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विदेशी सैलानियों को लुभा रहा सोनपुर मेला

मनोज पाठक
पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार में लगने वाले एशिया के विश्व प्रसिद्घ सोनपुर मेले में विदेशी पर्यटकों के पहुंचने का सिलसिला जारी है। अपने गौरवशाली अतीत को संजोए हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में पर्यटन विभाग भी विदेशी सैलानियों को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती। विदेशी पर्यटक भी मेले में पहुंचकर आनंद ले रहे हैं।

प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाला यह मेला इस वर्ष 25 नवंबर को प्रारंभ हुआ है और अब तक 48 विदेशी पर्यटक इस मेले में पहुंचे हैं। इन विदेशी सैलानियों को ठहरने के लिए मेला परिसर में बनाए गए पर्यटन ग्राम में आधुनिक सुख-सुविधा वाले ग्रामीण परिवेश में लगने वाले 20 स्विस कॉटेजों का निर्माण कराया गया है।

स्विस कॉटेज के प्रबंधक मुकेश कुमार ने आईएएनएस को बताया कि अब तक 48 विदेशी सैलानी मेले का लुत्फ उठा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक 19 सैलानी इंगलैंड से आए हैं, जबकि जापान से 13, जर्मनी से पांच, आस्ट्रेलिया से चार तथा फ्रांस, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका से दो-दो तथा ओमान से एक सैलानी शामिल हैं।

बिहार पर्यटन विकास निगम का दावा है कि इसके अलावे कई विदेशी सैलानी पटना और हाजीपुर के विभिन्न होटलों में रहकर मेला का आनंद उठाने भी यहां पहुंच रहे हैं।

मुकेश के अनुसार, ग्रामीण परिवेश में तैयार किए गए इन कॉटेजों में आधुनिक सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। वे कहते हैं कि आधुनिक रूप से बनाया गया शौचालय तो है ही कॉटेज में ही पर्यटन ग्राम में ही रेस्टोरेंट और पार्किंग की भी सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

उन्होंने बताया कि पर्यटक ग्राम में स्विस कॉटेज अब तक किसी दिन खाली नहीं है परंतु आगे के विषय में नहीं कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि पिछले वर्ष करीब 50 विदेशी सैलानी सोनपुर मेले का आनंद उठाने यहां आए थे।

एक महीने तक चलने वाले इस मेले में आए विदेशी सैलानी भी मेले के बाजारों को देखकर आश्चर्यचकित हैं।

ब्रिटेन से आए डोनाल्ड कहते हैं, "सोनपुर मेले के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है, मैं यहां कुत्ता और पक्षियों का बाजार देखकर रोमांचित हूं। मेले में मौत का कुआं और सर्कस भी रोमांच पैदा करने वाला है।"

करीब नौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस मेले में सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। पर्यटन विभाग के बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा आयोजित इस मेले में हाथी आकर्षण का केंद्र रहे हैं, लेकिन इस वर्ष हाथी नहीं पहुंच पाए हैं।

गौरतलब है कि पूर्व में इस मेले का आयोजन जिला प्रशासन और राजस्व विभाग करता था।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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  • रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की हर्बल दवा होगी दुष्प्रभाव रहित
    नई दिल्ली, 7 दिसम्बर (आईएएनएस)। युवा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी और दुष्प्रभाव रहित दवा तैयार कर रही है। वैज्ञानिकों को बहुत जल्द यह दवा विकसित कर लेने की उम्मीद है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस जोड़ों की एक गंभीर समस्या है, जिसके प्रभावी उपचार के बहुत कम विकल्प उपलब्ध हैं। भारत में एक करोड़ से अधिक लोग इस ऑटोइम्यून बीमारी से पीड़ित हैं। इसमें शरीर की रक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊत्तकों के खिलाफ काम करने लगती है।

