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Tuesday, 31 May 2016 00:00

कैंसर शोध में लगे वैज्ञानिकों का तंबाकू कंपनियों में निवेश

बीजिंग, 31 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। कैंसर का इलाज खोजने के लिए खुद को प्रतिबद्ध बताने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिकों के एक समूह ने अपने सबसे बड़े दुश्मन तंबाकू उद्योग में निवेश कर रखा है।

ब्रिटेन के समाचार पत्र 'द गार्जियन' ने सोमवार को खुलासा किया है कि लंदन केकैंसर शोध और जागरूकता संस्था, कैंसर रिसर्च यूके (सीआरयूके) के शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने अपनी सेवानिवृत्ति निधि को ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको कंपनी (बैट) में निवेश कर रखा है।

विश्वविद्यालयों के व्याख्याताओं और कर्मचारियों का लेखा-जोखा देखने वाली युनिवर्सिटीज सुपरएन्योएशन स्कीम (यूएसएस) की नवीनतम वार्षिक रपट से पता चला है कि मार्च 2015 में बैट कंपनी में लगभग 31 करोड़ डॉलर का निवेश किया गया है।

धूम्रपान के खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल होने वाला पैसा तंबाकू उद्योग में निवेशित हो रहा है, यह वाकई एक बड़ा झटका है।

सीआरयूके से जुड़े कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें इस तरह की संस्थाओं में निवेश करने के लिए बाध्य किया गया है।

एक गुप्त शोधार्थी ने अखबार से कहा, "सीआरयूके का धन का तंबाकू उद्योग के विकास और सहयोग में इस्तेमाल किया जा रहा है।"

अमेरिका के निवेशकों के इस निर्णय का विभिन्न प्राध्यापकों और कुलपतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली युनिवर्सिटीज यूके के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी निवेशकों की पसंद का बचाव किया है।

--आईएएनएस

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Tuesday, 31 May 2016 00:00

पुराने दर्द को बढ़ा सकती हैं दर्द निवारक दवाएं

न्यूयॉर्क, 31 मई (आईएएनएस)। अल्पकालिक दर्द को दूर करने में दर्द निवारक का सेवन स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक दुष्प्रभाव डाल सकता है। नए शोध में चेतावनी दी गई है कि दर्द निवारक खाने से कई पुराने दर्द की अवधि बढ़ जाती है।

इन निष्कर्षों ने पिछले कुछ दशकों में दर्द निवारक दवा की लत के दुष्परिणामों की जानकारी दी है।

अमेरिका की युनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बाउल्डर से इस अध्ययन के मुख्य लेखक पीटर ग्रेस ने कहा, "हमने अपने शोध के जरिए बताया है कि मादक दवाओं का संक्षिप्त सेवन दर्द पर लंबी अवधि के नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।"

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि नशीले पदार्थ जैसे अफीम ने चूहों के पुराने दर्द में वृद्धि कर दी।

ग्रेस के अनुसार, परिणाम बताते हैं मानवों में दर्द निवारकों की वृद्धि पुराने दर्द को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है। हमने पाया है कि यह उपचार समस्या को हल करने के बजाए उसे बढ़ा सकता है।

यह शोध 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

--आईएएनएस

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Tuesday, 31 May 2016 00:00

तालिबान ने 17 बंधकों की हत्या की, 18 अभी भी कब्जे में

काबुल, 31 मई (आईएएनएस)। अफगानिस्तान के कुंदुज प्रांत में तालिबान आतंकवादियों ने मंगलवार को लगभग 200 बस मुसाफिरों को अगवा कर बंधक बना लिया। इनमें 17 यात्रियों की हत्या कर दी गई जबकि 18 अभी भी आतंकियों के कब्जे में हैं।

स्थानीय सरकारी अधिकारियों ने खामा प्रेस के हवाले से तालिबान द्वारा अगवा यात्रियों में से 12 की हत्या की पुष्टि की है।

