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साहित्य पर्व: कविता मां है, अन्य विधाएं उसके अंग लगी है

भोपाल: 26 अक्टूबर/ कविता भाषा का श्रेष्ठतम रूप है। भाषा में जो श्रेष्ठतम है वह कविता है। कविता बहुत सूक्ष्म कार्य करती है। उसका गुण है बहुत थोड़े में बहुत ज्यादा व गहरी बात कहना। ये उद्गार वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने व्यक्त किए। वे कवि, कथाकार संतोष चौबे के षष्ठिपूर्ति प्रसंग पर आयोजित “साहित्य पर्व” के तीसरे दिन आईसेक्ट विश्वविद्यालय में “विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता” पर एकाग्र सत्र में अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साहित्य और साहित्यकारों को अपने श्रोताओं का सामना करना पड़ेगा, चाहे वे किसी भी विधा में लिखते हों। इस मौके पर श्री सक्सेना ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।

अपने आधार वक्तव्य में प्रकाश उप्रेती ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि आखिर कविता को लेकर पाठकों में इतनी उदासीनता क्यों है, इस बात पर अब विचार करना जरूरी है। बाद में विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता विषय पर विष्णु नागर, लीलाधर मंडलोई और आशीष त्रिपाठी ने भी प्रभावी वक्तव्य दिया।

आशीष त्रिपाठी ने कहा कि कविता एक ऐसी मां की देह है जिससे सारी विधाएं अंग लगी है। कविता वस्तुतः एक मातृ विधा है जिसका एक ऐसा उभयनिष्ठ वृत्त है जिससे अन्य कई विधाओं के वृत्त जुड़े हैं। लीलाधर मंडलोई ने कहा कि गद्य की सारी विधाओं के बीच की सीमा समाप्त हो गई है, अब उनके वर्चस्व की शिनाख्त करना मुश्किल है। विष्णु नागर ने कहा कि  एक व्यक्ति के पास अभिव्यक्त करने के लिए इतनी चीजें है कि उसके लिए एक विधा अपर्याप्त है। निरंजन श्रोत्रिय, महेन्द्र गगन और मोहन सगोरिया ने भी हस्तक्षेप करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन बलराम गुमास्ता ने किया।

दूसरा सत्र संतोष चौबे के अनुवाद के संदर्भ में अनुवाद की सामाजिकी विषय पर एकाग्र रहा। सत्र की अध्यक्षता रमेश दवे ने की। इसमें आमंत्रित वक्ताओं ने अनुवाद के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति हुई। इसमें शेडो ग्रुप द्वारा बर्तोल्त ब्रेख्त द्वारा लिखित एवं संतोष चौबे द्वारा अनुवादित नाटक ”सुकरात“ का मनोज नायर के निर्देशन में मंचन किया गया। नाटक में दार्शनिक सुकरात को ग्रीक योद्धा के रूप में चित्रित किया गया है। परंतु उसे युद्ध और लड़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। वो डेलियम के युद्ध में पर्शिया के खिलाफ उतरते है। इसी दौरान पैर में कांटा लग जाता है और उसके लिए भागना मुश्किल हो जाता है। मजबूरी में वो अंधाधुंध तलवार चलाकर दुश्मन को भगा देते हैं और गलती से जीत जाते हैं लेकिन इस सफलता से एथेंस के हीरो बनने के बावजूद वे अवसर का लाभ नहीं उठाते और दोस्तों और पत्नी को सच्चाई बता देते हैं। इससे पूर्व संगीतकार संतोष कौशिक द्वारा संगीतबद्ध संतोष चौबे की कविताओं की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति हुई।

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  • मुद्दों पै बहस हो, तो है मजा

    राकेश अचल

    बातों से बतंगड़ बनता है, हर बार यही तो मुश्किल है
    चुप साध के बैठी रहती है, सरकार यही तो मुश्किल है

    मुद्दों पै बहस हो तो है मजा, बेकार की बातें होती हैं
    भौंपू है हमारी बस्ती के अखबार, यही तो मुश्किल है

    ढपली हों जुदा पर राग न हों जिद है ये बजाने वालों की
    बिखरी है शुरू से बाजों की झंकार, यही तो मुश्किल है

    बर्तन हैं अगर तो टकरा कर, आवाज करेंगे जाहिर है
    चुभती है जमाने को लेकिन तकरार यही तो मुश्किल है