    एक टॉक्सिकोलॉजिस्ट और टीम के प्रमुख शोधकर्ता अंकित तंवर ने कहा कि उन्होंने रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के लिए सबसे प्रभावी जड़ी बूटियों की खोज करने के लिए डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) और जामिया हमदर्द की मदद से इस परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया है।

    राष्ट्रीय राजधानी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली में चल रहे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (आईआईएसएफ 2015) में युवा वैज्ञानिकों के सम्मेलन में तंवर ने दावा किया कि उन्होंने रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की अधिक कारगर दवा बनाने के लिए अनुकूल जड़ी बूटियों की खोज करने के लिए दुनिया में पहली बार एक गणितीय मॉडल विकसित किया है।

    तंवर ने कहा कि टीम ने विभिन्न देशों और भारत के विभिन्न भागों से 50 संभावित प्रभावशाली जड़ी बूटियों की पहचान की और उनमें से 11 को चुना।

    जामिया हमदर्द, दिल्ली के मेडिकल एलिमेंटोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के सहयोग से टीम अब स्तनधारी मॉडल पर अपनी हर्बल औषधि का परीक्षण करने के लिए काम कर रही है।

    अब तक के परिणाम से पता चला है कि यह नया उत्पाद न सिर्फ रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस की रोकथाम और इलाज कर सकेगा, बल्कि किसी भी संभावित संक्रमण से देखभाल भी करेगा। साथ ही यह गंभीर रोगियों के इलाज में भी कारगर साबित होगा।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के गंभीर मामले में जोड़ों में जलन के साथ अत्यधिक दर्द, जोड़ों में क्षति और हड्डियों में तेजी से नुकसान के कारण रोगी को अत्यधिक तकलीफ होती है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस रोग के पनपने से वर्षो पहले इसके प्रति संवेदनशीलता का पता लगाना संभव है। इसका अर्थ यह है कि सही दवा उपलब्ध होने पर इसके प्रति संवेदनशील व्यक्ति में इसकी शुरुआत को कई वर्षो तक टाला जा सकता है। साथ ही बीमारी का अच्छी तरह से इलाज भी किया जा सकता है।

    रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस के विकास को रोकने के लिए दर्द निवारक, स्टेरॉयड और संशोधक दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल करके ऑटोइम्युनिटी को दबाने और जोड़ों को बाद में होने वाले क्षय से सुरक्षा देने के अवांछित प्रभाव हो सकते हैं। इससे ऑटोइम्युनिटी को दबाने से संबंधित संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। इस स्थिति के लिए हर्बल दवाओं के एक गैर विषैले और प्रभावी उपचार की खोज की जा रही है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • अब गुड़ से बनेंगे चॉकलेट
    नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। गुड़ से बने स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरे चॉकलेट, जल्द ही बाजार में मिलने लगेंगे और आपके घरांे के रेफ्रिजरेटर में भी मौजूद होंगे। शोधकर्ताओं का एक समूह इस दिशा में काम कर रहा है। ये चॉकलेट मधुमेह से ग्रस्त लोग भी खा सकते हैं।

    आम तौर पर चॉकलेट में काफी मात्रा में कोका, दुग्ध पाउडर, मक्खन, परिष्कृत शक्कर और अधिक कैलोरी वाले स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ होते हैं। हालांकि ये बहुत अधिक कैलोरी के होते हैं लेकिन इनमें काबोहाइड्रेड एवं प्रोटीन नगण्य होते हैं। चॉकलेट में बहुत कम पौष्टिकता होती है क्योंकि इनमें घटक के रूप में परिष्कृत शक्कर मिलाया जाता है। चॉकलेट के कारण दांत खराब होने, दांत में कैविटी होने तथा मधुमेह होने जैसी समस्याएं एवं बीमारियां होने के खतरे होते हैं।

    राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान के खाद्य प्रोद्योगिकी विभाग की श्वेता एम. देवताले ने कहा, "परिष्कृत शक्कर के स्थान पर हम विभिन्न तरह के गुड का उपयोग करते हैं। पिघले हुए गुड़ में हम स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ के तौर पर कॉफी/कोको पाउडर का इस्तेमाल करते हैं, ताकि इसे स्वादिष्ट बनाया जा सके। इसके अलावा स्वास्थ्य लाभ के लिए इसमें पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं।"

