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बहुमंजिली इमारतों में फंसे लोगों को निकालेगी 'जाली' Featured

भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल करते हुए बहुमंजिली इमारतों में आग लगने एवं भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदाएं होने पर इमारत में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का आसान तरीका विकसित किया है। इमरजेंसी इस्केप शूट गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसके जरिये लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा।

इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) नामक इस युक्ति का विकास रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत कार्यरत सेंटर फॉर फायर, एक्सप्लोसिव एंड एनवायरमेंट सेफ्टी (सीएफईईएस) के वैज्ञानिकों ने किया है।

इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के परिसर में शुक्रवार से शुरू हुए भारत के अब तक के सबसे बड़े विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक मेले में प्रदर्शित किया गया है।

इस उपकरण के विकास में शामिल सीएफईईएस के उप निदेशक डा. प्रवीण राजपूत ने बताया कि इसके जरिये 50 मीटर तक ऊंची इमारत से लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकता है। गोलाकार जाली के आकार वाले इस उपकरण का पेटेंट प्राप्त किया जा चुका है और शीघ्र ही इसका प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) होगा और उसके बाद इसका सार्वजनिक उपयोग शुरू हो जाएगा।

यह गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसे आग लगने या प्राकृतिक आपदा के समय इमारत की किसी भी मंजिल से लटकाया जा सकता है और उस मंजिल में रहने वाले सभी लोगों को सुरक्षित जमीन पर उतारा जा सकता है।

इसकी जाली अत्यंत मजबूत अग्नि शमन पदार्थ 'केवियर फाइबर' से बनी होती है और यह जाली पांच टन तक का वजन संभाल सकती है। इस्पात से भी अधिक मजबूत इस जाली को आग से किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।

इस लंबी गोलाकार ट्यूबनुमा जाली में एक-एक मीटर के अंतराल पर अल्युमिनियम मिश्रधातु निर्मित छल्ले लगे हुए हैं, जिसके जरिये लोग उपर से नीचे उतर सकते हैं। इसे आसानी से कही भी ले जाया जा सकता है और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में बहुमंजिली इमारत के किसी भी हिस्से से लटकाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि ईईसी के विकास का उद्देश्य हाइड्रोलिक लिफ्ट या स्टील से बनी टावर/एरियल सीढ़ी का सस्ता एवं कारगर विकल्प पेश करना है। इसमें जरूरत के अनुसार, परिवर्तन करना संभव है। इसका इस्तेमाल राहत कार्यो में भी हो सकता है। इसे किसी हेलीकॉप्टर के साथ लटका कर लोगों को किसी आपदाग्रस्त इलाके से बाहर निकाला जा सकता है।

सीएफईईएस ने हल्के वजन के 'फायर प्रोक्सिमिटी श्यूट' भी विकसित किया है, जिसमें सुरक्षात्मक पदार्थो की पांच परतें हैं।

उन्होंने बताया कि फिलहाल इसकी कीमत 80 से 90 हजार रुपये प्रति मीटर है और पर्याप्त लंबाई वाले उपकरण की कीमत 15 लाख रुपये के आसपास पड़ेगी। लेकिन इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने पर इसकी कीमत में काफी कमी आएगी। इसका इस्तेमाल अग्निशमन विभाग और नागरिक सुरक्षा एजेंसियां कर सकती हैं।

इस मेले में अनेक रोचक, जनोपयोगी तथा नवीन उत्पादों एवं प्रौद्योगिकियों को दुनिया में पहली बार प्रदर्शित किया जा रहा है। इनमें कंफोकल माइक्रोस्कोप (सीएसआईआर), जम्मू-कश्मीर में औषधीय एवं सुगंधित पौधों के बारे में अनुसंधान कार्य, स्वदेशी दंत प्रत्यारोपण, बेकार प्लास्टिक को ओटोमोटिव ईंधन में बदलने की तकनीक तथा कम प्रदूषण पैदा करने वाले ऊर्जा सक्षम ब्रास मेटल फर्नेस शामिल हैं।

