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बिहार : कोसी के कहर की सूचना पहले मिलेगी

इमरान खान
पटना, 8 फरवरी (आईएएनएस)। कोसी की बाढ़ से हर साल बिहार के पूर्वी भाग में तबाही मचती है, लेकिन अभी तक बहुत ही कम आंकड़े उपलब्ध हैं ताकि कोसी की बाढ़ से बर्बादी का पूर्वानुमान लगाया जा सके और उस क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों की जीविका को लोचदार बनाया जा सके। अब पर्यावरण सुधार और पर्वतीय विकास के लिए समर्पित काठमांडू स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने सूचना तंत्र स्थापित किया है जिससे इस खतरे को पहले ही आंका जा सकता है।

इस संबंध में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट कोऑर्डीनेटर शाहरियार वाहिद ने आईएएनएस से कहा कि उनकी संस्था ने कोसी बेसिन सूचना प्रणाली स्थापित कर ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है जो जलवायु परिवर्तन, भूमि के उपयोग, नदी डूब क्षेत्र में गाद के जमाव और जल आधारित जीविका से संबंधित आंकड़ों को संकलित करेगा। इससे यह पता चल जाएगा कि कोसी बेसिन में किस तरह के परिवर्तन हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह प्लेटफॉर्म उपग्रह प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय मौसम एजेंसियों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर 24 घंटे बाढ़ की चेतावनी देगी। उन्होंने कहा कि पिछले मानसून से नेपाल का मौसम विभाग बाढ़ की चेतावनी देने के लिए क्षेत्रीय बाढ़ के परिदृश्य को भी ध्यान में रखता है। वाहिद यहां दो दिवसीय कार्यशाला में भाग लेने आए थे।

विदित हो कि इस प्रोजेक्ट में नेपाल, चीन और भारत सहभागी हैं जो विगत दो वर्षो से जानकारी जुटाने में लगे हैं ताकि बेसिन में रहने वाले लोगों को संभावित आपदा से आगाह कर उनकी सहायता की जा सके।

उन्होंने कहा कि केबेआईएस के आंकड़ों का इस्तेमाल भारत, चीन और नेपाल जल, ऊर्जा, पर्यावरण और खाद्य से संबंधित विकासात्मक अनुसंधान में कर रहे हैं। केबीआईएस का मुख्य लक्ष्य आंकड़े जुटाना, सूचना साझा करना और शोधकर्ताओं, तकनीकी पेशेवरों और आम लोगों के बीच अंतर्विषयक सहयोग बढ़ाना है।

बाढ़ और उससे संबंधित आपदा कोसी बेसिन में रहने वाले लोगों की नियति बन गई है। पहाड़ पर बर्फ पिघलने और लगातार वर्षा होने से नदी का जल स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ जाता है। बिहार में जहां कोसी गंगा में मिलती है उस क्षेत्र में तो स्थिति और भी भयावह बन जाती है। इतना ही नहीं उत्तर बिहार के करीब 76 फीसदी क्षेत्र पर लगातार बाढ़ का खतरा बना रहता है।

नतीजा है कि हर साल जान, माल की भारी क्षति होती है। बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़े के मुताबिक सन् 2014 में बिहार में 33,200 लोग विस्थापित हुए थे। वैसे कोसी नदी में दुनिया भर की सभी नदियों से अधिक गाद का जमाव होता है। यही वजह है कि इस क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बना रहता है।

2008 में भारत-नेपाल सीमा के निकट कोसी पर बने बांध के टूटने से उत्तर बिहार के पांच जिलों में भयंकर बाढ़ आई थी जिसमें करीब 400 लोगों की मौत हो गई थी, तीस लाख लोग बेघर हो गए थे और 840,000 हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हो गई थी।

इंडो एशियन न्यूज सर्विस।

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  • वेलेंटाइन्स डे के लिए विशेष टेडी बीयर्स डिजाइन किए
    नई दिल्ली, 9 फरवरी (आईएएनएस)। आप वेलेंटाइन्स डे के मौके पर अपनों को टेडी बीयर देते ही रहे होंगे, लेकिन इस बार आप उन्हें खास डिजाइनर टेडी बीयर्स तोहफे में देकर उनकी खुशियों को कई गुना बढ़ा सकते हैं।