    आईआईटी दिल्ली में पांच दिवसीय विज्ञान मेले में शोधकर्ताओं के एक दल का नेतृत्व कर रही देवताले ने एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, 'जैगरी डिलाइट : ए हेल्दी सबस्टीच्यूट फॉर चॉकलेट।'

    उन्होंने कहा कि चॉकलेट महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त विभिन्न प्रकार के गुड़ का उपयोग करके तैयार किए गए हैं। कोल्हापुरी गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए राज्य में सबसे लोकप्रिय है। भारत में दुनिया के कुल गुड़ उत्पादन का 70 प्रतिशत उत्पादन होता है।

    उन्होंने कहा, "हमने तरल गुड़, जैविक ठोस गुड़, नारियल पौधों के रस से बनाये गए गुड़, खजूर और ताड़ के पौधों के रस से बनाए गए गुड़ और पाउडर गुड़ जैसे विभिन्न प्रकार के गुड़ का इस्तेमाल करके चॉकलेट बनाया है। गुड़ से बनाए जाने वाले स्वादिष्ट चॉकलेट में कच्चे माल के रूप में मक्खन/कोको बटर सबस्टीट्यूट, इमल्सीफायर के रूप में सोया लेसितिण, कोको पाउडर, वसायुक्त दुग्ध पाउडर और कॉफी पाउडर मिलाए जाते हैं।"

    विश्लेषण और प्रयोगात्मक कार्य खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर; केंद्रीय एगमार्क प्रयोगशाला, नागपुर; और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, नागपुर के द्वारा एक साथ मिलकर किया गया था।

    उन्होंने कहा, "गुड़ के इस्तेमाल से बनाए गए चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अत्यधिक स्वीकार्य पाया गया था। इसे कम पोषण और कुपोषण से निपटने के लिए हेल्थ सप्लिमेंट के रूप में लिया जा सकता है। आयुर्वेद में गुड़ तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने, एनीमिया को रोकने और हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। यह पर्यावरण के विषाक्त पदार्थो से शरीर की रक्षा भी कर सकता है और कैल्शियम, फॉस्फोरस और लोहे जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होने के कारण यह फेफड़ों के कैंसर की आशंका को भी कम कर सकता है।"

    देवताले ने कहा कि इस चॉकलेट के बाजार में उपलब्ध सामान्य चॉकलेट की तुलना में लगभग 20-30 प्रतिशत सस्ता होने की उम्मीद है। टीम ने इस उत्पाद के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।

    उन्होंने कहा, "चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अधिक स्वस्थ बनाने की अनिवार्य आवश्यकता है। हम इसके स्वाद से कोई समझौता किए बिना ही एक सर्वश्रेष्ठ चॉकलेट विकसित करने की कोशिश की है।"

    शोध टीम में डॉ. एम. जी. भोटमांगे, खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख, एलआईटी नागपुर; प्रबोध एस. हाल्दे, प्रमुख, तकनीकी रेगुलेटरी अफेयर्स, मैरिको लिमिटेड; और एम. एम. चितले, निदेशक, एफबीओ तकनीकी सेवा, ठाणे शामिल हैं।

    आईआईएसएफ 2015 नोडल एजेंसी के रूप में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और आकलन परिषद (टीआईएफएसी) के साथ, देश का सबसे बड़ा विज्ञान आंदोलन चलाने वाले विज्ञान भारती के सहयोग से विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयों की ओर से आयोजित की जा रही है।

    इंडो-एशियन न्यूज सíवस।
  • विरासत से ताल्लुक न तोड़ें युवा : सईद
    जम्मू, 6 दिसम्बर (आईएएनएस)। जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने रविवार को राज्य के युवाओं से कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तलाश में उन्हें अपनी विरासत और परंपरागत मूल्यों से संबंध नहीं तोड़ लेना चाहिए।

