भोपाल: 26 अक्टूबर/ कविता भाषा का श्रेष्ठतम रूप है। भाषा में जो श्रेष्ठतम है वह कविता है। कविता बहुत सूक्ष्म कार्य करती है। उसका गुण है बहुत थोड़े में बहुत ज्यादा व गहरी बात कहना। ये उद्गार वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने व्यक्त किए। वे कवि, कथाकार संतोष चौबे के षष्ठिपूर्ति प्रसंग पर आयोजित “साहित्य पर्व” के तीसरे दिन आईसेक्ट विश्वविद्यालय में “विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता” पर एकाग्र सत्र में अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साहित्य और साहित्यकारों को अपने श्रोताओं का सामना करना पड़ेगा, चाहे वे किसी भी विधा में लिखते हों। इस मौके पर श्री सक्सेना ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।
अपने आधार वक्तव्य में प्रकाश उप्रेती ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि आखिर कविता को लेकर पाठकों में इतनी उदासीनता क्यों है, इस बात पर अब विचार करना जरूरी है। बाद में विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता विषय पर विष्णु नागर, लीलाधर मंडलोई और आशीष त्रिपाठी ने भी प्रभावी वक्तव्य दिया।
आशीष त्रिपाठी ने कहा कि कविता एक ऐसी मां की देह है जिससे सारी विधाएं अंग लगी है। कविता वस्तुतः एक मातृ विधा है जिसका एक ऐसा उभयनिष्ठ वृत्त है जिससे अन्य कई विधाओं के वृत्त जुड़े हैं। लीलाधर मंडलोई ने कहा कि गद्य की सारी विधाओं के बीच की सीमा समाप्त हो गई है, अब उनके वर्चस्व की शिनाख्त करना मुश्किल है। विष्णु नागर ने कहा कि एक व्यक्ति के पास अभिव्यक्त करने के लिए इतनी चीजें है कि उसके लिए एक विधा अपर्याप्त है। निरंजन श्रोत्रिय, महेन्द्र गगन और मोहन सगोरिया ने भी हस्तक्षेप करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन बलराम गुमास्ता ने किया।
दूसरा सत्र संतोष चौबे के अनुवाद के संदर्भ में अनुवाद की सामाजिकी विषय पर एकाग्र रहा। सत्र की अध्यक्षता रमेश दवे ने की। इसमें आमंत्रित वक्ताओं ने अनुवाद के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।
शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति हुई। इसमें शेडो ग्रुप द्वारा बर्तोल्त ब्रेख्त द्वारा लिखित एवं संतोष चौबे द्वारा अनुवादित नाटक ”सुकरात“ का मनोज नायर के निर्देशन में मंचन किया गया। नाटक में दार्शनिक सुकरात को ग्रीक योद्धा के रूप में चित्रित किया गया है। परंतु उसे युद्ध और लड़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। वो डेलियम के युद्ध में पर्शिया के खिलाफ उतरते है। इसी दौरान पैर में कांटा लग जाता है और उसके लिए भागना मुश्किल हो जाता है। मजबूरी में वो अंधाधुंध तलवार चलाकर दुश्मन को भगा देते हैं और गलती से जीत जाते हैं लेकिन इस सफलता से एथेंस के हीरो बनने के बावजूद वे अवसर का लाभ नहीं उठाते और दोस्तों और पत्नी को सच्चाई बता देते हैं। इससे पूर्व संगीतकार संतोष कौशिक द्वारा संगीतबद्ध संतोष चौबे की कविताओं की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति हुई।
साहित्य पर्व: कविता मां है, अन्य विधाएं उसके अंग लगी है
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