    रितू कुमार, रीना ढाका, वरुण बहल और कई अन्य प्रख्यात भारतीय डिजाइनर्स ने वेलेंटाइन्स डे के मौके पर अद्वितीय टेडी बनाने के लिए अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल किया है।

    प्यार के इस उत्सव पर डीएलएफ एंपोरियो भी एक खास कार्यक्रम 'मेड विद लव' लेकर आया है, जिसमें वेलेंटाइन्स पॉप अप-स्टोर में डिजाइनर कलेक्शन्स का खास संग्रह पेश किया गया है।

    इस स्टोर से आप आशिमा-लीना, शांतनु एंड निखिल, गौरव गुप्ता, मोनिशा जयसिंह और नीरू कुमार जैसे डिजाइनर्स द्वारा खास तौर पर डिजाइन किए गए उपहार और टेडी बीयर्स ले सकते हैं।

    डीएलएफ एंपोरियो के वरिष्ठ उपाध्यक्ष दिनाज मधुकर ने कहा, "हम इस वेलेंटाइन्स को बेहद खास बनाने की कोशिश में जुटे हैं और इसके तहत हमारे वेलेंटाइन पॉप-अप स्टोर में हमारे डिजाइनर्स द्वारा तैयार विशिष्ट उपहारों का संग्रह होगा।"

    उन्होंने कहा, "ये सीमित संस्करण टेडी बीयर्स और वेलेंटाइन्स प्रेरित संग्रह सालों से हमारे उपभोक्ताओं का पसंदीदा रहा है।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • दक्षिणी सूडान में 40,000 लोग भुखमरी के कगार पर
    खरतौम, 9 फरवरी (आईएएनएस)। अलग देश बने दक्षिण सूडान में बढ़ती खाद्य असुरक्षा के कारण कम से कम 40,000 नागरिक भुखमरी के कगार पर हैं।

    संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की सोमवार की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।

    समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के संयुक्त बयान के अनुसार, "दक्षिणी सूडान में खाद्य असुरक्षा की समस्या अप्रत्याशित स्तर पर बढ़ चुकी है और देश की आबादी के 25 प्रतिशत (28 लाख) लोगों को तत्काल खाद्य सहायता की जरूरत है और कम से कम 40,000 लोग बर्बादी के कगार पर हैं।"

    संयुक्त राष्ट्र की तीनों एजेंसियों ने कहा कि शुष्क मौसम के साथ समस्याएं और गंभीर हो जाएंगी।

    एजेंसियों ने शांति करार को तत्काल लागू करने और सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य आपूर्ति के लिए संघर्षूपर्ण इलाकों में अप्रतिबंधित आवाजाही सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।

    दक्षिणी सूडान के कार्यकारी एफएओ प्रतिनिधि सर्ज टिसॉट ने कहा, "केवल सीधे तौर पर प्रभावित इलाकों में ही खाद्य असुरक्षा की समस्या नहीं है, बल्कि संघर्ष के कारण कीमतों में बढ़ोतरी और बाजार में अव्यवस्था जैसे कारणों से उत्तरी बहर एल बजल और वरप राज्यों में भी खाद्य समस्या बढ़ी है।"

    उन्होंने कहा, "खाद्य स्थिति में सुधार के लिए शांति करार को तत्काल लागू किया जाना जरूरी है।"

    दक्षिणी सूडान में यूनिसेफ के प्रतिनिधि जोनाथन वेच ने कहा, "परिवार अपने सामथ्र्य के अनुसार जो कर सकते हैं कर रहे हैं, लेकिन अब उनके पास विकल्प नहीं बचे हैं।"

    दक्षिणी सूडान में सहायता एजेंसियों को भी काम करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर हाल ही में संसद द्वारा एनजीओ के काम पर प्रतिबंध लगाने और विदेशी सहायता कार्यकर्ताओं की संख्या में कमी करने संबंधी विधेयक पेश होने के बाद से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • कंबल उद्योग में भी बन रही छत्तीसगढ़ की पहचान
    रायपुर, 9 फरवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ राज्य कंबल उद्योग में भी तेजी से अपनी पहचान बना रही है। राज्य सरकार के ग्रामोद्योग विभाग द्वारा बुनकरों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं। शासकीय वस्त्र प्रदाय योजना के तहत यहां के बुनकारों को नियमित रूप से रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।

