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रोशनी पाने की चाहत में अंधेरे के मुहाने पर Featured

संदीप पौराणिक

मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में एक लापरवाही ने आधा सैकड़ा से अधिक गरीबों को रोशनी पाने की चाहत में अंधेरे के मुहाने पर लाकर छोड़ दिया है। इन गरीबों की जिंदगी कभी रोशन हो पाएगी या अंधेरे में ही कटेगी यह कोई नहीं जानता है, हां इतना जरूर हुआ है कि सरकारी सुविधाओं की हकीकत सामने आ गई है।

बड़वानी जिले में सरकारी अस्पताल में बीते माह मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर लगा, इस आदिवासी अंचल के गरीबों (अधिकांश आदिवासी) को लगा कि मुफ्त में उनकी आंखों को रोशनी मिल जाएगी, यही कारण था कि इस शिविर में 86 बुजुर्गो ने अपनी आंखों के ऑपरेशन करा डाले। ऑपरेशन होने तक तो उन्हें थोड़ा बहुत दिखाई देता था, लेकिन ऑपरेशन के बाद तो अधिकांश मरीजों की आंखों के सामने धुंधला छाया हुआ है।

कुछ मरीजों ने ऑपरेशन के दूसरे दिन ही खुजली और दर्द की समस्या से अस्पताल पहुंचकर चिकित्सक को बताया, लेकिन चिकित्सकों ने उनकी बात को सामान्य करार देते हुए पांच दिन की दवा दे डाली। उसके बाद इन मरीजों को राहत मिलना तो दूर समस्या और बढ़ती गई। मरीजों को बाद में इंदौर रेफर करना पड़ा। बीते तीन दिनों में 40 से ज्यादा मरीज इंदौर के अरविंदो और एमवायएच अस्पताल में उपचार को पहुंच चुके हैं।

मरीजों को क्या हुआ है, इसका जवाब संयुक्त संचालक (चिकित्सा) डा. शरद पंडित के पास सिर्फ संक्रमण है और यही बात सरकार के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं। मगर कितने मरीजों की आंखों की रोशनी गई है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। स्वास्थ्य विभाग से लेकर सरकार तक इस बात को बताने से हिचक रही है, कि आखिर कितने मरीजों की आंख अब कभी ठीक नहीं हो पाएगी।

पूर्व नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विधायक अजय सिंह ने बड़वानी के आंख फोड़वा-कांड को स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही करार देते हुए स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा से इस्तीफे की मांग की है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश की जिस जनता को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना भगवान बताते हैं, उसकी स्थिति कीड़े-मकोड़े जैसी हो गई है। पेटलावद हादसे में 100 से अधिक लोगों की मौत, बड़वानी में 40 से ज्यादा लोगों की आंखों की रोशनी छिनना और किसानों की आत्महत्या वास्तविकता को बयां करता है।

आखों के ऑपरेशन में लापरवाही उजागर होने पर सरकार ने सक्रियता दिखाई और चिकित्सक डा.आऱ एस़ पलोद सहित छह लोगों को निलंबित कर दिया है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री चौहान ने प्रभावित रोगियों के बेहतर उपचार के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही अस्पतालों के सभी आपरेशन थियेटर्स का तत्काल इन्फेक्शन ऑडिट कराने और कोई कमियां हो तो उन्हें अविलंब दूर करने के निर्देश दिए हैं।

चिकित्सा जगत से जुड़े चिकित्सकों की मानें तो उनका कहना है कि जब मरीजों ने खुजली सहित अन्य समस्याएं बताई थी, तब इसे गंभीरता से लिया जाता और मरीजों की आंखों का परीक्षण किया जाता तो हो सकता है कि इस स्थिति में पहुंचने से बचा जा सकता था। अब जिन मरीजों की आंखों में मवाद आ रहा है, उनकी आंखों की रोशनी लौट पाना आसान नहीं है।

सवाल उठ रहा है कि क्या चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों के निलंबन से प्रभावितों की आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी अथवा उनकी जिंदगी में छाने वाले अंधेरे को किसी तरह दूर किया जा सकेगा या सिर्फ यह रस्म अदायगी है, जिससे जनता में गुस्सा न पनपे।

About Author

संदीप पौराणिक

लेखक देश की प्रमुख न्यूज़ एजेंसी IANS के मध्यप्रदेश के ब्यूरो चीफ हैं.

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  • रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की हर्बल दवा होगी दुष्प्रभाव रहित
    नई दिल्ली, 7 दिसम्बर (आईएएनएस)। युवा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी और दुष्प्रभाव रहित दवा तैयार कर रही है। वैज्ञानिकों को बहुत जल्द यह दवा विकसित कर लेने की उम्मीद है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस जोड़ों की एक गंभीर समस्या है, जिसके प्रभावी उपचार के बहुत कम विकल्प उपलब्ध हैं। भारत में एक करोड़ से अधिक लोग इस ऑटोइम्यून बीमारी से पीड़ित हैं। इसमें शरीर की रक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊत्तकों के खिलाफ काम करने लगती है।

    एक टॉक्सिकोलॉजिस्ट और टीम के प्रमुख शोधकर्ता अंकित तंवर ने कहा कि उन्होंने रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के लिए सबसे प्रभावी जड़ी बूटियों की खोज करने के लिए डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) और जामिया हमदर्द की मदद से इस परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया है।

    राष्ट्रीय राजधानी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली में चल रहे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (आईआईएसएफ 2015) में युवा वैज्ञानिकों के सम्मेलन में तंवर ने दावा किया कि उन्होंने रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की अधिक कारगर दवा बनाने के लिए अनुकूल जड़ी बूटियों की खोज करने के लिए दुनिया में पहली बार एक गणितीय मॉडल विकसित किया है।

    तंवर ने कहा कि टीम ने विभिन्न देशों और भारत के विभिन्न भागों से 50 संभावित प्रभावशाली जड़ी बूटियों की पहचान की और उनमें से 11 को चुना।

    जामिया हमदर्द, दिल्ली के मेडिकल एलिमेंटोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के सहयोग से टीम अब स्तनधारी मॉडल पर अपनी हर्बल औषधि का परीक्षण करने के लिए काम कर रही है।

