अरुण कान्त शुक्ला
27 नवम्बर को शाम ठीक साड़े छै बजे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नवनिर्मित सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम के नीले एस्ट्रोटर्फ मैदान में रेफरी की सीटी बजेगी और अर्जेंटीना तथा भारत के हॉकी टीमों के कप्तानों के तीन बार हॉकी टकराने के साथ ही छत्तीसगढ़ तथा रायपुर का नाम विश्व हॉकी पटल में अंकित हॉकी के अंतर्राष्ट्रीय मैदानों के केन्द्रों की सूची में अंकित हो जाएगा| वर्ल्ड हॉकी लीग के अंतिम दौर के मुकाबलों की मेजबानी रायपुर में छत्तीसगढ़ को मिलना निश्चित ही प्रदेशवासियों और विशेषकर प्रदेश के खेल प्रेमी जनों के लिए गौरव की बात है| 27 नवम्बर से 6 दिसंबर के मध्य विश्व की आठ श्रेष्ठ टीमों के विश्व सितारे वर्ल्ड हॉकी लीग का खिताब अपने नाम करने के बुलंद इरादों के साथ छत्तीसगढ़ की धरती पर जोर-आजमाईश करेंगे|
हीरो वर्ल्ड कप हॉकी लीग के मेचेज़ की सारणी :
दिनांक पूल समय टीम विरुद्ध टीम
27-Nov पूल बी 18:30 अर्जेंटीना VS भारत
27-Nov पूल बी 20:30 जर्मनी VS नीदरलेंड
28-Nov पूल ए 14:30 ब्रिटेन VS केनेडा
28-Nov पूल ए 16:30 आस्ट्रेलिया VS बेल्जियम
28-Nov पूल बी 18:30 जर्मनी VS भारत
28-Nov पूल बी 20:30 नीदरलेंड VS अर्जेंटीना
29-Nov पूल ए 18:30 बेल्जियम VS केनेडा
29-Nov पूल ए 20:30 आस्ट्रेलिया VS आस्ट्रेलिया
30-Nov पूल बी 18:30 नीदरलेंड VS भारत
30-Nov पूल बी 20:30 अर्जेंटीना VS जर्मनी
01-Dec पूल ए 18:30 आस्ट्रेलिया VS केनेडा
01-Dec पूल ए 20:30 ब्रिटेन VS बेल्जियम
02-Dec क्वार्टरफाइनल 18:30
02-Dec क्वार्टरफाइनल 20:45
03-Dec क्वार्टरफाइनल 18:30
03-Dec क्वार्टरफाइनल 20:45
04-Dec 5th-8th 18:30
04-Dec सेमीफायनल 20:45
05-Dec 5th-8th 18:30
05-Dec सेमीफायनल 20:45
06-Dec कांस्यपदक 18:30
06-Dec फायनल 20:45
वर्ल्ड हॉकी लीग के अंतिम दौर में पहुँची आठों टीम 2016 में होने वाले रियो ओलम्पिक के लिए योग्यता हासिल कर चुकी हैं| भारत के अलावा, जिसका विश्व रेंकिंग में आठवाँ स्थान है, अन्य टीम हैं आस्ट्रेलिया(1), नीदरलेंड(2), जर्मनी(3), बेल्जियम(4), ब्रिटेन(5), अर्जेंटीना(6), केनेडा(13)| इन सभी टीम के पास अगले वर्ष होने वाले रियो ओलम्पिक के पहले स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर किसी बड़ी प्रतियोगिता में परखने का यह अंतिम अवसर है, इसलिए कोई संशय नहीं कि हीरो वर्ल्ड कप का यह अंतिम दौर बहुत ही रोमांचक होने वाला है| इसके पूर्व आस्ट्रेलिया के साथ भारत तीन टेस्ट मैच की श्रंखला खेलेगा| श्रंखला का पहला मैच राजनांदगांव के अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में 19 नवम्बर को खेला जाएगा तथा बाकी के दोनों टेस्ट रायपुर के वल्लभभाई अन्तरराष्ट्रीय स्टेडियम में 22 तथा 23 नवम्बर को होंगे|
भारतीय टीम
18 सदस्यीय भारतीय टीम की कमान सरदार सिंह सभालेंगे| उपकप्तान टीम के गोलकीपर पी आर श्रीजेश हैं| रक्षा का जिम्मा वीरेन्द्र लाकरा, कोथाजीत सिंह, वी आर रघुनाथ, जसजीत सिंह कुलार, रुपिंदर पाल सिंह पर होगा| सरदार सिंह, चिंग्लेनसाना सिंह, देवेन्द्र वाल्मिकी, मनप्रीत सिंह, धरमवीर सिंह, दानिश मुज्तबा मध्यक्रम संभालेंगे| आक्रमण का दारोमदार एस वी सुनील, रमनदीप सिंह, आकाशदीप सिंह, ललित उपाध्याय तथा तलविंदर सिंह पर रहेगा|
भारतीय हॉकी में छत्तीसगढ़ का योगदान
छत्तीसगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हॉकी के राजनांदगांव तथा रायपुर के दोनों मैदान यद्यपि पिछले एक वर्ष के ही दौरान बनकर तैयार हुए हैं पर प्रदेश से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरुष तथा महिला खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने भारतीय हॉकी का नाम रोशन करने में अभिनव भूमिका निभाई है| लेसली क्लाडियस, विसेंट लाकरा, नीता डूमरे, सबा अंजुम, शोख गफ्फार, तनवीर जमान, रेणुका राजपूत, रेणुका यादव, मृणाल चौबे, बलविंदर कौर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके और खेल रहे ऐसे ही खिलाड़ी हैं|