एक सुरक्षा अधिकारी शिर अजीज कामावल ने बताया कि आतंकवादियों ने कम से कम 17 यात्रियों की हत्या की है, जिन्हें कुदुंज-ताखुर राजमार्ग से अगवा किया गया था।

इस राजमार्ग पर एक चेकपोस्ट बनाकर तालिबान आतंकवादियों ने कम से कम 185 यात्रियों का रात 2 बजे अपहरण कर लिया।

आंतकवादियों ने चार बसों, तीन कारें और तीन वैन में सवार यात्रियों का अपहरण किया। बाद में ज्यादातर यात्रियों को छोड़ दिया गया। लेकिन, इनमें से कम से कम 17 यात्रियों को तालिबानियों ने मार डाला।

अधिकारियों का कहना है कि तालिबानियों के कब्जे में कम से कम 18 यात्री हैं और उनकी सुरक्षित रिहाई की कोशिशें जारी हैं।

तालिबान ने अभी तक इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है और यह भी अभी साफ नहीं हुआ है कि अगवा किए गए कुछ यात्रियों की हत्या क्यों की गई।

कुंदुज में पिछले दो महीनों से सुरक्षा की स्थिति काफी बिगड़ गई है और तालिबानी आतंकवादी उत्तरी प्रांतों को अस्थिर करने में जुटे हैं।

तालिबानी आतंकवादियों ने प्रांतीय राजधानी कुंदुज पर पिछले साल कब्जा जमा लिया था, लेकिन बाद में अफगान सुरक्षा बलों ने उसे छुड़ाने में कामयाबी हासिल की थी।

तालिबान ने अपने नए सरगना मौलवी हैबतुल्ला के नेतृत्व में साफ कर दिया है कि वे अफगान सरकार के साथ किसी शांति वार्ता में भाग नहीं लेंगे।

इस आतंकवादी समूह के पिछले सरगना मुल्ला अख्तर मोहम्मद मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत हो गई थी, जिसके बाद नए प्रमुख को चुना गया है।

--आईएएनएस

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Tuesday, 31 May 2016 00:00

बड़े बांध हैं दुनिया भर में विभिन्न प्रजातियों की विलुप्ति का कारण

लंदन, 31 मई (आईएएनएस)। स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ स्टर्लिग के एक अध्ययन में पाया गया है कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बनाए गए अभ्यारण्य इन्हें वनों की कटाई और शिकार से तो बचाते हैं, लेकिन बड़े बांधों के कारण बनने वाले ये संरक्षित जलीय द्वीप दुनिया भर में बड़े पैमाने पर कई प्रजातियों के नष्ट होने की वजह बन रहे हैं।

मुख्य शोधार्थी इजाबेल जोन्स के मुताबिक, "हमने अपने अध्ययन के दौरान विभिन्न जलाशय द्वीपों में समय के साथ कई प्रजातियों में बहुत अधिक कमी पाई। इन द्वीपों में पास की मुख्य भूमि की तुलना में 35 फीसदी कम प्रजातियां पाई गईं। इन जलाशय द्वीपों के कारण दक्षिण अमेरिका में एक पक्षी समूह में 87 फीसदी प्रजाति कम हो गई है।"

जोन्स ने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बांध किस जगह पर स्थित है या फिर उसका आकार क्या है और वहां कौन-कौन सी प्रजातियां हैं। वहां प्रजातियों का निरंतर नुकसान होता है और अभी भी जितने बांध हैं, वहां ऐसा हो रहा है।"

यह शोध बॉयोलॉजिकल कंजरवेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने 200 से ज्यादा बांधों का अध्ययन किया जिसमें ब्राजील का बालबीना जलाशय और चीन की थाउसैंड आईलैंड लेक भी शामिल थे। शोध के दौरान पक्षी, स्तनधारी, उभयचर, सरीसृप, अपृष्ठवंशी जानवर और पेड़-पौधों का अध्ययन किया गया। इनकी कई प्रजातियों में बांधों के असर से उल्लेखनीय कमी पाई गई।

