JS NewsPlus - шаблон joomla Продвижение
BREAKING NEWS
कटी पटरी से गुजरी आधा दर्जन रेलगाड़ियां, जांच के आदेश
उप्र : घरों में हाई वोल्टेज करंट उतरने से 1 की मौत, 2 झुलसे
हार्बिन को मरम्मत कार्य के लिए कम ब्याज पर ऋण
ईरान से प्रतिबंध हटा, तेल आयात बढ़ाएगा भारत
पाकिस्तान भरोसे के लायक नहीं : वेदप्रताप वैदिक
फेसबुक के नए ब्राउजर का परीक्षण
श्रीनगर : बच्चों की मौत की अफवाह से अफरातफरी
इबोला के नए मामले के संपर्को की पहचान में जुटा सिएरा लियोन

LIVE News

कटी पटरी से गुजरी आधा दर्जन रेलगाड़ियां, जांच के आदेश

उप्र : घरों में हाई वोल्टेज करंट उतरने से 1 की मौत, 2 झुलसे

हार्बिन को मरम्मत कार्य के लिए कम ब्याज पर ऋण

ईरान से प्रतिबंध हटा, तेल आयात बढ़ाएगा भारत

कालाहांडी की याद दिला दी बुंदेलखंड के गांव ने : योगेंद्र यादव Featured

संदीप पौराणिक

स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के कोड़िया गांव ने उन्हें कालाहांडी की याद ताजा करा दी है। इस गांव के सहरिया आदिवासियों के टोला (मुहल्ले) का हाल ठीक वैसा ही है, जैसा कि कालाहांडी का है। इस इलाके में विकास, आधुनिकता और लोकतंत्र कहीं भी नजर नहीं आता।

मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड सूखे से जूझ रहा है। इस इलाके का हाल जानने यादव गुरुवार को टीकमगढ़ जिले पहुंचे। उन्होंने मस्तापुर और कोड़िया का भ्रमण कर गांव वालों से खुलकर चर्चा की और उनका दर्द जाना।

यादव ने आईएएनएस से दूरभाष पर कहा कि जब वह मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के लिए निकले थे तो उन्हें लगता था कि यहां की स्थिति उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड से कुछ बेहतर होगी, मगर यहां के दो गांव देखने पर उन्हें स्थिति संभावना के विपरीत लगी। यहां के हालात उत्तर प्रदेश से भी कई मामलों में बदतर हैं।

यादव ने कहा कि वह जब कोड़िया गांव के सहरिया आदिवासी टोला में पहुंचे, तो उन्हें वहां का नजारा कालाहांडी जैसा लगा। कालाहांडी में पहुंचकर लगता है कि देश आजाद ही नहीं हुआ है, ठीक यही हाल कोड़िया गांव के आदिवासी टोला गांव का है। यहां लगता है जैसे विकास, आधुनिकता और लोकतंत्र ने अभी प्रवेश ही नहीं किया है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यहां रबी की बुआई हो नहीं पाई है, आमतौर पर इस समय हर खेत हरा-भरा होता है, मगर यहां खेतों में हरियाली न के बराबर है, रोजगार के लिए लोग पलायन कर रहे हैं, पीने के पानी का भी संकट है।

उन्होंने कहा, "सरकार को यहां आपातकालीन कदम उठाने चाहिए, मगर ऐसा हो नहीं रहा है। कई परिवारों के पास तो राशन कार्ड ही नहीं है। मुझे लगता था कि मध्य प्रदेश में खाद्य सुरक्षा कानून लागू है, लिहाजा लोगों की स्थिति बेहतर होगी, मगर ऐसा नहीं है।"

यादव ने कहा कि देश में सूखे का केंद्र मराठवाड़ा नहीं, बल्कि बुंदेलखंड है, जहां लोगों को समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। सूखा से जूझते लोगों को रोजगार देने के लिए ही मनरेगा योजना बनाई गई है, मगर उसका लाभ भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है। कई परिवारों के जॉब कार्ड काफी समय से खाली हैं, आशय साफ है कि उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है। बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि इस बार पलायन का प्रतिशत पिछले वर्षो से ज्यादा है, और ज्यादातर लोग इंदौर जा रहे हैं। इसके चलते वहां भी मजदूरों की संख्या ज्यादा होने पर कम मजदूरी मिल रही है, यही कारण है कि कई मजदूर परिवार वापस अपने गांव को लौट आए हैं।