यह एक्सपो आठ दिसंबर तक सुबह साढ़े 10 बजे से लेकर शाम छह बजे तक आम लोगों के लिए खुला रहेगा।

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  • व्यापारियों को 'मुनीम' बना देगा जीएसटी!
    कुंवर अशोक सिंह राजपूत
    केंद्र की राजग सरकार का दावा है कि वस्तु एवं सेवा कर की नई प्रणाली 'जीएसटी संशोधित विधेयक-2015' संसद से पारित हो जाने से देश में विदेशी निवेश को आकर्षित करना आसान हो जाएगा। नई कर प्रणाली से, करों की समानता से भ्रष्टाचार और राजकोषीय घाटे में कमी आएगी। साथ ही व्यापारी वर्ग के कर चुकाने पर सरकार की सीधी नजर भी बनी रहेगी।

    आशंकाओं के बीच अलग-अलग राजनीतिक दलों और खेमों में बंटे व्यापारी संगठन और उनके नेता जीएसटी के खिलाफ देश और राज्यों में केंद्र के विरुद्ध एकजुट हो गए हैं, लेकिन केंद्र सरकार की जीएसटी बिल विषय पर यात्रा के पूर्ण हो जाने के बाद अब आखिरी वक्त में एकाएक देश के मंझोले व्यापारी का विरोध-प्रदर्शन करना अर्थपूर्ण नहीं लग रहा है। यह सिर्फ व्यवधान पैदा करने की कोशिश नजर आ रहा है।

    व्यापारी संगठनों के जीएसटी बिल के विरोध में उतरने और संसद में प्रतिपक्ष कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) व समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा जीएसटी बिल पर साफ तौर से असहमति जता देने के बाद स्पष्ट हो गया है कि मामले में अभी सियासी खिचड़ी और पकेगी।

    इस बीच उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में व्यापारी संगठन और नेता जीएसटी को लेकर केंद्र की राजग सरकार के विरुद्ध अपने तेवर कड़े किए हुए हैं और संसद में पेश हो चुके जीएसटी बिल में आधा दर्जन बिंदुओं में बदलाव और नए बिंदु जोड़ने की मांग कर रहे हैं।

    भारतीय जनता पार्टी के प्रति नरम रुख रखने के आदी कारोबारी और व्यापारी संगठनों के नेताओं ने भी इस नए जीएसटी संशोधित बिल-2015 के विरोध में उतरने की घोषणा कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार और सूबे में सत्तारूढ़ सपा ने केंद्र सरकार के जीएसटी प्रस्ताव के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया है। मुख्यमंत्री द्वारा निर्णय लिया जाना बाकी है।

    मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है, "हमें जीएसटी लागू किये जाने से होने वाले नुकसान का अभी आकलन करना है। केंद्र सरकार राज्यों के नुकसान की भरपाई किस तरह करेगी, यह पता लगने के बाद ही हम इस बारे में कोई फैसला लेंगे।"

    मुख्यमंत्री ने जीएसटी को लेकर व्यापारी तथा अन्य संगठनों द्वारा किए जा रहे आंदोलन की आलोचना करते हुए कहा है कि उनको वास्तविकता का पता नहीं है और महज शक के आधार पर वे शोर-शराबा कर रहे हैं।

    बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठजोड़ को परास्त कर दिल्ली पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीएसटी बिल को पारित कराने में सहयोग का आश्वासन दिया है। नीतीश का यह सकारात्मक कदम है।

    वहीं उत्तर प्रदेश में सपा की घोर प्रतिद्वंद्वी और चार बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती पर सीधा निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा है कि जीएसटी बिल के बारे में मायावती को कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है। अखिलेश का यह आकलन जीएसटी के मुद्दे पर मायावती के रुख में बनी नरमी और बिल को पास कराने में मदद की बसपा प्रमुख की खुली घोषणा करने के क्रम में है।

    सपा जीएसटी के मौजूदा स्वरूप को लेकर चिंतित है, क्योंकि अगर मौजूदा स्वरूप में जीएसटी बिल पास होता है तो इसका प्रतिकूल आर्थिक और वित्तीय प्रभाव उत्तर प्रदेश पर पड़ने की आशंका है। देखा जाए तो इसकी जानकारी मायावती को भी होनी चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि अगर इसका प्रभाव अच्छा पड़ता तो व्यापारी इसका विरोध क्यों करते?

