील की।
उन्होंने कहा, "रंगों का यह त्योहार भारत के बहुसांस्कृतिक तानेबाने का प्रतीक है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-
होली की मस्ती में रासायनिक रंगों से बचें!
मनोज पाठक
पटना, 23 मार्च (आईएएनएस)। नए वर्ष के आगमन की खुशी में मनाए जाने वाले रंगों के त्योहार में लोग गिले-शिकवे भूल अबीर-गुलाल और रंगों से रंग जाते हैं। वैसे मुनाफा कमाने की आड़ में अब होली के मौकों पर सजने वाले बाजारों में कृत्रिम व रासायनिक रंग और गुलाल का वर्चस्व हो गया है।
होली के दौरान, अक्सर लोग उत्साह में सब भूल जाते हैं और बाद में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लोग कृत्रिम रंग के प्रयोग से त्वचा और बालों संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।
होली पर्व से एक महीने पहले ही फगुआ के गीत गूंजने लगते हैं और अबीर और गुलाल उड़ाए जाते रहे हैं। ऐसे तो बिहार के सभी इलाकों में रंगों और गुलालों से सजे बाजार हैं, लेकिन इसमें अधिकांश कृत्रिम रंग होते हैं जो शरीर के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं।
पटना के जाने-माने चर्म रोग के चिकित्सक डॉ़ रवि विक्रम सिंह ने बताया कि इन तमाम रंगों में ऐसे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो कपड़ों के रंगने के काम आते हैं। इन रंगों का दुष्प्रभाव आंख, कान, त्वचा सहित शरीर के कई जगहों पर पड़ता है। उनका कहना कि होली के मौके पर बाजार में उपलब्ध अधिकांश रंग कृत्रिम होते हैं।
बुजुर्गो के मुताबिक, पूर्व में जहां एक खास तरह के पेड़ के छाल को पीस कर पाउडर बनाकर गुलाल बनाया जाता था, वहीं टेसू और पलाश के फूलों से शुद्ध रंग बनाया जाता था, लेकिन अब ये बातें केवल सुनने और कहानियों की तरह हो गई हैं।
बिहार में नील की खेती सबसे अधिक होती थी और उससे नीला रंग तैयार होता था। इस कारण होली के मौके पर भी इन नीले रंगों का खूब इस्तेमाल किया जाता था।
बताया जाता है कि टेसू मई-जून महीने में फूलता था, जिसे सुखा कर रख दिया जाता था। होली के दिनों में उन्हीं फूलों को पानी में उबाल कर रंग बनाया जाता था।
जानकारों का कहना है कि आज के समय में जो गुलाल बाजार में उपलब्ध हैं, उसमें एसिड, स्कारलेट और कई तरह के खतरनाक रासायनिक पदार्थ मिलाए जाते हैं।
पटना में रंग के कारोबारी अविनाश कुमार कहना है कि कृत्रिम रंगों का प्रचलन कोई नया नहीं हैं। पहले बिहार में ऐसे रंग कम होते थे। होली के दिनों में अधिकांश रंग कपड़ा रंगने वाला होता है। बाजार में हर्बल गुलाल भी आ गए हैं, लेकिन महंगा होने के कारण लोग इसे कम खरीदते हैं।
पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सक डॉ़ सतीश कुमार ने बताया कि कई बार चेहरे पर रंग लगने से चिनचिनाहट होने लगती है और इन रंगों को धोने के बाद गाल की त्वचा पर लाल-लाल छाले निकल जाते हैं और इनमें खुजली होने लगती है। इन रंगों से आंखों को भी काफी नुकसान होने का डर बना रहता है।
उन्होंने बताया, "होली खेलने के पूर्व चेहरे, हाथों और शरीर के खुले हिस्सों पर मॉश्च्युराइजर क्रीम या सनस्क्रीन लोशन अच्छे से लगाना चाहिए। क्रीम 10 मिनट तक त्वचा पर रगड़ें और कुछ देर सूखने दें। इससे आप होली के रंगों के कुप्रभाव से बच सकेंगे।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-