गांव वालों से चर्चा का ब्योरा देते हुए यादव ने बताया कि जब उन्होंने महिलाओं से पूछा कि दाल के क्या हाल हैं, तो महिलाएं अचरज में पड़ गईं, और मस्कुराकर बताने लगी कि कई माह से उनके घर में दाल नहीं बनी है।

किसी ने बताया कि सावन के माह में और दिवाली के मौके पर किसी रिश्तेदार के यहां से दाल आ गई थी, इसलिए बनी थी। खरीदने की तो उनकी हैसियत ही नहीं है, क्योंकि दाल का दाम 200 किलो तक पहुंच गया था। बच्चों को जरूर मध्याह्न् भोजन में थोड़ी दाल मिल जाती है।

केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपने शासित राज्यों में मध्य प्रदेश को एक 'आदर्श राज्य' के रूप में प्रचारित कर रही है। यह बात छेड़ने पर यादव ने कहा कि उन्हें टीकमगढ़ जिले के दो गांव घूमकर तो कम से कम ऐसा नहीं लगा कि वे आदर्श राज्य के गांव हैं।

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का पिछले दिनों उन्होंने सर्वेक्षण किया था तो वहां की स्थिति उभरकर सामने आई थी, मगर मध्य प्रदेश के हालात तो उससे भी बुरे नजर आ रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि राज्य सरकार आपातकालीन व्यवस्थाएं करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हालत और भी भयावह हो सकती है।

About Author

संदीप पौराणिक

लेखक देश की प्रमुख न्यूज़ एजेंसी IANS के मध्यप्रदेश के ब्यूरो चीफ हैं.

Latest from संदीप पौराणिक

  • मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चुनाव शिवराज के लिए अहम
  • सिंहावलोकन-2015: मप्र में जीत की आदी भाजपा को मिला हार का स्वाद
  • सिंहावलोकन-2015: व्यापम घोटाले की सीबीआई जांच, रसूखदारों को नहीं आंच

Related items

  • हरिद्वार में है भटके हुए देवता का मंदिर
    हरिद्वार, 17 जनवरी (आईएएनएस)। आपने कभी सुना है कि भटके हुए देवताओं के भी मंदिर होते हैं? नहीं तो हरिद्वार जाकर भटके हुए देवता का मंदिर जरूर देखिए। गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने शांतिकुंज परिसर में यह मंदिर बनवाया है। यहां आने वाले साधक इस मंदिर में ध्यान करते हैं।

    इस मंदिर के अंदर पांच बड़े-बड़े आइने लगे हुए हैं और इन पर आत्मबोध व तत्वबोध कराने वाले वेद-उपनिषदों के मंत्र लिखे हंै। आइनों पर चारों वेदों के चार महावाक्य लिखे हैं, जिनमें जीव-ब्रह्म की एकता की बात कही गई है। साधक यहां आकर 'सोùहं' से 'अहम्' या आत्मब्रह्म तक के सूत्रों की जाप करते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर साधकों में आत्मबोध की अनुभूति होती है।

    शांतिकुंज से जुड़े गायत्री भक्त कीर्तन देसाई ने बताया कि यहां नौ दिन के सत्रों व एक मासिक प्रशिक्षण शिविर में आने वाला प्रत्येक साधक आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक 'मैं कौन हूं?' में निर्दिष्ट साधना प्रणाली का सतत अभ्यास करता है। भटके हुए देवता के मंदिर में उसी साधना-विधान का संक्षिप्त निर्देश है।

    उन्होंने बताया कि यहां पत्थर की प्रतिमाओं पर धूप-दीप, गंध-पुष्प चढ़ाकर ईश्वर के प्रति भक्ति भावना निविदेत की जाती है। साथ ही भक्त दर्पण के सामने खड़े होकर अपने स्वरूप को निहारकर अंत:करण की गहराई में झांकने का अभ्यास करते हैं।

    मान्यता है कि इससे मनुष्य रूपी भटके हुए देवताओं को देर-अबेर अपने देव स्वरूप, ब्रह्म स्वरूप यानी 'अहं ब्रह्माùस्मि' की अनुभूति अवश्य होगी।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • झारखंड में परंपरागत और रोचक खेल है 'मुर्गा लड़ाई' (फोटो सहित)
    मनोज पाठक
    रांची, 17 जनवरी (आईएएनएस)। तमिलनाडु में पारंपरिक त्योहार पोंगल पर खेले जाने वाले जलिकट्टू पर सर्वोच्च न्यायालय ने भले ही रोक लगा दी हो, पर झारखंड के बाजारों और मेलों में आज भी 'मुर्गा लड़ाई' के खास प्रकार का आयोजन किया जाता है।