नीता डूमरे
नीता डूमरे छत्तीसगढ़ की पहली महिला अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी होने के साथ साथ प्रथम अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक भी हैं| बेंकाक में खेले गए सीनियर एशिया कप में वह निर्णायक थीं|
सबा अंजुम
पद्मश्री से सम्मानित सबा अंजुम भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं|
मृणाल चौबे
राजीव पांडेय, कौशल यादव व गुंडाधरराज्य अलंकरणों से सम्मानित राजनांदगांव के मृणाल चौबे अभी ओड़िसा से खेल रहे हैं|
रेणुका यादव अभी राष्ट्रीय महिला टीम में हैं|
प्रदेश में राजनांदगांव को हॉकी की नर्सरी के रूप में जाना जाता है| यहाँ प्रतिवर्ष महंत सर्वेश्वर दास स्मृति अखिल भारतीय हॉकी प्रतियोगिता होती है, जिसमें देश की सभी जानी मानी टीम शामिल होती हैं| राज्य के बिलासपुर, जशपुर, राजनांदगांव क्षेत्र से छत्तीसगढ़ तथा देश को अनेक प्रतिभाशाली खिलाड़ी मिले हैं| बस्तर,सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है पर राज्य के खेल ढाँचे तथा सुविधाओं और प्रोत्साहन में कमी के कारण वे आगे नहीं आ पाते| यह गर्ज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी गाहे-बगाहे करते ही रहते हैं| राज्य में शाला स्तर से हॉकी को बढ़ावा देने की कोई भी ठोस योजना नहीं है| शिक्षा के निजीकरण के साथ हॉकी/फुटबाल जैसे खेल के लिए कोई उत्कंठा निजी स्कूलों में नहीं देखी जा रही है|
इस संबंध में बात करने पर छत्तीसगढ़ हॉकी फ़ेडरेशन के सचिव ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में देश तथा राज्य की हॉकी की दशा में सुधार आया है| राज्य सरकार ने इस दिशा में रुची लेकर कदम उठाये हैं| राजनांदगांव तथा रायपुर में एस्ट्रोटर्फ मैदान बनने के बाद अब राज्य सरकार बिलासपुर तथा जशपुर में एस्ट्रोटर्फ मैदान बनाने की योजना में है| फिरोज अंसारी ने बताया कि छत्तीसगढ़ के 21 जिलों में हॉकी फ़ेडरेशन की ईकाई हैं| अभी 20 के लगभग समूह हैं जो लगातार प्रशिक्षण लेते और खेलते हैं| महिला हॉकी को प्रोत्साहित करने के लिए क्या विशेष कदम उठाये जा रहे हैं, इसके जबाब में उन्होंने बताया कि वर्त्तमान में महिला हॉकी और पुरुष हॉकी अलग अलग विंग नहीं हैं| दोनों को बराबर और समान सुविधाएं मिलती हैं| फिरोज इस बात से सहमत थे कि निजी क्षेत्र हॉकी में कम ग्लेमर देखता है इसीलिये उसकी तरजीह हॉकी के लिए कम होती है|
हॉकी की व्यथा-कथा
हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है| अंतर्राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन (FIH) का गठन 1924 में पेरिस में हुआ था| बहुत से लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि भारत में पहला हॉकी एसोसिएशन बंगाल में बहुत पहले 1908 में बन गया था| यह हॉकी के प्रति हमारे देश में उस समय मौजूद जूनून को बताता है| यदि भारतीय हॉकी को हम कालखंडों में विभाजित कर देखें तो 1928 से 1960 के समय को भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग कहा जा सकता है| इस दौरान भारत ने विश्व हॉकी पर अपना दबदबा बनाए रखा और ओलम्पिक खेलों में 6 स्वर्ण पदक तथा 1 रजत पदक जीता| यही वह समय था जव ओलम्पिक में हुए 25 खेलों में भारत 24 में विजयी रहा था| 1960 से लेकर 1980 के मध्य यद्यपि भारत ने 1964 के टोक्यो तथा 1980 के मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक तथा 1968 एवं 1972 के ओलम्पिक में कांस्य पदक जरुर जीते पर यही वह समय भी है जब भारतीय हॉकी अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर लगातार अपनी चमक खोती गयी| 2008 तक यह स्थिति आ गयी कि भारत 2008 के बीजिंग ओलम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाया| भारत के हॉकी संघों में राजनीतिज्ञों की घुसपैठ, हॉकी संघों में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए बढ़ गए अंदरुनी संघर्ष, संघों में बुरी तरह घर चुका भ्रष्टाचार, हॉकी संघों और खिलाड़ियों के बीच गहरे मतभेद, खिलाड़ियों के उपर नौकरशाहाना ढंग से थोपी गईं बंदिशें और छोटी छोटी बातों पर उनके खेलने पर रोक लगाने की घटनाएं, खिलाड़ियों को उचित पारिश्रमिक का भुगतान नहीं करना जैसे कारणों ने जहां भारतीय हॉकी को कमजोर किया तो वहीं दूसरी ओर यूरोप के देशों ने, जिन्होंने हॉकी की कलात्मकता को श्रद्धांजली देकर उसमें ताकत और लम्बे तथा बड़े बड़े पॉस तथा गेंद को उंचा फेंक कर पास देने की अपनी पद्धति विक्सित कर ली थी, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी के नियमों को उनकी सहुलियत के हिसाब से बदल लिया| इसी दौरान 1976 के मोंट्रियल ओलम्पिक से हॉकी के ठोस धरातल के मैदानों की जगह पहली बार एस्ट्रोटर्फ जिसे उस समय नकली घास भी कहा जाता था का उपयोग शरू किया| हमारे देश के आपस की लड़ाई और भ्रष्टाचार में डूबे खेलसंघ अंतर्राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के दवारा किये जा रहे इन मनमाने और एकतरफा परिवर्तनों के खिलाफ एक शब्द नहीं बोले क्योंकि उन्हें इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था से मान्यता चाहिए थी और यह एक प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय संस्था की उसके लिए उनकी चापलूसी थी|
यही वह समय भी है जब 1983 में कपिल देव की क्रिकेट टीम ने एकदिवसीय क्रिकेट में विश्व कप जीता और टेलीविजन के मालिकों, कारपोरेट के विज्ञापन दाताओं और भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने क्रिकेट मैचों के घर-घर जीवंत प्रसारण से भारतीयों को क्रिकेट का इतना आदी बना दिया कि हाशिये पर पहुँच चुकी हॉकी को भुलाकर आम जनमानस इतना क्रिकेटमय हो गया कि यह लगभग भुला ही दिया गया कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है| भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है, यह केवल जनमानस ही नहीं भूला, भारत सरकार भी इस बात को भुला बैठी| भारत सरकार ने इस खेल को प्रतिष्ठता दिलाने, इसमें सुधार करने, नए नियमों के तहत खेल सुविधाएं देने और ढांचागत सुविधाएं देने, खेलसंघों के मध्य की लड़ाई को समाप्त करने और उनका नियमन करने के लिए कोई कदम नहीं उठाये| हॉकी के प्रति यद्यपि अभी सभी के रुख में परिवर्तन आया है, परन्तु यह अभी भी पर्याप्त से बहुत अधिक कम है| आज भी देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के गिने चुने एस्ट्रो टर्फ मैदान हैं और जो हैं उनकी दर्शक क्षमता क्रिकेट के मैदानों की तुलना में बहुत कम है| शालाओं से हॉकी खेल के रूप में मृतप्राय: ही है| इस सबसे देश के हॉकी प्रेमियों को मायूसी होना स्वाभाविक है| आज के हालातों में जितना जरुरी यह है कि केंद्र व राज्यों की सरकारें रुची लेकर शाला स्तर से जिला स्तर तक प्रतियोगिताओं तथा मैदानों का ढांचा तैयार करने की पहल करे तो निजी क्षेत्र से भी अपेक्षा है कि वह खेलों को प्रायोजित करने में पहल करे और फंड निवेश के लिए आगे आये| भारतीय हॉकी को खोया हुआ गौरव पुन: दिलाने के लिए सभी को सरकार, खेलसंघों, निजी प्रायजकों तथा दर्शकों को, सभी को हॉकी के प्रति उदासीनता का त्याग करना होगा|