प्रभुनाथ शुक्ल
पाकिस्तानी नागरिक और गीतकार अदनान सामी की भारतीय नागरिकता बहस का मसला बन गई है। मीडिया से लेकर आम लोगों तक में यह डिबेट चल रहा है कि क्या सामी को भारतीय नागरिकता दिया जाना उचित था? देश और उसकी सरकार के पास ऐसी क्या मजबूरी रही कि सामी को नागरिकता देने में जरूरत से अधिक उतावलापन मोदी और उनकी सरकार ने दिखाया? हमने माना कि भारतीय संस्कृति बेहद उदार और असहिष्णु है। इसकी सहिष्णुता की तुलना नहीं की जा सकती है, लेकिन अदनान की नागरिकता से देश को क्या लाभ होने वाला है।
भारत की नागरिकता पाने के बाद सामी ने तिरंगे के साथ ट्वीट किया और जयहिंद बोला। उन्होंने कहा कि भारत में असहिष्णुता नहीं है। अगर यहां ऐसा होता तो हम यहां की नागरिकता नहीं लेते, हम यहां सुकून महसूस करते हैं। क्या मोदी और उनकी सरकार अदानान सामी को भारत की नागरिकता देकर उनसे यह सर्टीफिकेट लेना चाहती थी कि भारत में असहिष्णुता नहीं है, इसे वैश्विक मंच पर केवल बदनाम किया जा रहा है।
क्या वह मुस्लिम देशों और अल्पसंख्यकों में अपनी छवि को बेहतर बनाना चाहती है कि मोदी को केवल बदनाम किया जा रहा है। वह और उनकी सरकार मुस्लिम विरोधी नहीं है और न ही भारत में असहिष्णुता है।
मोदी ने अपनी सिटीजन डिप्लोमैसी से सामी को नागरिकता दिलाकर क्या यह साबित करना चाहते हैं कि शाहरुख और आमिर खां ने जो बयान दिया वह बेहद तथ्यहीन है और भाम्रक है? आमिर की पत्नी को भारत में डर लगता है। लेकिन देखिए एक पाकिस्तानी नागरिक भारत को गले लगा रहा है। वह भी रुपहले पर्दे की दुनिया से जुड़ा है। उसे भारत में कहीं भी असष्णिुता नहीं दिखती है, क्योंकि जिस तरह सामी की नागरिकता पर जल्दबाजी दिखाई गई है, उससे यह साबित होता है कि पीएम मोदी असहिष्णु छवि को लेकर काफी चिंतित हैं।
पिछले महीने जब वे लंदन गए थे तो वहां भी भारतीय मूल के मूर्तिकार अनीश कपूर ने भारत के शासन की तुलना तालिबान से की थी। उन्होंने भी असहिष्णुता का राग अलापा था, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी को खुद सफाई देनी पड़ी थी।
सामी की नागरिकता के पीछे मोदी की दूसरी कूटनीति भारत-पाक रिश्तों को लेकर भी दिखती है, क्योंकि हाल के दिनों मंे जिस तरह दोनों देशों के संबंधों में अच्छे रिश्ते को लेकर प्रवाह दिखा है, उसी की कड़ी में इसे भी देखा जाना चाहिए, क्योंकि अचानक विदेश यात्रा के दौरान मोदी का सीधे नवाज शरीफ की भतीजी की शादी में पाकिस्तान जाना और बाद में विदेश सचिव स्तर की वार्ता मोदी की कूटनीति का एक हिस्सा थी।
ऐसी स्थिति में मोदी सामी को भारतीय नागरिकता देकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह दिखाने की कोशिश की है कि वे पाकिस्तान से हर स्थिति में बेहतर संबंध चाहते हैं, लेकिन पाकिस्तान ही ऐसा नहीं चाहता है। हालांकि मोदी की ओर से यह सब किया धरा पठानकोट के आतंकी हमले ने धो डाला है, जिससे अदनान की नागरिकता पर मोदी सरकार घिर गयी है और उस पर सवाल दर सवाल उठ रहे हैं।
इतिहास गवाह रहा है कि जब-जब भारत-पाकिस्तान के राजनयिकों ने अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश की है, उस स्थिति में भारत पर बड़ा आतंकी हमला हुआ है। वह चाहे कारगिल युद्ध हो या गुरुदासपुर और पठानकोट का हमला। सामी की नागरिकता को लेकर कई तरह के और सवाल उठने लगे हैं। पाकिस्तान से आए 300 से अधिक लोग भारतीय नागरिकता को लेकर परेशान हैं लेकिन उन्हें अभी तक यह नागरिकता नहीं मिली है।