    झारखंड के जनजातीय इलाकों में लगने वाले ग्रामीण हाट-बाजारों के अलावा कई अन्य स्थानों पर आज भी एक परंपरागत खेल 'मुर्गा लड़ाई' बेहद लोकप्रिय है। हालांकि समय के साथ इसके स्वरूप में काफी बदलाव आ गया है। पहले हारने वाला मुर्गा जीतने वाले मुर्गा के मालिक को मिल जाता था, पर अब हारने वाला मुर्गा उसके मालिक के पास ही रह जाता है। इसके अलावे अब घुड़दौड़ की तरह इस लड़ाई में लाखों रुपये के दांव भी लगाए जाते हैं।

    कई इलाकों में इसके लिए प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है। झारखंड के लोहरदगा, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा सहित कई जिलों में इस लड़ाई को आदिवासियों की संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। मुर्गा लड़ाई के लिए कई क्षेत्रों में मुर्गा बाजार लगाया जाता है।

    इतिहास के पन्नों में मुर्गा लड़ाई की कोई प्रमाणिक जानकारी तो नहीं मिलती, पर आदिवासी समाज में ऐसी मान्यता है कि उनकी कई पीढ़ियों से मुर्गा लड़ाई उनकी जिंदगी का एक मनोरंजक हिस्सा बना गया है।

    मुर्गा लड़ाई के जानकार रामाकांत कहते हैं कि मुर्गा लड़ाई पूर्व में मनोरंजन का हिस्सा हुआ करता था, जहां लोग अपने पसंद के मुर्गो पर दांव भी लगाते थे पर अब इस लड़ाई के नाम पर जुआ का खेल प्रारंभ हो गया है। इस कारण आदिवासी संस्कृति की पहचान बने इस लड़ाई की पहचान गुम होती जा रही है।

    करीब 20 फुट के घेरे में दो मुर्गो की लड़ाई होती है। लड़ाई के दौरान मुर्गे की पैंतरेबाजी देखने लायक होती है। लड़ाई में एक चक्र अमूमन सात से 10 मिनट तक चलता है। लड़ाई शुरू होने से पहले और लड़ाई के दौरान लोग मुर्गो पर दांव लगाते हैं। सट्टेबाज लोगों को उकसाते हुए चारों तरफ घूमते रहते हैं। जीतने वाले मुर्गे पर दांव लगाने वालों को एक रुपये के बदले तीन से पांच रुपये दिए जाते हैं। एक बार में हजारों रुपये के दांव लगते हैं। अमूमन एक दिन में तीन से पांच दर्जन मुर्गो की लड़ाई होती है, जिसमें लाखों रुपये इधर से उधर होते हैं।

    इस दौरान मुर्गे को उत्साहित करने के लिए मुर्गाबाज (मुर्गा का मालिक) तरह-तरह की आवाजें निकालता रहता है, जिसके बाद मुर्गा और खतरनाक हो जाता है।

    मुर्गा लड़ाई के लिए मुर्गा पालने के शौकीन अवधेश उरांव बताते हैं कि लड़ाई में प्रशिक्षित मुर्गे उतारे जाते हैं। लड़ने के लिए तैयार मुर्गे के एक पैर में अंग्रेजी के अच्छर 'यू' आकार का एक हथियार बंधा हुआ होता है जिसे 'कत्थी' कहा जाता है। ऐसा नहीं कि यह कत्थी कोई व्यक्ति बांध सकता है। इसके बांधने की भी अपनी कला है। कत्थी बांधने का कार्य करने वालों को 'कातकीर' कहा जाता है जो इस कला में माहिर होता है।

    मुर्गे आपस में कत्थी द्वारा एक दूसरे पर वार करते रहते हैं। इस दौरान मुर्गा लहुलूहान हो जाता है। कई मौकों पर तो कत्थी से मुर्गे की गर्दन तक कट जाती है। मुर्गो की लड़ाई तभी समाप्त होती है जब तक मुर्गा घायल न हो जाए या मैदान छोड़कर भाग जाए।