    राजनांदगांव जिले की ग्यारह बुनकर सहकारी समितियों में चालू वित्तीय वर्ष 2015-16 में जनवरी तक लगभग तीन करोड़ 67 लाख रुपये की 83 हजार 211 नग कंबलों का उत्पादन किया गया। इसके लिए बुनकरों को सहकारी समितियों के माध्यम से 41 लाख 19 हजार रुपये की पारिश्रमिक भुगतान किया जा चुका है।

    एक विज्ञप्ति के अनुसार, कंबल उत्पादन में जिले के सभी बुनकर सहकारी समितियों से संबद्ध 21 परिवारों के 657 लोगों को रोजगार मिल रहा है। बुनकारों को प्रति कंबल 49 रुपये 50 पैसे की दर से पारिश्रमिक भुगतान किया जा रहा है। कंबल का मूल्य 441 रुपये प्रति नग निर्धारित किया गया है।

    राजनांदगांव जिले के बुनकरों द्वारा निर्मित कंबलों की मांग पूरे प्रदेश में है। प्रदेश के सभी आश्रमों-छात्रावासों, सरकारी अस्पतालों, पुलिस एवं होमगार्ड प्रशिक्षण संस्थाओं सहित मांग के अनुसार, सभी शासकीय विभागों में कंबल की आपूर्ति की जा रही है।

    चालू वित्तवर्ष 2015-16 में जनवरी माह तक आशा बुनकर सहकारी समिति राजनांदगांव में चार हजार 445 नग कंबल, आदिशक्ति बुनकर सहकारी समिति कन्हारपुरी विकासखंड छुरिया में सात हजार 759 नग, जय मां दुर्गा बुनकर सहकारी समिति (ढाढूटोला, अंबागढ़ चौकी) में दो हजार 739 नग, बघेराभांठा की मां दुर्गा बुनकार सहकारी समिति में सात हजार 616 नग और कुर्मदा की ज्योति आदिवासी बुनकर सहकारी में चार हजार 52 नग कंबल का उत्पादन किया गया।

    इसी तरह डोंगरगढ़ जिले के रामटोला की बंलेश्वरी बुनकर सहकारी समिति में आठ हजार 954 नग, छुरिया की आदिशक्ति बुनकर सहकारी समिति में 20 हजार 434 नग, सोमाझिटिया की आदर्श बुनकर सहकारी समिति में 24 हजार 105 नग, मेढ़ा की लक्ष्मी बुनकर सहकारी समिति में 692 नग और खुर्सीटिकुल की शक्ति आदिवासी बुनकर सहकारी समिति में दो हजार 415 नग कंबल का उत्पादन किया गया।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • दिल्ली में कोहरा, न्यूनतम तापमान 9.2 डिग्री
    नई दिल्ली, 9 फरवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंगलवार सुबह कोहरा रहा। न्यूनतम तापमान सामान्य से एक डिग्री अधिक 9.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

    भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक अधिकारी ने कहा, "सुबह में हल्के से सामान्य कोहरा रहा। दिन में आसमान आमतौर पर साफ रहेगा।"

    मौसम विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि दिन का अधिकतम तापमान 24 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज किए जाने की संभावना है।

    सुबह 8.30 बजे वातावरण में 97 फीसदी आद्र्रता दर्ज की गई और इसी वक्त दृश्यता 400 मीटर दर्ज की गई।

    दिल्ली में एक दिन पहले सोमवार को न्यूनतम तापमान नौ डिग्री, जबकि अधिकतम तापमान 23.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • सियाचिन ग्लेशियर हिमस्खलन: 1 जवान जीवित मिला, हालत नाजुक
    जम्मू, 9 फरवरी (आईएएनएस)। पिछले दिनों लद्दाख क्षेत्र के सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन के बाद बर्फीली चट्टानों में दबे 10 सैनिकों में से एक को बचा लिया गया है। बाकी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की गई है।

    जीओसी उत्तरी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हूडा ने मंगलवार को एक आधिकारिक बयान में कहा, "सियाचिन में चल रहे बचाव अभियान में लांस नायक हनमंथप्पा जीवित मिले। अफसोस बाकी अन्य सैनिक अब हमारे बीच नहीं रहे।"

    लांस नायक हनमंथप्पा की हालत नाजुक बताई गई है।

    हूडा ने कहा, "हमें चमत्कारों के होते रहने की उम्मीद है। दुआएं हमारे साथ हैं।"