दुनिया भर 50,000 से भी ज्यादा बड़े बांध हैं। अमेजन बेसिन जैसे अत्यधिक जैविक विविधता वाले क्षेत्र में भी ये हैं। ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अभी कई बांधों की योजनाएं बनाई जा रही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जैविक प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए काफी कुछ करने की जरूरत है।

सहशोधार्थी इंग्लैंड के नोरविच की ईस्ट एंगलिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्लोस पेरेस का कहना है, "प्रमुख पनबिजली परियोजनाओं के जीव-जन्तुओं पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए अगल से उष्टकटिबंधीय वनों का निर्माण किया जाता है, लेकिन यह एक मृगतृष्णा है। क्योंकि, इन कृत्रिम जलाशय द्वीपों में स्थलीय प्रजातियां व कई प्रजातियां फंस कर रह जाती हैं और धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती है। इसलिए हमें नई अवसंरचानओं के विकास के समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।"

पेरेस कहते हैं, "इसलिए इन बांधों को बनाने की अनुमति देने से पहले कड़े पर्यावरण नियम लागू करने चाहिए।"

--आईएएनएस

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Monday, 30 May 2016 00:00

पोर्नोग्राफी से बढ़ता है धर्म के प्रति झुकाव : अध्ययन


न्यूयॉर्क, 30 मई (आईएएनएस)। आप इसे विचित्र कह सकते हैं, लेकिन ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि जो लोग हफ्ते में एक बार से अधिक अश्लील फिल्म (पोर्नोग्राफी) देखते हैं उनमें धार्मिक होने का अधिक रुझान रहता है। यह उनके साथ जुड़े अपराध भाव की वजह से हो सकता है।

समाजशास्त्र एवं धार्मिक अध्ययन मामलों के सहायक प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता सैमुएल र्पेी के अनुसार, "अश्लील चित्र देखना दोषी महसूस करने के लिए प्रेरित कर सकता है खासकर जब कोई व्यक्ति अपने धर्म के नियम का उल्लंघन कर रहा हो।"

'सेक्स रिसर्च' नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन रिपोर्ट में उन्होंने कहा है, ' पोर्नोग्राफी देखने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है, हो सकता है कि लोग अपने व्यवहार को तर्कसंगत बनाने या जिनसे लगता है कि वे कसूरवार हैं उससे बाहर आने के लिए यह उन्हें धर्म की ओर मोड़ती है।"

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों पर छह साल तक नजर रखी और इस अवधि में उन्होंने पोर्नोग्राफी कितनी देखी और धार्मिक कितने रहे, इसका आकलन किया।

इस नमूने में देश भर का प्रतिनिधित्व करने वाले 1314 लोगों के एक समूह को शामिल किया गया। इस समूह ने पोर्नोग्राफी इस्तेमाल और धार्मिक आदतों से जुड़े सवालों का जवाब दिया।

अध्ययन में कहा गया है कि उम्र और लिंग जैसे नियंत्रक कारकों के बाद पोर्नोग्राफी को कम धार्मिकता से जुड़ा देखा जा रहा था। यह स्थिति तब रही जब तक पोर्नोग्राफी हफ्ते में एक बार से अधिक नहीं हो गई। ऐसी स्थिति में धार्मिकता बढ़ गई।

इस शोध के लेखकों ने कहा लिखा है कि विद्वान जहां यह मानते हैं कि अधिक धार्मिक होने से पोर्नोग्राफी का इस्तेमाल कम होगा किसी ने भी अनुभव के आधार पर इसकी जांच नहीं की कि क्या इसका उल्टा भी सच हो सकता है।

इस अध्ययन निष्कर्ष से पता चलता है कि पोर्नोग्राफी देखने से हो सकता है कि कुछ पैमाने पर धार्मिकता में कमी आए लेकिन इसका चरम स्तर वास्तव में धर्म के प्रति झुकाव को बढ़ा सकता है या कम से कम धर्म की ओर ले जाने में अधिक सहायक हो सकता है।

