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धूप की कमी से ब्लड कैंसर का खतरा

न्यूयार्क, 7 जनवरी (आईएएनएस)। विटामिन-डी की कमी और सूर्य के प्रकाश से दूरी ब्लड कैंसर का कारण बन सकती है। एक नए शोध में यह बात सामने आई है।

दुनिया के 132 देशों में ल्यूकेमिया के मामलों का जायजा लेने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि भूमध्यरेखीय आबादी की तुलना में उच्च अक्षांश में रहने वालों को कैंसर होने की दुगनी संभावना होती है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर सेड्रिक गारलैंड के अनुसार, "अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि दुनिया भर में ल्यूकेमिया की वृद्धि के पीछे विटामिन डी की कमी हो सकती है।"

अध्ययन के अनुसार, ध्रुवों की निकटता वाले देश जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चिली, आयरलैंड में ल्यूकेमिया की उच्च दर देखी गई है। वहीं भूमध्य रेखा के निकटस्थ देशों में इस रोग की दर काफी कम पाई गई।

गारलैंड कहते हैं, "जो व्यक्ति पराबैंगनी बी (यूवीबी) किरणों से दूर रहते हैं या ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां सूर्य का प्रकाश कम रहता है, उनके रक्त में विटामिन डी की कमी होती है।"

इस शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया है कि पराबैंगनी किरणों और विटामिन-डी की कमी का कैंसर के खतरों के साथ सीधा संबंध है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • मोदी को सचिवों ने दिए 'स्वस्थ भारत' पर सुझाव
    नई दिल्ली, 17 जनवरी (आईएएनएस)। केंद्र सरकार के कई सचिवों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'स्वस्थ भारत, शिक्षित भारत' के लिए अपने विचार और सुझाव दिए हैं।

    रविवार को जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, मोदी ने शासन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए शीर्ष नौकरशाहों से विचार और सुझाव आमंत्रित किए थे।

    अब तक सचिवों के चार समूहों ने प्रधानमंत्री के समक्ष अपने विचार पेश किए हैं।

    विज्ञप्ति के अनुसार, इस मौके पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और नीति आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया भी उपस्थित थे।

    सचिवों की प्रस्तुतियों के बाद कई सदस्यों ने भी इस पर अपने विचार और सुझाव दिए।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • मोटापे से पेट के कैंसर का खतरा
    न्यूयार्क, 17 जनवरी (आईएएनएस)। कहते हैं कि मोटापा स्वयं एक बीमारी है, जो अपने साथ कई अन्य बीमारियों को भी दावत देता है। अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार, मोटे व्यक्तियों को बड़ी आंत (कोलोन व रेक्टम) के कैंसर का खतरा सुडौल व्यक्तियों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होता है।

    कोलोरेक्टल कैंसर को पेट और आंत के कैंसर से भी जाना जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर बड़ी आंत के हिस्से कोलोन और रेक्टम में पनपता है।

    अमेरिका के फिलाडेल्फिया में थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्कॉट वाल्डमन के अनुसार, "हमारे अध्ययन के मुताबिक, मोटे व्यक्तियों में कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की सहायता से किया जाता है।"

    शोधार्थियों ने मान्यता प्राप्त दवा 'लाइनोक्लोटाइड' की भी खोज की है, जो कैंसर के निर्माण को रोकने और मोटे व्यक्तियों के कोलोरेक्टरल कैंसर की रोकथाम के लिए कारगर है।

    वाल्डमैन कहते हैं, "लाइनोक्लोटाइड दवा उस हॉर्मोन की तरह काम करता है, जिसकी कमी मोटापाग्रस्त लोगों में हो जाती है।"

    शोधार्थियों ने इस बात की खोज की है कि मोटापे के कारण ग्वानिलीन हॉर्मोन की कमी हो जाती है, जिसका निर्माण आंत के एपिथिलियम कोशिकाओं द्वारा किया जाता है।

    लाइनोक्लोटाइड दवा मोटापाग्रस्त व्यक्तियों में ट्यूमर को दबाने वाले हॉर्मोन रिसेप्टर्स को सक्रिय कर कैंसर का इलाज करती है।

    जेनेटिक रिप्सेलमेंट से ट्यूमर को दबाने वाले हॉर्मोन सक्रिय हो जाते हैं।

    यह शोध पत्रिका 'कैंसर रिसर्च' में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • अस्थि-मज्जा के जख्म बढ़ा सकते हैं जोड़ों की तकलीफ
    लंदन, 17 जनवरी (आईएएनएस)। अगर आप अस्थि-मज्जा में चोट आने या उसमें घाव हो जाने से परेशान हैं, तो इसका फौरन इलाज करवाएं, क्योंकि यह आपको जोड़ों के दर्द (ज्वाइंट पेन) का मरीज बना सकता है।

