कुंवर अशोक सिंह राजपूत
लखनऊ, 20 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। बिहार की तर्ज पर मुलायम और मायावती से दूरी बनाए रखकर गैर-भाजपा महागठबंधन की औपचारिक शुरुआत देश और उत्तर प्रदेश में जल्दी ही होने की संभावना है।
गैर-भाजपा महागठबंधन को उत्तर-प्रदेश में बड़ी पहचान देने के क्रम में शरद यादव और नीतीश कुमार की अगुवाई वाला जनता दल-युनाइटेड (जद-यू) अप्रैल में वाराणसी में रैली कर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान की औपचारिक शुरुआत करेगा। उप्र में जद-यू की रैली का श्रीगणेश प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 10 अप्रैल को होना है।
जद-यू दूसरे क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को साथ लेकर नया राजनैतिक दल 'जन विकास पार्टी' के नाम से गठन की तैयारी कर रहा है। जानकारों के अनुसार, नया राजनैतिक दल और गठजोड़ अप्रैल में अस्तित्व में आ सकता है।
बिहार में भाजपा और राजग को जोरदारी से चुनावी पटखनी देने के बाद उत्तर प्रदेश में पहली राजनैतिक जुटान और जनसभा वाराणसी में आयोजित हो रही है। इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जद-यू प्रमुख शरद यादव शामिल होंगे। वाराणसी की रैली में विशेष और महत्वपूर्ण उपस्थिति राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) प्रमुख पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की होगी।
वाराणसी में 10 अप्रैल की रैली के बाबत बातचीत में जद-यू नेता ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा भाजपा की शह पर की गई 'राजनैतिक गफलत' के बाद मुलायम गैर-भाजपा महागठबंधन के लिए अवांछित और अविश्वसनीय हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनावों के मद्देनजर प्रारंभिक यात्रा में रालोद जदयू मोर्चे का साझीदार हो जाएगा।
नए राजनैतिक जुटान में दूसरे बड़े साझीदार झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख बाबूलाल मरांडी भी शामिल हो रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, इन पार्टियों के बीच विलय की संभावना भी है। विलय के बाद इसे जन विकास पार्टी नाम दिया जा सकता है। इसका झंडा जद-यू, रालोद और झाविमो के झंडों में से हरा, सफेद और पीला रंग से साझा तीन रंगों वाला होगा। नई पार्टी या मार्चा में शामिल दलों का कांग्रेस के साथ राजनैतिक यात्राएं पहले भी रही हैं, इसलिए कांग्रेस से भी राजनैतिक गठबंधन के असार हैं।
चौधरी अजित सिंह पर जद-यू के विश्वास का कारण विगत फरवरी में उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन सीटों के उपचुनावों में जद-यू ने चुनाव न लड़कर फैजाबाद, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में रालोद के प्रत्याशियों को समर्थन दिया था। हालांकि उपचुनावों में रालोद के प्रत्याशियों को जीत नहीं मिली थी।
जद-यू और कांग्रेस पार्टी बिहार में राजनैतिक गठजोड़ कर चुनावी सफलता पा चुके हैं और कांग्रेस नीतीश कुमार की सरकार में शामिल भी है, इसके बावजूद कांग्रेस जद-यू की अगुवाई को सहजता से शायद ही स्वीकार करे। कांग्रेस सीटों की संख्या और सीटों के तालमेल में अपना दखल ज्यादा रखेगी।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अलग रंग दिखाएगी, यह साफ से दिख भी रहा है, क्योंकि हाल की लखनऊ यात्राओं और बैठकों में कांग्रेस उप-प्रमुख राहुल गांधी ने अपने पार्टीजनों और कार्यकर्ताओं को उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनने का भरोसा जोरदार तरीके से दे दिया है। ऐसे में जद-यू खेमा रालोद की राज्य के पश्चिम में 70-80 सीटों पर जाट मतदाताओं के बीच चौधरी अजीत सिंह की असरकारी और मजबूत पकड़ को देखते हुए उन्हें अधिक महत्व देने को विवश है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में प्रभाव रखने वाली पीस पार्टी और अपना दल भी नए गठजोड़ में साझीदार हो सकते हैं।
नीतीश और अजित की वाराणसी में साझा रैली के बाद रालोद गैर-भाजपा महागठबंधन या मोर्चे का औपचारिक हिस्सा हो जाएगा। अप्रैल-मई तक रालोद का जद-यू के साथ पूरे तौर से विलय की संभावना है। प्रारंभिक बातचीत के दौरों के बाद रालोद के जद-यू में मिलने के लिए बने ब्लू-प्रिंट के अनुरूप जद-यू को अजित सिंह को बिहार से राज्यसभा में पहुंचाना होगा और राज्यसभा के लिए चुनाव जून में होना है। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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