राजु कुमार
राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के लिए साल 2015 नाकामियों भरे साल के रूप में ही रहा है, पर इस बीच उसके खाते में एक रिकॉर्ड दर्ज हो गया है। यह रिकॉर्ड मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बनाया है। अब मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा लंबे समय तक मुख्यमंत्री के पद रहने वाले के रूप में भी चौहान जाने जाएंगे। इसके लिए पहले यह रिकॉर्ड कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के नाम था, जिन्होंने 7 दिसंबर 1993 से 7 दिसंबर 2003 तक प्रदेश में 10 साल एक दिन मुख्यमंत्री का पद संभाला था। 29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर के बाद मुख्यमंत्री बने चौहान को लेकर किसी ने अनुमान नहीं लगाया था कि वे इतने लंबे समय तक पद पर बने रह पाएंगे। डंपर घोटाले के उजागर होने के बाद यह कहा जाने लगा था कि प्रदेश में कोई गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री 5 साल का शासन पूरा नहीं कर पाएगा। इसके बाद लचर प्रशासनिक पकड़ और बाद में व्यापमं महाघोटाले के उजागर होने के बाद राजनीतिक विश्लेषक उनकी विदाई साफ-साफ देख रहे थे, पर हिचकोले खाती नाव पर बैठे-बैठे चौहान ने 10 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है।
मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में 1967 में संविद सरकार, 1977 में जनता पार्टी की सरकार, 1990 में भाजपा की सरकार बनी थी, पर उनमें से कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। यहां तक कि उनके छोटे से कार्यकाल में कई मुख्यमंत्री बने। चौहान को मुख्यमंत्री बना दिए जाने के बावजूद किसी को यह भरोसा नहीं था कि वह उस पद पर साल-दो साल भी टिक पाएंगे। उन्हें कमजोर प्रशासनिक पकड़ वाले एवं भाजपा के भीतर एवं बाहर राजनीतिक विरोधियों से घिरे मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन उन्होंने एक-एक कर विरोधियों को ठिकाने लगाए और सरकार एवं पार्टी में अपना कद बहुत बड़ा कर लिया। स्थिति यह बन गई कि ‘‘फिर भाजपा, फिर शिवराज’’ के नारे के साथ भाजपा को 2008 के विधान सभा चुनाव में जाना पड़ा। 2013 में भी भाजपा को मुख्यमंत्री चौहान पर ही भरोसा करना पड़ा, जबकि भाजपा जीत के प्रति आशंकित थी।
सत्ता पक्ष के नेता शिवराज सिंह चौहान की इस राजनैतिक सफलता के पीछे उनके शासन काल में प्रदेश के विकास के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाओं, बिजली, सड़क एवं सिंचाई क्षमताओं में विस्तार के साथ-साथ खेती को लाभ धंधा बना देने को कारण मानते हैं। पर विपक्ष के नेता इसे कागजी विकास मानते हुए कहते हैं कि प्रदेश में महिला हिंसा, कुपोषण, किसानों की आत्महत्या में कमी नजर नहीं आ रही। व्यापमं जैसे घोटाले से घिरे मुख्यमंत्री से जनता का अब मोह भंग हो चुका है। इनके कार्यकाल के खाते में व्यापमं में 50 से ज्यादा मौतें, हजारों छात्रों को जेल, पीएमटी घोटाले में दलाली, किसानों की आत्महत्या, प्रदेश पर बढ़ता कर्ज, भ्रष्टाचार] खनन माफिया का जोर और बेलगाम नौकरशाही जैसे मुद्दे शामिल हैं। विपक्ष का कहना है कि चौहान के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री निवास की ओर सबसे ज्यादा ऊँगली उठी है।
10 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले चौहान के लिए 10वां साल उनके कम होते असर के रूप में देखा जा सकता है। पिछले 12 सालों में पहली बार विपक्ष ने सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराया और व्यापमं एवं किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की। व्यापमं महाघोटाले की जांच सीबीआई को नहीं दिए जाने को लेकर अड़े शिवराज को इस घोटाले से जुड़े लोगों की लगातार हुई मौतों के कारण सीबीआई को सौंपना पड़ा। कृषि विकास में प्रदेश को अग्रणी बताने के बीच किसानों द्वारा लगातार आत्महत्या ने मुख्यमंत्री के ग्राफ को कम कर दिया। बेलगाम खनन माफियाओं के कारण सरकार की किरकिरी हुई। 10 साल के कार्यकाल पूरा करने के चंद दिन पहले हुए रतलाम लोकसभा उप चुनाव में जीत हासिल कर मुख्यमंत्री चौहान केंद्रीय नेतृत्व को तोहफा देना चाहते थे। पर रतलाम में पुरजोर ताकत लगाने के बावजूद भाजपा को हार मिली। ऐसी स्थिति में चौहान ने भले ही प्रदेश की राजनीति में अपने कार्यकाल की अवधि को लेकर इतिहास बना दिया, पर 10वां साल उनके बेअसर होते जाने की ओर भी इशारा कर रहा है।
(लेखक सामाजिक सरोकारों और विकास से जुड़े सवालों को लेकर सक्रिय स्वतंत्र पत्रकार हैं.)