तनाव से संबंधित जीनों की पहचान
न्यूयॉर्क, 29 मई (आईएएनएस)। वैज्ञानिकों ने सांख्यिकीय रूप से ऐसे दो महत्वपूर्ण जीनों की पहचान की है, जो पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर (पीटीएसडी) का जोखिम बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है।
पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी भयानक घटना को देखना और उसका अनुभव करना शुरू कर देता है।
अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर मुरे बी.स्टीन ने बताया, "हमने दो उल्लेखनीय आनुवांशिक प्रकारों की खोज की है।"
इनमें पहला जीन क्रोमोसोम के पांचवे जोड़े में स्थित एनकेआरडी55 है और दूसरा जीन क्रोमोसोम 19 में स्थित है।
पिछले अनुसंधान में इस जीन का विभिन्न आटोइम्यून और इंफ्लेमेटरी विकारों के साथ संबंध मिला है, जिसमें टाइप 2 मधुमेह सीलिएक और रुमेटी गठिया शामिल है।
इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 13,000 से अधिक अमेरिकी सैनिकों के डीएनए नमूनों का व्यापक रूप से परीक्षण किया था।
यह शोध 'जेएएमए साइकियाट्री' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
--आईएएनएस
मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं कराती हैं सकारात्मक, नकारात्मक घटनाओं का अनुभव
सैन फ्रांसिस्को, 29 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। क्या आपको पता है कि हमारा मस्तिष्क सकारात्मक और नकारात्मक घटनाओं का कैसे अनुभव करता है। दरअसल, हमारे मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं इसके लिए जिम्मेदार होती हैं, जो हमें सकारात्मकता तथा नकारात्मकता का अनुभव कराती हैं। यह दावा एक नए शोध में किया गया है, जिसे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है।
वैज्ञानिकों ने दो शोध तकनीकों को संयोजित कर बताया है कि प्रीफंटल मस्तिष्क कोशिकाएं किस प्रकार मूलत: अलग होती हैं, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों के लिए होती हैं।
यह शोध प्रोफेसर कार्ल डिसेरोथ के नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी, मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान के शोधार्थियों ने किया, जिसके नतीजे ऑनलाइन 'सेल' में प्रकाशित हुए हैं।
प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स स्तनधारी जीव के मस्तिष्क में एक रहस्यमय, पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका सीधा संबंध लोगों के मूड में बदलाव से होता है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की विभिन्न कोशिकाएं सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों की प्रतिक्रिया देती हैं। हालांकि यह किस प्रकार परस्पर विरोधी क्रियाओं को नियंत्रित करता है, इसकी जानकारी अभी नहीं मिल पाई है।
इस नए शोध में शोधार्थियों ने पहली बार दो अत्याधुनिक अनुसंधान तकनीकों ओप्टोजेनेटिक्स और क्लैरिटी का इस्तेमाल किया था, जिसे डिसेरोथ ने विकसित किया।
डिसेरोथ ने बताया, "ये कोशिकाएं अलग ढंग से निर्मित होती हैं और सकारात्मक तथा नकारात्मक घटनाओं के बारे में बताती हैं।"
--आईएएनएस
गर्भनाल को ऐसे संक्रमित करता है जीका वायरस
न्यूयॉर्क, 28 मई (आईएएनएस)। भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने पाया है कि घातक जीका वायरस गर्भनाल की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बगैर नष्ट किए उन्हें संक्रमित कर अपनी संख्या बढ़ाता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, इस संबंध में बहुत कम पता चला है कि वायरस गर्भानाल में कैसे अपनी संख्या में इजाफा करता है और कौन-सी कोशिका को लक्षित करता है।
शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि वायरस हॉफबर कोशिका को संक्रमित करता है, जो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के सृजन से बनती हैं।
शोधार्थियों के अनुसार, ये कोशिकाएं अन्य प्रतिरोधी कोशिकाओं की तुलना में अधिक सहलशील और कम भड़काऊ मानी जाती हैं। हालांकि शोध के दौरान इन कोशिकाओं ने एंटीवायरल और भड़काऊ प्रतिक्रिया दी थी। जिससे अंदाजा लगाया गया है कि जीका वायरस ने इन्हें संक्रमित किया होगा।
यह शोध 'सेल होस्ट एंड माइक्रोब' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
--आईएएनएस
कैंसर कोशिकाओं को मारने के नए तरीके
सिडनी, 27 मई (आईएएनएस)। कैंसर तथा ऑटो इम्यून बीमारियों के इलाज की दिशा में शोधकर्ताओं ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। एक भारतवंशी शोधकर्ता सहित शोधकर्ताओं के एक दल ने शरीर के लिए बेकार कोशिकाओं को खत्म करने की नई विधि खोजी है।
'प्रोग्राम्ड सेल डेथ' यानी 'एपोपटॉसिस' एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो अवांछित कोशिकाओं को शरीर से बाहर करने का काम करती है। एपोपटॉसिस न होने के कारण कैंसर कोशिकाओं का विकास होता है या प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमले करती हैं।
एपोपटॉसिस की प्रक्रिया में 'बाक' नामक प्रोटीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वस्थ कोशिकाओं में बाक प्रोटीन निष्क्रिय अवस्था में रहता है, लेकिन जैसे ही कोशिका को मरने का संकेत मिलता है, बाक प्रोटीन एक किलर प्रोटीन में तब्दील होकर कोशिका को खत्म कर देता है।
अध्ययन के दौरान, विक्टोरिया के वाल्टर एंड एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च की शोधकर्ता श्वेता अय्यर तथा उनके साथियों ने कोशिका को मारने के लिए बाक प्रोटीन को सीधे संकेत देने का एक खास तरीका खोज निकाला है।
शोधकर्ताओं ने एक ऐसे एंटीबॉडी की खोज की है, जो बाक प्रोटीन से संबंधित है और उसे सक्रिय करने का काम करता है।
ऑस्ट्रेलिया के वाल्टर एंड एलिजा हॉल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च रूथ क्लूक ने कहा, "हम इस बात को लेकर बेहद रोमांचित हैं कि हमने बाक को सक्रिय करने के लिए पूरी तरह से एक नया तरीका खोज निकाला है।"
यह अध्ययन पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है।
--आईएएनएस
भविष्य में व्यायाम से हो सकता है कैंसर का उपचार
टोरंटो, 25 मई (आईएएनएस)। व्यायाम शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है, लेकिन व्यायाम के फायदे इससे बहुत ज्यादा हैं। व्यायाम न केवल शरीर को रोगों की चपेट में आने से रोकता है, बल्कि यह कई चिकित्सा में भी मददगार है। अब व्यायाम के फायदों में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है। एक नए शोध में प्रोस्टेट कैंसर पीड़ितों पर नियमित व्यायाम के प्रभावों का आकलन किया जा रहा है।
पहली बार अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक चिकित्सा परीक्षण से प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त पुरुषों के जीवन गुणवत्ता में सुधार के लिए तीव्र शारीरिक व्यायाम के प्रभावों का मूल्यांकन किया जा रहा है।
युनिवर्सिटी ऑफ मांट्रियल रिसर्च सेंटर (सीआरसीएचयूएम) के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर फ्रेड साड मानते हैं कि शारीरिक व्यायाम कैंसर पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। यह दवाओं की ही तरह प्रभावी होकर प्रोस्टेट कैंसर रोगियों के इलाज और यहां तक कि रोग में मददगार हो सकता है।
मेटास्टेसिस (कैंसर का प्रसार) के दौरान रोगियों की जीवनशैली ज्यादातर सुस्त हो जाती है, जिसके पीछे धारणा होती है कि इससे कैंसर की प्रगति प्रभावित होगी।
ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवान युनिवर्सिटी के अंतर्गत एक्सरसाइज मेडिसिन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर रॉबर्ट न्यूटन के साथ मिलकर डॉक्टर फ्रेड डॉ ने वह पहला अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन किया है, जो बताता है कि व्यायाम वास्तव में मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर रोगियों के जीवन को बढ़ाने में मददगार है।
यह शोध आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में शुरू हो चुका है। आने वाले सप्ताहों में पूरे विश्व के 60 अस्पताल रोगियों की भर्ती शुरू कर देंगे। प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित कुल 900 पुरुष इस परीक्षण में भाग लेंगे।
इस शोध के पीछे की परिकल्पना यह है कि व्यायाम कैंसर की प्रगति पर सीधा प्रभाव डालने के साथ ही रोगियों को अधिक बेहतरी से जटिल चिकित्सा थैरेपी बर्दाश्त करने की क्षमता प्रदान करता है।
--आईएएनएस
स्वदेशी आरएलवी का परीक्षण सफल
फकीर बालाजी
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), 23 मई (आईएएनएस)। भारत ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित पुन: उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) का सोमवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने आईएएनएस को बताया, "हमने आरएलवी-टीडी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यान को यहां से सुबह सात बजे छोड़ा गया।"
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
मुखर्जी ने अपने संदेश में कहा, "भारत के पहले स्वदेशी अंतरिक्ष शटल आरएलवी-टी के सफल प्रक्षेपण पर इसरो के दल को हार्दिक बधाई।"
मोदी ने अपने ट्वीट में कहा, "जिस गतिशीलता और समर्पण के साथ पिछले कई सालों से हमारे वैज्ञानिकों और इसरो ने मिलकर काम किया है, वह बहुत ही असाधारण और प्रेरणादायक है।"
यह मिनी अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 70 किलोमीटर ऊपर 10 मिनट की उड़ान के बाद वापस श्रीहरिकोटा से लगभग 450 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में निर्धारित स्थान के पास सहजता से उतरा।
इस 1.7 टन वजनी आरएलवी को आंध्र प्रदेश में इसरो के अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया।
इस मिशन के सफल होने के बाद भारत, अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों की कतार में खड़ा हो गया है, जिनके पास आरएलवी अंतरिक्ष यान हैं।
गौरतलब है कि इस परीक्षण के लिए बूस्टर के साथ सात मीटर लंबे रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जिसका वजन 17 टन था।
इस मिशन से इसरो हाइपरसोनिक गति, स्वायत्त लैंडिंग के डेटा संग्रहित करने में सक्षम हो गया है।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के.सिवन ने आईएएनएस से कहा, "इस मिशन का दीर्घकालिक उद्देश्य फिर से इस्तेमाल किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के जरिए प्रक्षेपण पर आने वाली लागत को 80 प्रतिशत तक घटाना है।"
अंतरिक्ष एजेंसियां पृथ्वी की कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए मध्यम से भारी वजन के प्रक्षेपण यानों के निर्माण और इस्तेमाल पर प्रति किलोग्राम 20,000 डॉलर तक खर्च करती हैं।
सिवन ने कहा, "आगामी परीक्षण उड़ानों में हम दोबारा प्रयोग किए जाने वाले यान को जमीन पर किसी निश्चित स्थान पर उतारने की कोशिश करेंगे। यह उसी तरीके से होगा, जिस प्रकार से विमान रनवे पर उतरता है, ताकि हम उपग्रह छोड़ने के लिए इसका दोबारा इस्तेमाल कर सकें।"
इस आरएलवी प्रौद्योगिकी को करीब 100 करोड़ रुपये (1.40 करोड़ डॉलर) की लागत से विकसित किया गया है।
