विद्या शंकर राय
लखनऊ, 7 फरवरी (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में पूर्वाचल सहित राज्य के करीब डेढ़ दर्जन जिलों में प्रदूषित भूजल से पशुओं की असामयिक मौत के मामले बढ़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उप्र के इन जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा काफी बढ़ जाने की वजह से पशुओं में कई बीमारियां पैदा हो रही हैं, जिसकी वजह से उनकी असामयिक मौतें हो रही हैं।
इसे देखते हुए अब पशुपालन विभाग ने भी पशुपालकों को भी इससे बचने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है।
पशुपालन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस से विशेष बातचीत के दौरान इसकी जानकारी दी और विभागीय आंकड़े भी साझा किए।
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक बलिया, लखीमपुर, उन्नाव, बहराइच, चंदौली, गाजीपुर, बस्ती सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, संतकबीर नगर, उन्नाव, बरेली, मुरादाबाद में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है, जबकि मेरठ, रायबरेली, मिर्जापुर, बिजनौर, गोंडा, सहारनपुर और भदोही आंशिक रूप से प्रभावित हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि उप्र के इन जिलों में पशुओं को पिलाने लायक पानी भी नहीं रहा गया है। केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए अलर्ट भी जारी किया गया है और पशुओं की क्षति रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने की हिदायत दी गई है।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय, पशुपालन डेयरी एवं मत्स्य विभाग ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर इन जिलों में आर्सेनिक से बचने के उपाय और पशुओं की क्षति रोकने के लिए किसानों को जागरूक किए जाने की बात कही है। इसके लिए निचले स्तर पर किसानों के बीच गोष्ठियां आयोजित कर इसकी जानकारी देने का निर्देश दिया गया है।
अधिकारी ने बातया, "यूनिसेफ की मदद से कराए गए एक सर्वे में भी प्रदेश के 20 से अधिक जिलों में आर्सेनिक 0़05 माइक्रोग्राम के तय मानक से अधिक पाया गया। सर्वे रिपोर्ट में अन्य जिलों में भी खतरे की घंटी जैसी स्थिति बताई गई है। बलिया, गाजीपुर और लखीमपुर जिले इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।"
मशहूर पशुरोग विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. सिंह ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने से कैंसर, लिवर फाइब्रेसिस, हाइपर पिगमेंटशन जैसी बीमारियां पैदा होती हैं। इसकी वजह से आमजन के अलावा पशुओं की भी असामयिक मौतें होने की संभावना बनी रहती है।
सिंह ने बताया कि आर्सेनिक की मात्रा खून के जरिये खाल, खुर, बाल और नाखून की ग्रंथियों में जमा हो जाता है और नुकसान पहुंचाता है।
इधर, पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. राजेश वाष्र्णेय भी इसे स्वीकार करते हैं। उनके मुताबिक, इससे निपटने के लिए जिलों में पशुपालन विभाग के पशु चिकित्साधिकारियों को इलाज के पर्याप्त इलाज का बंदोबस्त करने का निर्देश दिया गया है। पशुपालकों को इससे बचाव के लिए भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि आर्सेनिक का लक्षण अधिक पाए जाने पर पशुपालकों को तुरंत पशु चिकित्सालय में पहुंचकर इलाज कराना चाहिए।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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