अरुण कान्त शुक्ला
केजरीवाल हो या कीर्ती उन्होंने जेटली पर पैसा लेने का आरोप लगाया भी नहीं है..एक भी पैसा तो मनमोहनसिंह ने भी नहीं लिया था | सवाल तो अंधत्व का है याने अंधा बांटे रेवड़ी अंधों को बीन बीन..| यह काम याने 'अंधों को बीन बीन' तो मनमोहन ने भी नहीं किया था | सबसे बड़ा सवाल यह है कि वकील साहब आपको किकेट के कीचड़ में कौन सा कमल दिख रहा था, जिसे तोड़ने आप कीचड़ में उतरे?
क्रिकेट से जुड़ा हर व्यक्ति प्रबंधक, मीडिया, क्रिकेटसंघ, खिलाड़ी, निकृष्ट दर्जे के भ्रष्ट होते हैं हर तरह से ..बहुआयामी भ्रष्ट..आप कैसे इमानदार हो सकते हैं..? अब तो गिल साहब ने भी मोर्चा खोल दिया है| किस किस को अदालत में घसीटेंगे? अपनी गोल गोल आँखों को गोल गोल घुमाते हुए, हिन्दी को अंगरेजी स्टाईल में हर शब्द को चबा चबा कर बोलते हुए आप ही तो बमुश्किल डेढ़ बरस पहले हमें बताया करते थे कि भ्रष्टाचार का मतलब केवल खुद खाना नहीं है बल्कि खाने वालों की तरफ से धृतराष्ट्र बन जाना भी भ्रष्टाचार ही है| अब खुद को पाक साफ बताना किस मुंह से?
वैसे मोदी जी की सलाह मन लीजीये और इस्तीफा देकर पूरी तरह अदालत में भिड़ जाईये, आपको ऐसे मामले जीतने का खासा अनुभव है और पाक-साफ़ होकर लौटियेगा, आडवानी जी की तरह, जिनको आपने कौने में बिठा दिया है| वैसे अदालत से साफ़ घोषित होने के बाद भी आप साफ़ रहेंगे, पाक तो हम नहीं मानेंगे| आपको क्या क्रिकेट से जुड़े किसी भी व्यक्ति को हम पाक नहीं मानते| राजनीतिज्ञ हो तो राजनीति करो| ये क्या, राजनीति भी करेंगे, क्रिकेट भी करेंगे, हॉकी भी करेंगे, वकालत भी करेंगे, क्यों? एक सरकारी कर्मचारी तो बिचारा आपसे कितना कम पाता है पर दूसरा काम नहीं कर सकता, और राजनेता सब जगह मुंह मारेंगे| मैं बताऊं, यही भ्रष्टाचार है|
जहां तक बेईमानी का सवाल है, अनेक बार बेईमानी अदालतों में क्या कहीं भी साबित नहीं हो सकती पर इसका मतलब ईमानदार होना नहीं है| वैसे भी आपने आज तक कौन सा जनता के फायदे का मुकदमा लड़ा और जीता है| भ्रष्ट कंपनियों. गलत लोगों को बचाकर ही लोग बड़े वकील बनते हैं| यह उस ज्ञान का दुरुपयोग है जो वकील जनता के पैसे से प्राप्त करता है| गिरेबां में झांकेंगे तो आपका अपना दिल स्वयं को गलत हो..गलत हो..बोलेगा| वैसे भी आदमी को खुद के बचाव के लिए दूसरे को दोषी बोलना पड़े तो समझ लेना चाहिए कि उसकी पोल खुल गयी है|