--आईएएनएस

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Monday, 30 May 2016 00:00

चाड के पूर्व राष्ट्रपति को आजीवन कारावास की सजा

डकार, 30 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। सेनेगल की राजधानी डकार में अफ्रीकी संघ द्वारा स्थापित एक विशेष अदालत ने चाड के पूर्व राष्ट्रपति हिसेन हाब्रे को युद्ध अपराधों में संलिप्तता के लिए सोमवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

अदालत ने हाब्रे को दुष्कर्म, यौन दास बनाने, आत्महत्या के लिए उकसाने, व्यापक तौर पर मानव तस्करी, अपहरण, उत्पीड़न तथा युद्ध अपराधों में दोषी पाया। उन्हें मानवता के खिलाफ अपराध करने का दोषी पाया गया है।

चाड के पूर्व राष्ट्रपति के पास फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 15 दिनों का वक्त है।

मामले की सुनवाई 20 जुलाई, 2015 को अफ्रीकन स्पेशल कोर्ट में शुरू हुई थी, जो 56 दिनों तक चली। इस दौरान 93 गवाहों से जिरह की गई।

अफ्रीकन स्पेशल कोर्ट की स्थापना अफ्रीकी संघ ने की है, जिसके अधिकार क्षेत्र को हाब्रे ने चुनौती दी थी।

अपनी अर्जी में अदालत के अभियोजक सेनेगल के एंबे फाल ने न्यायाधीश से चाड के पूर्व राष्ट्रपति को आजीवन कारावास की सजा देने का आग्रह किया था। उन्होंने हाब्रे की संपत्ति को जब्त करने का आदेश देने का भी अदालत से आग्रह किया।

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Sunday, 29 May 2016 00:00

तनाव से संबंधित जीनों की पहचान

न्यूयॉर्क, 29 मई (आईएएनएस)। वैज्ञानिकों ने सांख्यिकीय रूप से ऐसे दो महत्वपूर्ण जीनों की पहचान की है, जो पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर (पीटीएसडी) का जोखिम बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है।

पोस्ट-ट्रॉमैटिकस्ट्रेस डिसार्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी भयानक घटना को देखना और उसका अनुभव करना शुरू कर देता है।

अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर मुरे बी.स्टीन ने बताया, "हमने दो उल्लेखनीय आनुवांशिक प्रकारों की खोज की है।"

इनमें पहला जीन क्रोमोसोम के पांचवे जोड़े में स्थित एनकेआरडी55 है और दूसरा जीन क्रोमोसोम 19 में स्थित है।

पिछले अनुसंधान में इस जीन का विभिन्न आटोइम्यून और इंफ्लेमेटरी विकारों के साथ संबंध मिला है, जिसमें टाइप 2 मधुमेह सीलिएक और रुमेटी गठिया शामिल है।

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 13,000 से अधिक अमेरिकी सैनिकों के डीएनए नमूनों का व्यापक रूप से परीक्षण किया था।

यह शोध 'जेएएमए साइकियाट्री' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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Sunday, 29 May 2016 00:00

मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं कराती हैं सकारात्मक, नकारात्मक घटनाओं का अनुभव

सैन फ्रांसिस्को, 29 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। क्या आपको पता है कि हमारा मस्तिष्क सकारात्मक और नकारात्मक घटनाओं का कैसे अनुभव करता है। दरअसल, हमारे मस्तिष्क की अलग-अलग कोशिकाएं इसके लिए जिम्मेदार होती हैं, जो हमें सकारात्मकता तथा नकारात्मकता का अनुभव कराती हैं। यह दावा एक नए शोध में किया गया है, जिसे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है।

वैज्ञानिकों ने दो शोध तकनीकों को संयोजित कर बताया है कि प्रीफंटल मस्तिष्क कोशिकाएं किस प्रकार मूलत: अलग होती हैं, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों के लिए होती हैं।