    अब तक के परिणाम से पता चला है कि यह नया उत्पाद न सिर्फ रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की रोकथाम और इलाज कर सकेगा, बल्कि किसी भी संभावित संक्रमण से देखभाल भी करेगा। साथ ही यह गंभीर रोगियों के इलाज में भी कारगर साबित होगा।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के गंभीर मामले में जोड़ों में जलन के साथ अत्यधिक दर्द, जोड़ों में क्षति और हड्डियों में तेजी से नुकसान के कारण रोगी को अत्यधिक तकलीफ होती है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस रोग के पनपने से वर्षो पहले इसके प्रति संवेदनशीलता का पता लगाना संभव है। इसका अर्थ यह है कि सही दवा उपलब्ध होने पर इसके प्रति संवेदनशील व्यक्ति में इसकी शुरुआत को कई वर्षो तक टाला जा सकता है। साथ ही बीमारी का अच्छी तरह से इलाज भी किया जा सकता है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के विकास को रोकने के लिए दर्द निवारक, स्टेरॉयड और संशोधक दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल करके ऑटोइम्युनिटी को दबाने और जोड़ों को बाद में होने वाले क्षय से सुरक्षा देने के अवांछित प्रभाव हो सकते हैं। इससे ऑटोइम्युनिटी को दबाने से संबंधित संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। इस स्थिति के लिए हर्बल दवाओं के एक गैर विषैले और प्रभावी उपचार की खोज की जा रही है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • अब गुड़ से बनेंगे चॉकलेट
    नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। गुड़ से बने स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरे चॉकलेट, जल्द ही बाजार में मिलने लगेंगे और आपके घरांे के रेफ्रिजरेटर में भी मौजूद होंगे। शोधकर्ताओं का एक समूह इस दिशा में काम कर रहा है। ये चॉकलेट मधुमेह से ग्रस्त लोग भी खा सकते हैं।

    आम तौर पर चॉकलेट में काफी मात्रा में कोका, दुग्ध पाउडर, मक्खन, परिष्कृत शक्कर और अधिक कैलोरी वाले स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ होते हैं। हालांकि ये बहुत अधिक कैलोरी के होते हैं लेकिन इनमें काबोहाइड्रेड एवं प्रोटीन नगण्य होते हैं। चॉकलेट में बहुत कम पौष्टिकता होती है क्योंकि इनमें घटक के रूप में परिष्कृत शक्कर मिलाया जाता है। चॉकलेट के कारण दांत खराब होने, दांत में कैविटी होने तथा मधुमेह होने जैसी समस्याएं एवं बीमारियां होने के खतरे होते हैं।

    राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान के खाद्य प्रोद्योगिकी विभाग की श्वेता एम. देवताले ने कहा, "परिष्कृत शक्कर के स्थान पर हम विभिन्न तरह के गुड का उपयोग करते हैं। पिघले हुए गुड़ में हम स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ के तौर पर कॉफी/कोको पाउडर का इस्तेमाल करते हैं, ताकि इसे स्वादिष्ट बनाया जा सके। इसके अलावा स्वास्थ्य लाभ के लिए इसमें पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं।"

    आईआईटी दिल्ली में पांच दिवसीय विज्ञान मेले में शोधकर्ताओं के एक दल का नेतृत्व कर रही देवताले ने एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, 'जैगरी डिलाइट : ए हेल्दी सबस्टीच्यूट फॉर चॉकलेट।'

    उन्होंने कहा कि चॉकलेट महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त विभिन्न प्रकार के गुड़ का उपयोग करके तैयार किए गए हैं। कोल्हापुरी गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए राज्य में सबसे लोकप्रिय है। भारत में दुनिया के कुल गुड़ उत्पादन का 70 प्रतिशत उत्पादन होता है।

    उन्होंने कहा, "हमने तरल गुड़, जैविक ठोस गुड़, नारियल पौधों के रस से बनाये गए गुड़, खजूर और ताड़ के पौधों के रस से बनाए गए गुड़ और पाउडर गुड़ जैसे विभिन्न प्रकार के गुड़ का इस्तेमाल करके चॉकलेट बनाया है। गुड़ से बनाए जाने वाले स्वादिष्ट चॉकलेट में कच्चे माल के रूप में मक्खन/कोको बटर सबस्टीट्यूट, इमल्सीफायर के रूप में सोया लेसितिण, कोको पाउडर, वसायुक्त दुग्ध पाउडर और कॉफी पाउडर मिलाए जाते हैं।"

    विश्लेषण और प्रयोगात्मक कार्य खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर; केंद्रीय एगमार्क प्रयोगशाला, नागपुर; और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, नागपुर के द्वारा एक साथ मिलकर किया गया था।

    उन्होंने कहा, "गुड़ के इस्तेमाल से बनाए गए चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अत्यधिक स्वीकार्य पाया गया था। इसे कम पोषण और कुपोषण से निपटने के लिए हेल्थ सप्लिमेंट के रूप में लिया जा सकता है। आयुर्वेद में गुड़ तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने, एनीमिया को रोकने और हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। यह पर्यावरण के विषाक्त पदार्थो से शरीर की रक्षा भी कर सकता है और कैल्शियम, फॉस्फोरस और लोहे जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होने के कारण यह फेफड़ों के कैंसर की आशंका को भी कम कर सकता है।"

    देवताले ने कहा कि इस चॉकलेट के बाजार में उपलब्ध सामान्य चॉकलेट की तुलना में लगभग 20-30 प्रतिशत सस्ता होने की उम्मीद है। टीम ने इस उत्पाद के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।

    उन्होंने कहा, "चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अधिक स्वस्थ बनाने की अनिवार्य आवश्यकता है। हम इसके स्वाद से कोई समझौता किए बिना ही एक सर्वश्रेष्ठ चॉकलेट विकसित करने की कोशिश की है।"

    शोध टीम में डॉ. एम. जी. भोटमांगे, खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख, एलआईटी नागपुर; प्रबोध एस. हाल्दे, प्रमुख, तकनीकी रेगुलेटरी अफेयर्स, मैरिको लिमिटेड; और एम. एम. चितले, निदेशक, एफबीओ तकनीकी सेवा, ठाणे शामिल हैं।