    जानकार बताते हैं कि मुर्गा को लड़ाकू बनाने के लिए खास तौर पर न केवल प्रशिक्षण दिया जाता है बल्कि उसके खान-पान पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। लड़ाई के लिए तैयार किए जाने वाले मुर्गे को अंधेरे में रख कर उसे गुस्सैल और चिड़चिड़ा बनाया जाता है। उसे मुर्गियों (मादा मुर्गा) से दूर रखा जाता है। इन मुर्गो को ताकतवर बनाने के लिए उन्हें सूखी मछली का घोल, किशमिश, उबला हुआ मक्का और विटामिन के इंजेक्शन तक दिए जाते हैं।

    रांची के पत्रकार सन्नी शरद आईएएनएस से कहते हैं, "मुर्गा लड़ाई आदिवासी समाज की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। पूर्व में इसका आयोजन मनोरंजन के लिए किया जाता था, परंतु अब धनलोलुप लोगों ने आदिवासियों के इस गौरवशाली परंपरा को विकृत कर दिया है। आज मुर्गा लड़ाई जुआ, सट्टा तथा शराबखोरी का अड्डा बनकर रह गया है।"

    उन्होंने बताया कि जमशेदपुर में मकर संक्रांति पर्व पर लगने वाले टुसू मेले और जतरा मेले में मुर्गा लड़ाई का खास आयोजन किया जाता है। इसके अलावे भी बजारों व हाटों में इस प्रकार के आयोजन किए जाते हैं।

    वैसे शरद यह भी कहते हैं कि परंपरागत मुर्गा लड़ाई का स्वरूप अब काफी बदल गया है, जरूरत है उसके पुराने स्वरूप को बरकरार रखने की।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • मृत्युदोष से बचाने के लिए बच्चों की कुत्ते से शादी!
    अजीत कुमार शर्मा
    रायपुर, 17 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के कोरबा-बाल्को मार्ग पर स्थित बेलगिरी में संथाल आदिवासियों की एक बस्ती है, जहां मकर संक्रांति के दिन एक ऐसी परम्परा का निर्वहन किया जाता है, जिसमें वे अपने बच्चों के जीवन में मृत्युदोष को दूर करने के लिए कुत्ते से उनकी शादी करा देते हैं। है न हैरान करने वाली परम्परा..जब आपके बच्चों के दांत पहली बार आए हों, तो शायद एक बार आप भी एक अनोखी खुशी से झूम गए होंगे।

    दूध के दांतों में जब वे कुछ काटने की कोशिश करें, तो उन्हें ऐसा करते देखने का सुख सभी के लिए यादगार होता है। पर मूलत: ओडिशा के रहने वाले संताल आदिवासियों के लिए यह घड़ी नई चिंता लेकर आती है। अगर संथाल बच्चों के ऊपर के दांत पहले आ जाएं, तो उन्हें अपने बच्चों के जीवन में मृत्युदोष सताने लगता है। इस दोष बचने के लिए वे एक अनोखा अनुष्ठान करते हैं, जिसमें बच्चों की शादी कुत्ते से कर दी जाती है।

    शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ पंकज ध्रुव ने बताया कि छोटे बच्चों में दांत आने की प्रक्रिया एक साधारण शारीरिक प्रक्रिया है। अब इस दौरान उनके पहले ऊपर के दांत आते हैं या नीचे के, यह तो प्रकृति पर निर्भर है। खुद मेरे बच्चे के ऊपर के दांत पहले आए थे। कई बार दांत आने के वक्त उस स्थान पर गुदगुदी होती है, जिसे महसूस कर बच्चे चीजों को हाथ में लेकर चबाने लगते हैं। ऐसे में अगर वह वस्तु दूषित है तो उन्हें साधारण तौर पर दस्त की शिकायत हो सकती है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि बच्चे के ऊपर के दांत पहले आ गए तो उनके ऊपर किसी प्रकार का ग्रह दोष हो। यह मेडिकल की भाषा में किसी अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं।

    मूलत: ओडिशा के मयूरभंज जिले से आकर बसे संथाल आदिवासी वर्षो से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। बच्चों को मृत्युदोष की बाधा से मुक्त करने संथाल आदिवासी इस अनोखे रिवाज के तहत शुक्रवार को बेलगिरी बस्ती में लगभग साढ़े तीन साल के एक बालक की शादी कुत्ते से कराई गई। इस तरह अधिकतम पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की शादी कराई जाती है।