    आये थे गिराने की कह कर, देखो तो उठाये जाते हैं
    रिश्तों में अचानक आई है दीवार, यही तो मुश्किल है

    तुम लिखते रहो,तुम गाते रहो, दिन रात अचल तो अच्छा है
    होना है इसे भी दुनिया में, दुश्वार, यही तो मुश्किल है

  • खरीन्यूज़ की संपादक रानी शर्मा गणेश शंकर विधार्थी पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित

    भोपाल:2 नवंबर/ पत्रकारों और समाजसेवियों के गणेश शंकर विधार्थी अलंकरण समारोह में आज खरीन्यूज़ की संपादक रानी शर्मा को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कई अन्य समाज सेवियों और पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि देश में तेज विकास के लिए जनता को जानकारी हासिल करने के अधिकार के साथ साथ सवाल पूछने का अधिकार भी दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार अपने कामकाज के दौरान तरह तरह के सवाल पूछते हैं, मीडिया की यही ताकत देश को सफल बनाने में सहयोगी साबित हो रही है।

    श्री आत्मदीप ने कहा कि पत्रकारों को सूचना का अधिकार अधिनियम का भी उपयोग करना चाहिए। पत्रकार भी प्रशासन की सूचनाएं जनता को देते हैं। इस कानून में भी सरकार की ही सूचनाएं जनता को दी जाती हैं। इस तरह से दोनों कार्यों का उद्देश्य एक ही है।

    पत्रकारों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सम्मान समारोह में श्री आत्मदीप ने कहा कि बाजार की ताकतें मीडिया के तकाजों पर हावी हो गईं हैं। इसकी वजह ये है कि पत्रकारों का प्रबोधन नहीं किया जा रहा है। अपने अनुभवों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हमें सिखाया गया था कि पत्रकार की खबर का एक वाक्य भी समाज की शांति भंग कर सकता है। समाज में निराशा का माहौल पैदा कर सकता है। इसलिए खबर लिखने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार होना चाहिए। श्री आत्मदीप ने कहा कि आज नागरिक केंद्रित सुशासन की बात पूरी दुनिया में हो रही है, इसलिए आज की पत्रकारिता को भी नागरिक केन्द्रित ही होना पड़ेगा। पहले घटनाओं को दबा दिया जाता था। अखबार उन्हें अपना नजरिया भी थोप देते थे लेकिन अब स्थितियां बदल गईं हैं। सोशल मीडिया के उदय के बाद घटनाओं को दबाना संभव नहीं रहा है। यही कारण है कि मतदाताओं की जागरूकता बढ़ाने में मीडिया अपना उल्लेखनीय योगदान दे सका है।

    विशिष्ट अतिथि डॉ. राजपाल सिंह ने कहा कि पत्रकारिता आज भी चुनौतियों से घिरी है। इसके बावजूद पत्रकार अपनी जिजीविषा से सामाजिक बदलाव की खबरें उजागर करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरने वालों की कश्ती कभी पार नहीं होती।

    लोकस्वामी के संपादक रजनीकांत ने कहा कि समाचार माध्यमों के विस्तार के बीच खबरें फैक्टरी वाली मशीनों की तरह बनाई जाने लगीं हैं। जबकि खबरों के पीछे छुपे सामाजिक सरोकार मीडिया की रीढ़ होते हैं।

    भोपाल चेंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष ललित जैन ने कहा कि मीडिया का स्वस्थ संवाद देश और समाज की दिशा बदलने की ताकत रखता है। आज की पीढ़ी के पत्रकार उन विषयों पर भी संवाद कर रहे हैं जिन पर बात करना पहले फिजूल की बात माना जाता था। पहले लोग बतोलेबाजी को पत्रकारिता कह देते थे पर अब नई पीढ़ी तथ्यों की छानबीन करके सटीक खबरें भी लिख रही है।

    मध्यप्रदेश माध्यम के ओएसडी पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि सरदार भगत सिंह तो सामाजिक प्रतिबद्धता के चरम हैं उनके जैसा बनना संभव नहीं है। हम यदि स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत से भी प्रेरणा ले सकें तो हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता में स्व. विद्यार्थी की पत्रकारिता को जीवित रखने का प्रयास नहीं हो रहा है। पत्रकारिता का नाता विचारों से टूट सा गया है वह केवल समाचारों के प्रेषण तक सीमित रह गई है।