सवाल उठता है कि इन्हें देश की सरकारों ने नागरिकता क्यों नहीं उपलब्ध कराई। 1998 से ही कई हिंदू परिवार भारत में शरण लिए हुए हैं उनके टूरिस्ट वीजा की अवधि भी खत्म हो चली है। पासपोर्ट एक्सपायर हो चुके हैं, लेकिन उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं दी गई। काफी संख्या में पाकिस्तानी हिंदू भारत में अपनी जिंदगी भी बसा चुके हैं। कई पाकिस्तानी महिलाएं भारत के नागरिकों से शादियां भी कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें अभी तक भारतीय नागरिक का दर्जा नहीं मिला है। सबसे अधिक ऐसे लोग पठानकोट में रह रहे हैं।
सामी को नागरिकता मिलने के बाद हिंदू और मुस्लिम परिवारों ने मोदी की इस नीति पर सवाल उठाए हैं। सरकार से यह जबाब भी मांगा है कि सामी से इतनी दिल लगी क्यों। यह भी मसला आया है कि जिस अदनान सामी को देश की नागरिकता दी गई है, उनके पिता अरशद सामी ने भारत पाकिस्तान युद्ध में कई टैंक तोड़कर भारतीय सेना के लिए मुसीबत खड़ी की थी। फिर ऐसे व्यक्ति को देश की नागरिकता क्यों दी गई? इसका जबाब शायद सरकार के पास न हो, अगर होगा भी तो उतना सटीक नहीं।
चलिए थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाए की सामी के पिता अरशद एक सैनिक थे। उनका देश के लिए लड़ना एक फर्ज था। लेकिन बांग्लादेशी मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत की नागरिकता क्यों नहीं मिली। उनकी तरफ से 2010 से भारत सरकार से स्थायी नागरिकता की मांग की जा रही है।
सामी और तस्लीमा में क्या फर्क है? वह एक साहित्यकार हैं और सामी एक गीतकार हैं। दोनों साहित्य और कला से जुड़े हैं। सामी ने पेशेवर नजरिए से भारत की नागरिकता ली है। उनकी नागरिता के पीछे उनका भारत प्रेम कम फिल्मी कैरियर और गीत संगीत अधिक है, क्योंकि सामी का लगाव भातरीय हिंदी फिल्मों से अधिक है।
यहां उनके लिए कैरियर का विशाल पृष्ठ है। इसके पीछे उनका व्यवसायिक हित है। जबकि तस्लीमा की नाागरिकता के पीछे ऐसी बात नहीं है। तस्लीमा एक महिला हैं और वह भी इस्लामिक कट्टर पंथियों की ओर से उन्हें कथित ईश निंदा करने पर मौत का फतवा जारी किया गया है। वह बंग्लादेश से निर्वासित हैं।
भारत जिस पाकिस्तान से बंग्लादेश को अलग करा सकता है, उसे स्वतंत्र देश घोषित कर सकता है, उसी देश की निर्वासित एक लेखिका को नागरिकता क्यों नहीं दे सकता है?
इससे यह साफ जाहिर होता है कि सामी की नागरिता मोदी और उनकी सरकार की कूटनीति है। सरकार सामी की नागरिकता से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठे अहिष्णुता के अफवाहों को डैमेज कंटोल करना चाहती है और वैश्विक देशों को यह संदेश भी देना चाहती है कि पाकिस्तान से वह अच्छे संबंध बनाना चाहती है, लेकिन पाकिस्तान इसके लिए खुद तैयार नहीं है। वह सिर्फ पीठ में छुरा घोंपना चाहता है और भारत में असहिष्णुता का नहीं है उसे केवल बदनाम किया जा रहा है।
मोदी की यह डिप्लोमैसी भले सफल रही हो, लेकिन इससे भारत-पाक के संबंध सुधरने वाले नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)