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भारत-अफ्रीका सम्मेलन एक ऐतिहासिक अध्याय Featured

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

शीत युद्ध की समाप्ति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अप्रासंगिक होने के बाद भारत और अफ्रीकी देशों का आपसी संवाद न्यूनतम स्तर पर आ गया था। भारतीय विदेश नीति में इन देशों की अहमियत कम हो गई थी। दूसरी ओर चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अफ्रीका में अपनी गतिविधियां बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इन्होंने वैश्वीकरण व उदारीकरण की अर्थव्यवस्था में अफ्रीका को शामिल किया। अपने लाभ का इंतजाम किया। अफ्रीका प्राकृतिक संपदा की ²ष्टि से विविधतापूर्ण संपदा से भरा क्षेत्र है। अन्य प्रमुख देशों ने उसकी अहमियत समझी। भारत इस संबंध में बहुत पीछे रह गया, जबकि अफ्रीकी देशों के साथ हमारे ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। यहां आजादी की अलख महात्मा गांधी ने जगाई थी।

आज भी महात्मा गांधी यहां सर्वाधिक सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय महापुरुष माने जाते हैं। अनेक अफ्रीकी देशों में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। वहां की अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के लोगों का उल्लेखनीय योगदान है।

लेकिन पिछले एक दशक में इन देशों की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कमी को दूर करने का प्रयास किया। इस दिशा में इंडिया-अफ्रीका फोरम सम्मेलन को ऐतिहासिक पड़ाव माना जा सकता है।

अफ्रीका के बाहर इन देशों का इतना बड़ा सम्मेलन पहली बार हुआ। यह उपलब्धि भारत के खाते में दर्ज हुई। इसे अफ्रीकी देशों के साथ भारत के आर्थिक व व्यापारिक रिश्तों तक सीमित नहीं समझना चाहिए, वरन इसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का दावा भी मजबूत हुआ है। जिस देश की आवाज पर करीब पचपन देश एक मंच पर आ सकते हैं, वह वास्तव में सुरक्षा परिष्द की स्थायी सदस्यता का दावेदार है।

यह भी उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी देशों के आर्थिक क्षेत्र में चीन के प्रति नाराजगी देखी गई। चीन व अफ्रीका में सवा दो सौ अरब डॉलर का व्यापार है, लेकिन वहां यह धारणा बन रही है कि चीन अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। स्वास्थ्य के लिए खतरनाक वस्तुओं से बाजार को पाट देने में उसे कोई संकोच नहीं होता। ऐसी वस्तुओं के दाम कम होते हैं, लेकिन उसकी प्राय: सभी वस्तुएं स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव डालती हैं।

विश्व के कई देश उसकी असलियत को समझाने लगे हैं। यह स्थिति भारत के लिए अच्छी है। पिछली सरकार इस स्थिति को समझने में नाकाम रही। पिछले एक दशक में चीन को वहां सर्वाधिक हस्तक्षेप करने का अवसर मिला, जबकि करीब दो दर्जन अफ्रीकी देशों में भारत अपने राजदूत ही नियुक्त नहीं कर सका था। इससे जाहिर था कि अफ्रीका हमारी प्राथमिकता में नहीं था।

इन देशों को लगने लगा था कि भारत वैश्विक मामलों में समर्थन लेने के लिए ही उसकी ओर देखता है, लेकिन दिल्ली में हुए सम्मेलन ने इस अवधारणा को बदल दिया है। इस सम्मेलन के दूरगामी परिणाम क्या होंगे, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यहां से भारत और अफ्रीका ने अनेक मुद्दों पर एक साथ चलने का संदेश अवश्य दिया है। इससे दोनों को ही लाभ होगा।

चीन वहां अनेक परियोजनाएं चला रहा है। अब भारत भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है। सिंचाई, कृषि, विनिर्माण क्षमता, अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, ढांचागत विकास आदि अनेक क्षेत्रों में भारत अफ्रीकी देशों को सहयोग देगा। इन क्षेत्रों में अनेक योजनाएं चलाई जाएंगी।

अगले पांच वर्षो में रियायती दर पर दस अरब डॉलर के ऋण और साठ करोड़ रुपये की अनुदान सहायता भारत के द्वारा दी जाएगी। इसमें दस करोड़ डॉलर का भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य कोष शामिल है। शिक्षा के क्षेत्र में भी आपसी रिश्तों को मजबूत बनाया जाएगा।