होली बाजार : बिक रहे मोदी के मुखौटे, मोदी पिचकारी भी
रायपुर, 23 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ में होली के लिए बाजार पूरी तरह से सज गए हैं। रंग, गुलाल और पिचकारियों के साथ ही त्योहार की खास सामग्रियों की खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है। बाजार में हर जगह लाल, हरे, नीले, गुलाबी, पीले, नारंगी रंग के रंग व गुलाल दिख रहे हैं। होली बाजार की रौनक देखते ही बनती है।
होली में सभी ओर मोदी का जादू छाया हुआ है। इस बार मोदी के मुखौटे और मोदी पिचकारी की मांग सबसे अधिक है। इसे लेकर युवाओं और बच्चों में क्रेज बना हुआ है। सभी मोदी बनकर होली का पर्व मनाना चाह रहे हैं। बाजार में उनकी जमकर बिक्री हो रही है।
रंग व्यवसायी कैलाश गुप्ता ने बताया कि मोदी मुखौटे के साथ ही मोदी पिचकारी की लोग ज्यादा मांग कर रहे हैं। इस वजह से यह बाजार में मुश्किल से ही मिल पा रहे हैं।
सूबे के बिलासपुर में देवकीनंदन स्कूल व लाल बहादुर शास्त्री स्कूल के पास, मुंगेलीनाका और शनिचरी में होली बाजार सज गया है। वहीं लोगों ने खरीदारी भी शुरू कर दी है। रंगों से सजा बाजार त्योहार की खुशियों को दोगुना कर रहा है। शाम होते ही रंग, पिचकारी खरीदने लोगों की भीड़ लगी रही है। इससे सोमवार की देर शाम तक होली का बाजार गुलजार रहा।
बाहुबली बनकर बच्चे होली खेलेंगे। बाजार में होली के लिए मिलने वाले बाहुबली मास्क भी बच्चों को लुभा रहे हैं। इसके साथ ही छोटा भीम, डोरेमान, भूत व कंकाल मास्क भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वहीं लड़कियों को रंग-बिरंगे पंखों से सजे तितली, परी जैसे मास्क लुभा रहे हैं।
व्यापारियों का कहना है कि मास्क रंगों से होने वाले नुकसान से चेहरे की रक्षा करता है। इस वजह से हर आयु वर्ग के लोग इसे पसंद करते हैं। बाजार में मास्क 20 रुपये से लेकर 300 रुपये तक मिल रहे हैं।
रंगों में होने वाले कैमिकल की वजह से लोगों की पहली पंसद हर्बल रंग बना हुआ है। इसमें चंदन के साथ ही विभिन्न प्रकार के हर्बल से बने रंगों की मांग ज्यादा है। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के फूल व फलों की खुशबू वाले गुलाल भी अपनी खुशबू और चटख रंगों से दूर से ही लोगों को लुभा रहे हैं।
गोलबाजार के व्यवसायी वैभव गुप्ता ने बताया कि इस बार सबसे ज्यादा हर्बल रंगों के साथ ही परफ्यूम वाले रंग और गुलाल की मांग है। इसी तरह लिक्विड वाले रंग के साथ ही 8 प्रकार के नए रंगों वाले गुलाल भी होली को खास बनाएंगे।
होली में बालों को सुरक्षा देने के साथ ही नया लुक देने के लिए बालों को पसंद किया जा रहा है। विशेष रूप से मलिंगा और मोगली के हेयर स्टाइल का लुक लिए बालों का विग सबसे ज्यादा युवाओं को लुभा रहा है। इसके साथ ही शाहरुख, कैटरीना, करीना, धोनी, रीछ और जज के बालों जैसे विग भी होली में रंग भरने तैयार हैं। बाजार में विग 100 रुपये से लेकर 400 रुपये तक में उपलब्ध हैं।
