राकेश अचल
देश में संगीत सम्राट तानसेन के नाम पर बूते ३५ साल से दिए जा रहे राष्ट्रीय तानसेन सम्मान के लिए अब तक देश के अनेक मूर्धन्य और कुछ अन्य संगीतज्ञों को तानसेन सम्मान से विभूषित किया जा चुका है किन्तु मेवाती घराने के सुस्थापित संगीतज्ञ पंडित जसराज को अब तक जाने-अनजाने इस सम्मान के लायक नहीं समझा गया है,जबकि केंद्र सरकार पंडित जसराज को पद्मभूषण जैसे सम्मान से अलंकृत कर चुकी है.
पंडित जसराज और मध्यप्रदेश सरकार के बीच हालांकि छत्तिस का आंकड़ा नहीं है, इसी तानसेन समारोह में उन्हें दो से अधिक बार प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जा चुका है किन्तु तानसेन सम्मान के लिए किसी जूरी में आज तक उनके नाम पर विचार नहीं किया गया.1980 में पहला तानसेन सम्मान पंडित कृष्णराव पंडित को दिया गया, तब इसकी सम्मान राशि कुल पांच हजार रूपये थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने इस राशि को बढ़ाकर पहले पचास हजार और बाद में एक लाख रूपये किया. भाजपा सरकार ने इस राशि को दो लाख कर दिया.
पंडित कृष्णराव पंडित के बाद सुश्री हीराबाई बांदोडकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित राम चतुर मालिक,पंडित नारायण राव व्यास, पंडित दिलीप चाँद बेदी, उस्ताद निसार हुसैन खान, ठाकुर जयदेव सिंह, बीआर देव धर, सुश्री गंगूबाई हंगल, उस्ताद खादिम हुसैन खान, पंडित गजानन राव जोशी, श्रीमती असगरी बाई, निवृत्ति बुआ सरनाईक, उस्ताद मुस्ताक अली, श्री फिरोज दस्तूर, सुश्री मोंगूबाई कुडीर्कर, उस्ताद नसीर अमीनउद्दीन डागर, पं. भीमसेन जोशी, पं. रामराव नायर, पं. शरतचंद्र आरोलकर, उस्ताद ज़िया फरीदुद्दीन डागर, पं. एस.सी.आर. भट्ट, उस्ताद असद अली खाँ, राजा छत्रपति सिंह, डॉ. ज्ञान प्रकाश घोष, सुश्री गिरिजा देवी, पं. हनुमान प्रसाद मिश्र, श्री बाला साहेब पूछवाले, पं. सियाराम तिवारी, पं. सी.आर. व्यास उस्ताद अब्दुल हलीम ज़ाफर खाँ, उस्ताद अमजद अली खाँ, श्री नियाज़ अहमद खाँ, पण्डित दिनकर कायकिणी, पण्डित शिव कुमार शर्मा, सुश्री मालिनी राजुरकर, सुश्री सुलोचना बृहस्पति, आचार्य पं. गोस्वामी गोकुलोत्सव जी महाराज, उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां, पं. अजय पोहनकर, सुश्री सविता देवी, पं. राजन साजन मिश्र तथा श्री प्रभाकर कारेकर को तानसेन सम्मान से विभूषित किया जा चुका है वर्ष २०१४ और २०१५ के तानसेन सम्मान भी क्रमश:विश्व मोहन भट्ट और अजय चक्रवर्ती को प्रदान किया जा रहा है.
तानसेन सम्मान पाने वाले इन चार दर्जन से अधिक संगीतज्ञों में से अनेक पंडित जसराज से कनिष्ठ हैं, लेकिन वे तानसेन सम्मान के लिए सुपात्र मान लिए गए किन्तु पंडित जसराज को हमेशा की तरह नकार दिया गया. जानकार बताते हैं की पंडित जसराज मध्यप्रदेश में संगीत घरानों की अंदरूनी राजनीति के शिकार बनाये जाते रहे हैं.पंडित जी ने इस बारे में कभी कोई गीला-शिकवा नहीं किया लेकिन जब भी उनसे मैंने इस बारे में सवाल किये उनका मन खिन्न हो गया.वे हरी इच्छा कह कर विवाद से दूर खड़े हो जाते हैं. तानसेन सम्मान हासिल कर चुके उस्ताद अमजद अली खान को तो मध्यप्रदेश सरकार की खुली आलोचना के बाद तानसेन सम्मान देकर उनका मुंह बंद किया गया. उनके बच्चों को भी तानसेन समारोह के मंच पर बैठने का अवसर उनके दबाब में मिला .
संगीत की राजनीति की परतें खोलने के लिए अब कोई शीर्ष संगीतज्ञ सामने नहीं आना चाहता,सबको तानसेन सम्मान की आस जो रहती है. मुझे अब तक तानसेन सम्मान हासिल करने वाले लगभग सभी महान कलाकारों से संवाद का अवसर मिला लेकिन किसी ने भी पंडित जी की उपेक्षा को सही नहीं ठहराया.
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं
आवाज़ ही पहचान है
पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है।