    अगर यह दोष किसी बालक पर है तो मादा, बालिका हो तो नर पिल्ले के साथ धूम-धाम से यह संस्कार पूरा किया जाता है। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनके नन्हे-मुन्नों की जिंदगी पर आने वाला संकट हमेशा के लिए दूर हो जाता है। शुक्रवार को पूरी बस्ती में उत्सव का माहौल देखने को मिला।

    मकर संक्रांति का पर्व सामूहिक तौर पर हर साल की तरह धूम-धाम से मनाया गया और इसी दौरान दोष वाले एक बच्चे की शादी कराई गई। इसके बाद समाज के लोगों को भोज कराया जाता है। शादियों का दौर संक्रांति से लेकर अगले कुछ दिन व चूक जाने पर होली के दूसरे दिन भी निभाया जाता है।

    इसके बाद ही वे अपने बच्चों का जीवन सुरक्षित समझते हैं। इस परंपरा को मानने वाले संथाल आदिवासी कोरबा के बाल्को क्षेत्र में लालघाट, बेलगिरी बस्ती, शिवनगर, र्दी के प्रगतिनगर लेबर कालोनी तथा दीपका से लगे कृष्णानगर क्षेत्र में निवास करते हैं।

    आदिवासियों ने बताया कि पूर्वजों के वक्त से ऐसी मान्यता रही है, कि जिन बच्चों के मुंह में नीचे की ओर दांत पहले आए तो ठीक, लेकिन दांत पहले ऊपर की ओर आए तो उनके जीवन में मृत्युदोष होता है। उन्हें कभी तेज बुखार आ सकता है और उनकी मौत हो जाती है। ऐसे बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए इस दोष से मुक्ति जरूरी होती है, जिसके लिए वे उनकी शादी कुत्ते के बच्चे से करा देते हैं।

    ओडिशा स्थित उनके गांव में ऐसे बच्चों के जीवन पर संकट देखा गया, जिनके दांत पहले ऊपर आते हैं। इस वजह से ऐसे बच्चों के माता-पिता गंभीरता से इस संस्कार को पूरा करते हैं। इस अनोखी शादी को संथाल आदिवासी 'सेता बपला' कहते हैं। उनकी भाषा में सेता का अर्थ कुत्ता व बपला यानी शादी होती है, जिसका पूरा अर्थ कुत्ते से शादी होती है।

    संथाल आदिवासियों के समुदाय में कुत्ते के अलावा बच्चों की शादी पेड़ से भी करके यह दोष मिटाया जाता है। इसमें पेड़ से बच्चों की शादी को 'सेता बपला' की बजाय 'दैहा बपला' कहते हैं। दैहा एक ऊंचा पेड़ होता है। इस तरह 'दैहा बपला' का अर्थ पेड़ से शादी होती है। उनके गांव में तो यह दैहा पेड़ आसानी से मिल जाता है, लेकिन यहां खोजने पर भी नहीं मिलता, इसलिए यहां कुत्ते से शादी का प्रचलन है।

    इन आदिवासियों का यह भी मानना है कि 'सेता बपला' या 'दैहा बपला' के बाद बच्चे के जीवन का संकट कुत्ते या उस पेड़ पर चला जाता है। इनका कहना है कि शादी के बाद उस कुत्ते को विधियां पूरी कर बस्ती से कहीं दूर जाकर छोड़ दिया जाता है। बच्चे का दोष उसके ऊपर चले जाने से वह कुत्ता खुद-ब-खुद मर जाता है और बच्चा सुरक्षित हो जाता है। कुत्ता या दैहा पेड़ के मर जाने में ही बच्चे की भलाई है। बहरहाल इन आदिवासियों में अरसे से यह परम्परा आज भी चलती आ रही है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • बुंदेलखंड की गायों की जान खतरे में!
    संदीप पौराणिक
    झांसी, 16 जनवरी (आईएएनएस)। बुंदेलखंड सूखे से जूझ रहा है, खेतों में फसल नहीं है, इंसान के लिए दाना और जानवरों के लिए चारा मुसीबत बन गया है, सबसे बुराहाल गाय का है। इंसान तो पलायन कर रोटी का जुगाड़ कर ले रहा है, मगर खुले में छोड़ी जा रही गाय के कत्लगाह (स्लाटर हाउस) तक पहुंचकर 'बीफ के कारोबार' का हिस्सा बनने का खतरा बढ़ गया है।