पिचकारियों में कार्टून कैरेक्टर छाया हुआ है। छोटा भीम, छुटकी, डोरेमॉन, एंग्री बर्ड, डोरेमॉन बच्चों के बीच खास बने हुए हैं। इसके साथ ही बड़ी पिचकारियों में वाटर टैंक, ट्राली बैग, गन के साथ ही पारंपरिक अंदाज लिए पिचकारियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी पिचकारियों के साथ ही बाजार की रंगत देखते ही बन रही है। पिचकारियां 10 रुपए से लेकर 1200 रुपए तक की कीमत में उपलब्ध हैं। पिचकारियों, मुखौटों और विग के साथ ही रंग-बिरंगी टोपियां, प्रेशर हॉर्न, बालियां सहित विभिन्न प्रकार की एसेसरीज भी होली को नया अंदाज देंगे।
बाजारों में विभिन्न प्रकार की मिठाइयों के मिलने के बाद भी घर-घर पारंपरिक पकवानों के बनने का सिलसिला शुरू हो गया है। होली में आने वाले मेहमानों का स्वागत भी पारंपरिक पकवानों के साथ किया जाएगा। घरों में गुझिया, अनरसा सहित अनेक प्रकार के पकवानों को तैयार करने में महिलाएं व्यस्त हैं।
होली में ठंडई की खुशबू अपने स्वाद के साथ लुभाएगी। पारंपरिक अंदाज से बनने वाली ठंडई के साथ ही विभिन्न प्रकार के फ्लेवर वाली ठंडई खास बनी हुई है। बाजार में होली के लिए ठंडई अनेक फ्लेवर में मिल रही है।
टीवी और फिल्मों की तर्ज पर होली का क्रेज लोगों में देखते ही बन रहा है। इस वजह से सफेद कुर्तों की मांग बनी हुई है। सफेद कुर्ता होली की थीम पार्टी रखने वालों के साथ ही युवाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय है।
बाजार में नई-नई डिजाइन के सफेद कुर्ते से सजने लगा है। होली में शक्कर से बनी रंग-बिरंगी माला का विशेष महत्व होता है। इस वजह से बाजार में लाल, हरी, सफेद, गुलाबी रंग लिए शक्कर की माला (हरवा) की बहार देखते ही बन रही है। सभी ओर रंगों से सजी शक्कर माला आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
घरों के साथ ही बाजारों में होली के पकवान सजने लगे हैं। इससे बाजार में सभी ओर पकवानों की खुशबू आ रही है। होली के लिए सबसे ज्यादा मांग गुझिया और भांग की मिठाइयों की है। इन दोनों के बिना पर्व का उत्साह और मेहमान का स्वागत अधूरा-सा रहता है।
बाजार में भांग वाली मिठाई 400 रुपये किलो और गुझिया 280 रुपये किलो तक है। इसके साथ ही मैदे से बनी मिठाई 200 रुपये, बेसन की मिठाई 160 रुपये, मावा की मिठाई 320 रुपये, अंजीर की मिठाई, काजू की मिठाई 640 रुपये, खजूर की मिठाई 400 रुपये, पेड़ा 320 रुपये प्रति किलो की दर पर मिल रही हैं। इसके साथ ही इमरती 160 और खोवा जलेबी 200 रुपये है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-
बिस्मिल्लाह खां की आत्मा में बसती थी गंगा-जमुनी तहजीब
पद्मपति शर्मा
शहनाई नवाज 'भारत रत्न' उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब की जन्मशती पर आज समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार पढ़ कर खो गया यादों के झरोखों में। याद आयी उनकी गंगा-जमुनी तहजीब, काशी विश्वनाथ हों या मां शीतला, खां साहब की कानों में रस घोलती शहनाई की गूंज सुबह दर्शनार्थियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं हुआ करती थी।
मैं पैदा हुआ था तब घर पर खां साहब की शहनाई बजी थी और कालान्तर में मुझे बनारस के बहुचर्चित हिरोज क्लब में उनके साथ उपाध्यक्ष पद बांटने का सुयोग भी दशकों तक मिलता रहा था। खां साहब से पारिवारिक रिश्ता कइयों को चौंका सकता है। एक घोर कर्मकांडी परिवार का खां साहब से नाता कुछ अटपटा सा जरूर लगता होगा पर यही हकीकत है और यह भी कि यह कई पीढियों से था। कैसे जुड़ाव हुआ, कब हुआ..?