भारत में अफ्रीकी देशों के छात्रों के लिए पचास हजार छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की गई है। इससे भारतीय व अफ्रीकी देश के छात्रों को एक-दूसरे के विचार-संस्कृति समझने का अवसर मिलेगा। सहयोग का क्षेत्र शिक्षा, शिक्षण संस्थान और विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रहेगा, वरन भारत विभिन्न अफ्रीकी देशों में सौ क्षमता निर्माण संस्थानों की स्थापना करेगा। स्थापित होने के बाद ये संस्थान व्यापक रूप से अपना कार्य करेंगे, जिसका लाभ अफ्रीकी आबादी के बड़े हिस्से को मिलेगा।

अफ्रीकी देशों में भारत की ही भांति सौर ऊर्जा की असीम संभावना है। ऊर्जा के परंपरागत स्रोत सीमित अवधि तक है। ऐसे में समय रहते और ऊर्जा जैसे विकल्पों पर काम करना होगा। इस ²ष्टि से भारत और अफ्रीकी देश साझा प्रयास कर सकते। यह अच्छी बात है कि सम्मेलन में सौर ऊर्जा का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। इससे भविष्य में भारत व अफ्रीकी देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना संभव हो सकेगा नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका में सौर ऊर्जा समृद्ध देशों के साथ एक गठबंधन में शामिल होने का आान किया।

इसी प्रकार सम्मेलन में अंतरिक्ष क्षेत्र के सहयोग पर भी सहमति बनी। भारत अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियां और प्रौद्योगिकी अफ्रीकी देशों को उपलब्ध कराएगा। भविष्य में समूचे अफ्रीका को ई-नेटवर्क से जोड़ने की डॉ. कलाम की कल्पना साकार हो सकेगी।

यह भी संयोग है कि अगले महीने नैरोबी में विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक होगी। सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा तथा कृषि सब्सिडी जैसे मुद्दों पर भारतीय विचारों को उचित माना गया। इसका प्रभाव व्यापार संगठन की बैठक में दिखाई देगा। जाहिर है कि भारत-अफ्रीका सम्मेलन केवल संख्या की दृष्टि से ही नहीं, वैचारिक व व्यापारिक आधार पर भी ऐतिहासिक तथा उपयोगी साबित हुआ।

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    नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। हर संस्कृति में त्योहारों का संबंध खाने-पीने से जुड़ा है और भारतीय त्योहार तो खासतौर पर स्वादिष्ट पकवानों के बिना अधूरे हैं। दिवाली की बात हो तो हम सभी के जहन में तुरंत स्वादिष्ट मिठाइयांे और इस मौके के लिए बनने वाले खास पकवानों का ख्याल आ जाता है।

    त्योहारों के मस्ती भरे माहौल और दोस्तों और रिश्तेदारों के मान-मनुहारों के बीच हम अपने आप को जरूरत से ज्यादा और हाई कैलोरी वाला खाना खाने से रोक नहीं पाते। लेकिन कहीं न कहीं वजन बढ़ने और सेहत चौपट होने की फिक्र भी साथ ही होती है, लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखकर आप भी त्योहारों का मजा बेफिक्र उठा सकते हैं।

    दिल्ली के डाइट एंड क्योर क्लीनिक की प्रमुख डाइटिशयन और न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. दिव्या गांधी और एससीआई इंटरनेशनल अस्पताल की न्यूट्रिशनिस्ट डॉ पारुल खन्ना के मुताबिक, कुछ खास बातों का ख्याल रखकर हम त्योहारों के उत्सवी माहौल का मजा बिना किसी फिक्र उठा सकते हैं।

    बनाएं दिन भर की योजना : त्योहारों के समय दोस्तों-रिश्तेदारों के घर आने-जाने के बीच काफी कैलोरीयुक्त व्यंजन खा लिए जाते हैं। इससे बचने के लिए बेहतर है कि पूरे दिन की योजना पहले ही बना लें। अगर रात को दिवाली की पार्टी में जाना हो तो अपने ब्रेकफास्ट और लंच को पहले से ही हल्का रखें और पार्टी में जाने से पहले कुछ हेल्दी स्नैक खा कर जाएं, ताकि पेट भरा रहे और हैवी, रिच खाने पर आप ज्यादा जोर न दें।

    घर में बनी मिठाइयां : बाजार में बनी मिठाइयों में काफी ज्यादा कैलोरी होती है। इसके अतिरिक्त इनमें कृत्रिम रंग और मेटानिल येलो, लेड नाइट्रेट, म्यूरिएरिक एसिड जैसे हानिकारक रसायन भी मिले हो सकते हैं जो कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। उत्सवी मौसम में आपूर्ति पूरी करने के लिए बाजार में दूध की जगह कॉर्न स्टार्च से भी पनीर बना लिया जाता है। बाजार की बनी मिठाइयों में आप सेहत के लिहाज से कुछ तब्दीली नहीं कर सकते। लेकिन घर में बनी मिठाइयों को आप स्वास्थ्य के अनुकूल बना सकते हैं।