    आयोजन समिति की ओर से खरी न्यूज की संपादक रानी शर्मा, चेतना रतलाम के ब्यूरो प्रमुख दिनेश जोशी, एएनआई के आर.सी.साहू, स्वदेश के ओ.पी. श्रीवास्तव, हिंदुस्थान समाचार के मयंक चतुर्वेदी,  सूरी रिपोर्टर के प्रदीप सूरी, विदिशा के पत्रकार श्याम चतुर्वेदी, हरदा के डी.एस.चौहान, इंदौर के प्रकाश जोशी,  राज एक्सप्रेस के फोटो पत्रकार शिवनारायण मीणा, दैनिक जागरण के फोटो पत्रकार पृथ्वीराज सिंह, दैनिक भास्कर के फोटो पत्रकार एल.सी.वर्मा, नवभारत के फोटो पत्रकार असरफ अली, क्राईम हलचल के फोटो पत्रकार योगेन्द्र शर्मा, दैनिक राज एक्सप्रेस के मदन मोहन दुबे, बंसल न्यूज की सुश्री कोमल शर्मा, यलगार टाई स के राजेश सक्सेना, अखंड दूत के रघुवीर प्रसाद मालवीय, राजकुमार सोनी, सीहोर के मुकेश पंवार, मधु संदेश के कृष्णकांत परवाल, नवीन सामाजिक शोध के राजेन्द्र सक्सेना, सिटी न्यूज के वैभव गुप्ता, मेहर विचार के संपादक यतीश बड़ोनिया को उनकी उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया गया। शाल, श्रीफल, स्मृतिचिन्ह, प्रशस्तिपत्र एवं पुष्पहार भेंट कर सम्मानित किया गया। समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले समाजसेवियों सर्वश्री ललित जैन, धर्मेन्द्र वर्मा, राधेश्याम अग्रवाल, रागिनी त्रिवेदी को भी इस अवसर पर गणेश शंकर विद्यार्थी समाजसेवी अलंकरण से सम्मानित किया गया।

    कार्यक्रम का शुभारंभ में अतिथिद्वय ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया। महासचिव रानी यादव एवं प्रेमा नेगी ने अतिथियों को बैच लगाये। संस्था अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण, सलाहकार मनमोहन कुरापा, कार्यक्रम सचिव दीपक शर्मा, सचिव अशोक द्विवेदी, नीतू गुप्ता, भावना सक्सेना, राज ठाकरे, मोहन माहेश्वरी ने अतिथियों का पुष्पहारों से स्वागत किया। अध्यक्ष ओम प्रकाश हयारण, कार्यक्रम सचिव दीपक शर्मा ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किये। आयोजन समिति के सर्वश्री आलोक सिंघई, विमल भंडारी, विवेक बजाज, मुकेश अवस्थी, श्याम हयारण, तनवीर कुरैशी, उपेन्द्र तोमर, रानी यादव, प्रेमा नेगी, समेत बड़ी संख्या में गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राजधानी के सुप्रसिद्ध उद्घोषक विमल भंडारी ने किया। आभार प्रदर्शन कार्यक्रम संयोजक दीपक शर्मा ने किया।

  • संवाद पर प्रश्न ही शाश्वत होते हैं और उत्तर बदलते रहते हैं-प्रभु जोशी

    विचारधारा का अंधविश्वास भटकाव पैदा करता है
    साहित्य पर्व के दूसरे दिन उपन्यास और कहानी पर सार्थक विमर्श

    भोपाल: 25 अक्टूबर/ विचारधारा, जीवन और कला का साझा मंच होती है। लेकिन विचारधारा जब अंधविश्वास में बदल जाती है तो जीवन की दिशाएं भी भटकने लगती हैं। विचारधारा एक सतत् प्रवाह चाहती है, उसका ठहर जाना जीवन दृष्टि का सीमित हो जाना है। संतोष चौबे का उपन्यास ‘क्या पता कामरेड मोहन’ विचारधारा के संघर्ष और सवालों के साथ जीवन जीने की नई इबारत गढ़ती है।