    आईआईएसएफ 2015 नोडल एजेंसी के रूप में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और आकलन परिषद (टीआईएफएसी) के साथ, देश का सबसे बड़ा विज्ञान आंदोलन चलाने वाले विज्ञान भारती के सहयोग से विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयों की ओर से आयोजित की जा रही है।

    इंडो-एशियन न्यूज सíवस।
  • विदेशी सैलानियों को लुभा रहा सोनपुर मेला
    मनोज पाठक
    पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार में लगने वाले एशिया के विश्व प्रसिद्घ सोनपुर मेले में विदेशी पर्यटकों के पहुंचने का सिलसिला जारी है। अपने गौरवशाली अतीत को संजोए हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में पर्यटन विभाग भी विदेशी सैलानियों को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती। विदेशी पर्यटक भी मेले में पहुंचकर आनंद ले रहे हैं।

    प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाला यह मेला इस वर्ष 25 नवंबर को प्रारंभ हुआ है और अब तक 48 विदेशी पर्यटक इस मेले में पहुंचे हैं। इन विदेशी सैलानियों को ठहरने के लिए मेला परिसर में बनाए गए पर्यटन ग्राम में आधुनिक सुख-सुविधा वाले ग्रामीण परिवेश में लगने वाले 20 स्विस कॉटेजों का निर्माण कराया गया है।

    स्विस कॉटेज के प्रबंधक मुकेश कुमार ने आईएएनएस को बताया कि अब तक 48 विदेशी सैलानी मेले का लुत्फ उठा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक 19 सैलानी इंगलैंड से आए हैं, जबकि जापान से 13, जर्मनी से पांच, आस्ट्रेलिया से चार तथा फ्रांस, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका से दो-दो तथा ओमान से एक सैलानी शामिल हैं।

    बिहार पर्यटन विकास निगम का दावा है कि इसके अलावे कई विदेशी सैलानी पटना और हाजीपुर के विभिन्न होटलों में रहकर मेला का आनंद उठाने भी यहां पहुंच रहे हैं।

    मुकेश के अनुसार, ग्रामीण परिवेश में तैयार किए गए इन कॉटेजों में आधुनिक सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। वे कहते हैं कि आधुनिक रूप से बनाया गया शौचालय तो है ही कॉटेज में ही पर्यटन ग्राम में ही रेस्टोरेंट और पार्किंग की भी सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

    उन्होंने बताया कि पर्यटक ग्राम में स्विस कॉटेज अब तक किसी दिन खाली नहीं है परंतु आगे के विषय में नहीं कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि पिछले वर्ष करीब 50 विदेशी सैलानी सोनपुर मेले का आनंद उठाने यहां आए थे।

    एक महीने तक चलने वाले इस मेले में आए विदेशी सैलानी भी मेले के बाजारों को देखकर आश्चर्यचकित हैं।

    ब्रिटेन से आए डोनाल्ड कहते हैं, "सोनपुर मेले के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है, मैं यहां कुत्ता और पक्षियों का बाजार देखकर रोमांचित हूं। मेले में मौत का कुआं और सर्कस भी रोमांच पैदा करने वाला है।"

    करीब नौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस मेले में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। पर्यटन विभाग के बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा आयोजित इस मेले में हाथी आकर्षण का केंद्र रहे हैं, लेकिन इस वर्ष हाथी नहीं पहुंच पाए हैं।

    गौरतलब है कि पूर्व में इस मेले का आयोजन जिला प्रशासन और राजस्व विभाग करता था।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • बहुमंजिली इमारतों में फंसे लोगों को निकालेगी 'जाली'

    भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल करते हुए बहुमंजिली इमारतों में आग लगने एवं भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदाएं होने पर इमारत में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का आसान तरीका विकसित किया है। इमरजेंसी इस्केप शूट गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसके जरिये लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा।

    इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) नामक इस युक्ति का विकास रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत कार्यरत सेंटर फॉर फायर, एक्सप्लोसिव एंड एनवायरमेंट सेफ्टी (सीएफईईएस) के वैज्ञानिकों ने किया है।

    इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के परिसर में शुक्रवार से शुरू हुए भारत के अब तक के सबसे बड़े विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक मेले में प्रदर्शित किया गया है।

    इस उपकरण के विकास में शामिल सीएफईईएस के उप निदेशक डा. प्रवीण राजपूत ने बताया कि इसके जरिये 50 मीटर तक ऊंची इमारत से लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकता है। गोलाकार जाली के आकार वाले इस उपकरण का पेटेंट प्राप्त किया जा चुका है और शीघ्र ही इसका प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) होगा और उसके बाद इसका सार्वजनिक उपयोग शुरू हो जाएगा।

    यह गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसे आग लगने या प्राकृतिक आपदा के समय इमारत की किसी भी मंजिल से लटकाया जा सकता है और उस मंजिल में रहने वाले सभी लोगों को सुरक्षित जमीन पर उतारा जा सकता है।

    इसकी जाली अत्यंत मजबूत अग्नि शमन पदार्थ 'केवियर फाइबर' से बनी होती है और यह जाली पांच टन तक का वजन संभाल सकती है। इस्पात से भी अधिक मजबूत इस जाली को आग से किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।

    इस लंबी गोलाकार ट्यूबनुमा जाली में एक-एक मीटर के अंतराल पर अल्युमिनियम मिश्रधातु निर्मित छल्ले लगे हुए हैं, जिसके जरिये लोग उपर से नीचे उतर सकते हैं। इसे आसानी से कही भी ले जाया जा सकता है और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में बहुमंजिली इमारत के किसी भी हिस्से से लटकाया जा सकता है।

    उन्होंने बताया कि ईईसी के विकास का उद्देश्य हाइड्रोलिक लिफ्ट या स्टील से बनी टावर/एरियल सीढ़ी का सस्ता एवं कारगर विकल्प पेश करना है। इसमें जरूरत के अनुसार, परिवर्तन करना संभव है। इसका इस्तेमाल राहत कार्यो में भी हो सकता है। इसे किसी हेलीकॉप्टर के साथ लटका कर लोगों को किसी आपदाग्रस्त इलाके से बाहर निकाला जा सकता है।

    सीएफईईएस ने हल्के वजन के 'फायर प्रोक्सिमिटी श्यूट' भी विकसित किया है, जिसमें सुरक्षात्मक पदार्थो की पांच परतें हैं।

