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वाशिंगटन : शिखर सम्मेलन का केंद्र बिंदु परमाणु आतंकवाद का डर

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पश्चिम बंगाल: स्टिंग आपरेशन के बाद चुनावी समर में ऊंट किस करवट बैठेगा ? Featured

ऋतुपर्ण दवे

क्या बंगाल की 'शेरनी' का जादू इस बार भी चल पाएगा या कांग्रेस गठबंधन से अलग होने के चलते तिलिस्म टूट जाएगा? अब कुछ भी हो, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव काफी रोचक तो होंगे, लेकिन हिंसक नहीं होंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है।

राजनीति की तासीर की बात करें तो यहां का इतिहास, पारंपरिक रूप से हिंसा भरा ही रहा। सभी 294 विधानसभा सीटों पर 6 चरणों में मतदान होगा।

जाहिर है, चुनाव आयोग भी पूरी सख्ती से निष्पक्ष चुनाव कराने को कमर कस चुका है। राजनीतिक बिसातें बिछनी लगी हैं और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। इस बार कई कारणों से सत्तारूढ़ और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी की मुसीबतें खुद ही कम नहीं दिख रहीं।

शारदा घोटाले की लपट, सीबीआई की सक्रियता और बेहद अहम समय में बेपर्दा होते स्टिंग ने तृणमूल की चूलों को जरूर हिलाकर रख दिया है। बीते लोकसभा चुनावों में यहां भाजपा को 18 प्रतिशत वोट मिले थे और पहली बार वाम से निकल कर तृणमूल के हाथों में आए राज्य में, चार वर्षो में ही हिंदूवादी विचारधारा वाली किसी नई पार्टी की दस्तक दिखाई दी।

यह न केवल वामपंथियों ही नहीं, बल्कि कांग्रेस, तृणमूल व अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी चिंता की बात है। भले ही जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी यहीं से थे, लेकिन पार्टी, जनसंघ से भाजपा बनने तक के सफर में कुछ भी हासिल नहीं कर पाई, इसलिए दोहरी खुशी जैसी बात है।

लेकिन यह भी याद रखना होगा, जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिली, वहीं प.बंगाल में 2015 के स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने न केवल भाजपा को खाता खोलने से रोक दिया, बल्कि कोलकता सहित 24 परगना के औद्योगिक क्षेत्रों में भी जबरदस्त सफलता हासिल कर यह जता दिया है कि ममता की सादगी और 'मां-माटी-मानुष' का जलवा जस का तस है।

राज्य के 92 स्थानीय निकायों में से 70 पर तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा को 6, कांग्रेस को 5 जबकि 11 ऐसे नगरीय निकाय हैं, जहां पर किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।

दूसरा, यह भी कि भाजपा के पास राज्य में अभी तक कोई हाईप्रोफाइल नेता नहीं है, जिसे वह बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर सके। वैसे भी, दिल्ली का दर्द और बिहार के बड़बोलेपन का ज़ख्म अभी गहरा है।

बॉलीवुड गायक बाबुल सुप्रियो ने आसनसोल से चुनाव जीता और भाजपा ने बिना देर किए केंद्र में मंत्री पद पर ताजपोशी कर एक विकल्प देने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन वह ममता के आगे कितना टिक पाएंगे, इसका भी पूरा भान है। शायद इसी कारण भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, जाने-माने और बेहद लोकप्रिय क्रिकेटर सौरव गांगुली पर पश्चिम बंगाल का दांव आजमा सकते हैं।

अगर कहीं ऐसा हुआ तो पश्चिम बंगाल का चुनावी परि²श्य अलग नजर आएगा और टक्कर तृणमूल कांग्रेस, वाम-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा के बीच त्रिकोणीय होना तय है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि 2011 के विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधन ने पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से सत्तासीन वाम मोर्चे को उखाड़ फेंका था। लेकिन तुरंत ही तेजी बदले राजनीतिक घटनाक्रम में कांग्रेस ने खुद को गठबंधन से अलग कर लिया और अब ठीक उलट परि²श्य में कांग्रेस, माकपा के साथ जदयू, राजद एक हो गए और तृणमूल कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई।

वहीं चुनाव से ठीक पहले सामने आए स्टिंग से भी टीएमसी की छवि खराब हुई है। शारदा घोटाले में तृणमूल के धुरंधरों के शामिल होने, गिरफ्तारियों से कमजोर ममता के लिए एक राहत की बात यही जरूर हो सकती है कि राज्य में वो मोदी लहर नहीं दिख रही है जो 2014 में लोकसभा के वक्त थी।

इसका फायदा किसको होगा, यह गुणा-भाग का विषय है। यदि 2011 और 2014 में मिले वोटों की तुलना की जाए तो यह साफ होता है कि बीजेपी को जो भी वोट मिले, कहीं न कहीं वाम दलों में सेंधमारी के थे।

राजनीति की विडंबना देखिए, अब ममता बनर्जी, कांग्रेस और वामदलों कड़वे रिश्ते याद कराती जनसभाएं कर वाम, कांग्रेस गठबंधन को गैर सैद्धांतिक कह, एक तरह से सफाई दे रही हैं। शायद उन्हें गठबंधन धर्म नहीं निभा पाने का मलाल जरूर होगा और मन में बड़ी टीस भी।

उनका परेशान होना लाजिमी है, क्योंकि 2014 के संसदीय चुनाव में तृणमूल का वोट शेयर 39.3 प्रतिशत, कांग्रेस का 9.6 जबकि वाम मोर्चे को 30 फीसदी रहा। अब आंकड़े कुछ और होंगे। एक सच यह भी कि प.बंगाल में वामदल और कांग्रेस पहले आम चुनाव यानी 1952 से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते आए हैं, अब देखना है कि दोनों का नया एका, आंकड़ों के लिहाज से क्या गुल खिलाता है।

यह भी सच है कि तृणमूल में अंदरूनी तौर पर सब कुछ ठीक नही चल रहा है। पार्टी के वरिष्ट नेता, सांसद और पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने यह कहते हुए मुश्किलें बढ़ा दी हैं कि स्टिंग में फंसे सांसदों और विधायकों को तब तक घर पर बैठना चाहिए, जब तक उन पर लगे आरोपों से वो पाक साफ नहीं हो जाते। वहीं ममता बनर्जी की हुंकार कि 34 वर्षों में 55000 राजनीतिक हत्याओं को अंजाम देने वालों का हिसाब अभी और चुकता करना है।

यह सब हवा का रुख बदलने के लिए कितना असर कारक होगा, कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन बिहार में भाजपा का साथ देने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) यहां अपने दम-खम पर चुनाव लड़ने की न केवल तैयारी कर चुकी है, बल्कि पहली सूची में दो किन्नर प्रत्याशियों को टीएमसी के खिलाफ उतारने की घोषणा कर, चुनावी शुरुआत में ही अन्य दलों की चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं।

लोजपा ने किन्नर प्रत्याशियों के रूप में भवानीपुर विधानसभा सीट से बॉबी हालदार तथा यादवपुरा से शंकरी मंडला को चुनाव में उतार दिया है। बड़े दलों का समीकरण बिगाड़ने के लिए प.बंगाल में यह प्रयोग जरूर असर डालेगा।

तृणमूल की बड़ी चिंता यह भी है कि वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे के मुद्दे पर भी कोई अहम विवाद नहीं है। 95 प्रतिशत सीटों पर आम सहमति बन चुकी, केवल 20-22 सीटें ऐसी हैं, जहां पर कुछ मतभेद हैं जिसे जल्द सुलझाने का दावा किया जा रहा है।

चूंकि वामपंथी दलों के अलावा अन्य विपक्षी दलों के नेताओं पर हमले बढ़े हैं जिसे तृणमूल के द्वारा लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताकर भी सहानुभूति बटोरी जा रही है।

कांग्रेस का आरोप है कि इससे औद्योगिक विकास थम गया है, किसानों और श्रमिक की हालत बदतर हो रही है इसलिए जनहितार्थ उसने वाममोर्चा के स्लोगन 'तृणमूल हटाओ, बंगाल बचाओ और भाजपा हटाओ देश बचाओ' का समर्थन किया है।

एक न्यूज पोर्टल के हालिया स्टिंग को लेकर तृणमूल की चिंता बढ़ी है। लेकिन इन सबके बावजूद जहां ममता बनर्जी, सांसद अभिषेक बनर्जी, मुकुल रॉय, सुब्रत बक्शी, सुदीप बनर्जी सहित 31 स्टार प्रचारकों के साथ मैदान में उतरने की पूरी तैयारी में हैं।

वहीं भाजपा अपने स्टार प्रचारकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, उमा भारती, बाबुल सुप्रयो, निर्मला सीतारमण, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा सहित 40 स्टार प्रचारकों की ताकत झोंकेगी।

कांग्रेस भी पीछे नहीं है। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, गुलाम नवी आजाद, सलमान खुर्शीद, शकील अहमद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राज बब्बर, नगमा, मौलाना अफजल, मोहम्मद अजहरूद्दीन, कमलनाथ, जयराम रमेश, अशोक गहलोत सहित 40 स्टार प्रचारकों के साथ चुनावी रण में उतरने की तैयार कर चुकी है।

अब देखना यही है कि लगभग समर में ऊंट किस करवट बैठता है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार/टिप्पणीकार हैं)

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  • आतंकवाद पर भारत की पीड़ा समझेगा पाक
    प्रभुनाथ शुक्ल
    पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल में 16 नवंबर को आतंकी हमला था हुआ था। जिसमें 132 स्कूली छात्रों के साथ 141 को बड़ी निर्ममता से मौत के घाट उतारा गया था। इस हमले को तहरीक-ए-तालिबान के आतंकी समूह ने अंजाम दिया था।

    अब दूसरा सबसे बड़ा हमला पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के रिहायशी वाले इलाके में स्थित एक पार्क में हुआ। जिसमें 70 से अधिक लोग मारे गए। इस हमले की जिम्मेदारी भी तहरीक-ए-तालिबान से अलग हुए आतंकी संगठन जमातुल अरहार ने ली है। आतंकी हमले में 30 मासूम बच्चे मारे गए हैं जो पार्क में बेखौफ होकर बचपन की मस्ती में मशगूल थे। दो दर्जन से अधिक लोगों की हालत बेहद नाजुक है जबकि 300 लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में 20 से अधिक लोग ईसाई समुदाय के हैं। चरपंथियों के निशाने पर ईसाई पंथ के लोग ही थे। इससे यह साफ जाहिर होता है कि आंतकियों ने इसकी पूर्व प्लानिंग कर रखी थी।

    इन दोनों हमलों पर गंभीरता से विचार किया जाए तो एक बात साफ होती है कि आंतकियों का मूल मकसद आम लोगों की भावनाओं को भड़काना है। लोगों में असुरक्षा का महौल पैदा करना है। हमलों में स्कूली मासूमों को निशाना बनाया गया। आतंकी हमले की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपना अमेरिका दौरा निरस्त कर दिया। लेकिन सवाल उठता है कि पाकिस्तान क्या आतंकी हमलों से सबक लेगा। पाकिस्तान क्या अपनी पीड़ा को भारत की पीड़ा समझेगा। आतंक चाहे जिस प्रकार का हो उसका चेहरा बेहद क्रूर होता है। निरीह मासूमों की कत्ल को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

    इस घटना में मानव बम का इस्तेमाल किया गया। इसकी समानता पेशावर हमले से मिलती है। इसमें भी मानव बम का उपयोग किया गया था। पेशावर हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने आतंकवादियों के खिलाफ अड़ियल रुख अपनाया। बहुतायत संख्या में पाक की जेलों में बंद आतंकियों को सजाए मौत की सजा दी गयी। फांसी की सजा पर लगा प्रतिबंध भी सरकार ने हटा दिया। लेकिन उसका कोई असर नहीं दिखा। पाकिस्तान जब तक भारत में प्रयोजित आतंकवाद को संजीदगी से नहीं लेगा वह भी इस पीड़ा से समय-समय पर कराहता रहेगा।