    इस आशय के उद्गारों के साथ रविवार की सुबह हिन्दी के महत्वपूर्ण कथाकारों और आलोचकों ने अपनी बेबाक राय जाहिर की। संतोष चौबे की षष्ठिपूर्ति के निमित्त आयोजित तीन दिवसीय ‘साहित्य पर्व’ के दूसरे दिन आईसेक्ट विश्वविद्यालय के सभागार में ‘‘कला और विचारधारा’’ विषय प्रख्यात कथाकार चित्रा मुद्गल, व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी के अलावा रोहिणी अग्रवाल, विनोद तिवारी, राहुल सिंह और राकेश मिश्र ने अपने सारगर्भित वक्तव्य दिए। प्रथम सत्र में संतोष चैबे के उपन्यास के संदर्भ में कला और विचारधारा पर केंद्रित रहा। युवा आलोचक अरुणेश शुक्ल ने अपने आधार वक्तव्य मंे चैबे जी के उपन्यास कला और उसमें उभरी जनपक्षधरता को रेखांकित किया। कथाकार मुकेश वर्मा ने विचारसत्र का संचालन किया। अतिथियों का स्वागत वनमाली सृजनपीठ के संयोजक विनय उपाध्याय ने किया। इस मौके पर संतोष चौबे ने उपन्यास को लेकर अपनी रचनात्मक दृष्टि और उसके कलात्मक पक्ष से जुड़ी बातें साझा कीं। उन्होंने बताया कि दो महत्वपूर्ण उपन्यासों पर उनका काम पूरा हो चुका है। शीघ्र ही वे पाठकों के बीच होंगे।

    सुप्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुदगल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि चैबे जी का उपन्यास ‘कामरेड मोहन’ हमारे समय की एक सार्थक बहस का सूत्रपात करता है। दरअसल जीवन और कला का एक साझा मंच ही विचारधारा है। इसे ठीक से समझने की जरुरत है। डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने सहज व सरल भाव में कहा कि अप्रिय सत्य बोलना चाहिए। हमारे साहित्य में व्याकरण भले ही कमजोर हो पर हमारा गणित बड़ा तगड़ा है।

    दूसरा सत्र समकालीन कहानी और नव यथार्थ पर केन्द्रित रहा। अध्यक्षता करते हुए सुश्री ममता कालिया ने कहा कि संतोष चैबे अपनी कहानियां अनौपचारिक तरीके से शुरु करते हैं और उसे पूरी तरह से खुली छोड़ देते हैं। कथाकार प्रभु जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि दोनों पीढ़ियों के दौरान संवाद पर प्रश्न ही शाश्वत होते हैं और उत्तर बदलते रहते हैं। आज जो लेखक कहानी कहता है या रचता है तो ये उसका इतिहास बयां करती है। फार्म में ही रुप (कथ्य) की रचना कर लेना ही उस रचना तक ले जाना है जहां आप उसे ले जाना चाहते हैं। हरिभटनागर, राकेश बिहारी, रमाकांत श्रीवास्तव, मनोज पांडे, भालचंद जोशी आदि ने संतोष चैबे की कहानियों के पहलुओं पर प्रकाश डाला। आधारवक्तव्य कथाकार मुकेश वर्मा ने दिया। सत्र संचालन पंकज सुबीर ने किया।

    शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में संतोष चौबे के जीवन पर केंद्रित लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद संतोष चौबे की बहुचर्चित कहानी गरीब नवाज़ का दिल्ली के संभव समूह द्वारा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक श्री देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में मंचन किया गया। नाटक के निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर को विशेष रूप से कहानियों के रंग प्रणेता के रूप में जाना जाता है। उनके कहानी मंचन के अंदाज ने साधारण कास्ट्यूम और न के बराबर प्राप्स में ही कहानी कहने के जुदा अंदाज को दर्शकों ने बहुत पसंद किया।

    इस नाटक में कार्पोरेट वर्ल्ड की चकाचौंध के बीच रहने वाले लोगों की मानसिकता के पिछडे़पन को दिखाया गया है। इसमें ऐसे उद्यमी विश्वनाथ की कहानी है। जिसने देश में पढ़ने के बाद अपने कॅरियर की शुरूआत अमेरिका की बड़ी कंपनी में की। घर बसने के बाद उसे महसूस होता है कि उसे बच्चे की अच्छी परवरिश और अच्छे संस्कार देश में ही मिल सकते हैं। देश वापसी की एक और वजह उनका शाकाहारी होना है अमेरिका का खान-पान विश्वास करने योग्य नहीं था। वे देश लौट जाते हैं पर यहां वे एक समस्या से परेशान हो जाते हैं उनके आॅफिस के सामने ही गरीब नवाज़ चिकन शॅाप खुल जाती है। जिससे वे परेशान हो जाते हैं। अब रोज-रोज चिकन कटते देखना काफी मुश्किलों भरा होता हैं पूरी कहानी इसी बात के इर्द-गिर्द घुमती है। यह कहानी बाजारवाद और नई सामाजिक राजनैतिक द्वंद्व को उजागर करती है।