    सईद ने यहां रविवार को अभिनव थिएटर का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा, "विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति को मैं मानता हूं। लेकिन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लैस होकर एक बेहतर भविष्य की तलाश में हमारी भावी पीढ़ी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे कौन हैं। यह केवल अपनी विरासत और परंपराओं को जीवित रखकर ही किया जा सकता है।"

    मुख्यमंत्री ने फिर से बनाए गए अभिनव थिएटर को जम्मू क्षेत्र की सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक गतिविधियां हमारे जीवन का हिस्सा होनी चाहिए।

    उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने कहा था कि सूफी संगीत और लोकसाहित्य के स्कूल होने चाहिए। कालेजों और विश्वविद्यालयों को संगीत और लोकसाहित्य से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि इन्हें एक संस्थाबद्ध रूप मिल सके।"

    हंसी-मजाक के माहौल में सईद ने कहा, "मैंने महात्मा गांधी की महानता के बारे में काफी पढ़ा है। लेकिन, मुन्ना भाई एमबीबीएस (फिल्म) देखने के बाद मुझे गांधी के थप्पड़ खाने और इसके बदले में प्रेम और संवेदना लौटाने की भावना का पता चल सका।"

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • चीन में प्राचीन मकबरे मिले
    बीजिंग, 6 दिसम्बर (आईएएनएस/सिन्हुआ)। चीन के हेनान प्रांत में 771-476 ईसा पूर्व के कुछ मकबरे मिले हैं।

    पुरातत्व विशेषज्ञों ने रविवार को बताया कि मकबरे लुओयांग शहर में मिले हैं, जिनकी संख्या 200 से अधिक है। आठ घोड़ों और रथ को रखने की जगह है, 30 से अधिक भस्म रखने की जगहें और 10 भट्टियां हैं। यह 2,00,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।

    मकबरों के पास हान राजवंश (202 ईसा पूर्व-220 ईस्वी) का प्राचीन शहर भी मिला है।

    पुरातत्वविद मानते हैं कि इस जगह पर 2600 साल पहले कोई कबीला रहता था। यह इस क्षेत्र में रहने वाले कुछ ऐसे कबीलों में शामिल हैं, जिनके आव्रजन और समाप्त होने का रिकार्ड मौजूद है।

    विशेषज्ञ मध्य चीन से अल्पसंख्यकों के आव्रजन के इतिहास की जानकारी हासिल करने के लिए इस कबीले का अध्ययन करेंगे।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • बहुमंजिली इमारतों में फंसे लोगों को निकालेगी 'जाली'

    भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल करते हुए बहुमंजिली इमारतों में आग लगने एवं भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदाएं होने पर इमारत में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का आसान तरीका विकसित किया है। इमरजेंसी इस्केप शूट गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसके जरिये लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा।

    इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) नामक इस युक्ति का विकास रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत कार्यरत सेंटर फॉर फायर, एक्सप्लोसिव एंड एनवायरमेंट सेफ्टी (सीएफईईएस) के वैज्ञानिकों ने किया है।

    इमरजेंसी इस्केप शूट (ईईसी) को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के परिसर में शुक्रवार से शुरू हुए भारत के अब तक के सबसे बड़े विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक मेले में प्रदर्शित किया गया है।

    इस उपकरण के विकास में शामिल सीएफईईएस के उप निदेशक डा. प्रवीण राजपूत ने बताया कि इसके जरिये 50 मीटर तक ऊंची इमारत से लोगों को सुरक्षित निकाला जा सकता है। गोलाकार जाली के आकार वाले इस उपकरण का पेटेंट प्राप्त किया जा चुका है और शीघ्र ही इसका प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टेक्नोलॉजी ट्रांसफर) होगा और उसके बाद इसका सार्वजनिक उपयोग शुरू हो जाएगा।