    उन्होंने बताया कि फिलहाल इसकी कीमत 80 से 90 हजार रुपये प्रति मीटर है और पर्याप्त लंबाई वाले उपकरण की कीमत 15 लाख रुपये के आसपास पड़ेगी। लेकिन इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने पर इसकी कीमत में काफी कमी आएगी। इसका इस्तेमाल अग्निशमन विभाग और नागरिक सुरक्षा एजेंसियां कर सकती हैं।

    इस मेले में अनेक रोचक, जनोपयोगी तथा नवीन उत्पादों एवं प्रौद्योगिकियों को दुनिया में पहली बार प्रदर्शित किया जा रहा है। इनमें कंफोकल माइक्रोस्कोप (सीएसआईआर), जम्मू-कश्मीर में औषधीय एवं सुगंधित पौधों के बारे में अनुसंधान कार्य, स्वदेशी दंत प्रत्यारोपण, बेकार प्लास्टिक को ओटोमोटिव ईंधन में बदलने की तकनीक तथा कम प्रदूषण पैदा करने वाले ऊर्जा सक्षम ब्रास मेटल फर्नेस शामिल हैं।

    यह एक्सपो आठ दिसंबर तक सुबह साढ़े 10 बजे से लेकर शाम छह बजे तक आम लोगों के लिए खुला रहेगा।

  • कहां चली गई 20 लाख की उड़द दाल?
    ललितपुर (उप्र), 5 दिसम्बर (आईएएनएस/आईपीएन)। महंगी दाल, वह भी उड़द की, जिसके पापड़ बनते हैं और डोसा भी। मध्यप्रदेश के बीना गल्ला मंडी से 20 लाख रुपये की उड़द दाल पांच नवंबर चली थी छत्तीसगढ़ के लिए मगर पहुंची नहीं, तो गई कहां?

    तय समय तक माल गंतव्य तक न पहुंचने पर मामले की सूचना बीना थाने में दर्ज कराई गई थी। छानबीन के दौरान सागर के पास बहेरिया से पुलिस ने खाली ट्रक बरामद कर लिया था। लेकिन ट्रक में लदी करीब 20 लाख रुपये की 335 बोरियां उड़द गायब थीं, जबकि ट्रक चालक व सह चालक भी फरार थे। अब मप्र पुलिस मामले की तह तक जाने के लिए चालक व सह चालक के मोबाइल नंबरों को ट्रेस कर रही है।

    इस कार्य को अंजाम देने के लिए सागर पुलिस ने अब पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी से मुलाकात कर सहयोग मांगा है।

    पांच नवंबर को बीना गल्ला मंडी स्थित भावना ट्रेडर्स से छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित अम्बिका दाल मिल के लिए 335 बोरी करीब 200 कुंतल उड़द की दाल ट्रक में लाद कर भेजी गई थी। करीब पांच दिन बाद छत्तीसगढ़ से व्यापारी ने ट्रक न पहुंचने की बात कही। इस पर बीना कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई गई।

    शुरुआती जांच में बीना पुलिस ने जिला सागर के ग्राम बहेरिया से ट्रक तो बरामद कर लिया, लेकिन उसमें लदी 335 बोरी उड़द गायब थी। वहीं ट्रक चालक ग्राम सेमरा डांग निवासी सुकपाल सिंह ठाकुर व सह चालक ग्राम कड़ेसरा के मजरा कतक्यारी निवासी वीरपाल यादव तभी से गायब हैं और उनके मोबाइल नंबर भी बंद हैं। नंबरों की जांच-पड़ताल के लिए मध्य प्रदेश पुलिस ने ललितपुर पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी से मुलाकात कर सहयोग मांगा है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर सुहाना होगा सफर

    लखनऊ, 5 दिसंबर (आईएएनएस/आईपीएन)। लखनऊ से आगरा तक का सफर सुहाना और सुरक्षित होने की उम्मीद उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने अपनी एक महत्वाकांक्षी परियोजना से जगाई है। सरकार ने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर पीएसी की तीन बटालियन को स्थापित किए जाने का फैसला लिया है।

    पीएसी की तैनाती पर डीजीपी मुख्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है। नया एक्सप्रेस-वे होने की वजह से इसके इर्द-गिर्द पीएसी की बटालियन की स्थापना कर रास्ते पर निगरानी रखी जाएगी। एक्सप्रेस-वे पर पुलिस की गाड़ियों की आवाजाही आम जनता को सुरक्षा का अहसास कराएगा। आने वाले तीन बरसों में डीजीपी मुख्यालय प्रदेश में पीएसी की दस बटालियन का इजाफा करने का रोडमैप तैयार कर रहा है।

    डीजीपी मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश में कई साल से पीएसी की कोई नई बटालियन नहीं बनाई गई है। उत्तराखंड के निर्माण के बाद इनमें से आठ बटालियन वहां ट्रांसफर हो चुकी हैं। बची हुई कंपनियों में से ज्यादातर महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा में तैनात हैं। यही वजह है कि कोई बटालियन साल में एक माह के लिए जरूरी प्रशिक्षण सत्र में शामिल नहीं हो पा रही है।

    प्रदेश में जारी पंचायत चुनाव के दौरान फोर्स की कमी ने अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है। डीजीपी जगमोहन यादव ने इसके लिए सैद्धांतिक सहमति प्रदान करते हुए प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।

    प्रदेश में पीएसी की दस बटालियन का इजाफा होने से कानून-व्यवस्था के मामलों में तत्परता के साथ कार्रवाई की जा सकेगी। प्रारंभिक तौर पर पहली तीन बटालियन लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर स्थापित किए जाने की तैयारी है। ये बटालियन मैनपुरी, कन्नौज व फिरोजाबाद में एक्सप्रेस-वे के किनारे जमीन लेकर स्थापित किए जाने पर मंथन हो शुरू हो चुका है।

    महंगी पड़ रही केंद्रीय बलों की तैनाती :

    प्रदेश में होने वाले मुख्य पर्वो, चुनाव, वीवीआईपी मूवमेंट, वीआईपी सिक्योरिटी के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती घाटे का सौदा साबित हो रही है। हालिया पंचायत चुनाव के लिए गृह मंत्रालय द्वारा दी गई कंपनी सेंट्रल पैरा मिलेट्री फोर्स के लिए राज्य सरकार को करोड़ों रुपये चुकाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा रात के समय किसी जिले में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होने पर केंद्रीय बलों की सेवा लेना टेढ़ी खीर साबित होता है।