इसकी जानकारी तो नहीं पर इतना जरूर जानता हूं कि मेरे चार चाचाओं और मुझ सहित चार भाइयों के जन्म पर बिस्मिल्लाह साहब ने ही एक रुपये और गुड़ बताशे के साथ बिस्मिल्लाह किया था। चौंतरे पर वह आते या छोटे भाई इमदाद हुसैन को भेजते।
मेरा परिवार राजस्थान से जुड़ा है, यह बताने की जरूरत नहीं पर यह जानकारी देने की जरूरत है कि माहेश्वरी वैश्यों का हमारा परिवार कभी गुरु हुआ करता था। उसी कड़ी मे करनानी, सुखानी, बियाणी, बिड़ला आदि घराने आते थे। इनके यहां विवाह आदि अवसरों पर शहनाई पार्टी, पान लगाने वाला पितामह के साथ जाया करता था।
पुरखे मूलत: कुचोर (बीकानेर) से उठे हुए हैं।बाद में प्रपितामह सिरसा (ऐलनाबाद) आ गए और यहीं खां साहब का काफी आना जाना लगा रहता था। जरा सोचिए कि आज से 80-90 साल पहले की सामाजिक व्यवस्था का क्या आलम रहा होगा।
जात-पांत, छुआछूत का बोलबाला अपने चरम पर..पर ऐसे माहौल में भी खां साहब का रुतबा सिरसा में किसी देवता से कम नहीं था। जब उनकी टीम जाती तब उनको स्नान ब्राह्मणों के कुएं पर कराया जाता और पंडित लोग यह कहते हुए जल निकालते थे कि बिस्मिल्लाह न तो मुसलमान हैं और न ही हिन्दू , वह तो सरस्वती पुत्र हैं।..!!
एक बार ढाई दशक पहले सिगरा स्टेडियम के सामने होटल में हिरोज की मीटिंग के दौरान खां साहब ने पितामह के बारे में अनेक बाते बताईं और उन्हीं में एक सबसे अहम था उनकी पहली कमाई..जो उन्हें हमारे दादा जी पं गौरीशंकर शास्त्री से पुरस्कार स्वरूप मिली थी और जिसे उन्होंने अपनी तिजोरी में सहेज कर रख दिया था।
खां साहब के अनुसार, मामला बड़ा मजेदार है बेटा, दरअसल मेरे मामू जान का रिश्ता था आपके परिवार से और मैं उन्हीं के यहां रह कर शहनाई सीखता था। मामू ग्वालियर रियासत के भी दरबारी संगीतज्ञ थे। हुआ यूं कि किशनगंज (बिहार) में आपके परिवार के चेलों के यहां विवाह था और उसमें मामू को जाना था।लेकिन अचानक ग्वालियर दरबार से उन्हीं तारीखों पर विवाह ( शायह स्वर्गीय माधवराव सिंधियां के पिता का रहा होगा ) के लिए बुलावा आ गया। मामू के सामने धर्म संकट था पर अंत में उन्होंने तय किया कि टीम लेकर मैं जाऊं। मेरी तो नाड़ी सूख गई मैं शंकर महाराज और उनके मिजाज से वाकिफ था। मेरी उम्र 14-15 बरस की रही होगी। हमारी टीम खैर पहुंची किशनगंज। हम पेश हुए महाराज के सामने। यह खबर मिलते ही कि मामू नहीं आए हैं, शंकर महाराज आपे से बाहर। सीधा हुक्म, सामान उठाओ और पहली गाड़ी से बनारस लौट जाओ। हम लोग वापसी की तैयारी करने लगे। सामान खोला भी नहीं था।
मैंने डरते डरते शंकर महाराज से इल्तजा की कि बस एक बार मुझे सुन लें फिर हम लोग बनारस लौट जाएंगे। आपके दादाजी तो तैयार नहीं थे पर सेठ ने जब शंकर महाराज से गुहार की कि एक बार सुनने में क्या हर्ज है, तब वो राजी हो गए। उसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास है। बात दस मिनट की थी और मै बजाता रहा दो घंटे तक। जब रुका तब शंकर महाराज का चेहरा तौलिए से ढका हुआ था और आंखों से आंसू थे कि थमने का नाम नहीं ले रहे थे.. तुमने बिस्मल्लाह किया है और तू मुड़ के भी नहीं देखेगा।
तेरे को तो मां सरस्वती ने विशेष रूप से धरती पर भेजा है। जा तू राज करेगा औरआज से तू ही चलेगा मेरे साथ। अपने मामू को बोल देना। उन्होंने खनाखन 21 चांदी के विक्टोरिया वाले सिक्के दिए इनाम में जो मेरे जीवन भर की पूंजी बन गए। पदुम भैयै तब से आपके दादा जी के साथ कहां नहीं गया.. खां साहब के वो बोल आज भी मेरे कानों में रस घोलते रहते हैं। वो गाना जब भी बजता है गूंज उठी शहनाई का.. दिल का खिलौना हाय टूट गया..तब शहनाई का यह पर्याय सबसे पहले जेहन में उतरता चला जाता है।
