येसुदास : संघर्षो बीच सुरमई जिंदगानी (जन्मदिन : 10 जनवरी)
शिखा त्रिपाठी
नई दिल्ली, 9 जनवरी (आईएएनएस)। सन् 70 के दशक में 'गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा' जैसे मधुर गीत से सभी पर अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरने वाले के.जे. येसुदास देश के जाने-माने पाश्र्वगायकों में शुमार हैं। वह दक्षिण भारत में तो लोकप्रिय हैं ही, उत्तर भारत में भी संगीत प्रेमियों के उतने ही अजीज हैं। सर्वश्रेष्ठ गायन में 7 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह देश के एकमात्र गायक हैं।
सन् 1976 की फिल्म 'चितचोर' के गीतों के बाद उनके गाए पचासों हिंदी गीत सुनने वालों के दिलों में आज भी वही दीवानगी जगाता है, जो उस दौर में जगाता था।
कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में निपुण और फिल्मों के पाश्र्वगायक के.जे.येसुदास ने अपने सुरीले गीतों से दर्शकों-श्रोताओं पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने हिन्दी के अलावा मलयालम, तमिल, कन्नड़, तेलुगू, बांग्ला, गुजराती, उड़िया, मराठी, पंजाबी, संस्कृत, रूसी तथा अरबी भाषाओं में भी गीतों को अपने सुरों से सजाया है। उन्होंने अपने 50 वर्षो के गायिकी करियर में 14 भाषाओं में 35,000 से भी अधिक गीत गाए हैं।
मखमली आवाज के धनी येसुदास का जन्म 10 जनवरी, 1940 को कोचीन (केरल) में हुआ। उनके पिता का नाम ऑगस्टाइन जोसेफ तथा माता का नाम एलिसकुट्टी है। पिता ऑगस्टाइन जोसेफ एक मंझे हुए मंचीय कलाकार एवं गायक थे, जो हर हाल में अपने बड़े बेटे येसुदास को पाश्र्वगायक बनाना चाहते थे। येसुदास की पत्नी का नाम प्रभा है और इनके तीन बेटे हैं- विनोद, विजय और विशाल।
संघर्ष का दौर :
येसुदास का बचपन कठिनाइयों में बीता। उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे और अपने पिता का सपना पूरा करने का मन बना लिया था। वह आरएलवी संगीत अकादमी की फीस भी बड़ी मुश्किल से भर पाते थे, लेकिन मन में लगन और विश्वास हो तो कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकती। बस यही बात ध्यान में रखकर वह आगे बढ़ते रहे।
येसुदास के जीवन में ऐसा भी दौर आया, जब चेन्नई के संगीत निर्देशक ने उनकी आवाज को बेकार बताया और कहा, 'इसमें दम नहीं है', यहां तक कि आकाशवाणी त्रिवेन्द्रम ने उनकी आवाज को प्रसारण के लायक नहीं समझा। लेकिन पिता का सपना आंखों में लिए येसुदास ने उस बुरे दौर को भी सहनशीलता के साथ बिताया।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1961 में की थी। उनके गाए गीत 'गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा', 'सुरमई अखियों में', 'दिल के टुकड़े-टुकड़े करके', 'जानेमन-जानेमन तेरे दो नयन', 'चांद जैसे मुखड़े पे' जैसी गीत काफी लोकप्रिय हुए। सर्वश्रेष्ठ गायन के क्षेत्र में 7 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह देश के एकमात्र गायक हैं। वर्ष 2002 में येसुदास को भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में महžवपूर्ण योगदान के लिए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया।
येसुदास के दूसरे पुत्र विजय येसुदास अपने पिता के पदचिह्नें पर चल रहे हैं। वह भी एक संगीतकार हैं, जिन्हें वर्ष 2007 तथा 2013 में सर्वश्रेष्ठ पुरुष गायक के तौर पर 'केरल राज्य फिल्म अवॉर्ड' मिला था।
दक्षिण के सिनेमा में अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरने के बाद येसुदास ने बॉलीवुड की ओर रुख किया। बॉलीवुड में उन्होंने फिल्म 'जय जवान जय किसान' के लिए पहला हिन्दी गीत गया। येसुदास ने 70 के दशक के मशहूर अभिनेताओं को अपनी आवाज दी। इनमें अमिताभ बच्चन, अमोल पालेकर, जितेंद्र और अरुण गोविल के नाम शामिल हैं।
उन्होंने कई लोकप्रिय गीत गाए, जिसके बाद वह सभी के पसंदीदा बन गए। उनके गाए ये गीत तो संगीत प्रेमियों की जुबां पर हैं- 'जब दीप जले आना', 'तू जो मेरे सुर में', 'का करूं सजनी', 'मधुबन खुशबू देता है', 'इन नजारों को तुम देखो', 'दिल के टुकड़े-टुकड़े करके', 'चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा', 'कहां से आए बदरा', 'सुरमई अखियों में' जैसे कई लोकप्रिय गीत शामिल हैं।
येसुदास को विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया है। उन्हें 1975 में पद्मश्री और 2002 में पद्मभूषण पुरस्कार मिला। उन्हें सर्वश्रेष्ठ पाश्र्वगायन के लिए 7 बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वह विभिन्न भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ पाश्र्वगायक का पुरस्कार भी जीत चुके हैं।
येसुदास महिलाओं पर एक विवादास्पद बयान देने के कारण पिछले साल विवादों में घिरे थे। उन्होंने गांधी जयंती के सिलसिले में एक स्वैच्छिक संस्था द्वारा तिरुवनंतपुरम में आयोजित समारोह में कहा था, "महिलाओं को जींस पहनकर दूसरों के लिए समस्या पैदा नहीं करनी चाहिए। जो ढकने लायक है, उसे ढका जाना चाहिए।"
उन्होंने कहा था कि इस तरह की पोशाकें भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं, क्योंकि सादगी और सौम्यता को महिलाओं के सबसे बड़े गुणों में गिनी जाती हैं। उनके इस बयान के बाद कई विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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