    मायावती को अपना रुख नरम करने से पहले इंतजार करना चाहिए था, क्योंकि संसद में इस पर अभी चर्चा होनी है और चर्चा के बाद ही कई बातें स्पष्ट हांेगी कि यह बिल यूपी के कितना हित में है। ऐसे में पहले ही इस बिल के पक्ष में नरम होना, खुला समर्थन देना गलत है। ऐसा मायावती को नहीं करना चाहिए, यह अखिलेश ने जोर देकर कहा है।

    अर्थव्यवस्था को एकीकृत रूप दिए जाने और केंद्र-राज्यों के बीच कई स्तरों पर कर संबंधी कर संग्रह की जटिलताओं को खत्म करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम का मूर्त रूप लेना विशेषज्ञ बेहद जरूरी मानते हैं। दुनिया के करीब डेढ़ सौ देश अपने यहां इस तरह की कर व्यवस्था लागू कर चुके हैं, हमारे देश में इस तरह की व्यवस्था एक लंबे समय से अपेक्षित रही है। यह दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण बिल पर अज्ञानतावश राजनीति कर रहे हैं।

    जीएसटी की दर कम हो, इस विषय-विरोध के झंडे को कांग्रेस थामे हुई है। यह राजनैतिक परंपराओं के हिसाब से अनुचित है। सभी को याद रहे कि अब राष्ट्रपति और तब यूपीए-2 के वित्तमंत्री रह चुके प्रणब मुखर्जी ही कर संग्रह की जटिलताओं को खत्म करने के लिए जीएसटी को लेकर आए थे और विगत 6 मई, 2015 को कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद 122वंे संशोधन अधिनियम के बाद जीएसटी बिल को लोकसभा में दो-तिहाई से स्वीकृति मिल चुकी है।

    इन सबके बीच केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार, यह व्यवस्था सरकारों, उद्योगों-सेवाओं और उपभोक्ताओं सभी को फायदा देने वाली सिद्ध होगी। इसमें उन राज्यों को अधिक फायदा होगा, जहां खपत अधिक होगी।

    देश के बड़े राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि को अपनी राजस्व वृद्धि और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के अवसर मिलेंगे, जैसे-जैसे विकास दर गति पकड़ेगी, प्रत्येक राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी।

    उधर, उत्तर-प्रदेश उद्योग व्यापर मंडल के अध्यक्ष पूर्व भाजपा सांसद श्याम बिहारी मिश्र का इस विषय पर साफ कहना है कि जीएसटी बिल 'सिंगल विंडो' भी नहीं है। इसे बनाने और संसद में ले जाने तक की प्रक्रिया में पूर्व और वर्तमान की सरकार ने व्यापारियों को विश्वास में नहीं लिया है। इस वस्तु कर अदायगी के बिल को ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपतियों और बड़े कारोबारियों ने बनाया है, जबकि राजस्व का बड़ा भाग लघु व्यापारियों से ही प्राप्त होता है।

    दुनिया के करीब डेढ़ सौ देश अपने यहां इस तरह की कर व्यवस्था लागू कर चुके हैं। सर्वप्रथम फ्रांस ने 1954 में जीएसटी व्यवस्था लागू की थी।

    दरअसल, कर-प्रणाली हमारे संविधान के भाग (क) के अंतर्गत अनुच्छेद 268 से 281 के मध्य केंद्र और राज्यों के बीच करों के अधिरोपण और वितरण संबंधी प्रावधान किए गए हैं, जिनके तहत राज्यों में बिक्री कर, चुंगी, वैट समेत तमाम कर राज्य सरकार लगाती है और केंद्रीय कर जैसे उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क आदि केंद्र सरकार लगाती है।