    उल्लेखनीय है कि सियाचिन ग्लेशियर में तीन फरवरी को जबर्दस्त हिमस्खलन हुआ। इसकी चपेट में सैनिकों की चौकी भी आ गई थी, जिसके चलते सेना के 10 जवान लापता थे।

    हिमस्खलन के बाद से लापता सैनिकों तक पहुंचने के लिए सेना एवं वायुसेना व्यापक स्तर पर बचाव अभियान चला रही थी।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • आम बजट को लेकर चिंता खास, यानी जेब और ढीली होगी

    ऋतुपर्ण दवे

    नए वित्तवर्ष के बजट को लेकर कयासों का दौर जारी है। इतना तो तय है कि बजट जन आकांक्षाओं से इतर होगा, यानी जेब और ढीली होगी। वित्तमंत्री खुद इस बात का संकेत दे चुके हैं, बजट लोक लुभावन नहीं होगा। इसलिए लोगों को अभी से चिंता सताने लगी है।

    जहां तक महंगाई का सवाल है, कई तरह के टैक्सों के बाद लगभग सवा सौ सेवाओं को सर्विस टैक्स के दायरे में लाकर, कमाई पहले ही हल्की की जा रही है।

    इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अर्थव्यवस्था की दृष्टि से आगे रहेगा तथा 2016 में उत्पादन वृद्धि की दर 7.3 व 2017 में 7.5 होगी। लेकिन हालात कुछ और ही कह रहे हैं, लगता है कि ऐसा कुछ हो पाएगा?

    बाजार सूने पड़े हैं। लिवाली-बिकवाली दोनों की कमी है। सोने के दाम ऊपर नीचे हो रहे हैं। स्टील सेक्टर मंदी से जूझ रहा है। शेयर बाजार एक अजीब सी ऊहापोह में है। उद्योगों और कल कारखानों की डांवाडोल स्थिति भी चिंताजनक है।

    बजट को लेकर जो संकेत मिल रहे हैं, उससे लगता है कि इस बार सरकारी खर्चो को बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है, क्योंकि वेतन आयोग की सिफारिशों, सैनिकों की बढ़ी पेंशन और कैपिटल एक्सपेंडीचर जैसे कामों के लिए धन की जरूरत तो पड़ेगी। लेकिन सवाल वही कि पैसा आएगा कहां से?

    बजट में निवेश बढ़ाए जाने पर जोर दिया जा सकता है। लेकिन मौजूदा हालात में कितना कारगर होगा, यह कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि पिछले बजट में 69500 करोड़ रुपये विनिवेश का लक्ष्य रखा गया था जबकि सरकार मुश्किल से 12700 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है।

    इधर घाटे वाली सरकारी कंपनियों में विनिवेश तो पूरी तरह नाकाम रहा। आय बढ़ाने के लिहाज से पोस्ट ऑफिस को बैंक में तब्दील करने की योजना भी फलीभूत नहीं हो पाई, जबकि रिजर्व बैंक इसके लिए लाइसेंस भी दे चुका है।

    बजट में सबसे बड़ी चुनौती कॉरपोरेट टैक्स घटाने और जीएसटी की तरफ बढ़ने के इंतजाम जरूरी हैं। कॉरपोरेट टैक्स में यदि 1 प्रतिशत की भी कमी हुई तो सरकारी खजाने में 6 से 7 हजार करोड़ रुपयों की आमद घटेगी। निश्चित रूप से यह बड़ी रकम है। इस बजट में मोदी सरकार द्वारा बहुप्रचारित काले धन को लेकर भी कठोर उपाय किए जा सकते हैं। संभव है कि तय सीमा से ज्यादा नकदी रखने पर पाबंदी लगे।

    स्कूल, कॉलेजों में डोनेशन के नाम पर कालेधन के लेन-देन पर रोक के लिए डोनेशन को क्रॉस चेक से देना जरूरी किया जाए। अनुमानत: केवल एमबीबीएस दाखिलों में पूरे देश में लगभग 12 हजार करोड़ रुपयों का कालाधन इस्तेमाल होता है।

    पिछले बजट में कालाधन का खुलासा करने, खास स्कीम लाने का ऐलान किया गया था। स्कीम भी आई लेकिन, अपेक्षानुसार कालाधन नहीं आया। महत्वाकांक्षी सोना मुद्रीकरण योजना का भी यही हाल रहा। योजना तो आई लेकिन सोना नदारद रहा। यह सब बीते बजट की आधी अधूरी घोषणाएं हैं।

