सहाना घोष
थामसन रायटर्स रिसर्च एक्सलेंस-इंडिया साइटेशन पुरस्कार सूची में जगह बनाने वाली पहली महिला वैज्ञानिक वंदना भल्ला का कहना है कि भारतीय विज्ञान की पुरुष प्रधान दुनिया में महिला शोधार्थी का प्रवेश कर पाना आसान नहीं होता। इसकी वजह लैंगिक भेदभाव है। लेकिन, उनका यह भी कहना है कि इस मामले में ब्रिटेन और जापान की तुलना में भारत में स्थिति बेहतर है।
अमृतसर की वंदना भल्ला 16 सालों से शोध और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उनका मानना है कि शोध की दुनिया में महिला को जगह बनाने के लिए उसका बायोडाटा पुरुष शोधार्थी की तुलना में दो या तीन गुना बेहतर होना चाहिए।
लेकिन, उनका कहना है कि एक बार जगह मिल जाने के बाद कोई दिक्कत नहीं रह जाती है।
अमृतसर के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में रसायन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर भल्ला ने फोन पर आईएएनएस से कहा, "मुझे बताया गया है कि मैं सूची में जगह बनाने वाली पहली महिला हूं। सच में यह बेहद दुखद है (मतलब और महिलाओं को इसमें होना चाहिए था)। यह महिला वैज्ञानिक के लिए बहुत कठिन है। शोध का काम मुश्किल है। यह नौ से पांच बजे वाला काम नहीं है।"
हालांकि, इस क्षेत्र में समानता है लेकिन फिर भी जगह बनाने में उन्हें काफी दिक्कत हुई।
उन्होंने कहा, "दिक्कत इसलिए हुई क्योंकि करियर के शुरुआती दौर में नौकरी के लिए आवेदनों के मामले में पुरुषों को महिलाओं पर तरजीह दी जाती है। मैंने 1998 में पीएचडी कर ली थी, लेकिन सही नौकरी 2006 में जाकर मिली।"
भल्ला ने जापान में तीन साल पढ़ाई की है। वह अध्ययन के लिए दो बार ब्रिटेन भी जा चुकी हैं।
भल्ला ने कहा, "यह देखकर बहुत हैरानी हुई कि जापान में महिला शोधार्थी काफी कम हैं। जापानी महिलाओं को शोध कार्य के लिए प्रोत्साहित नहीं करते। लेकिन अब वे ऐसा करने लगे हैं। ब्रिटेन में प्रतियोगिता की वजह से महिला प्रोफेसरों की संख्या कम है। इस मामले में भारत की स्थिति बेहतर है।"
भल्ला ने कहा कि 130 पर्चो के प्रकाशन के बाद उन्हें इंडिया साइटेशन अवार्ड लिस्ट में जगह मिलने से सुकून का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि उनके काम को सराहा गया है।