    वर्तमान प्रणाली में निर्माता को वस्तु के उत्पादन व बिक्री तक कई स्तरों पर कर चुकाना पड़ता है, लेकिन जीएसटी व्यवस्था में सिर्फ अंतिम स्तर पर कर अधिरोपण का प्रावधान है। इसके द्वारा जहां एक ओर करों के संग्रह को बढ़ाया जा सकेगा, वहीं करों पर छूट के कई गैर-जरूरी तौर-तरीकों को भी कम किया जा सकेगा।

    जीएसटी का चर्चा शुरू हुए करीब एक दशक हो गया है। यूपीए सरकार के दौरान जब इसकी पहल हुई, तब जीएसटी पर आम सहमति बनाने के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक उच्चाधिकार समिति बनी और समिति कभी आम राय पर नहीं पहुंच पाई। कांग्रेस के कार्यकाल में गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्य भी अधिकांसबार असहमति ही प्रकट करते रहे।

    विपक्ष में भाजपा राज्यों को तब अंदेशा यह रहा कि जीएसटी के लागू होने पर कराधान में उनकी स्वायत्तता नहीं रहेगी और उन्हें राजस्व का नुकसान भी होगा, लेकिन अब भाजपा शासित राज्य देश के वित्तमंत्री जेटली के कथन और आश्वासन के बाद से बिल्कुल चुप हो गए हैं।

    आर्थिक विकास में जटिलताओं को दूर करने की दिशा में जीएसटी का महत्व इसलिए और भी है, क्योंकि यह बिक्री के स्तर पर वसूला जाएगा और निर्माण लागत पर लगाया जाएगा। इससे राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य में समानता के साथ-साथ दोनों में कमी भी आएगी।

    यह कर प्रणाली पूरी मांग-आपूर्ति श्रंखला को प्रभावित कर जहां एक ओर प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करेगी, वहीं सरकार के बजटीय और राजकोषीय घाटे में भी कमी लाएगी, जो देश में आर्थिक सुधार की दिशा में सरकारों के लिए यह बिल बड़ा कदम है, क्योंकि पिछले कई वर्षो से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान में सुधार की मांग की जा रही थी।

    जीएसटी में जो व्यवस्था लाई गई है, उनमें अब आठ रिटर्न को महीने की पहली तारीख से बीस तारीख तक भरना होगा, ऐसे में उसका व्यापार और दुकान कैसे चलेगी, मध्यम और ग्रामीण व्यापारियों को जीएसटी के रूप-प्रारूप के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

    देश में व्यापारियों की संख्या करीब 10 करोड़ से अधिक है। इनमें चार करोड़ व्यापारी गांव से हैं। ऑनलाइन की अनिवार्यता से इन पर ज्यादा असर पड़ेगा। वे न तो इंटरनेट रखते हैं और न ही उनमें बहुत से व्यापारी शैक्षिक हैं। ऐसों का कर-संग्रहण के भ्रष्ट तंत्र का शिकार होना लाजमी है।

    इसके साथ ही व्यापारी संगठनों की ये भी दलील है कि व्यापारी को दिनभर बिजली उपलब्ध होती नहीं है। शाम और रात को दुकान बंद कर जब वह घर पहुंचेगा, तब रिटर्न मोमबती के उजाले में कैसे और कहां रिटर्न भरेगा। हालत यह होगी कि व्यापारी सीए के यहां दिनभर चक्कर काटता घूमेगा या फिर व्यापारी 'मुनीम' बन जाएगा। (आईएएनएस/आईपीएन)

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • गरीब बच्चों में मोटापे का ज्यादा खतरा

    लंदन, 12 दिसम्बर (आईएएनएस) आम तौर पर कहा जाता है कि समृद्ध बच्चों में खान-पान की गलत आदतों के कारण मोटापा बढ़ता है, लेकिन एक नए शोध से सामने आया है कि गरीब बच्चे मोटापे से ज्यादा ग्रस्त होते हैं।

    शोधकर्ताओं ने बच्चों के व्यवहारों और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया।

    यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वरिष्ठ लेखक युवान केली के अनुसार, "बच्चों के प्रारंभिक वर्षो में परिवार द्वारा बच्चों के विकास पर अत्यधिक ध्यान देना उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।"

    वैज्ञानिकों ने यूके के लगभग 20 हजार परिवारों का आकलन किया और इस अध्ययन के मापन के लिए उन्होंने पहले पांच साल की आयु के बच्चों का परीक्षण किया। फिर उन्हीं बच्चों का 11 साल की उम्र में परीक्षण किया।

    इस शोध के दौरान पांच साल की उम्र के गरीब और समृद्ध बच्चों में तुलनात्मक अध्ययन किया गया, जिससे पता चला कि गरीब बच्चों में मोटापे का खतरा उनसे समृद्ध साथियों की तुलना में दो गुना ज्यादा था।

    वहीं, जब इन बच्चों का 11 साल की उम्र में अध्ययन किया गया तो यह अंतर तीन गुना बढ़ गया। गरीब बच्चों में हर पांचवा बच्चा मोटापे से ग्रस्त था और यह आंकड़ा 7.9 प्रतिशत देखा गया। वहीं इनके अन्य समृद्ध साथियों में यह आंकड़ा 2.9 प्रतिशत था।

    इस शोध से पता चला कि वजन घटाने के लिए सप्ताह में तीन बार खेलकूद गतिविधियों में भाग लेना भी सुबह जल्दी उठने और नियमित तौर पर फलों के सेवन करने जितना ही महत्वपूर्ण है।

    गर्भावस्था के दौरान हालांकि धूम्रपान का सेवन और मां का वजन या (बीएमआई) बॉडी मास इंडेक्स भी नकारात्मक तौर पर बच्चे को प्रभावित करता है।

    यह शोध 'यूरोपियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • मौत से सहमी वनांचल की महिलाएं मध्यप्रदेश में करा रहीं नसबंदी

    रायपुर/कवर्धा, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पिछले वर्ष नसबंदी शिविर में नकली दवा के कारण 15 महिलाओं की मौत से सहमी वनांचल में रहने वाली महिलाएं सीमा से लगे मध्यप्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर नसबंदी करा रही हैं।

    पिछले एक हफ्ते में पंडरिया विकासखंड के वनांचल के पोलमी, कुसियारी, दमगढ़, महिडबरा, तायकेरनी, उपरा, भोभरा, सेंदुरखार, बदना सहित आसपास के अन्य गांव से लगभग 700 महिलाओं ने मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में जाकर नसबंदी कराई है।

    कवर्धा के सीएमएचओ डॉ.जी.के. सक्सेना ने बताया कि मध्यप्रदेश से गाड़ियां आती हैं और वनांचल की महिलाओं व पुरुषों को लेकर जाती हैं। मप्र का डिंडौरी जिला छग के वनांचल से लगा हुआ है, इसलिए भी वहां महिलाएं जाती हैं।

    जानकारी मिली है कि मप्र के डिंडौरी जिले के समनापुर, गोपालपुरा और झमकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर ये महिलाएं नसबंदी करा रही हैं। इसमें गोंड़, यादव और बैगा महिलाएं शामिल हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब छत्तीसगढ़ के वनांचल की महिलाएं मध्यप्रदेश में जाकर नसबंदी करा रही हैं। इसके पहले भी इस प्रकार के मामले सामने आते रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन इसे रोक पाने में नाकाम है।

    छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य संचालक आर. प्रसन्ना हालांकि इससे अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा, "इस प्रकार की जानकारी आप ही से मिली है। मैं पता लगाऊंगा।"

    मप्र के डिंडौरी जिले के स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गाड़ियां लेकर क्षेत्र में आते हैं और गाड़ियों में भरकर हितग्राहियों को लेकर डिंडौरी जिले के अलग-अलग स्वास्थ्य केंद्र में लेकर जाते हैं। यहां उनकी नसबंदी की जाती है और प्रोत्साहन राशि देने के बाद वापस गांव छोड़ दिया जाता है। वनांचल में इन दिनों ये नजारा खूब देखने को मिल रहा है।

