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अगर आप औसत हैं तभी आप बेहतर हैं Featured

रवीश कुमार

अखिल भारतीय कर्मचारी आयोग बनाने का ख़्याल आ रहा है ।अगर आप इस तरह के कर्मचारी हैं तो प्रयास कीजिये कि बाकी भी आप जैसे हो जाएँ । अगर किसी दफ्तर में आप जैसे लोग न हों तो मैं दावे के साथ कर सकता हूँ कि वहाँ काम करने का कोई फ़न नहीं होता होगा, वहाँ की पोलिटिक्स बेकार होगी । आप ख़ुद को देखिये कि किस सूची में हैं । आप लोग जो दिन भर अपने अपने दफ्तर के क़िस्सों से मुझे पकाते रहते हैं, तो मैंने सोचा कि मैं भी बदला लूँ । आप सब के विवरण से जो श्रेणियाँ तैयार की हैं अगर आप भी उनमें से किसी एक में आते हैं तो मुझे माफ कर दीजियेगा ।

औसत कोई नहीं होता । औसत ही प्रतिभाशाली होता है । औसत बने रहना एक कला है । जो एम एफ हुसैन बनेगा उसे बाहर जाना होगा । औसत को कोई संकट नहीं होता । प्रतिभाशाली होना अपने आप में नैतिक संकट है । उस पर कई प्रकार के बोझ होते हैं । औसत वाक़ई में हल्का होता है। व्यावहारिक होता है । वो भले बोझ समझा जाता हो लेकिन बोझ तो वो हैं जो औसत को औसत समझते हैं ।औसत की प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए । यही कि कैसे औसत आदमी बचा रह जाता है । काम न करने के बाद भी उसी का काम सबको दिखता है । हर हाल में ख़ुश रहने की कला औसतन से सीख लेने में हर्ज नहीं । बिन मक़सद के काम किये जाने का धीरज लेकर हर काम के मक़सद से आज़ाद हो जाइये । औसत हो जाइये

बहुत काम करने वाले सबसे ज़्यादा काम बहुत काम करते हुए दिखने में करते हैं । वे ईमेल लिखने में बिजी रहते हैं। बॉस को बताने के लिए सारा प्लान तैयार रहता है कि क्या क्या किया जा सकता है। क्या क्या नहीं हो रहा है । समस्या का कारण तो ख़ुद होते हैं लेकिन समस्या का विश्लेषण सबसे अच्छा करते हैं । बहुत काम करने वालों की एक और खूबी होती है । वो अपनी क्षमता का प्रदर्शन इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि जहाँ काम करते हैं उस जगह पर उनके काम की अहमियत नहीं समझी जाती। बहुत काम करने वाले बहुत काम न करते हुए भी बहुत काम करते रहते हैं । काम करते हुए दिखते रहना भी बहुत काम करना है ।

तूफ़ान चाहे कैसा भी हो । हमेशा कुछ को बच जाने का फ़न हासिल होता है। कभी वे डेस्क टॉप के पीछे छिप जाते हैं, कभी दोस्तों के पीछे । कभी बॉस के पीछे । तूफ़ान आता है, चला जाता है। बल्कि बचते बचते ये भी तूफ़ान बनने लगते हैं । फिर लोग इनसे बचने के प्रयास में मारे जाते हैं । इनकी स्थिति स्थायी हो जाती है । जो इनसे बच गया वो तूफ़ान से बच जाता है ।

कुछ काम करने वाले काम करते हुए इस बात का ख़्याल रखते हैं कि दूसरी जगह के बॉस भी उनके काम को देखें। नियमित तरीके से मैसेज करते हैं । प्लीज देखियेगा । छोटा भाई हूँ । आपका आशीर्वाद देवतुल्य है । ये हमेशा दूसरी जगह के लोगों से कहने में माहिर होते हैं कि सर आपके साथ काम करने की तमन्ना है । हमारे सर पर भी हाथ रख दीजिये । दूसरी जगह का बॉस जिसे उसकी जगह के लोग कुछ नहीं समझते, ख़ुश हो जाते हैं। वो भी फेसबुक पर स्टेटस लिख देता है । ट्वीट कर देता है । महफिल में उसे पहचान लेता है । इससे काम करने वाला उस बॉस को दिखा देता है जिसके साथ वो काम करता है । एक नेटवर्क बन जाता है । वो यहाँ गंध फैलाने के बाद वहाँ गंध फैलाने चला जाता है ।

कुछ लोग हर काल और दफ्तर में चुप रहते हैं । वो बोलते नहीं है । न व्यवस्था के ख़िलाफ़ न व्यवस्था के प्रति । इन्हें सुनने की ग़ज़ब की क्षमता होती है । ये फेसबुक पर सिर्फ दो प्याली चाय और उगते सूरज की तस्वीर पोस्ट करते हैं जिस पर गुड मार्निंग लिखा होता है । इनका मक़सद दुनिया को बदलना नहीं होता है । ये जैसा चल रहा है वैसा चलने दो के घोर समर्थक होते हैं । बल्कि वैसा नहीं चला तो ये अलग चलने वाले को वैसा बना देते हैं । इन्हें सब मालूम होता है लेकिन पूछने पर मुस्कुराते हैं । इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता क्योंकि इनका किसी से बिगाड़ नहीं होता । ये आदेश को ऐसे पचा जाते हैं जैसे होली में पुआ ही न खाया हो । इनसे आदेश का सोर्स कोई पता नहीं कर सकता । सिस्टम को सिस्टम बनाने में इनका बड़ा योगदान होता है ।