    बुंदेलखंड दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला हुआ है। इसमें कुल 13 जिले आते हैं। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सागर जिले से उत्तर प्रदेश के बांदा तक जाएं तो एक नजारा जरुर आपको देखने मिल जाएगा और वह है, गांव के बाहर जानवरों का जमावड़ा।

    इस साल से पहले तक इस इलाके में चारे और पानी की कमी पर बैल, बछड़ा और पड़ा (भैंस का बच्चा) को खुले में छोड़ दिया जाता था, मगर इस बार गायों को भी किसान छोड़ने को मजबूर हैं।

    सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सिंह का कहना है कि किसानों द्वारा छोड़ी जा रही गायों को कत्लगाह तक ले जाने का सिलसिला चल पड़ा है। आलम यह है कि किसानों द्वारा छोड़ी गई गायों को स्थानीय व्यक्ति की मदद से निर्जन स्थान तक ले जाया जाता है, जहां से इस कारोबार में लगे लोग ट्रक आदि में भरकर गायों को ले जाते हैं।

    सिंह ने आगे बताया कि किसान के लिए गाय को चारा उपलब्ध करा पाना संभव नहीं हो पा रहा है, पानी का अभाव है, जलस्रोत सूख चले हैं, इस स्थिति में अन्य जानवरों के साथ गायों को भी जंगल में छोड़ दिया है। गायों की किसी को परवाह नहीं है, इसी बात का मवेशी तस्कर लाभ उठा रहे हैं।

    बुंदेलखंड की स्थिति पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि सरकारी नौकरियों के अलावा यहां रोजगार का जरिए खेती और पशुपालन है। इस पर 80 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी निर्भर करती है।

    इस क्षेत्र में गोवंश 30 लाख से भी ज्यादा है। एक तरफ खेती को सूखा ने चौपट कर दिया है, तो वहीं पशुपालन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जानकारों की मानें तो आने वाले वर्षो में इस इलाके में बारिश का यही हाल रहा तो अकाल पड़ना तय है, जिससे यह इलाका मवेशी की संख्या के मामले में भी चर्चा का केंद्र बन सकता है।

    बुंदेलखंड का दौरा करने के बाद स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने भी यह माना था कि 'गाय' को लेकर राजनीति तो खूब होती है, मगर बुंदेलखंड में गाय ही संकट में है। उसकी किसी को परवाह नहीं है।

    वैसे तो यहां हर जानवर अकाल से जूझ रहा है, बैल और बछड़े को तो पहले भी जंगल में छोड़ दिया जाता था, मगर इस बार तो गायों का भी छोड़ दिया गया है। किसी भी गांव में प्रवेश करें तो सड़कों पर हजारों गाय आपको नजर आ जाएंगी।

    गौ-संरक्षण के लिए वर्षो से बुंदेलखंड में काम कर रहे श्याम बिहारी गुप्ता का कहना है कि गायों को बचाना जरूरी है, इस इलाके से गायों की तस्करी हो रही है जो चिंताजनक है। उनका मानना है कि समाज के हर वर्ग को सुख समृद्धि के लिए गायों के संरक्षण और उनके महत्व से अवगत कराना जरूरी है, क्योंकि गाय का सिर्फ दूध ही नहीं, उसका मूत्र और गोबर भी उपयोगी है, जो दूध से भी कीमती है।

    लिहाजा, जन सामान्य गाय के ज्ञान विज्ञान से अवगत कराया जाए तो लोग गाय को छोड़ना बंद कर देंगे। साथ ही सरकारों को भी गाय के प्रति नजरिया बदलना होगा।

    वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा ने आईएएनएस से चर्चा के दौरान बुंदेलखंड मंे गायों की स्थिति पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में चारा, पानी का संकट है, मवेशियों के लिए अकाल जैसे हालात हैं।

    बड़े हिस्से में गांव के लोगों के पास खुद खाने के लिए नहीं है, ऐसे में मवेशियों का पेट कैसे भर सकते हैं, लिहाजा वे गायों को खुले में छोड़ रहे हैं। इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता कि गाय की तस्करी बढ़ जाएगी। ऐसे में समाज और सरकार से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह गाय पालकों की मदद के लिए आगे आएं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • भारतीयों में हुनर की कमी नहीं : आनंद कुमार