    वहीं पीएसी की एक बटालियन को स्थापित करने में भी अधिक खर्च आता है। इसे देखते हुए राज्य सरकार अपने संसाधनों को बढ़ाने की कवायद में जुट गई है।

    पीएसी की बढ़ती जरूरत को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इंडिया रिजर्व बटालियन स्कीम की शुरुआत की थी, लेकिन दुर्भाग्य से यह उप्र में फेल हो गई। प्रदेश में दो इंडिया रिजर्व बटालियन की स्थापना मऊ और सोनभद्र में हुई थी। मऊ की बटालियन को नोएडा भेज दिया गया, जबकि सोनभद्र की बटालियन नक्सली गतिविधियों को देखते हुए वहीं पर डटी रहती है।

    दूसरी ओर, केंद्रीय बल होने की वजह से इसे दूसरे प्रदेशों में भी तैनात किए जाने की संभावना को देखते हुए राज्य सरकार ने इंडिया रिजर्व बटालियन स्कीम से किनारा कर लिया है। फिर भी उम्मीदें कायम हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • फेस्टिव सीजन में मोहब्बत की ऑनलाइन तलाश

    आपने 'प्यार का मौसम' या 'आया मौसम दोस्ती का' जैसा शब्द हिंदी फिल्मों के गीतों में सुना होगा और खासकर सावन महीने को प्यार के मुफीद मौसम माना जाता है। लेकिन 'ऑनलाइन लव' के मामले में इस मौसम का मतलब फेस्टिव सीजन है। आश्चर्य हो रहा है! लेकिन ऐसा सचमुच में है, ये हम नहीं, बल्कि आंकड़ों की जुबानी है।

    डेटिंग एप 'वू' के मुताबिक, युवाओं द्वारा फेस्टिव सीजन के दौरान लव की ऑनलाइन तलाश में खासी बढ़ोतरी हो जाती है। इस दौरान भारी संख्या में लोग डेटिंग एप को डाउलोड करते हैं और साइन अप करते हैं।

    वू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुमेश मेनन ने आईएएनएस से कहा, "पिछले फेस्टिव सीजन के दौरान वू ने नियमित साइन अप में तीन गुना अधिक बढ़ोतरी और नियमित मैच-मेकिंग में दोगुनी बढ़ोतरी दर्ज की।"

    उन्होंने कहा, "इस सीजन के दौरान इस डेटिंग एप को लगभग 17 लाख लोगों ने डाउनलोड कर पंजीयन किया और इसने प्रतिदिन 17 हजार लोगों को उनके ख्वाबों की मल्लिका/शहजादे से उन्हें मिलाने में मदद की।"

    प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़ें चौंकाने वाले हैं, क्योंकि मैच मेकिंग में महीनों का समय लगता है, जबकि फेस्टिव सीजन के दौरान यह चुटकियों में हो जाता है।

    मैचिंग में भारी बढ़ोतरी के बारे में सवाल पूछे जाने पर सीईओ के साथ ही एप के सह संस्थापक मेनन ने कहा, "जब संख्या में इजाफा होने लगा, तो हमने कुछ उपयोगकर्ताओं के फीडबैक इकट्ठे किए, जिसमें यह बात सामने आई कि फेस्टिव सीजन के दौरान खुशनुमा मिजाज की वजह से लोगों को अपना साथी ढूंढने में मदद मिलती है। इसके अलावा, छुट्टियां होने के कारण वे एप पर ज्यादा समय दे पाते हैं, जिससे इस काम में उन्हें और आसानी हो जाती है।"

    उन्होंने कहा, "लोग हालांकि सालों भर आपस में जुड़ते हैं और मोहब्बत में पड़ते हैं, लेकिन हमने पाया कि लोगों में फेस्टिव सीजन के दौरान अपना मोहब्बत ढूंढ़ने के प्रति थोड़ी अधिक तड़प होती है। बीते दो वर्षो से हम इस बात को नोटिस कर रहे हैं कि फेस्टिव सीजन के आसपास एप के डाउनलोड में बढ़ोतरी होती है और यह फरवरी तक जारी रहता है, क्योंकि इसी महीने में अपने ख्वाबों के राजकुमार/राजकुमारी तक अपने दिल का संदेश सुनाने का दिन यानी 'वेलेंटाइन डे' आता है।

    विशेषज्ञों ने लोगों की इस नई परंपरा में दिलचस्पी को प्रौद्योगिक क्रांति करार दिया और हर ढलते दिन या रात के साथ यह अपनी पहुंच का दायरा बढ़ाता ही जा रहा है।

    भारत में अन्य मशहूर डेटिंग साइटों में 'टिंडर', 'थ्रिल एंड ओके क्यूपिड' हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि डेटिंग साइटों पर 1.5-2 करोड़ लोग मौजूद हैं और प्रौद्योगिकी में उन्नति और इंटरनेट के प्रसार के साथ ही इस संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

    कई उपयोगकर्ताओं ने आईएनएस से कहा कि अपने साथी की तलाश ऑनलाइन करने में उन्हें बेहद मजा आता है, क्योंकि गली-गली घूमने की बजाय जब प्रौद्योगिकी अपने स्क्रीन पर आपको यह मौका दे रही है, तो इसका फायदा क्यों न उठाया जाए और फेस्टिव सीजन में ऐसा करना और आसान हो जाता है।

    मुंबई में सेल्स का काम देखने वाली नंदिनी (27) ने आईएएनएस से कहा, "दिवाली मेरे लिए सुकून भरा पल होता है। और जब लोग एक साथ जुटते हैं, तो मेरी शादी की बात उठती है और मेरे बहनोई ने इसके लिए मेरे मोबाइल पर वू डाउनलोड कर दिया और इसपर ट्राई करने को कहा। कई लोगों से मेरी अच्छी बातचीत हुई और अब मैं किसी उपयुक्त साथी की तलाश में हूं।"

    दिल्ली में पब्लिक रिलेशंस का काम करने वाले वैभव मिश्रा (23) ने कहा कि साथी की ऑनलाइन तलाश की बात मुझे मजाकिया लगा।