सिवन ने आगे कहा, "इस जटिल प्रौद्योगिकी को विकसित करने और दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले यान के निर्माण में एक दशक से ज्यादा का समय लगा है और इसे हमने अपने संसाधनों से बनाने में कामयाबी हासिल की है।"
अंतरिक्ष एजेंसी ने परीक्षण किए गए यान से पहले दो और आरएलवी प्रोटोटाइप का निर्माण किया था, जिनमें दूसरे फीचर्स थे और वे अंतिम यान से छह गुना बड़े थे।
अमेरिकी अरबपति इलोन मस्क की स्पेस एक्स और अमेजन के मालिक जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन ने हाल ही में इसी प्रकार के परीक्षण किए हैं।
स्पेस एक्स ने फाल्कन 9 रॉकेट का परीक्षण दिसंबर में किया, जबकि ब्लू ओरिजिन ने अप्रैल में न्यू सेपार्ड का तीसरा परीक्षण पूरा किया।
नासा ने हालांकि 2011 में इस प्रकार के रॉकेट कार्यक्रम रोक दिए थे। इससे पहले नासा पिछले तीन दशकों से डिस्कवरी, एंडेवर, कोलंबिया और चैलेंजर रॉकेट का इस्तेमाल अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली के तौर पर कर रहा था।
--आईएएनएस
स्वदेशी आरएलवी का प्रक्षेपण सफल
फकीर बालाजी
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), 23 मई (आईएएनएस)। भारत ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित पुन: उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) का सोमवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने आईएएनएस को बताया, "हमने आरएलवी-टीडी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इसे यहां से सुबह सात बजे प्रक्षेपित किया गया।"
यह मिनी अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 70 किलोमीटर ऊपर 10 मिनट की उड़ान के बाद वापस श्रीहरिकोटा से लगभग 450 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में निर्धारित स्थान के पास सहजता के साथ उतरा।
इस 1.7 टन वजनी आरएलवी को आंध्र प्रदेश में इसरो के अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया।
इस मिशन के सफल होने के बाद भारत, अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों की कतार में खड़ा हो गया है, जिनके पास आरएलवी अंतरिक्ष यान हैं।
गौरतलब है कि इस उड़ान परीक्षण के लिए बूस्टर के साथ सात मीटर लंबे रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जिसका वजन 17 टन था।
इस मिशन से इसरो हाइपरसोनिक गति, स्वायत्त लैंडिंग के डेटा संग्रहित करने में सक्षम हो गया है।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के.सिवन ने आईएएनएस को बताया, "इस मिशन का दीर्घकालिक उद्देश्य फिर से इस्तेमाल किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के जरिए लांच पर आने वाली लागत को 80 प्रतिशत तक घटाना है।"
अंतरिक्ष एजेंसियां पृथ्वी की कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए मध्यम से भारी वजन के रॉकेटों के निर्माण और इस्तेमाल पर प्रति किलोग्राम 20,000 डॉलर तक खर्च करती हैं।
सिवन ने बताया, "आगामी परीक्षण उड़ानों में हम दोबारा प्रयोग किए जानेवाले यान को जमीन पर किसी निश्चित स्थान पर उतारने की कोशिश करेंगे। यह उसी तरीके से होगा, जिस प्रकार से विमान रनवे पर उतरता है, ताकि हम उपग्रह छोड़ने के लिए इसका दोबारा इस्तेमाल कर सकें।"
इस आरएलवी प्रौद्योगिकी को करीब 100 करोड़ रुपये (1.40 करोड़ डॉलर) की लागत से विकसित किया गया है।
सिवन ने आगे कहा, "इस जटिल प्रौद्योगिकी को विकसित करने और दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले यान के निर्माण में एक दशक से ज्यादा का समय लगा है और इसे हमने अपने संसाधनों से बनाने में कामयाबी हासिल की है।"