अगर आज उस्ताद जीवित होते तो लताड़ते उनको जो देश में असहिष्णुता की बात करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-
'मेकॉन्ग' 6 देशों की साझा जीवनधारा
बीजिंग, 22 मार्च (आईएएनएस/सिन्हुआ)। चीन की मेकॉन्ग नदी की धारा छह देशों के लोगों के लिए न सिर्फ जीवनदायिनी का काम करती है, बल्कि इन्हें एकता के सूत्र में पिरोने का भी काम करती है। इन देशों के निचले तबके के अधिकांश लोगों की आजीविका का श्रेय इस नदी की धारा को जाता है।
नदी के आसपास के अंदरूनी क्षेत्रों में आर्थिक इंजन के निर्माण के उद्देश्य से 23 मार्च को चीन के सान्या में लंकांग-मेकॉन्ग सहयोग (एलएमसी) के नेताओं की पहली बैठक होने जा रही है।
मेकॉन्ग नदी छह देशों चीन, म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया व विएतनाम को जोड़ती है। इस खूबसूरत, गतिशील व लंबी नदी धारा की सैर इस विविधता भरे क्षेत्र के इतिहास, शांति, जटिलता व भविष्य से रूबरू होना है।
उत्पत्ति एवं संसाधन :
मेकॉन्ग नदी देशों को प्रचुर मात्रा में संसाधन मुहैया कराती रही है। चीन में इसे 'लंकांग' कहा जाता है, जिसकी उत्पत्ति वहीं से हुई है, जहां से यांग्त्जे नदी तथा पीली नदी निकलती है।
मेकॉन्ग डेल्टा को विएतनाम में चावल का कटोरा कहा जाता है। विएतनाम में कुल चावल उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा यहीं उपजता है और विएतनाम से जितने चावल का निर्यात होता है, उसका 90 फीसदी हिस्सा यहीं के चावल का होता है।
साझा हित :
सभी छह देश हालांकि भिन्न हैं, लेकिन इस नदी को लेकर उनके कई साझा हित हैं। सांस्कृतिक व कला संचार के अलावा, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा क्षेत्र में शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है।
सहयोग को और आगे ले जाने के लिए चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने 17वें चीन-आसियान नेताओं की बैठक के दौरान साल 2014 में एलएमसी की रूपरेखा की पेशकश की थी।
इसके बाद सभी छह देशों ने नवंबर 2015 में इस स्वर्ण त्रिभुज में सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के साथ ही आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इसे आधिकारिक तौर पर पेश किया।
सांस्कृति सहयोग के तहत दक्षिण-पश्चिम चीन में युन्नाम प्रांत के जिंगहोंग शहर में 'मेकॉन्ग रिवर नेशनल कल्चर एंड आर्ट्स फेस्टिवल' थाईलैंड के कलाकार संजातीय नृत्य की प्रस्तुति करते हैं। साल 2011 से ही यह समारोह मनाया जा रहा है, जिसमें सभी छह देशों के कलाकार हिस्सा लेते हैं।
चीन, लाओस, म्यांमार व थाईलैंड के कानून प्रवर्तन कर्मचारी साल 2011 से ही आपराधिक गतिविधियों को रोकने (हथियारों व मादक पदार्थो की तस्करी) के लिए इस क्षेत्र में संयुक्त गश्ती करते आ रहे हैं।
लाओस, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया व विएतनाम में सूखे से निपटने के लिए युन्नान प्रांत के शीशुआंगबान्ना के दाई स्वायत्तशासी प्रांत स्थित जिंगहोंग पनबिजली केंद्र से चीन ने नदी के मुहाने पर बसे अन्य देशों में सूखे से निपटने के लिए आपात जल आपूर्ति जारी किया।
थाईलैंड और वियतनाम ने सूखे से प्रभावित मेकॉन्ग देशों के लिए पानी छोड़े जाने के चीन के कदम की प्रशंसा की। थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रत्युत चान ओ-चा ने 19 मार्च को कहा कि वह यह देखकर खुश है कि चीन सूखे से प्रभावित थाईलैंड की मदद के लिए पानी छोड़ रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तरी थाईलैंड तक पानी की आपूर्ति पहुंच चुकी है।
उत्तरी थाईलैंड के सूखे से प्रभावित उदोन्तानी प्रांत के दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने चीन द्वारा मेकॉन्ग नदी के निचले क्षेत्रों में पानी छोड़े जाने की प्रशंसा की।