    नांचल ग्राम महिडबरा की देवती पति दारा सिंह ने बताया कि वह पिछले दिनों नसबंदी कराने समनापुर गई थी। देवती कहती है कि यहां नसबंदी कराने में कोई परेशानी तो नहीं है, लेकिन डर लगता है। बिलासपुर में नसबंदी के दौरान महिलाओं की मौत हो गई थी, इसलिए हम डिंडौरी चले गए थे।

    वहीं सकर्तिन पति बाबूराम, फूलमती पिता कमल सिंह, राजबाई पति खुखूराम ने कहा, "वहां से लोग आते हैं और गाड़ी में हमको लेकर जाते हैं।"

    चिकित्सा विभाग की मानें तो वनांचल में महिलाओं और पुरुषों को दूसरे राज्य जाकर नसबंदी कराने से रोकने का प्रयास किया जाता है। वनांचल में जागरूकता लाने का प्रयास जारी है, लेकिन वनांचल से डिंडौरी जिला पास होने के कारण वहां बड़ी संख्या में लोग नसबंदी के लिए जाती हैं।

    डिंडौरी के सीएमएचओ डॉ. संतोष जैन ने कहा, "हितग्राही चाहे कहीं के भी हों, अगर वे आते हैं तो उनकी नसबंदी की जाती है। छत्तीसगढ़ से पहले भी महिलाएं आती रही हैं और अब भी आती हैं, क्योंकि वहां बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है।"

    बहरहाल, प्रदेश के बाहर जाकर नसबंदी कराए जाने की जानकारी सामने आने के बाद छग का स्वास्थ्य विभाग मामले की लीपापोती में जुट गया है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • लंबी नींद और देर तक बैठने से घटती है उम्र

    सिडनी, 11 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन में खुलासा किया गया है कि नौ घंटों से अधिक सोने और दिन में अधिक से अधिक समय बैठ कर बिताने, खासकर कम शारीरिक श्रम वाली दिनचर्या से आपकी उम्र छोटी हो सकती है।

    गैर-लाभकारी संगठन 'सैक्स इंस्टीट्यूट' के अध्ययन '45 एंड अप' के लिए किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति रात को ज्यादा नींद लेता है और दिन में शारीरिक तौर पर सक्रिय नहीं रहता तो ऐसे व्यक्ति की मौत जल्द होने की संभावना सक्रिय रहने वाले लोगों की तुलना में चार गुना अधिक होती है।

    सर्वेक्षण में अधिक बैठने से मतलब सात घंटे से अधिक बैठना और बहुत कम व्यायाम करने से मतलब हफ्ते में 150 मिनट से कम व्यायाम करना कहा गया है।

    इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता मेलोडी डिग के अनुसार, "हम इस अध्ययन में यह देखना चाहते थे कि नींद लेने और बैठे रहने का संयुक्त असर क्या होता है।"

    अत्यधिक नींद और ज्यादा देर तक बैठे रहने के साथ ही अगर आप व्यायाम नहीं कर रहे हैं तो आपको तिहरी मार झेलनी पड़ सकती है।

    डिंग के अनुसार, "हमारा अध्ययन बताता है कि हमें इन आदतों के प्रति उतना ही गंभीर होना चाहिए जितना हम जोखिम वाले अन्य कारकों जैसे धूम्रपान, शराब और अनियमित खान-पान के प्रति होते हैं।"

    सिडनी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डिंग और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन '45 एंड अप' में शामिल किए गए दो लाख से ज्यादा प्रतिभागियों के स्वास्थ्य का आकलन किया।

    इस दौरान उन्होंने प्रतिभागियों की जीवनशैली के विभिन्न व्यवहारों जैसे धूम्रपान, शराब का सेवन, अस्वस्थ आहार और निष्क्रिय रहने वाले समीकरण के साथ बैठे रहना और कम/अधिक नींद लेने जैसे व्यवहारों को भी शामिल किया।