    मिश्रा ने आईएएनएस से कहा, "गर्लफ्रेंड की ऑनलाइन तलाश करना शुरुआत में मुझे मजाकिया लगा, लेकिन बाद में यह सीरियस अफेयर में तब्दील हो गया और मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मैंने इस एप की मदद से एक अच्छी गर्लफ्रेंड ढूंढ़ ली।"

  • हृदयरोग व मधुमेह भी ला सकते हैं विकलांगता

    नई दिल्ली, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत में 12 करोड़ लोगों को किसी न किसी किस्म की विकलांगता है। 41 प्रतिशत से ज्यादा शारीरिक रूप से विकलांग हैं। इसके साथ ही जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की मौजूदगी इस सदी में इन समस्याओं को बढ़ा रही है। आज दिल के रोगों, कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, स्ट्रोक और आर्थराइटिस जैसी बीमारियां हमारे देश में विकलांगता का कारण बन रही हैं।

    इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉ के.के. अग्रवाल ने बताया, "दिल के रोगों, कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, स्ट्रोक और अर्थराइटिस जैसी लंबी बीमारियां हमारे देश में विकलांगता का कारण बन रही हैं। आज के दौर में लोगों की अस्वास्थ्यकर और पूरा दिन बैठे रहने वाली जीवनशैली की वजह से विकलांगता की समस्या और बढ़ती जा रही है। यह जरूरी है कि इस को रोका जाए।"

    उन्होंने कहा, "हम लोगों को सेहतमंद और संतुलित आहार लेने, उचित व्ययाम करने, पूरी नींद और धूप लेने, शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने और तनावमुक्त रहने के लिए स्वास्थ तरीके अपनाने की सलाह देते हैं। स्ट्रोक की स्थिति में तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत के बारे में जागरूक होना भी जरूरी है, क्योंकि यह सीधे विकलांगता का कारण बनता है।"

    नियमित व्यायाम : एक खोज में यह बात सामने आई है कि शारीरिक गतिविधियों न करने और बदलते जीवनशैली के तरीकों की वजह से 74 प्रतिशत शहरी लोगों को दिल के गंभीर रोग होने का खतरा है। इसलिए व्यायाम करना जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है और मोटापे पर भी विराम लगाता है। यह शहरी जीवन के प्रतिदिन के तनाव को कम करने में भी मदद करता है।

    धूम्रपान छोड़ें : तंबाकू इस वक्त देश में 10 लाख जानें ले लेता है। जैसे ही कोई धूम्रपान करता है 400 जहरीले पदार्थ उसके रक्त में बनने लगते हैं जो रक्त धमनियों को क्षति पहुंचाते हैं और वसा युक्त पदार्थ पैदा कर उनको तंग कर देते हैं, जो स्ट्रोक और दिल के दौरे का कारण बन सकता है। तंबाकू की इच्छा को दबाने के लिए आप चिउंगम चबा सकते हैं, सेलरी स्ट्क्सि ले सकते हैं या फिर पुदीना का इस्तेमाल करें।

    दिल के लिए लाभप्रद आहार लें : सेहतमंद और संतुलित आहार सेहतमंद जीवन की कुंजी है। अत्यधिक ट्रांस फैटी एसिड, डायट्री कोलेस्ट्रॉल और सेचुरेटेड फैट्स मोटापे, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाईपरटेंशन और डायबिटीज का कारण बनते हैं, यह सभी दिल के रोगों के कारण बन जाते हैं। हरी और पत्तेदार सब्जियां, ताजा फल, संपूर्ण अनाज, बीन्स, डाइट्री फाइबर, सूखे मेवे और मछली अच्छी सेहत के लिए जरूर खाने चाहिए।

    सेहतमंद तरीके से तनाव कम करें : आधुनिक जीवनशैली से जुड़ा तनाव भी ऐसी बीमारियों के बढ़ने का कारण बन रहा है। कई बार तनाव अवसाद का रूप लेने लग जाता है। लोग आमतौर पर धूम्रपान, शराब और अस्वस्थ चीजों का सेवन कर तनाव से बचने की कोशिश करते हैं और यह सब जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का कारण बन जाता है। मेडिटेशन, प्राणायाम और योग तनाव कम करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

    नियमित स्वास्थ्य जांच : आज लोग काफी अस्वस्थ जीवनशैली जीते हैं। इसलिए नियमित स्वास्थ्य जांच बेहद जरूरी है। खासकर तब, जब पहले से परिवार में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का इतिहास रहा हो। गंभीर रोगों की जल्दी पहचान और इलाज करने से जान बचाई जा सकती है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • मैगी पर बवाल : कई सवाल, उपभोक्ता आखिर किस पर भरोसा करें?

    'बस दो मिनट!' की टैगलाइन के साथ 1982 में जब स्विस कंपनी नेस्ले ने मैगी को भारतीय बाजार में उतारा था, तब यहां कम्फर्ट फूड या इंस्टेंट फूड का चलन नहीं था। मैगी आई और छा गई। यह कामकाजी महिलाओं, होस्टल में रहने वाले युवाओं और बच्चों की पहली पसंद बन गई। इसी मैगी को अब प्रयोगशालाओं और अदालतों से गुजरना पड़ रहा है। लजीज मैगी से जुड़े कई सवाल अभी भी अनसुलझे हैं।

    भारतीय बाजार में जगह बनाने और उपभोक्ताओं की खाने-पीने की आदतों में बदलाव लाने के लिए मैगी को काफी पापड़ बेलने पड़े। खुद को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करने से पहले एक नए फूड कांसेप्ट के तौर पर भारतीयों के मन में जगह बनाने के लिए मैगी को सटीक रणनीति की जरूरत थी। 'मार्केटिंग गिमिक्स' का भरपूर प्रयोग करते हुए कंपनी ने विज्ञापनों में एक ओर महिलाओं को रसोई से मुक्ति का संदेश देकर सबको आकर्षित किया तो दूसरी तरफ बच्चों का ध्यान इसके लाजवाब स्वाद की ओर खींचा गया। नतीजा पूरी तरह मैगी के पक्ष में रहा और उसे सबने हाथों-हाथ लिया।