थाईलैंड दो दशक के भयंकर सूखे का सामना कर रहा है। वर्ष 1994 के बाद से देश के बड़े बांधों में पानी सबसे निम्नतम स्तर तक पहुंच गया है। देश के 46 जिलों और 12 प्रांतों को सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।
वियतनाम के एक विशेषज्ञ ने कहा कि चीन द्वारा मेकॉन्ग नदी के लिए पानी छोड़ना एक सहयोगी कदम है।
इस बीच, चीन की बेल्ट एंड रोड योजना ने नदी के मुहाने पर बसे छह राष्ट्रों के बीच बड़े आर्थिक, व्यापार व सांस्कृतिक संबंधों का सूत्रपात किया है, जिसके कारण नए मौकों का सृजन हो रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-
रासायनिक रंग कहीं होली न कर दें बदरंग
लखनऊ, 22 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। होली की आमद के साथ बाजारों में जहां रौनक छाई हैं। वहीं गुझिया, पापड़, चिप्स, शक्कर पारे, नमक पारे, समेत तरह-तरह के व्यंजनों और मिष्ठानों की खुशबू घरों को महका रही है। उधर बाजार भी होली के त्योहार के लिए पूरी तरह तैयार है।
कई तरह के रंगांे से बाजार सज गया है, जहां एक तरफ फूलों से बनाए गए रसायन रहित प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ी है। वहीं रंगों के इस त्योहार में शुद्धता के नाम पर केमिकल युक्त रंग बाजार में बेचे जा रहे हैं, जिससे चेहरे पर लगते ही आंखो की रोशनी चली जाती है तो चर्मरोग की भी शिकायत होने लगती है।
इसे देखते हुए चिकित्सकों ने होली पर बाजारों में उपलब्ध रंगों के कम इस्तेमाल की सलाह देते हुए कहा कि केमिकल युक्त रंग गुलाल त्वचा के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकते हैं, अगर रंग अथवा गुलाल आंखों में गिर जाए तो आंखों की रोशनी तक को खतरा पैदा हो सकता है, जबकि कई रंग तो शरीर की त्वचा के लिए बेहद खतरनाक साबित होते हैं।
इन रंगों के प्रयोग से त्वचा के झुलसने तथा अन्य कई प्रकार की बीमारियां पनप सकती है। त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार, होली पर केमिकल युक्त रंगों से पूरी तरह बचना चाहिए।
वरिष्ठ नेत्र रोग चिकित्सक शिवम मेहता ने बताया कि होली धूमधाम के साथ मनाएं, लेकिन आखों को बचाकर, अगर यह रंग आखों में चला जाता है तो काफी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।
उन्होंने कहा कि अगर आप होली का रंग खेल रहे हैं तो आंखों का विशेष ध्यान रखें। इसमें अगर रंग पड़ जाता है तो पुतलियों का काफी नुकसान दे सकता है। इस कारण होली खेलने के दौरान आंखों में चश्मा पहनें, ताकि सामने वाला व्यक्ति चेहरे पर रंग लगाने के दौरान आंखो में न लगा सके। हो सके तो आप भी लोगों के आंखो को बचाकर ही दूसरे को रंग लगाए।
वहीं चर्म रोग डॉक्टर ने बताया कि होली में हम कई बार जाने-अनजाने में केमिकल युक्त रंगों का इस्तेमाल करते हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक है।
उन्होंने कहा कि होली खेलते समय कुछ बातों का ध्यान नहीं रखा गया तो शरीर को नुकसान पहुंच सकता है। चर्मरोग विशेषज्ञ ने बताया कि होली रंगो का त्यौहार है। लेकिन मिलवाटी रंगों के कारण लोगों के शरीर पर इंफेक्शन हो जाता है, जो छह माह या साल तक परेशान करता है।
इन इंफेक्शन से बचने के लिए होली खेलने से पहले पूरे शरीर में कड़वा तेल या कोई चिकनाई युक्त लोशन या क्रीम लगाएं, ताकि चिकनाई होने के कारण शरीर में रंग असर नहीं करेगा।
उन्होंने कहा कि यदि इसके बाद भी कोई रंग लगने पर खुजली या कोई तकलीफ होती है तो रंग को साफ पानी से धो लें और क्रीम लगाएं। उसके बाद भी तकलीफ रहती है तो किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
-