    इस परीक्षण के दौरान शोधकर्ताओं ने एक और समस्या की भी पहचान की। शोधकर्ताओं ने पाया कि धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन और सात घंटे से कम नींद लेने से व्यक्ति के जल्दी मरने का खतरा चार गुना अधिक बढ़ जाता है।

    डिंग ने बताया, "मधुमेह, कैंसर और हृदय रोग विश्व के करीब 38 लाख लोगों की मौत के कारण बन चुके हैं। इस अध्ययन की मदद से हमें ऐसे जोखिम वाले कारकों को पहचानने में सफलता मिली है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाने के हमारी मदद कर सकते हैं।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • दिल व दिमाग को कोलेस्ट्रॉल से बचाएं

    लखनऊ, 11 दिसम्बर (आईएएनएस/आईपीएन)। रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि से हृदय की धमनियों में रुकावट पैदा होती है और इससे मस्तिष्क को भी हानि होती है। इसलिए वसायुक्त चीजें खाने से बचें, ताकि आपके दिल व दिमाग तंदुरुस्त रहें।

    हमारे आहार में हानिकारक वसा, जिसे सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट कहा जाता है। इसका अधिक होना रक्त में खराब कोलेस्ट्राल को बढ़ाता है, जिससे मस्तिष्क में बीटा एमिलॉइड प्लेक्स बनने लगते हैं, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाते हैं तथा मस्तिष्क की महीन धमनियों में अवरोध उत्पन्न करते हैं। इसका प्रभाव मस्तिष्क की कार्यक्षमता और स्मरणशक्ति पर पड़ता है।

    लखनऊ के चिकित्सक डॉ. अमृत राज ने बताया कि सैचुरेटेड फैट युक्त पदार्थ घी, मक्खन, चीज, पनीर, मांस आदि तथा ट्रांसफैट युक्त पदार्थ जैसी तली हुई चीजें, नमकीन, चिप्स, बिस्कुट आदि का सेवन करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता। इसके स्थान पर अनसैचुरेटेड फैट युक्त पदार्थ जैसे जैतून, सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन तथा अलसी के तेल का उपयोग करना लाभकारी होता है।

    उन्होंने कहा कि सूखे मेवों में भी इस प्रकार का वसा होता है जो मस्तिष्क के लिए हितकारी होता है। फल, हरी साग सब्जियां, संपूर्ण अनाज, जैतून व अलसी का तेल आदि मस्तिष्क की महीन रक्त वाहिनियों को ठीक रखते हैं। इनके नियमित सेवन से अल्जाइमर (स्मरणशक्ति का ह्रास) होने का खतरा कम हो जाता है।

    अलसी में ओमेगा तीन फैटी एसिड होता है जो एक उत्तम एंटी ऑक्सिडेंट होने के साथ-साथ रक्त में बीटा-एमिलॉइड प्रोटीन के स्तर को भी कम करता है। इसके ये दोनों गुण मानसिक स्वास्थ्य देने वाले होते हैं।

    डॉ. राज ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल और शर्करा के रक्त स्तर तथा रक्तचाप नियंत्रित रखना जरूरी होता है, क्योंकि उच्च रक्तचाप, मधुमेह तथा मोटापा जैसी बीमारियों से भी स्मरणशक्ति कमजोर होती है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • सौंदर्य व प्रतिभा को मिलेगा सही मंच
    नई दिल्ली, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। आमतौर पर सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए कद-काठी को लेकर कड़े मापदंड अपनाए जाते हैं और ये प्रतियोगिताएं ज्यादातर महानगरों तक ही सीमित होती हैं। अब हीटवेब मीडिया ने मिस एक्सक्यूजिट पैजेंट शुरू करने का ऐलान किया है, जिसमें कड़े मानदंड में ढील के साथ ही यह छोटे शहरों से लेकर कस्बे तक की युवतियों को मंच प्रदान करेगा।