    कुछ ही समय में बतौर इंस्टेंट फूड मैगी सबकी पसंद बन गई क्योंकि धीरे धीरे ही सही कामकाजी महिलाओं के बढ़ते ग्राफ के बीच, ऐसे स्टेपल फूड की जरूरत महसूस हुई जो उनके लिए 'क्विक फिक्स' की तरह काम करें, चुटकियों में बनकर तैयार हो और स्वाद में भी लाजवाब हो। लेकिन इन सबके बीच सेहत का सवाल नजरअंदाज हुआ या फिर विज्ञापनों में 'स्वाद भी सेहत भी' जैसे जुमलों पर सबने आंख बंद करके भरोसा कर लिया, यह कहना मुश्किल है।

    इस बीच भारतीय बाजार में कई अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों ने हाथ आजमाए, लेकिन भरपूर कोशिश के बाद भी मैगी के वर्चस्व को नहीं तोड़ पाए।

    मैगी ने भी अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए कोशिशों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2001 में बाजार में छोटे 50 ग्राम पैक उतारे गए, टोमेटो और करी जैसे नए फ्लेवर लॉन्च किए गए। 'फास्ट टू कुक गुड टू ईट' टैगलाइन ने ग्राहकों के बड़े वर्ग को जोड़ा तो 'टेस्ट भी हेल्थ भी' ने मांओं की पोषण की चिंता का जिम्मा संभाला।

    भारतीय मांओं की मन:स्थिति की नब्ज पकड़ते हुए इस ब्रांड ने खुद को मां और बच्चे के बीच प्यार और देखभाल की कड़ी के रूप में पेश किया। विज्ञापनों में खेल कर या स्कूल से आते ही 'मम्मी भूख लगी' कहते बच्चों और मां को चुटकियों में गर्मागर्म मैगी परोसकर बच्चों को खुश करते दिखाया गया।

    10 रुपये के पैकेट की कीमत पर मैगी ने बिना उम्र या आर्थिक भेदभाव के लगभग तीन दशकों तक सबकी जुबां और दिलों पर राज किया और इस बीच इस पर कोई सवाल नहीं उठाए गए।

    लेकिन जब उत्तर प्रदेश के खाद्य विभाग द्वारा की गई जांच में मोनोसोडियम ग्लूटमेट का अंश पाया गया तो भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने जांच के आदेश दिए और केवल एमएसजी ही नहीं साथ ही लेड (सीसा) भी तय मानक से अधिक मात्रा में पाया गया। तत्काल कार्रवाई करते हुए एफएसएसएआई ने मैगी की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया और साथ ही यिप्पी, टॉप रेमन, वाईवाई जैसे अन्य नूडल्स ब्रांड्स की जांच के भी आदेश दे दिए गए।

    एफएसएसएआई ने मैगी को खाने के लिए असुरक्षित और नुकसानदायक करार देते हुए नेस्ले को मैगी के सभी नौ वैरिएंट्स बाजार से हटाने का आदेश दिया।

    कई राज्यों द्वारा मैगी पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद नेस्ले ने बाजार से मैगी को हटा लिया। हालांकि नेस्ले ने यह कहा कि वह फैले निराधार भ्रम के कारण भारतीय बाजार से मैगी हटा रही है, क्योंकि इससे उपभोक्ताओं का विश्वास प्रभावित हुआ है, लेकिन उनके नूडल्स उपभोग के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं।

    सेहत के लिहाज से असुरक्षित खाद्य उत्पाद परोसने पर इस कड़ी कार्रवाई ने जहां कुछ राहत दी तो साथ ही कई सवाल भी खड़े कर दिए। पहला सवाल यही उठा कि अगर मैगी सेहत के लिए इस कदर असुरक्षित है तो लगभग तीन दशकों तक इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी कैसे यह खराब उत्पाद भारत के लोगों को परोसती रही। पहले इसकी जांच क्यों नहीं की गई?

    भारत में खाद्य पदार्थो में मिलावट और दूषित पदार्थ पाए जाने से जुड़े मुद्दों में नेस्ले की मैगी का मुद्दा कोई नया नहीं है। ऐसे मुद्दे दशकों से सिर उठाते रहे हैं। हर साल दिवाली जैसे त्योहारों पर नकली घी से लेकर नकली दूध, खोया और अन्य कई खाद्य पदार्थो में मिलावट की खबरें मिलती हैं।

    लेकिन इस बार भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक की ओर से इस मामले में लिए गए कड़े कदम और कई राज्यों द्वारा दशकों से भारत में कारोबार कर रही मल्टीनेशनल कंपनी के उत्पाद पर प्रतिबंध लगाने के कदम ने इसे राष्ट्रीय मंच पर ला खड़ा किया है।

    सवाल भारतीय उपभोक्ताओं की सेहत से तो जुड़ा ही है, साथ ही सवाल भारत की जांच प्रणाली की ओर भी उंगली उठाता है।

    एफएसएसएआई की जांच में खराब पाई गई मैगी को कनाडा, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका सहित छह देशों ने इसे खाने के योग्य करार दिया।

    भारत में खाद्य सुरक्षा मानक विश्व मानकों की तुलना में काफी नीचे है और यही कारण है कि भारत जो अमेरिका का सातवां सबसे बड़ा खाद्य आपूर्तिकर्ता है, उसके बहुत से उत्पाद अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन अपने मानकों से निम्न स्तरीय होने के कारण खारिज कर देता है।

    अन्य कई देशों में खाद्य सुरक्षा को लेकर कानूनी नियम और दंड विधान इतने कड़े हैं कि कोई भी उन्हें भंग करने के बारे में सोच नहीं सकता। लेकिन भारत में छोटे-बड़े विक्रेताओं से लेकर मल्टीनेशनल कंपनियां तक नियम-कायदों को ताक पर रखकर बेखौफ खराब दर्जे का खाद्य बेचती हैं। यह खुलासा कई बार हो चुका है।

    निम्नस्तरीय खाद्य उत्पादों के बाजार को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग गिमिक्स, प्राइम टाइम विज्ञापन और नामचीन सेलेब्रिटीज दवारा ब्रांड एंडोर्समेंट के जरिए सेहत के लिए खराब उत्पादों को भी सेहतमंद बना कर बेचा जाता है। मैगी ने भी खुद को खास बनाने के लिए माधुरी दीक्षित, अमिताभ बच्चन और प्रीति जिंटा जैसे बॉलीवुड के खास सितारों की सेवाएं लीं, जिन्हें बाद में अदालत की ओर से नोटिस जारी किया गया।