  • साहित्य पर्व का रंगारंग आगाज, संतोष चौबे का सारस्वत अभिनन्दन

    भोपाल: 24 अक्टूबर/ बड़ी झील के किनारे स्थित कलाओं का घर भारत भवन का सुरम्य बहिरंग शनिवार की शाम देश के लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकारों और संस्कृतकर्मियों की आत्मीय उपस्थिति से गुलजार हुआ. मौका था कवि, कथाकार संतोष चौबे के षष्ठिपूर्ति प्रसंग पर आयोजित तीन दिवसीय साहित्य पर्व का. समारोह में डॉ धनन्जय वर्मा, चित्र मुदगल, ममता कालिया और लीलाधर मंडलोई की  भोपाल सहित प्रदेश के विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने कवि, कथाकार श्री संतोष चौबे का सारस्वत अभिनन्दन किया।

    आरम्भ में वनमाली सृजनपीठ के समन्वयक विनय उपाध्याय ने कवि कथाकार संतोष चौबे की सृजनात्मक यात्रा और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। इस गरिमामयी समारोह के पूर्व रंग में विहान ड्रामा वर्क्स के कलाकारों ने हेमंत देवलेकर और नितेश मांगरोले के संयोजन में रंग संगीत की प्रस्तुति दी. समारोह का आरम्भ डिवाइन स्माइल संस्था द्वारा मोहन शिंगड़े के संयोजन में नन्हें कलाकारों की चित्र प्रदर्शनी से हुआ.

    इस मौके पर कविता यात्रा की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति शैडो ग्रुप द्वारा नाट्य निर्देशक मनोज नायर के निर्देशन में हुई. इसमें सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, केदारनाथ सिंहपाश, नागार्जुन जैसे कवियों की रचनाओं की संगीतबद्ध प्रस्तुति दी गई. ये कविता यात्रा कविता के पिछले 70 वर्षों की यात्रा तो है ही, कविता के बहाने देश के 70 वर्षों की यात्रा पर एक नजर भी है. इसका संगीत निर्देशन संतोष कौशिक और परिकल्पना और आलेख संतोष चौबे का रहा. समारोह का संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।

    25 अक्टूबर को सुबह 10 बजे आईसेक्ट विश्वविद्यालय में संतोष चौबे के उपन्यास के संदर्भ में ”कला और विचारधारा“ विषय पर वैचारिक सत्र का आयोजन होगा। दोपहर 12.30 बजे श्री चौबे की कहानियों के संदर्भ में ”समकालीन कहानी और नव यथार्थ“ विषय पर विमर्श होगा। शाम को 6.30 बजे आईसेक्ट विश्वविद्यालय सभागार में संतोष चौबे की कहानी ”ग़रीब नवाज़“ का श्री देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में मंचन होगा।

    26 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से आईसेक्ट विश्वविद्यालय सभागार में संतोष चौबे की कविताओं के संदर्भ में ”विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता“ पर परिचर्चा होगी। दोपहर 12.30 बजे से ”अनुवाद की सामाजिकी“ विषय पर विशेषज्ञों का वक्तव्य होगा। शाम को 6.30 बजे संतोष चौबे की कविताओं की सांगितिक प्रस्तुति और बर्तोल्त बे्रख्त की कहानी पर संतोष चौबे द्वारा नाट्य रूपांतरित नाटक सुकरात का मंचन होगा।

  • साहित्य पर्व आज से, कविता यात्रा का मंचन, सृजनधर्मी रचनाकार संतोष चौबे का होगा अभिनंदन

    भोपाल: 23 अक्टूबर/ प्रसिद्ध सृजनधर्मी और रचनाकार श्री संतोष चौबे पर केंद्रित तीन दिवसीय साहित्य पर्व का आग़ाज़ 24 अक्टूबर को शाम 5.30 बजे भारत भवन के बहिरंग सभागार में हिन्दी के मूर्धन्य कवियों की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति ”कविता यात्रा“ से होगा। इस मौके पर विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा श्री चौबे का सारस्वत अभिनंदन किया जाएगा। समारोह में संस्था डिवाइन स्माइल के नन्हे चित्रकार भी रंग बिरंगी शुभकामनाएं श्री चौबे को देंगे।

    25 अक्टूबर को सुबह 10 बजे आईसेक्ट विश्वविद्यालय में संतोष चौबे के उपन्यास के संदर्भ में ”कला और विचारधारा“ विषय पर वैचारिक सत्र का आयोजन होगा। दोपहर 12.30 बजे श्री चौबे की कहानियों के संदर्भ में ”समकालीन कहानी और नव यथार्थ“ विषय पर विमर्श होगा। शाम को 6.30 बजे आईसेक्ट विश्वविद्यालय सभागार में संतोष चौबे की कहानी ”ग़रीब नवाज़“ का श्री देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में मंचन होगा।

    26 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से आईसेक्ट विश्वविद्यालय सभागार में संतोष चौबे की कविताओं के संदर्भ में ”विधागत वर्चस्व से होड़ लेती कविता“ पर परिचर्चा होगी। दोपहर 12.30 बजे से ”अनुवाद की सामाजिकी“ विषय पर विशेषज्ञों का वक्तव्य होगा। शाम को 6.30 बजे संतोष चौबे की कविताओं की सांगितिक प्रस्तुति और बर्तोल्त बे्रख्त की कहानी पर संतोष चौबे द्वारा नाट्य रूपांतरित नाटक सुकरात का मंचन होगा।

  • संतोष चौबे के सृजन पर एकाग्र होगा "साहित्य पर्व"

    उपन्यास, कहानी, कविता और अनुवाद के रचनात्मक पक्षों पर गहन विमर्श

    भोपाल: 18 अक्टूबर/ साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अनेक नयी दिशाओं का सृजन करने वाले लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार संतोष चौबे पर केंद्रित तीन दिवसीय "साहित्य पर्व" 24-25 और 26 अक्टूबर को आयोजित किया जा रहा है.वनमाली सृजन पीठ के संयोजन में राजधानी की साहित्यिक संस्थाओं के सहयोग से हो रहे इस सारस्वत समारोह को देश के मूर्धन्य लेखक-आलोचको की उपस्थिति वैचारिक गरिमा प्रदान करेगी। इस मौके पर संतोष चौबे के समग्र साहित्य को संजोते वृहद ग्रन्थ का लोकार्पण भी होगा।

    विमर्श सत्रों में संतोष चौबे के लेखन के सन्दर्भ में उपन्यास, कहानी, कविता और अनुवाद जैसी साहित्यिक विधाओं पर चित्रा मुदगल, ममता कालिया, धनञ्जय वर्मा, नरेश सक्सेना, विष्णु नागर, रमेश दवे, रोहिणी अग्रवाल, प्रकाश उप्रेती, लीलाधर मंडलोई, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रभु जोशी, तरुण भटनागर, शम्भनाथ मिश्र, अच्युतानंद मिश्र, राजेंद्र दानी, रामप्रकाश त्रिपाठी, मुकेश वर्मा, महेंद्र गगन, हरी भटनागर , विनय उपाध्याय, मोहन सगोरिया, अरुणेश शुक्ल, सविता भार्गव, उर्मिला शिरीष, रेखा कस्तवार सहित करीब दो दर्जन साहित्यकार अपने मंतव्य प्रकट करेंगे।

    विचार के सत्र सुबह 10 बजे  से राज्य पुरातत्व संग्रहालय के सभागार में होंगे। समारोह की तीनों शामे सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ मानव संग्रहालय के वीथी संकुल सभागार में 7 बजे होंगी जिनमे क्रमशः श्री चौबे द्वारा परिकल्पित और मनोज नायर द्वारा निर्देशित "कविता यात्रा", देवेन्द्र राज अंकुर निर्देशित बहुचर्चित कहानी "गरीब नवाज़" और चौबे द्वारा अनुवादित -नाट्य रूपांतरित ब्रेख्त की कहानी "सुकरात" का मंचन होगा।

    25 अक्टूबर की शाम कला संस्था "डिवाइन स्माईल" के बाल चित्रकारों द्वारा श्री चौबे की कविता "अम्मा का रेडियो" के सन्दर्भ में निर्मित चित्रों की प्रदर्शनी का शुभारम्भ होगा। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के क्रम में चौबे की चुनिंदा कविताओं की संगीत-प्रस्तुति संतोष कौशिक के निर्देशन में होगी।

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