अंतरिक्ष एजेंसी ने परीक्षण किए गए यान से पहले दो और आरएलवी प्रोटोटाइप का निर्माण किया था, जिनमें दूसरे फीचर्स थे और वे अंतिम यान से छह गुणा बड़े थे।
अमेरिकी अरबपति इलोन मस्क की स्पेस एक्स और अमेजन के मालिक जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन ने हाल ही में इसी प्रकार के परीक्षण किए हैं।
स्पेस एक्स ने फाल्कन 9 रॉकेट का परीक्षण दिसंबर में किया, जबकि ब्लू ओरिजिन ने अप्रैल में न्यू सेपार्ड का तीसरा परीक्षण पूरा किया।
नासा ने हालांकि 2011 में इस प्रकार के रॉकेट के कार्यक्रम को रोक दिया था। इससे पहले नासा पिछले तीन दशकों से डिस्कवरी, एंडेवर, कोलंबिया और चैलेंजर रॉकेट का इस्तेमाल अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली के तौर पर कर रहा था।
--आईएएनएस
हपेटाइटिस-सी के मरीजों के लिए शराब जानलेवा
न्यूयॉर्क, 16 मई (आईएएनएस)। शराब का सेवन लिवर के खराब होने और हैपेटाइटिस-सी वायरस से मौत के खतरे को बढ़ा सकता है। यह जानकारी एक ताजा अध्ययन से मिली है। हैपेटाइटिस-सी से पीड़ित अधिकतर लोग या तो पहले या वर्तमान समय में अधिक शराब पीने वाले होते हैं।
हैपेटाइटिस-सी के मरीजों के लिए शराब का सेवन विशेष रूप से नुकसानदेह है।
अध्ययन के परिणाम से पता चलता है कि हैपेटाइटिस सी से संक्रमित लोग हैपेटाइटिस-सी से नहीं संक्रमित या जो कभी शराब नहीं पीते या अधिक शराब नहीं पीते उनकी तुलना में प्रतिदिन तीन गुना या कहें तो पांच या छह बार अधिक शराब पीते हैं।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन्स डिवीजन ऑफ वायरल हैपेटाइटिस के अंबर एल. टेलर कहते हैं कि शराब हैपेटाइटिस सी से पीड़ित लोगों में अंगों में रेशेदार तंतुओं का तेजी बनने की बीमारी फाइब्रोसिस और लिवर के सामान्य काम करने में बाधा उत्पन्न करने वाली बीमारी सिरोसिस को तेजी से बढ़ाता है। इसकी वजह से उनके लिए शराब पीना एक जानलेवा गतिविधि हो जाती है।
यह अध्ययन रिपोर्ट 'अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसीन' में प्रकाशित हुई है। इसमें टेलर कहते हैं, वर्ष 2010 में हैपेटाइटिस-सी से पीड़ित लोगों में शराब से जुड़ी लिवर की बीमारी से मरने का तीसरा सबसे बड़ा कारण था।
शराब पीने और हैपेटाइटिस-सी के बीच का रिश्ता समझने के लिए जांचकर्ताओं ने खुद कौन कितनी शराब पीता है इसकी जानकारी ली।
इस अध्ययन दल ने हैपेटाइटिस-सी से संक्रमण दर को जानने के चार समूहों का अध्ययन किया। पहला समूह जो जीवन में कभी शराब नहीं पीने वाला था, दूसरा पहले शराब पीता था, एक समूह ऐसा था जो शराब अब भी पीता था लेकिन अधिक नहीं और चौथा समूह वर्तमान समय में अधिक शराब पीने वालों का था।
जिन लोगों ने इस अध्ययन में हिस्सा लिया था और हैपेटाइटिस-सी से संक्रमित पाए गए थे। उनमें से आधे को इसका पता नहीं था कि उन्हें हैपेटाइटिस-सी है।
टेलर कहते हैं कि हैपेटाइटिस-सी के संक्रमण के साथ जी रहे सभी लोगों में आधे को तो जब वे शराब पीते थे तो उन्हें संक्रमित होने का पता भी नहीं था और न ही उन्हें सेहत को गंभीर खतरे के बारे में कोई जानकारी थी।
इस अध्ययन के द्वारा मुहैया कराई गई नई जानकारी हैपेटाइटिस-सी होते हुए भी कौन कितना शराब पीता है उस पर रोशनी डालने में मददगार है।
इससे जिन मरीजों का इलाज चल रहा है उनका और जो इसमें हस्तक्षेप चाहते हैं दोनों के लिए जो सबसे बेहतर मार्गदर्शन में इस अध्ययन का निष्कर्ष मददगार हो सकता है।
इसमें रणनीति इस पर जोर देने की होनी चाहिए कि जिन लोगों की जांच नहीं की गई है उन लोगों में हैपेटाइटिस-सी की जांच कराने के बारे में जागरूकता फैलाई जाए, ताकि इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सके और जो इससे संक्रमित हैं उनका जीवन बचाने के लिए उनका इलाज शुरू किया जा सके।