    यह गोलाकार आकार की बहुत लंबी जाली है, जिसे आग लगने या प्राकृतिक आपदा के समय इमारत की किसी भी मंजिल से लटकाया जा सकता है और उस मंजिल में रहने वाले सभी लोगों को सुरक्षित जमीन पर उतारा जा सकता है।

    इसकी जाली अत्यंत मजबूत अग्नि शमन पदार्थ 'केवियर फाइबर' से बनी होती है और यह जाली पांच टन तक का वजन संभाल सकती है। इस्पात से भी अधिक मजबूत इस जाली को आग से किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।

    इस लंबी गोलाकार ट्यूबनुमा जाली में एक-एक मीटर के अंतराल पर अल्युमिनियम मिश्रधातु निर्मित छल्ले लगे हुए हैं, जिसके जरिये लोग उपर से नीचे उतर सकते हैं। इसे आसानी से कही भी ले जाया जा सकता है और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में बहुमंजिली इमारत के किसी भी हिस्से से लटकाया जा सकता है।

    उन्होंने बताया कि ईईसी के विकास का उद्देश्य हाइड्रोलिक लिफ्ट या स्टील से बनी टावर/एरियल सीढ़ी का सस्ता एवं कारगर विकल्प पेश करना है। इसमें जरूरत के अनुसार, परिवर्तन करना संभव है। इसका इस्तेमाल राहत कार्यो में भी हो सकता है। इसे किसी हेलीकॉप्टर के साथ लटका कर लोगों को किसी आपदाग्रस्त इलाके से बाहर निकाला जा सकता है।

    सीएफईईएस ने हल्के वजन के 'फायर प्रोक्सिमिटी श्यूट' भी विकसित किया है, जिसमें सुरक्षात्मक पदार्थो की पांच परतें हैं।

    उन्होंने बताया कि फिलहाल इसकी कीमत 80 से 90 हजार रुपये प्रति मीटर है और पर्याप्त लंबाई वाले उपकरण की कीमत 15 लाख रुपये के आसपास पड़ेगी। लेकिन इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने पर इसकी कीमत में काफी कमी आएगी। इसका इस्तेमाल अग्निशमन विभाग और नागरिक सुरक्षा एजेंसियां कर सकती हैं।

    इस मेले में अनेक रोचक, जनोपयोगी तथा नवीन उत्पादों एवं प्रौद्योगिकियों को दुनिया में पहली बार प्रदर्शित किया जा रहा है। इनमें कंफोकल माइक्रोस्कोप (सीएसआईआर), जम्मू-कश्मीर में औषधीय एवं सुगंधित पौधों के बारे में अनुसंधान कार्य, स्वदेशी दंत प्रत्यारोपण, बेकार प्लास्टिक को ओटोमोटिव ईंधन में बदलने की तकनीक तथा कम प्रदूषण पैदा करने वाले ऊर्जा सक्षम ब्रास मेटल फर्नेस शामिल हैं।

    यह एक्सपो आठ दिसंबर तक सुबह साढ़े 10 बजे से लेकर शाम छह बजे तक आम लोगों के लिए खुला रहेगा।

  • रोशनी पाने की चाहत में अंधेरे के मुहाने पर

    संदीप पौराणिक

    मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में एक लापरवाही ने आधा सैकड़ा से अधिक गरीबों को रोशनी पाने की चाहत में अंधेरे के मुहाने पर लाकर छोड़ दिया है। इन गरीबों की जिंदगी कभी रोशन हो पाएगी या अंधेरे में ही कटेगी यह कोई नहीं जानता है, हां इतना जरूर हुआ है कि सरकारी सुविधाओं की हकीकत सामने आ गई है।

    बड़वानी जिले में सरकारी अस्पताल में बीते माह मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर लगा, इस आदिवासी अंचल के गरीबों (अधिकांश आदिवासी) को लगा कि मुफ्त में उनकी आंखों को रोशनी मिल जाएगी, यही कारण था कि इस शिविर में 86 बुजुर्गो ने अपनी आंखों के ऑपरेशन करा डाले। ऑपरेशन होने तक तो उन्हें थोड़ा बहुत दिखाई देता था, लेकिन ऑपरेशन के बाद तो अधिकांश मरीजों की आंखों के सामने धुंधला छाया हुआ है।