    मिस एक्सक्यूजिट प्रतियोगिता के क्रिएटर और नेशनल डायरेक्टर विकास शर्मा ने आईएएनस से कहा, "हमारा मानना है कि हरेक के पास प्रतिभा होती है और उसे अपने तरीके और गति के साथ शोहरत हासिल करनी चाहिए। इस पहल का मकसद न सिर्फ टियर 1 शहरों बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों की लड़कियों के लिए प्लेटफार्म प्रदान करना है। मीडिया एवं क्रिएटिव आर्ट्स के क्षेत्र में सही इकोसिस्टम बनाना इस सीरीज का मकसद होगा।"

    शर्मा ने कहा, "हमने इस प्रतियोगिता के लिए न्यूनतम लंबाई 5 फुट 2 इंच रखी है, क्योंकि हम अगर ऐसी प्रतियोगिताओं के इतिहास को देखें तो इनमें जीतने वाली ज्यादातर लड़कियां फिल्म उद्योग या टेलीविजन के क्षेत्र में गई हैं। जहां रैंप के लिए न्यूनतम लंबाई की शर्त जरूरी है वही फिल्म, प्रिंट और टेलीविजन इंडस्ट्री में जाने के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। थोड़े समय में इतनी ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने के पीछे यही मुख्य वजह है, क्योंकि पहले किसी ने इसकी जरूरत को महसूस नहीं किया।"

    शर्मा ने कहा कि इस प्रतियोगिता के तहत देश भर में सुंदरता और प्रतिभा की पहचान की जाएगी। इसकी शुरुआत फेसबुक के जरिए ऑनलाइन कांटेस्ट के रूप में हो चुकी है। अब तक इसकी वेबसाइट पर 36 शहरों से 400 से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। इस संबंध में दिल्ली, नोएडा और कोलकाता में तीन लाइव ऑडिशंस भी हो चुके हैं।

    उन्होंने कहा कि वुमेंस एरा से जुड़ने से इस प्रतियोगिता को और मजबूती मिली है। वुमेंस एरा महिलाओं की सबसे लोकप्रिय पत्रिका है, जिसके 24 लाख पाठक हैं। पूरे भारत में सबसे प्रतिभावान लड़कियों की पहचान करने वाले इस प्लेटफार्म में वुमेंस एरा एक हिस्सेदार होगी।

    दिल्ली प्रेस के प्रबंध निदेशक दिवेश नाथ ने कहा, "नियम के तहत हम सौंदर्य प्रतियोगिता को बढ़ावा देने से परहेज करते हैं, क्योंकि इससे गैर जरूरी विभाजन पैदा होता है। लेकिन जब हमने इस पहल के पीछे के मकसद को समझा तो मुझे मिस एक्सक्यूजिट प्रतियोगिता की मदद करने की प्रेरणा मिली। ऐसा इसलिए क्योंकि यह कोशिश न सिर्फ एक दूसरी सौंदर्य प्रतियोगिता शुरू करने के लिए है बल्कि उन सभी सुंदर लड़कियों तक पहुंच बनाने के लिए है, जो खुद उद्योग द्वारा बनाई गई धारणा की वजह से पीछे छूट गई है।"

    शर्मा ने कहा, "लंबे समय से लड़कियों के लिए बनी दीवारें तोड़ना बेहद मुश्किल है, लेकिन हमें भरोसा है कि कई ब्रांड्स और समुदाय आगे आएंगे और इस मिशन में हमारे साथ शामिल होंगे।"

    प्रतियोगिता का फाइनल फरवरी 2016 में दिल्ली एनसीआर में आयोजित किया जाएगा। इसमें देशभर से चुने गए प्रतियोगी पहले मिस एक्सक्यूजिट पैजेंट का ताज हासिल करने के लिए कई सीरीज में हिस्सा लेंगे। फाइनल से एक दिन पहले ग्रूमिंग सेशन का आयोजन होगा, जिसमें मेकअप, मॉडलिग, एक्टिंग और कई दूसरी विधाओं के विशेषज्ञ प्रतियोगियों को उनके सपने को सच बनाने में मदद करेंगे।

    इंडो-एशियन न्यूज सíवस।

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