    पटना, 16 जनवरी (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने वाले चर्चित संस्थान 'सुपर 30' के संस्थापक और गणितज्ञ आनंद कुमार ने कुवैत में मौर्य कला परिसर संस्था के वार्षिकोत्सव के अवसर पर शुक्रवार शाम आयोजित एक समारोह में कहा कि भारतीयों में हुनर की कोई कमी नहीं है।

    उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया भारतीयों के हुनर की कद्र कर रही है और यही कारण है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में भारतीय आगे बढ़ रहे हैं।

    समारोह में आनंद ने हिन्दुस्तान से दूर कुवैत की धरती पर अपनी किस्मत आजमा रहे सभी हिंदुस्तानियों से अपील करते हुए कहा कि किसी भी क्षेत्र में कामयाबी के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए।

    संस्था द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, कुवैत में बिहार और झारखंड के लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन 'मौर्य कला परिसर' के विशेष आमंत्रण पर कुवैत पहुंचे आनंद ने कहा कि इस संस्थान में आने के बाद उन्हें घर जैसा महसूस हो रहा है।

    मौर्य कला परिसर, कुवैत में वर्ष 1995 से काम कर रही है। आनंद ने कहा, "भारतीय लोगों में हुनर की कमी नहीं है। आज पूरी दुनिया भारत के हुनर की कद्र कर रही है और विभिन्न क्षेत्रों में अपने ज्ञान और हुनर के माध्यम से भारत, दुनिया भर के लोगों को आकर्षित कर रहा है।"

    उन्होंने कहा, "यह देखकर विशेष प्रसन्नता हो रही है कि आप सभी अब भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। जब समाज हमें कुछ देता है, तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम भी समाज के प्रति कुछ योगदान करें। इसी आदान-प्रदान से ही समाज आगे बढ़ता है।"

    उन्होंने कहा कि जब आप समाज में कुछ सकारात्मक योगदान करते हैं तो आप लाखों की भीड़ में अलग खड़े नजर आते हैं।

    'सुपर 30' के योगदान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "आज 'सुपर 30' की बदौलत कुल 390 लोग एक मुकाम तक पहुंचे हैं और यह गिनती अभी रूकने वाली नहीं है। यह सब उस प्रयास का नतीजा है, जब एक व्यक्ति स्वयं से आगे निकलकर सोचता है और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है।"

    इस अवसर पर कुवैत में भारत के राजदूत सुनील जैन ने मोमेंटो प्रदान करके आनंद को सम्मानित किया।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • पूर्व नक्सली की पुलिस कंट्रोल रूम में हुई मेंहदी की रस्म

    रायपुर, 16 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में समर्पित नक्सली कोसी की बीती रात पुलिस कंट्रोल रूम में मेंहदी की रस्म पूरी की गई। शनिवार को जाता मेदसन में कोसी की शादी होगी।

    अशांत बस्तर में शांति का संदेश देने के लिए समर्पण करने वाले नक्सल युवक-युवती का यह बहुचर्चित विवाह कराया जा रहा है। इसके लिए पुलिस विभाग सहित सामाजिक संस्थाओं ने तैयारियों को अंजाम दिया है। 29 दिसंबर को दरभा इलाके के 23 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। इसमें शामिल महिला नक्सली कोसी उर्फ शांति और लक्ष्मण की नजरें मिली तो दोनों एक-दूजे को चाहने लगे और विवाह करने की इच्छा पुलिस अधिकारियों को बताई थी।

    अब आलम यह था कि जो हाथ कभी बंदूकों से सजते थे वो खूबसूरत मेहंदी से सज गए। शादी के पूर्व की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से मेंहदी की रस्म शुक्रवार रात पूरे पारंपरिक तरीके से मनाई गई।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

आधी दुनिया

सावित्रीबाई फुले जिन्होंने भारतीय स्त्रियों को शिक्षा की राह दिखाई

सावित्रीबाई फुले जिन्होंने भारतीय स्त्रियों को शिक्षा की राह दिखाई

उपासना बेहार “.....ज्ञान बिना सब कुछ खो जावे,बुद्धि बिना हम पशु हो जावें, अपना वक्त न करो बर्बाद,जाओ, जाकर शिक्षा पाओ......” सावित्रीबाई फुले की कविता का अंश अगर सावित्रीबाई फुले...