    इस बजट में मनपसंद सैलरी ब्रेकअप तय करने की संभावना है। इसके लिए वो कंपनी जिसमें 40 या अधिक कर्मचारी हैं, तय कर सकेंगी कि भविष्य निधि फंड में पैसा जमा करना है या नहीं एवं स्वास्थ्य बीमा के लिए मनपंसद स्कीम भी चुनने की आजादी होगी।

    मौजूदा वित्तवर्ष में सरकार विनिवेश लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। शेष दो महीनों में स्थिति में सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। ऐसे में निश्चित रूप से सारा दारोमदार आम आदमी के कंधों पर ही पड़ता दिखाई दे रहा है। हो सकता है, वित्तमंत्री ने पहले ही लोक लुभावन न होने वाला बजट कहकर, शायद यही संकेत दिया हो।

    सस्ते रेल किराये को लेकर वित्त मंत्रालय और रेल मंत्रालय पहले ही आमने-सामने जैसे स्थिति में हैं। सस्ता यात्री किराया और सस्ते अनाज ढुलाई पर दी जाने वाली सब्सिडी किसकी खाते में जाए। रेल मंत्रालय चाहता है वित्त मंत्रालय उठाए और वित्त मंत्रालय तैयार नहीं है। सब्सिडी को लेकर इस ऊहापोह के बीच कहीं भार सीधे आम आदमी के कंधों पर न आ जाए?

    इधर 'डिलॉयट' सर्वे के इशारों को समझें तो भारतीय कंपनियां अपने वफादार कर्मचारियों के जाने के भय से भी भयभीत हैं। कर्मचारी, कंपनी में अपनी भूमिका को लेकर असंतुष्ट हैं जिसकी वजह लीडरशिप पोजीशन के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जाना बताया गया है। यह वाकई अनकही लेकिन चिंता की बात है।

    कीमतों पर नियंत्रण, घरेलू निवेश बढ़ना, नए कल-कारखाने खुलना, लोगों को नौकरियां मिलना, आम आदमी की आय बढ़ाना, जीवन स्तर में सुधार आना ही वो संकेत हैं, जिनसे अर्थ व्यवस्था की गति मापी जाती है। कहने की जरूरत नहीं कि वर्तमान में यह सब किस दौर से गुजर रहे हैं। अब तो सबसे बड़ी चुनौती सर्वहारा वर्ग के चेहरे पर मुस्कान लाने की है। इसके लिए क्या कुछ किया जाएगा यह अहम है।

    कृषि विकास की कोरी बातों को फलीभूत करना, किसानों की आत्महत्या रोकना, विदेशी मुद्रा अर्जन, एक्सपोर्ट को बढ़ावा और विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति रुझान ही आर्थिक तरक्की का मुख्य आधार है, जबकि वर्तमान में स्थिति, इससे उलट ही दिख रही है।

    दाल के भाव आसमान छू रहे हैं, गेहूं, चावल से लेकर सब्जी और फल, खाद्य तेल, मसाले, दुनिया में सबसे न्यूनतम दर पर पेट्रोल की उपलब्धता के बावजूद एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर कीमतें लगभग जस की तस रखना। रेल, हवाई और सड़क परिवहन में बढ़ोतरी का सभी का भार जनता पर ही तो है, जबकि लोगों की तनख्वाह इस अनुपात में दोगुनी होनी चाहिए। ये तो दूर सवाया तक नहीं बढ़ी और न ही मजदूरी की दर में खास इजाफा हुआ।

    घरेलू गृहणियों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। संभव है कि आयकर की सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये तक कर दी जाए, लेकिन इससे आम आदमी को क्या फायदा होगा यह आने वाला बजट ही बताएगा।

    बजट से आम और खास सभी उम्मीदें करते हैं। युवा, गृहिणी, वरिष्ठ नागरिक, नौकरीपेशा, व्यवसायी, उद्यमी, सर्विस सेक्टर सभी तो उम्मीदें लगाए बैठे हैं। बजट कैसा होगा ये बस कयासों का दौर ही है। बजट लोक लुभावन होगा या लोक लुटावन, लोगों की चिंता अभी से बढ़ गई है।
    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)

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