विवके दत्त मथुरिया
अपना देश वाकई अलुल्य है, इस बात में शक की कोई गुजांइस नहीं है। जिधर भी नजर डालो उधर ही अतुल्यता दिखाई देती है। यहां राष्टवाद से लेकर देशभक्ति तक अतुल्य है। भ्रष्टाचार भी अतुल्य, असमानता भी अतुल्य, अतुल्य बेरोजगारी, अतुल्य अपराध, अतुल्य लापरवाही, अतुल्य चापलूसी, अतुल्य गैरजिम्मेदारी, अतुल्य राजनीतिक पाखंड सहित न जाने क्या-क्या अतुल्य है।
जब कोई शख्य किसी भी अतुल्यता के अतुल्य सच को कहने की जुर्रत करता है तो अतुल्य सहिष्णुता अतुल्य असहिष्णुता में तब्दील हो जाती है। अगर आज कबीर दास कुछ कहते तो वह भी इसी अतुल्य असहिष्णुता का शिकार हो गए होते। अच्छा हुआ कबीर दास अब न हुए, नही तो सारी संतई धरी की धरी रह जाती। यहां सच कहना भी अब जोखिम भरा काम हो गया है। अब तो मीडिया भी अतुल्यता को प्राप्त हो चुका है। जो बातें अतुल्य नहीं है अब उन बातों को अतुल्य बनाकर दिखाया जाता है।
इस वक्त देश अतुल्यता से सराबोर है। हम अतुल्य लोकतंत्र के अतुल्य नागरिक जो है। यहां अतुल्य चुनावी वादों की बात ही कुछ और है। अच्छे दिनों का अतुल्य वादा, कालाधन वापस लाने का अतुल्य वादा, सबका साथ, सबका विकास का अतुल्य वादा। इस वक्त देश में अतुल्य महंगाई, अतुल्य विदेश यात्रा और वहां होने वाले मेगा शो इवेंट और अतुल्य परिधानों के अतुल्य आनंद से अभिभूत है। हम भी अतुल्य और आप भी अतुल्य। नीचे वाले भी अतुल्य और उपर वाले भी अतुल्य। लोक भी अतुल्य और तंत्र भी अतुल्य। ईमानदार भी अतुल्य और बेईमान भी अतुल्य।
जो कहने से छूट गया है, वह भी अतुल्य। बेतुके बोल भी अतुल्य और उन पर होने वाली राजनीति और बवाल भी अतुल्य। यूपी का समाजवाद भी अतुल्य। वामपंथियों की बौद्धिकता भी अतुल्य। कांग्रसियों की वफादारी अतुत्य। बसपा का सवर्ण प्रेम भी अतुल्य। शोषण भी अतुल्य और उत्पीडन भी। इतनी सारी अतुल्यता के भार को सहने के लिए जनता के धीरज और साहस को भी अतुल्य सलाम। यही है अतुल्य भारत की अतुल्य तस्वीर।