सुजीत चक्रवर्ती
अगरतला, 14 जनवरी (आईएएनएस)। बालमदीना एक्का के लिए यह एक बेहद मर्मस्पर्शी क्षण था। वह अपने पति की मौत के 45 साल बाद उनकी कब्र पर पहुंची थीं। उन्होंने वहां की मिट्टी उठाई। वह इसे अपने साथ घर लेकर जाएंगी।
बालमदीना 1971 की बांग्लादेश की जंग के नायक शहीद लांस नायक अल्बर्ट एक्का की विधवा हैं। एक्का को देश के वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था।
बालमदीना की अपने पति के कब्रिस्तान तक की यह यात्रा एक संशय को मिटाने की भी यात्रा थी। बीते साल एक्का परिवार ने उस कलश को लेने से मना कर दिया था, जिसमें एक्का की कब्र की मिट्टी रखी हुई थी। परिवार ने इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाया था।
एक्का परिवार का 12 सदस्यीय दल इस हफ्ते के शुरू में झारखंड के दुमका से अगरतला से 15 किलोमीटर दक्षिण में स्थित दुकली के स्रीपल्ली गांव पहुंचा। इसमें बालमदीना के अलावा उनके पुत्र विंसेंट एक्का और बहू रजनी एक्का भी शामिल थे। स्रीपल्ली गांव में भारतीय सेना के 14 गार्ड रेजीमेंट के एक्का और 10 अन्य सैनिक दफन हैं। इनकी शहादत तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के ब्रह्मनबरहिया जिले के गंगासागर में एक चौकी पर कब्जे के लिए पाकिस्तानी सेना से हुए संघर्ष में हुई थी। एक्का उस वक्त 28 साल के थे।
स्थानीय ग्रामीणों ने भुबन दास के नेृत्व में गांव में इन शहीदों की याद में एक छोटा स्मारक बनाया है।
दास ने आईएएनएस से कहा, "1971 से ही हर विजय दिवस पर हम स्मारक पर फूल चढ़ाते रहे हैं और आगे भी ऐसा करते रहेंगे।"
विजय दिवस वर्ष 1971 की जंग में भारतीय सेना के हाथों पाकिस्तानी सेना की हार की याद में मनाया जाता है।
एक्का को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। बांग्लादेश ने उन्हें 'फ्रेंड्स ऑफ लिबरेशन वार' सम्मान से नवाजा था। 26 जनवरी 2000 को भारत सरकार ने एक्का की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था।
एक्का की विधवा बालमदीना (73) ने कहा, "मैंने अपने पति की कब्रिस्तान की पवित्र मिट्टी ली है। मैं अपने गांव जारी में उनका स्मारक बनाना चाहती हूं, ताकि लोग उनके बलिदान को याद रखें। मैं खुश हूं और अपने पति की मौत के बारे में मेरे सभी संशय दूर हो गए हैं।"
विंसेंट एक्का ने आईएएनएस से कहा, "अगर बांग्लादेश सरकार की इजाजत मिली तो हम गंगासागर जाना चाहेंगे जहां आज से 45 साल पहले मेरे पिता ने जान की कुर्बानी दी थी।" उन्होंने कहा कि वे यही अनुष्ठान गंगासागर में भी करना चाहेंगे।
बीते नवंबर महीने में झारखंड के मुख्यमंत्री ने भारतीय सेना की मदद से लाई गई एक्का की कब्र की मिट्टी उनके परिजनों को दी थी। लेकिन, परिजनों ने इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाया था।
इसके बाद झारखंड आदिवासी सलाहकार समिति के सदस्य रतन टिर्की और झारखंड के प्रोटोकाल आफिसर जॉर्ज कुमा ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार से मुलाकात की थी और इस यात्रा के उद्देश्यों का विवरण दिया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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