    आम आदमी की सेहत के साथ होने वाले इस 'खिलवाड़' में केंद्र और राज्य के बीच समन्वय की कमी भी एक बड़ा कारण है। इसी तरह खाद्य उत्पादों की जांच के लिए विभिन्न राज्यों की लैबोरेटरीज की कार्यप्रणाली और उपकरणों पर भी सवाल उठते रहे हैं।

    खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के तहत एफएसएसएआई को एक स्वतंत्र सांविधिक प्राधिकरण के तौर पर स्थापित किया गया था, लेकिन क्या कारण रहा कि इतने वर्षो तक मैगी की गुणवत्ता की जांच नहीं की गई और इतने लंबे समय तक इसे लेकर कोई सवाल नहीं उठाए गए।

    सवाल केवल एक खाद्य उत्पाद का नहीं है। मिलावट से लेकर जांच लैबोरेटरीज की कार्यप्रणाली और उपकरणों, लोगों की भावनाओं को भुनाकर विज्ञापनों के जरिए खराब उत्पाद बेचने पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण न होना, राज्य सरकारों के खाद्य सुरक्षा विभागों में ढिलाई, निरीक्षण स्टाफ का समुचित प्रशिक्षण, पकड़े जाने पर भ्रष्टाचार के कारण कोई कार्रवाई न होना जैसी कई खामियां हैं, जो यह संकेत देती हैं कि केवल मैगी पर प्रतिबंध से कुछ हासिल नहीं होगा।

    मैगी मुंबई उच्च न्यायालय से कानूनी लड़ाई जीत चुकी है, गुजरात व कर्नाटक सहित कई राज्यों में इसकी वापसी हो गई है। नेस्ले कंपनी अब पास्ता पर उठे सवाल से परेशान है। आम उपभोक्ता एक बार फिर दुविधा में है। सवाल यह है कि उपभोक्ता आखिर किस पर भरोसा करें?

  • हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है..

    बहराइच, 4 दिसम्बर (आईएएनएस/आईपीएन)। 'हम भी दरिया हैं, हमंे अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा।' एक शायर का यह शेर पुष्पा पर जीवंत हो उठता है। पुष्पा जब एकांत में बैठकर पढ़ाई करती है तो एक नई इबारत लिख देती है और जब आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग की बात आती है तो वह अपनी जीवटता के बल पर लोहा मनवाती है।

    बचपन से दोनों हाथों से अक्षम पुष्पा ने कुदरत को धता बताते हुए अपने दोनों पैरांे को वह हुनर दिया कि पैरों की उंगलियों से कलम चलाकर उसने परास्नातक तक की शिक्षा हासिल कर ली। अब यही हुनर उसके कम्प्यूटर के प्रशिक्षण में काम आ रहा है।

    शरीर से अक्षम लोगों के लिए पुष्पा एक मिसाल बनकर उभरी है। शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ पुष्पा एक इंटर कालेज में पढ़ाती भी है, वहीं इस बार हुए पंचायत चुनावों में लोगों ने इनके हौसले को सलाम करते हुए इन्हें अपना क्षेत्र पंचायत सदस्य भी चुन लिया।

    पुष्पा के साथ काम करने वाले लोग भी इनके इस जज्बे को सलाम करते हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि जिस हालात में पुष्पा ने यह मुकाम हासिल किया उसके लिए ये इसकी हकदार भी है।

    पड़ोसी जनपद श्रावस्ती के थाना मल्हीपुर क्षेत्र के गांव मोगलहा निवासनी भवानी सिंह की बेटी पुष्पा सिंह जीवन में कुछ कर गुजरने के जज्बे को लेकर बहराइच आई। बचपन से ही वह हमउम्र बच्चों से अलग थी। जब अन्य बच्चे खेल में मशगूल होते थे तो वह आकाश में उड़ते पक्षियों को देखा करती थी। पुष्पा की लगन व दृढ़ इच्छाशक्ति को देखकर उसके माता-पिता भी हमेशा उसका हौसला अफजाई किया करते थे।

    पुष्पा ने प्राथमिक शिक्षा गांव के ही विद्यालय से ग्रहण की। जैसे-जैसे पुष्पा बड़ी होती गई, उसमें आत्म निर्भर होने की व अपनी एक अलग पहचान बनाने की ललक बढ़ती ही गई, जिसके लिए उसने स्थानीय लाल बहादुर शास्त्री इंटर कालेज में दाखिला लिया। वहा भी पुष्पा शीघ्र ही अपने हुनर व लगन से सहपाठियों के बीच सबकी लाडली बन गई। पुष्पा ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। लेकिन अब उसके सामने एक नई समस्या उत्पन्न होने लगी कि उच्च शिक्षा के लिए क्षेत्र में कोई विद्यालय नहीं था। आगे की पढ़ाई कैसे होगी, कैसे सपनों को पंख लगा पाएंगे, लेकिन पुष्पा ने हार नहीं मानी। रुढ़िवादी व परंपरावादी मानसिकताआंे को तोड़ कर और अपने माता पिता के नाम को रोशन करने के लिए उसने लगभग 15,000 आबादी के एक छोटे से गांव से निकल कर उच्च शिक्षा लेने की ठानी और भविष्य में आईएएस अफसर बनने का सपना लेकर निकल पड़ी। आज वह बहराइच शहर में किराये का मकान लेकर रह रही है।

    पुष्पा ने ठाकुर हुकुम सिंह किसान स्नतकोत्तर महाविद्यालय से 2013 में अंग्रेजी विषय से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। लखनऊ यूनिवर्सिटी से 2015 में बी.एड. की शिक्षा ली। हिंदी व अंग्रेजी टंकण की प्रतिभा से सम्पन्न पुष्पा जब कम्प्यूटर पर अपने पैरों से टाइप करती है तो सबकी निगाहें बरबस ही उस ओर खिंच जाती हैं।

    पुष्पा ने लोगों को संदेश दिया कि सफलता का रहस्य कठिन परीश्रम और दृढ़ लगन ही है। असफलता से हतोत्साहित होने की बजाय इंसान को सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ने के पीछे भी पुष्पा का उद्देश्य समाजसेवा है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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