कुछ लोग अलग होते हैं । वे दूसरे को बताने में लगे रहते हैं कि कैसे प्रतिभाशाली बनें । नए लोगों को भी समझ आ जाता है कि प्रतिभा विकसित करने का फ़न किसे हासिल है । इसी के साथ साथ वो बताने लगता है कि कैसे उसकी प्रतिभा को मौका नहीं मिला फिर भी वो दूसरे की प्रतिभा के विकास में लगा है । दफ़्तरों में दबे शोषण दमन के क़िस्सों से सचेत करते करते ये नए को पुराना कर देते हैं । आगत को लगता है कि वो कई साल पहले आ चुका था । उसे रोना आता है कि इतना नाम सुना था । अब पता नहीं क्या होगा ।

कुछ लोग झोला ढोने के फ़न में माहिर होते हैं । वो हमेशा किसी शक्तिशाली के साथ नज़र आते हैं । साथ नज़र आ सकें इसलिए सबसे पहले पहुँच जाते हैं । ये अपना काम नहीं कर पाते हैं क्योंकि शक्तिशाली के काम को जनजन तक पहुँचाने के काम में ही सारा वक्त निकल जाता है । लेकिन समय निकाल कर रीतिकाल के रात्रिकाल चित्रण पर कुछ लिख देते हैं । शक्तिशाली लोग ऐसे लोगों की पहचान में सारा जीवन बिता देते हैं । वे खोज खोज कर इन्हें तैनात करवाते हैं । हर विभाग में ऐसे लोगों के भरोसे हमारा देश चलता है । ये लोग अपने बॉस के लिए कहीं भी चले जाते हैं । पुरस्कार समारोह या उनकी भांजी की सालगिरह । इन सबका स्वेटर या तो भद्दा होता है या बेहूदा चटख । ये हमेशा शक्तिशाली के आगे दयनीय लगने के फ़न में माहिर होते हैं । नौकरी पा लेने की कला का प्रशिक्षण इन्हीं सबसे लिया जाना चाहिए ।

कुछ लोग जड़ता के सिद्धांत के विरोधी होते हैं । ये सड़ना नहीं चाहते हैं । कुछ नया करना चाहते हैं । पहले कभी नया कर नहीं पाते लेकिन नया करने की चाहत छोड़ भी नहीं पाते । इन्हें चैलेंज चाहिए होता है जबकि ये ख़ुद चैलेंज हो जाते हैं । ये ताक में रहते हैं कि कैसे किसी मौके पर जल्दी पहुँच जायें । छुट्टी के दिन आ जायें और आ जायें तो जाये ही न । इस भारी त्याग के दम पर वे तमाम वरदान हासिल कर लेते हैं ।

लोगों का यह प्रकार सबसे अनोखा होता है । ये किसी भी विभाग में काम करते हों लेकिन ध्यान अकाउंट में रहता है । कौन सी स्कीम आई तो उनके लिए नहीं आई । तनख़्वाह बढ़ोत्तरी की पल पल की ख़बर रखने में माहिर होते हैं । किस काम का बजट क्या होता है । उसी काम के लिए दूसरे दफ्तर का बजट क्या होता है । दफ्तर आर्थिक संकट में है या बम बम है इन सब बातों की जानकारी न मिले तो इनका भोजन पच नहीं पाता । एक एक पैसे का हिसाब से अकाउंट डिपार्टमेंट से ज़्यादा रखते हैं ।

कई लोग ऐसे होते हैं जो पद के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं । उनका पदनाम क्या है और अगला क्या है इसकी विवेचना में सारा जीवन निकाल देते हैं । आप इनसे बात कर आहत हो जायेंगे कि कैसे इनके जैसे सीनियर को बाइपास कर कल के आए जूनियर को काम दे दिया गया है । इनकी बातचीत का संसार सीनियर जूनियर में ही बँटा होता है । ये पदनामों को बहुत गंभीरता से लेते हैं । बॉस का राशिफल देखकर आते हैं और अपनी तरक़्क़ी के लिए वैष्णों देवी या दरगाह शरीफ़ जाते हैं । जब तक सचिव न लग जाए, निर्देशक न लग जाए इन्हें नौकरी योग का मोक्ष नहीं मिलता । ये लोग प्रमोशन की पार्टी या मिठाई ज़रूर खिलाते हैं । ससुराल में सबसे पहले फोन करते हैं । तनख्वाह किसी को नहीं बताते । न पिता को न ससुर को !

कुछ लोग होते हैं जो सबको देख मुस्कुराते हैं । कुछ लोग होते हैं जो किसी को देख नहीं मुस्कुराते हैं । उनकी मुद्रा से टपकता रहता है कि काम करने की प्रेरणा अगर कोई है तो यहीं हैं यही हैं । एक टाइप और है । यह चाय सिगरेट का ब्रेक लेता रहता है । ये न हों तो दफ्तर के बाहर चाय की दुकान का रौनक़ ख़राब हो जाता है । ऐसे लोगों से मित्रता रखिये । आफिस पोलिटिक्स के सबसे अच्छे साथी होते हैं । रही बात काम की बात तो याद कीजिये कि आपने कितनी बार कहा होगा । यही कि काम भी करके देख लिया, यहाँ काम करने से कुछ नहीं होता !

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About Author

रवीश कुमार

रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार है तथा सरोकारी पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं. ये लेख रवीश कुमार के ब्लॉग 'कस्बा' से साभार लिया गया है.

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