    डॉ. दिव्या गांधी सलाह देती हैं कि घर में मिठाइयां बनाते समय सफेद चीनी या अप्राकृतिक मिठास डालने से बचें। इसमें आप खजूर, गुड़, शहद और अंजीर जैसी मिठास बढ़ाने वाली प्राकृतिक चीजों का प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही इन्हें बनाने के लिए स्किम्ड दूध का प्रयोग करें।

    स्वास्थ्यवर्धक स्नैकिंग : न्यूट्रिशनिस्ट पारुल कहती हैं, दिवाली जैसे त्योहारों के समय केवल मीठा ही ज्यादा नहीं खाया जाता बल्कि नमक और वसायुक्त चीजें भी काफी खायी जाती हैं। इन्हें एक स्वास्थ्यवर्धक ट्विस्ट देने के लिए पकाने के तरीके में बदलाव लाना भी एक अच्छा उपाय है। जैसे कि तलने कि जगह बेक करें। बेक की हुई चकली और पूड़ियां, कम वसा वाले खाखरा और भुना हुआ चिवड़ा जैसे विकल्प स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्यवर्धक भी हैं।

    भरपूर पानी : त्योहारों की भागदौड़ के बीच हम अकसर पर्याप्त मात्रा में पानी पीना भूल जाते हैं। कम पानी के कारण थकान और कमजोरी महसूस होती है क्योंकि यह शरीर में अन्य पोषक तत्वों के अवशोषण को बाधित करता है। लेकिन पानी की भरपाई मीठे शर्बत और एरियेटिड ड्रिंक्स से न करें। ये तेजी से वजन बढ़ाते हैं और सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। न्यूट्रिशनिस्ट सलाह देती हैं कि भागदौड़ के बीच प्यास लगने पर या उत्सवी पार्टी में शामिल होने पर इनकी जगह नींबू पानी, आइस्ड ग्रीन टी, टोमेटो जूस, जूस के साथ नारियल पानी या बिना क्रीम वाला सूप जैसे पेय लें।

    मात्रा पर नियंत्रण : खास व्यंजन खासतौर पर त्योहारों के मौके के लिए ही बनाए जाते हैं, इसलिए खुशियों के मौके पर आपको इनसे पूरा परहेज करना जरूरी नहीं है। आप इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं, बस इतना ध्यान रखें कि इन्हें बहुत ज्यादा मात्रा में न खाएं। अगर डिनर बुफे शैली का हो तो सबसे छोटी प्लेट ही चुनें और अपनी प्लेट को ज्यादा न भरें। कैलोरी युक्त व्यंजनों को केवल चखने तक ही सीमित रखें और ताजे फलों या मेवों से बने खाद्य पदार्थो का चुनाव करें तथा डिप्स व सॉस का प्राथमिकता दें।

    चुनें सेहतमंद विकल्प : उन मिठाइयों को उठाएं जो आपका मुंह मीठा करने के साथ ही आपकी सेहत के लिहाज से भी मीठी हों। मावे की मिठाइयों की जगह थोड़ी मात्रा में सूजी, गाजर, लौकी या फिर मेवों की मिठाई चुनें। इन मिठाइयों में गुलाब जामुन या खोए की अन्य मिठाइयों की तुलना में कैलोरी कम होती है और पोषक तत्व ज्यादा होते हैं। साथ ही चांदी की बर्क लगी मिठाइयों से भी परहेज करें। अल्यूमिनियम की मिलावट के कारण ये आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

    मिठाइयों की अवधि का रखें ध्यान : त्योहारों के समय में खुशियां मनाते हुए खाने-पीने में थोड़ी सी छूट जायज है, लेकिन उसके बाद आपको खुद अपने लिए कुछ सख्त नियम बनाने जरूरी हैं। ज्यादातर मिठाइयां खोए, दूध और क्रीम से बनी होती हैं। एक या दो दिन तक ही इनका स्वाद उठाया जा सकता है। इसके बाद इन्हें खाना सेहत के लिए खतरे को न्योता देने के बराबर है, क्योंकि दूध के उत्पादों से बनी होने के कारण इनमें फफूंद पैदा हो जाती है। इसलिए समय रहते ही अतिरिक्त मिठाइयां बांट दें और अपनी खुशियां दूसरों के साथ बांट कर खुशियों का मजा दुगना करें।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • चीन के राष्ट्रपति जी20, एपेक शिखर सम्मेलन में लेंगे हिस्सा
    बीजिंग, 9 नवंबर (आईएएनएस/सिन्हुआ)। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 और एपेक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे।