यह शोध प्रोफेसर कार्ल डिसेरोथ के नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी, मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान के शोधार्थियों ने किया, जिसके नतीजे ऑनलाइन 'सेल' में प्रकाशित हुए हैं।

प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स स्तनधारी जीव के मस्तिष्क में एक रहस्यमय, पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका सीधा संबंध लोगों के मूड में बदलाव से होता है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की विभिन्न कोशिकाएं सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों की प्रतिक्रिया देती हैं। हालांकि यह किस प्रकार परस्पर विरोधी क्रियाओं को नियंत्रित करता है, इसकी जानकारी अभी नहीं मिल पाई है।

इस नए शोध में शोधार्थियों ने पहली बार दो अत्याधुनिक अनुसंधान तकनीकों ओप्टोजेनेटिक्स और क्लैरिटी का इस्तेमाल किया था, जिसे डिसेरोथ ने विकसित किया।

डिसेरोथ ने बताया, "ये कोशिकाएं अलग ढंग से निर्मित होती हैं और सकारात्मक तथा नकारात्मक घटनाओं के बारे में बताती हैं।"

--आईएएनएस

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न्यूयॉर्क, 28 मई (आईएएनएस)। भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने पाया है कि घातक जीका वायरस गर्भनाल की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बगैर नष्ट किए उन्हें संक्रमित कर अपनी संख्या बढ़ाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस संबंध में बहुत कम पता चला है कि वायरस गर्भानाल में कैसे अपनी संख्या में इजाफा करता है और कौन-सी कोशिका को लक्षित करता है।

शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि वायरस हॉफबर कोशिका को संक्रमित करता है, जो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के सृजन से बनती हैं।

शोधार्थियों के अनुसार, ये कोशिकाएं अन्य प्रतिरोधी कोशिकाओं की तुलना में अधिक सहलशील और कम भड़काऊ मानी जाती हैं। हालांकि शोध के दौरान इन कोशिकाओं ने एंटीवायरल और भड़काऊ प्रतिक्रिया दी थी। जिससे अंदाजा लगाया गया है कि जीका वायरस ने इन्हें संक्रमित किया होगा।

यह शोध 'सेल होस्ट एंड माइक्रोब' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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Saturday, 28 May 2016 00:00

अफ्रीकी लोगों पर हमला गंभीर मुद्दा : येचुरी

नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)। भारत में अफ्रीकी नागरिकों पर हमले की आलोचना करते हुए मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने शनिवार को कहा कि संभावित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं को देखते हुए ऐसा हमला एक गंभीर मुद्दा है।

येचुरी ने एक ट्वीट में कहा, "अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं को देखते हुए दिल्ली में अफ्रीकियों पर हमला एक गंभीर मुद्दा है। भारत सरकार उन्हें दूर रखना नहीं चाह सकती।"

येचुरी की यह प्रतिक्रिया हैदराबाद में पार्किं ग स्थल के विवाद को लेकर एक नाइजीरियाई छात्र की कथित रूप से पिटाई करने के बाद आई है।

यह घटना दक्षिण दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एक छोटे विवाद को लेकर कांगो के एक 23 वर्षीय नागरिक को पीट कर हत्या कर देने के कुछ ही दिनों बाद की है।

इस तरह के हमलों की घटनाओं ने दिल्ली में अफ्रीकी राजदूतों को नाराज कर दिया है। उन राजदूतों ने भारत सरकार से विरोध दर्ज कराया है। सरकार ने भारत में पढ़ रहे हजारों विद्यार्थियों को सुरक्षा मुहैया कराने का आश्वासन दिया है।

कांगों के नागरिक पर हमले की डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किनशास में प्रतिक्रिया दिखी, जहां दिल्ली की घटना के बदले की कार्रवाई में भारतीय दुकानों को निशाना बनाया गया एवं कुछ भारतीय घायल हो गए।

--आईएएनएस

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