    कुछ मरीजों ने ऑपरेशन के दूसरे दिन ही खुजली और दर्द की समस्या से अस्पताल पहुंचकर चिकित्सक को बताया, लेकिन चिकित्सकों ने उनकी बात को सामान्य करार देते हुए पांच दिन की दवा दे डाली। उसके बाद इन मरीजों को राहत मिलना तो दूर समस्या और बढ़ती गई। मरीजों को बाद में इंदौर रेफर करना पड़ा। बीते तीन दिनों में 40 से ज्यादा मरीज इंदौर के अरविंदो और एमवायएच अस्पताल में उपचार को पहुंच चुके हैं।

    मरीजों को क्या हुआ है, इसका जवाब संयुक्त संचालक (चिकित्सा) डा. शरद पंडित के पास सिर्फ संक्रमण है और यही बात सरकार के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं। मगर कितने मरीजों की आंखों की रोशनी गई है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। स्वास्थ्य विभाग से लेकर सरकार तक इस बात को बताने से हिचक रही है, कि आखिर कितने मरीजों की आंख अब कभी ठीक नहीं हो पाएगी।

    पूर्व नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विधायक अजय सिंह ने बड़वानी के आंख फोड़वा-कांड को स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही करार देते हुए स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा से इस्तीफे की मांग की है।

    उन्होंने कहा कि प्रदेश की जिस जनता को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना भगवान बताते हैं, उसकी स्थिति कीड़े-मकोड़े जैसी हो गई है। पेटलावद हादसे में 100 से अधिक लोगों की मौत, बड़वानी में 40 से ज्यादा लोगों की आंखों की रोशनी छिनना और किसानों की आत्महत्या वास्तविकता को बयां करता है।

    आखों के ऑपरेशन में लापरवाही उजागर होने पर सरकार ने सक्रियता दिखाई और चिकित्सक डा.आऱ एस़ पलोद सहित छह लोगों को निलंबित कर दिया है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री चौहान ने प्रभावित रोगियों के बेहतर उपचार के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही अस्पतालों के सभी आपरेशन थियेटर्स का तत्काल इन्फेक्शन ऑडिट कराने और कोई कमियां हो तो उन्हें अविलंब दूर करने के निर्देश दिए हैं।

    चिकित्सा जगत से जुड़े चिकित्सकों की मानें तो उनका कहना है कि जब मरीजों ने खुजली सहित अन्य समस्याएं बताई थी, तब इसे गंभीरता से लिया जाता और मरीजों की आंखों का परीक्षण किया जाता तो हो सकता है कि इस स्थिति में पहुंचने से बचा जा सकता था। अब जिन मरीजों की आंखों में मवाद आ रहा है, उनकी आंखों की रोशनी लौट पाना आसान नहीं है।

    सवाल उठ रहा है कि क्या चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों के निलंबन से प्रभावितों की आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी अथवा उनकी जिंदगी में छाने वाले अंधेरे को किसी तरह दूर किया जा सकेगा या सिर्फ यह रस्म अदायगी है, जिससे जनता में गुस्सा न पनपे।

खरी बात

बाल संरक्षण की उलटी चाल

जावेद अनीस 26 साल पहले संयुक्त राष्ट्र की आम सभामें “बाल अधिकार समझौते” को पारित किया गया था जिसके बाद वैश्विक स्तर से बच्चों के अधिकार को गंभीरता से स्वीकार...

आधी दुनिया

शौचालय की समस्या से जूझती महिलायें

उपासना बेहार कितनी विडंबना है कि आजादी के 68 वर्ष बाद भी देश की बड़ी जनसंख्या खुले में शौच करने के लिए मजबूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश...