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महिलाओं पर नाइटशिफ्ट के ज्यादा दुष्परिणाम

लंदन, 19 अप्रैल (आईएएनएस)। नींद हमारे जैविक चक्र (बायोलॉजिकल साइकल) का एक अहम हिस्सा है और इसमें खलल विशेषकर नाइट शिफ्ट में काम करने के कारण पड़ने वाली खलल पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मस्तिष्क को ज्यादा प्रभावित कर सकती है। यह बात एक नए शोध में सामने आई है।

शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मस्तिष्क के प्रदर्शन पर सर्काडियन प्रभाव (24 घंटों का जैविक चक्र) इतना ज्यादा होता है कि नाइट शिफ्ट पूरी होने के बाद महिलाएं संज्ञानात्मक रूप से ज्यादा क्षीण हो जाती हैं।

सरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं में से एक नयनतारा सांथी ने कहा, "हमने पहली बार दिखाया कि सर्काडियन क्लॉक को चुनौती देने से पुरुषों व महिलाओं की परफॉर्मेस पर अलग-अलग असर पड़ता है। हमारे शोध के निष्कर्ष शिफ्ट वर्क संबंधी संज्ञानात्मक कमी व मूड में बदलाव को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण हैं।"

नींद की कमी की वजह से ध्यान, मोटर कंट्रोल व कार्य स्मृति जैसी मानसिक खूबियां प्रभावित होती हैं।

इस शोध के तहत शोधकर्ताओं की टीम ने 16 पुरुष व 18 महिला प्रतिभागियों के मस्तिष्क फंक्शन की तुलना की थी।

यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जो रात की शिफ्ट में काम करने वाली नर्सो, महिला सुरक्षाकर्मियों व महिला पुलिस अधिकारियों से सीधे तौर पर संबद्ध है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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    जैन ने कहा कि दिल्ली सरकार एनईईटी के पक्ष में है और उसने इस पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।

    जैन ने कहा, "ऐसा लग रहा है कि वे (केंद्र) सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि एनईईटी को रोका जा सके।"

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    उन्होंने कहा, "चिकित्सा शिक्षा एक व्यवसाय बन चुकी है। कई सांसदों समेत कई राजनेताओं की मेडिकल कॉलेजों में भागीदारी है। यह आश्चर्यजनक है कि एक ओर कई राज्य कह रहे हैं कि वे अदालत के आदेश का समर्थन करते हैं, लेकिन दूसरी ओर वे इसे लागू नहीं होने देना चाहते। शीर्ष अदालत का फैसला जितनी जल्दी हो सके, लागू किया जाना चाहिए।"

    बैठक के बाद नड्डा ने कहा कि एनईईटी पर राज्य सरकारों के साथ और विचार विमर्श की जरूरत है। प्रश्न पत्र की भाषाओं और पाठ्यक्रम जैसे कई पैमानों पर चर्चा की जानी है।

    --आईएएनएस
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    मोहाली/चंडीगढ, 16 मई (आईएएनएस)। 'गेम ऑन, सेल्फी ऑन' नाम से जारी अभियान के दौरान कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए टेक्नॉलॉजी ब्रांड, ओप्पो ने रविवार को यूवीकैन फाउंडेशन के सहयोग से कैंसर पर जीत हासिल करने वाले 17 बच्चों को दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) से मोहाली में क्रिकेट खिलाड़ी युवराज सिंह के घरेलू मैदान में खेल देखने के लिए आमंत्रित किया। युवराज मैच से पहले इन बच्चों से मिले और उनके साथ कुछ समय बिताया।

    ओप्पो के पहले स्पोर्ट्स एम्बेसडर, युवराज सिंह ने कहा "इन बच्चों से मुलाकात करके मुझे बहुत अच्छा अनुभव हुआ। ये बच्चे शक्ति, हिम्मत और ऊर्जा से भरपूर हैं। जैसे इनमें से कई बच्चों ने मुझसे प्रेरणा ली है, उसी तरह मुझे भी इनसे प्रेरणा मिली है।"

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    -- आईएएनएस
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    न्यूयॉर्क, 16 मई (आईएएनएस)। पहली बार पिता बनने जा रहे लोगों की उम्र, शराब सेवन तथा जीवनशैली से संबंधित अन्य आदतों के प्रभाव से न सिर्फ उनका बच्चा विकृतियों के साथ पैदा हो सकता है, बल्कि इसका प्रभाव उनकी आने वाली संतति पर भी पड़ सकता है। एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।

    यह बात तो पहले से ज्ञात है कि मां द्वारा प्रदत्त पोषकता, हॉर्मोन व मनोवैज्ञानिक माहौल का बच्चे के अंगों की संरचना, कोशिकीय प्रतिक्रिया तथा जीन की अभिव्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है।

    शोध दल ने अतीत के शोधों की समीक्षा की कि पिता की जीवनशैली का उसके शुक्राणु पर क्या प्रभाव पड़ता है, जो उसके बच्चे के जीनोम को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है।

    अमेरिका के जॉर्जटाउन युनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर जोआना कितलिंस्का ने कहा, "हमारे अध्ययन में यह बात स्पष्ट हुई है कि पिता की जीवनशैली व उसके उम्र का उन अणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है, जो अंतत: जीन की कार्यशैली को नियंत्रित करते हैं।"

    कितलिंस्का ने कहा, "इस प्रकार, एक पिता न सिर्फ अपने पहले बच्चे, बल्कि आने वाली संतति को भी प्रभावित करता है।"

    यह अध्ययन अमेरिकी पत्रिका 'स्टेम सेल्स' में प्रकाशित हुआ है।

    --आईएएनएस
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    बीजिंग, 16 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। अगर आप भी लंबे समय से अपनी आंखों पर लगे चश्मे को हटाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको चिकित्सक के पास जाने की और महंगे इलाज की जरूरत नहीं है। पौष्टिक खानपान और जीवनशैली में बदलाव कर आप अपनी आंखों को स्वस्थ कर सकते हैं।

    गाजर : हम लंबे समय से सुनते आ रहे हैं कि गाजर आंखों के लिए काफी अच्छा होता है, जो वास्तव में सौ प्रतिशत सच है। लेकिन अब यह समय केवल सुनने का नहीं है, बल्कि अपनाने का है। गाजर को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर आप अपनी आंखों पर लगे मोटे चश्मे को हटा सकते हैं। इसमें पाए जाने वाले विटामिन हमारी दृष्टि के लिए बहुत लाभकारी हैं।

    हरी पत्तेदार सब्जियां : लूटीन और जियाक्सथीन (रसायन) हमारी आंखों के लिए बहुत अच्छे होते हैं और इनका प्रमुख स्रोत हरी पत्तेदार सब्जियां हैं। ये हमारी आंखों को शक्ति देकर दृष्टि को बेहतर करते हैं।

    अंडे : अंडे की जर्दी में लूटीन, जियाक्सथीन और जिंक उच्च मात्रा में उपस्थित होता है, जो हमारी आंखों को स्वस्थ बनाने में मददगार है।

    जामुन : जामुन में विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है। यह आंखों की सुरक्षा करता है साथ ही मोतियाबिंद के जोखिम को घटाता है।

    बादाम : विटामिन ई का उच्च स्रोत आंखों के लिए बहुत फायदेमंद है। यह आंखों के रोग मैक्यूलर डिजनरेशन को कम करने के लिए असरदार है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • चीन के गुआंग्डोंग में जीका के 12वें मामले की पुष्टि
    गुआंग्झू, 16 मई (आईएएनएस/सिन्हुआ)। दक्षिणी चीन के गुआंग्डोंग प्रांत में रविवार को जीका वायरस से संक्रमण का 12वां मामला सामने आया, जिसके बाद प्रांत में जीका संक्रमण 12 आयातित मामले हो गए हैं।

    गुआंग्डोंग के स्वास्थ्य और परिवार योजना आयोग ने कहा कि जीका का 12वां मामला वेनेजुएला में रहने वाले एक 37 वर्षीय चीनी नागरिक में सामने आया है, जिन्हें 28 अप्रैल को एनपिंग शहर लौटने के बाद त्वचा में लाल चकत्ते और बुखार हुआ था। चिकित्सकीय जांच के बाद इनमें जीका संक्रमण की पुष्टि हुई। फिलहाल वह अस्पताल में भर्ती हैं।

    --आईएएनएस
  • स्वास्थ्य होने के 9 महीने बाद भी वीर्य में रह सकता है इबोला वायरस
    न्यूयॉर्क, 16 मई (आईएएनएस)। इबोला वायरस, पीड़ित व्यक्ति के स्वस्थ होने के नौ महीने बाद भी उसके वीर्य में बचा रह सकता है।

    एक नए शोध के निष्कर्षो से पता चला है कि इबोला वायरस से पीड़ित व्यक्ति के स्वस्थ होने के बाद भी उसकी निगरानी की जरूरत होती है।

    यह शोध गिनी में नवंबर 2014 से दो सालों के लिए इबोला वायरस के पीड़ितों की निगरानी के दौरान किया गया। इसमें 700 से ज्यादा वयस्कों और बच्चों की निगरानी की गई, जो साल 2014 में पश्चिम अफ्रीका में गंभीर इबोला बीमारी से उबरने में कामयाब हुए थे।

    उनके शरीर से निकलने वाले द्रवों (आंसू, थूक, मल, वीर्य, वैजाइनल फ्लूइड आदि) की हर तीन महीने पर जांच की गई।

    इनमें से नौ वयस्कों में स्वस्थ होने के नौ महीने बाद भी इबोला वायरस पाए गए।

    यह शोध जर्नल ऑफ इंफेक्सस डिजीजेज में प्रकाशित हुआ है।

    इन निष्कर्षो से अक्टूबर 2015 में न्यूजीलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित सिएरा लियोन में जीवित बचे लोगों के एक समूह पर किए गए अध्ययन की भी पुष्टि होती है।

    उन्होंने अपने शोध में इबोला वायरस के प्रकोप से जीवित बचे व्यक्तियों को कंडोम के इस्तेमाल की सिफारिश की थी।

    --आईएएनएस

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