--आईएएनएस
स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए नंगे पैर दौड़ें
न्यूयार्क, 15 मई (आईएएनएस)। स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए नंगे पैर दौड़ना जूते पहन कर दौड़ने से कहीं ज्यादा बेहतर है। एक नए शोध से यह जानकारी मिली है।
हमें अपने समूचे जीवनकाल में स्मरणशक्ति तेज होने की जरूरत पड़ती है। अगर आपकी याददाश्त तेज होती है तो इसका फायदा आपको स्कूल से लेकर दफ्तर तक और सेवानिवृत्ति के बाद भी मिलता है।
शोधकर्ताओं में से एक अमेरिका के नार्थ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के ट्रासे एलोवे का कहना है, "यह शोध उन लोगों के लिए काफी काम का है, जो अपनी स्मरणशक्ति बढ़ाने के तरीके ढूंढ़ते रहते हैं।"
यह शोध परसेपट्यूअल एंड मोटर स्किल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि नंगे पैर दौड़ने से हमारी याददाश्त लगभग 16 फीसदी बढ़ जाती है।
नार्थ फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के एक अन्य शोधार्थी रोज एलोवे का कहना है, "अगर हम जूते उतार कर दौड़ने जाते हैं, तो दौड़ खत्म करते-करते हम कहीं ज्यादा स्मार्ट बन जाते हैं।"
नंगे पांव दौड़ने के दौरान हम पैरों का संचालन काफी ध्यान लगाकर करते हैं कि कोई चीज चुभ न जाए या कहीं गलत जगह पांव न पड़ जाए।
रोज एलोवे बताते हैं कि यह संभव है कि नंगे पांव दौड़ने के दौरान हमें अपने दिमाग पर काफी ध्यान देना पड़ता है। इसलिए हमारी स्मरणशक्ति तेज हो जाती है।
--आईएएनएस
बचपन की आक्रामकता को कम करता है ओमेगा-3 फैटी एसिड
न्यूयार्क, 15 मई (आईएएनएस)। ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन बच्चों की आक्रामकता को कम करने में सहायक साबित हो सकता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड स्वाभाविक रूप से फैटी मछली जैसे टूना, समुद्री खाद्य पदार्थो और कुछ नट तथा बीजों में पाए जाते हैं।
निष्कर्षों से पता चला है कि बच्चों के आहार में ओमेगा-3, विटामिन, खनिज की खुराक शामिल करने से उनके आक्रामक और असामाजिक व्यवहार में कमी लाई जा सकती है।
इस शोध के लिए अध्ययनकर्ताओं ने 11 से 12 साल के 290 बच्चों और उनके आक्रामक व्यवहारों पर लगातार शोध किया।
इस दौरान, इन जिन बच्चों को संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी और ओमेगा-3 अनुपूरक का संयोजन दिया गया। ऐसे बच्चों में अन्य बच्चों की तुलना में कम आक्रामकता पाई गई।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया से थेरेस रिचमंड ने बताया, "लगातार तीन महीनों तक ओमेगा-3 युक्त आहार देने पर बच्चों के व्यवहार में आक्रामकता काफी हद तक कम हुई।"
यह शोध 'जर्नल ऑफ चाइल्ड साइकोलॉजी एंड साइकियाट्री' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
--आईएएनएस
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- »
- End
खरी बात
मोदी के सरकार दो साल- क्या किसी के पास दूसरा तथ्य है या एक ही सत्य है
रवीश कुमार मई का महीना समीक्षा का होता है। भारतीय लोकतंत्र के इस रूटीन उत्सव में यही एक महीना होता है जिसमें सरकार हमेशा अच्छा करती है। दबी ज़ुबान आलोचना...
आधी दुनिया
14 फीसदी भारतीय कारोबार की लगाम महिलाओं के हाथ
ऋचा दूबे एक ऑनलाइन खुदरा कारोबार चलाती हैं, जो कारीगरों को उपभोक्ताओं से जोड़ता है। यह आधुनिक भारतीय महिला के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन हाल के आंकड़ों...
जीवनशैली
पोर्नोग्राफी से बढ़ता है धर्म के प्रति झुकाव : अध्ययन
न्यूयॉर्क, 30 मई (आईएएनएस)। आप इसे विचित्र कह सकते हैं, लेकिन ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि जो लोग हफ्ते में एक बार से अधिक अश्लील फिल्म...