    शोधार्थियों ने ऐसे जख्मों की एमआरआई स्कैन प्रणाली से जांच की और पाया कि ये जख्म तेजी से बढ़कर ऑस्टियोआर्थराइटिस की वजह बन सकते हैं।

    ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या अमेरिका में आम है। इस तरह की आर्थराइटिस में जोड़ों में दर्द होता है और मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं।

    अस्थि-मज्जा हड्डियों के अंदर का एक मुलायम हिस्सा होता है, जहां रक्त बनता है। मज्जा रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली स्टेम कोशिकाओं से भरी होती है।

    बिट्रेन की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथकैंप्टन के प्रवक्ता मार्क एडवर्ड्स के अनुसार, "ऑस्टियोआर्थराइटिस संपूर्ण रूप से किसी भी व्यक्ति और उपचार पद्धति के लिए एक बड़ी समस्या है।"

    वैसे तो यह समस्या प्रत्येक जोड़ में हो सकती है ,लेकिन खासकर घुटने, कूल्हे और हाथों के छोटे-छोटे जोड़ इस रोग से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

    इस शोध में 50 वर्ष की आयु के 176 पुरुष और महिलाओं के घुटनों का एमआरआई स्कैन कराया गया और लगातार तीन साल तक इनके घुटनों का परीक्षण किया गया।

    निष्कर्षो से सामने आया कि इन प्रतिभागियों में जो लोग अस्थि-मज्जा घाव ( बीएमएल) से पीड़ित थे, उनमें ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या तेजी से बढ़ रही थी।

    यह शोध 'र्युमैटोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • मधुमेह की दवा अग्नाशय का कैंसर रोकने में मददगार
    न्यूयॉर्क, 17 जनवरी (आईएएनएस)। अग्नाशय (पैंक्रियाज) के कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए यह खबर किसी खुशखबरी से कम नहीं है, क्योंकि शोधकर्ताओं ने पाया है कि मधुमेह को बढ़ने से रोकने की एक साधारण दवा 'मेटफॉर्मिन' अग्नाश्य के कैंसर को बढ़ने से रोकने में मददगार है।

    अध्ययन के मुताबिक, मेटफॉर्मिन लेने वाले मधुमेह से पीड़ित को अग्नाशय का कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है, जबकि अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति द्वारा मेटमॉर्फिन लेने से मौत का जोखिम कम हो जाता है।

    शोधकर्ताओं ने कहा कि टाइप टू मधुमेह की बीमारी में इस्तेमाल में लाई जाने वाली आम दवा मेटफॉर्मिन अग्नाशय कैं सर में सूजन व फाइब्रोसिस (रेशेदार संयोजी ऊत्तक का अत्यधिक जमाव) को रोकता है।

    अध्ययन के मुताबिक, ओवरवेट व मोटापे से पीड़ित लोगों में लाभकारी प्रभाव अधिक होता है।

    अमेरिका के मेसाचुसेट्स में हावर्ड मेडिकल स्कूल में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के सहायक प्रोफेसर व अध्ययन के मुख्य लेखक दाई फुकुमुरा ने कहा, "हमने पाया कि मेटफॉर्मिन डेस्मोप्लासिया से संबंधित प्रतिरक्षा कोशिकाओं को खत्म करता है, जो अग्नाशय के कैंसर का प्रमुख लक्षण है।"

    यह अध्ययन पत्रिका 'पीएलओएस वन' में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • सम-विषम योजना से प्रदूषण 30-40 प्रतिशत तक कम हुआ : सीएसई
    आशीष मिश्रा
    नई दिल्ली, 17 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से 15 दिन के लिए चलाई गई सम-विषम योजना से यहां कारों से होने वाले प्रदूषण में 30-40 प्रतिशत की कमी आई है।

    पर्यावरण से संबंधित अग्रणी गैर-सरकार संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वाइरन्मेंट (सीएसई) ने पहली जनवरी से 15 जनवरी तक चली इस योजना के दौरान दिल्ली की आबोहवा की जांच के बाद यह बात कही है।

    सीएसई की वायु प्रदूषण नियंत्रण इकाई के प्रबंधक विवेक चट्टोपाध्याय ने आईएएनएस से कहा, "सम-विषम योजना के दौरान कारों से होनेवाले प्रदूषण में 30-40 प्रतिशत की कमी आई। इसकी वजह यह रही कि सड़कों पर कम कारें उतरीं।"

    उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि प्रदूषण के पूर्ण के संदर्भ में परिणाम मिलाजुला रहा।

    वहीं, दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने शुक्रवार को कहा था कि पहली जनवरी से 15 जनवरी के बीच सम-विषम परिवहन योजना के क्रियान्वयन के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण में 20-25 फीसदी की कमी दर्ज की गई।

    सीएसई से जुड़े विवेक ने कहा कि इस योजना के तहत डीजल कारों और एसयूवी पर प्रतिबंध से बड़ा फायदा हुआ, जिनका यहां वाहनों से होने वाले प्रदूषण में बड़ा योगदान है।

    उन्होंने लंदन असेंबली एन्वाइरेन्मेंट कमेटी की 'ड्राइविंग अवे फ्रॉम डीजल : रिड्यूसिंग एयर पोल्यूशन फ्रॉम डीजल व्हीकल' की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पेट्रोल की तुलना में डीजल से वायु प्रदूषण अधिक होता है।

    विवेक ने कहा, "एक डीजल कार पेट्रोल से चलने वाली लगभग 27 कारों के बराबर वायु प्रदूषण फैलाती है। इसलिए जरूरी है कि स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन प्रदूषणों का उत्सर्जन कम किया जाए।"

    विवेक ने आगे कहा कि भले ही सम-विषम योजना से राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण में कमी आई है, लेकिन शहर में प्रदूषण और यातायात को कम करने के लिए कई अन्य उपाय तलाशने की जरूरत है।

    दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए अन्य उपायों पर जोर देते हुए विवेक ने कहा, "सम-विषम योजना सही है, लेकिन सरकार को शहर में पार्किं ग शुल्क भी बढ़ाना चाहिए, ताकि यहां वाहनों की संख्या सीमित हो सके।"

    उन्होंने कहा, "सम-विषम परियोजना को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि आसपास के शहर से बड़ी संख्या में कारें यहां आती हैं, जिससे यहां प्रदूषण बढ़ रहा है।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • स्मार्ट रहने के लिए मानसिक चुनौतियों का करें सामना

    न्यूयार्क, 17 जनवरी (आईएएनएस)। आप लंबी उम्र तक स्वस्थ, ऊर्जावान और सक्रिय रहना चाहते हैं तो मानसिक चुनौती वाले कार्यो का दिल खोल कर सामना करें। मानसिक चुनौतियां आपके मस्तिष्क को लंबे समय तक सक्रिय रखती हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है।

    मानसिक चुनौतियों में फोटोग्राफी, बागवानी, कंप्यूटर पर कार्य, पाक कला, पजल्स, लेखन और चित्रकारी जैसी तमाम चीजें आती हैं जिससे अक्सर लोग जी चुराते हैं लेकिन यही कार्य आपको लंबे समय तक सक्रिय रहने में मदद करते हैं। यह एक तरह का व्यायाम है जो मस्तिष्क की सेहत के लिए जरूरी है।

    अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से इस अध्ययन के लेखक डेनीस पार्क के अनुसार, "वर्तमान के निष्कर्षो ने कुछ ऐसे सबूत पेश किए हैं जो यह बताते हैं कि मानसिक चुनौती वाली गतिविधियां जैसे फोटोग्राफी मानसिक क्षमता में परिवर्तन करती हैं। इसके अलावा संभव है कि इस तरह की गतिविधियां युवा अवस्था में अधिक प्रभावी होती हैं।"

    इस अध्ययन में 39 वृद्ध लोगों को शामिल कर उनकी मस्तिष्क गतिविधियों का तुलानात्मक अध्ययन किया गया। प्रतिभागियों के अलग-अलग समूहों को उच्च चुनौतियां और निम्न चुनौतियां सौंपी गई।

    इस दौरान प्रतिभागियों की एफएमआरआई और एमआरआई तकनीक से मस्तिष्क की गतिविधियों और उनके द्वारा रक्त संचार में होने वाले बदलावों की भी जांच की गई।

    14 सप्ताह तक चले इस परीक्षण में जिन प्रतिभागियों ने अधिक और उच्च चुनौतियों वाले कार्यो का सामना किया था उनकी मानसिक क्षमता निम्न चुनौतियों का सामना करने वाले प्रतिभागियों से बेहतर रही।

    यह निष्कर्ष 'रिस्टोरेटिव न्यूरोलॉजी एंड न्यूरोसाइंस' पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

आधी दुनिया

सावित्रीबाई फुले जिन्होंने भारतीय स्त्रियों को शिक्षा की राह दिखाई

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उपासना बेहार “.....ज्ञान बिना सब कुछ खो जावे,बुद्धि बिना हम पशु हो जावें, अपना वक्त न करो बर्बाद,जाओ, जाकर शिक्षा पाओ......” सावित्रीबाई फुले की कविता का अंश अगर सावित्रीबाई फुले...