    शी अपने तुर्की के समकक्ष रिसेप तईप एडरेगन के निमंत्रण पर 14 से 16 नवंबर के बीच तुर्की के एन्तालया में जी20 शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने सोमवार को यह जानकारी दी।

    कांग ने कहा कि शी फिलीपींस के राष्ट्रपति बेनिग्नो एस.एक्विनो तृतीय के निमंत्रण पर 17 से 19 नवंबर तक मनीला में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) शिखर सम्मेलन में सदस्यीय देशों के नेताओं के साथ बैठक में शामिल होंगे।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • महिलाओं की जादू-टोने के शक में हत्याएं रोकने में कानून नाकाम

    नित्यानंद शुक्ला
    रांची, 9 नवंबर (आईएएनएस)। डायन बताकर महिलाओं की हत्या कर देने का सदियों पुराना अपराध झारखंड में आज भी जारी है। इसकी जड़ में कानून पर अमल में कोताही, ऐसे अंधविश्वास जिन्हें चुनौती नहीं दी जाती और भूमि विवाद हैं।

    बीते रविवार सरायकेला-खारसवान में सोसोकादा टोला में श्यामलाल मुंडा और उसके भाई राम सिंह मुंडा ने एक घर में घुसकर चार लोगों की हत्या कर दी। इनमें दो बुजुर्ग महिलाएं थीं।

    पुलिस के मुताबिक कुछ दिन पहले श्यामलाल के एक साल के बेटे की मौत हो गई थी। उसका कहना था कि जिन लोगों की उसने हत्या की है, उन्होंने काला जादू कर दिया था जिसकी वजह से उसका बेटा मर गया।

    हत्या के बाद दोनों भाई बुजुर्ग महिला का कटा हुआ सिर लेकर खुद थाने गए और अपना जुर्म कबूल लिया।

    ऐसी हत्याएं सामान्य बात हैं। 8 अगस्त को मंदर में पांच महिलाओं की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने मामले में 30 लोगों को पकड़ा जिनमें कुछ छात्र भी हैं। उनका कहना है कि हत्याओं का उन्हें कोई अफसोस नहीं है क्योंकि वे महिलाएं 'डायन' थीं।

    झारखंड सरकार ने 2001 में ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए कानून बनाया था और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इसके बावजूद राज्य में हर साल 30 से 50 महिलाओं की जादू-टोना करने के नाम पर मार डाला जा रहा है।

    झारखंड महिला आयोग की पूर्व सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता वासवी ने आईएएनएस से कहा, "इन हत्याओं की कई वजहें होती हैं। 2001 का कानून कमजोर है। इस सबके साथ भूमि विवाद के मामले अलग से हैं।"

    उन्होंने कहा कि कड़ी सजा के लिए कानून में संशोधन होना चाहिए। उन्होंने कहा, "महिलाओं की हत्या के लिए उकसाने वाले ओझाओं के लिए किसी दंड का प्रावधान नहीं है। हर जिले में एक जादू-टोना निषेध केंद्र होना चाहिए। जादू-टोने के मामलों को थानों में अलग से दर्ज किया जाना चाहिए और इनकी सुनवाई विशेष रूप से बनाई गईं त्वरित अदालतों में की जानी चाहिए। "

    कानून में प्रावधान है कि अगर किसी महिला को डायन कहा जाता है या जादू-टोने के नाम पर उत्पीड़ित किया जाता है तो आरोपी को तीन से छह महीने की सजा हो सकती है। राज्य महिला आयोग ने इस कानून को सख्त बनाने के लिए कई सिफारिशें की हैं लेकिन सरकार ने अभी इन पर कोई फैसला नहीं लिया है।

    आयोग की अध्यक्ष महुआ मांझी ने कहा, "हमें शिक्षा का स्तर सुधारना होगा। यहां तक कि कुछ डिग्रीधारी छात्र भी ऐसी घटनाओं में शामिल पाए गए हैं। यह शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाता है।"

    आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2014 में 44 महिलाओं को डायन बताकर मार डाला गया था। इस साल अब तक 46 महिलाओं को डायन बताकर मारा जा चुका है। 2001 का कानून बनने के बाद से 500 से अधिक महिलाओं को डायन बताकर मारा जा चुका है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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