    आतंकवाद के सफाए के लिए भारत पाकिस्तान की हर संभव मदद करने को तैयार रहता है। पठानकोट हमले की जांच के लिए पाक से जेआईटी आयी है। जांच टीम को भारत सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियों को सारी सुविधा और सहयोग मुहैया कराए गए हैं। जांच टीम पाठानकोट एयरबेस पर भी गयी। हलांकि देश के राजनैतिक दलों की ओर से इसका कड़ा विरोध भी हुआ, लेकिन मोदी सरकार पाकिस्तान को कोई मौका नहीं देना चाहती है।

    मुंबई आतंकी हमले पर भी पाकिस्तान को अजमल आमिर कसाब के संबंध में सारी जानकारी उपलब्ध कराई गई थी। पाकिस्तान के एक आलाधिकारी ने कबूल भी किया था कि मुंबई आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने जिस वोट का इस्तेमाल किया था, वह पाकिस्तानी थी। लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान ने कसाब को अपना नागरिक नहीं माना। क्योंकि इसके पीछे उसके घरेलू और राजनैतिक कारण हैं।

    भारत में चुनी हुई सरकार स्वतंत्र रूप से काम करती है जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। वहां सरकार दिखावे की होती है जबकि सारा काम सेना और खुफिया एजेंसी आईएएसआई करती है। जिससे इस समस्या का हल फिलहाल नहीं निकलने वाला है। जिस आतंकवाद को पाकिस्तान अपनी सरजमीं से सालों से पालता पोषता चला आ रहा है आज उसकी कीमत भी उसे चुकानी पड़ रही है। भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां सेना की सह पर चलायी जाती हैं। आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए घिनौना जहर है। हमारे यहां एक देशी कहावत है कि जाके पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।

    पेशावर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था-अच्छे और बुरे तालिबान में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी जब तक कि अंतिम आतंकवादी नहीं मारा जाता है। पाकिस्तान सरकार का यह बयान वास्तव में संजीदगी भरा था। पेशावर का यह आतंकी हमला दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी है।

    इसके पहले 2004 में रूस में आतंकी हमला हुआ था जिसमें 300 से अधिक स्कूली बच्चों को जान गंवानी पड़ी थी। यह हमला चेचेन्या विद्रोहियों की तरफ से किया गया था। वहां भी आतंकी फ्रंटियर कोर की वर्दी पहन कर स्कूल में घुस कर मासूमों की हत्या की थी। दुनिया भर में सिर उठाते आतंकवाद के खिलाफ भारत खड़ा है। लेकिन अब वक्त आ गया है जब पाकिस्तान को भारत के साथ मिल कर इसका मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि यह सिद्ध है कि भारत में जो आतंकवाद की खेती की जा रही है उसे पाकिस्तान की सरजमीं से चलाया जा रहा है।

    मुंबई की 26/11 की घटना हो या हाल में पठानकोट के एयरबेस का। इस हमले में पाकिस्तान का खुला प्रमाण होने का हाथ मिला है। आतंकियों के पास से पाकिस्तान निर्मित दहशतगर्दी के साजो सामान खाद्य सामग्री और दूसरी वस्तुाएं मिली हैं। इससे यह साबित हो गया है कि भारत के खिलाफ आतंकी घटना को पाकिस्तान की सरजमीं से अंजाम दिया जा रहा है।

    भारत और पाकिस्तान एक साथ एक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की घोषणा करंे। अगर ऐसा होता है तो पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ बेहतर संदेश जाएगा। लेकिन पाकिस्तान को यह कबूलनामा कभी तैयार नहीं होगा। क्योंकि वहां की सरकारें ही भारत विरोध के बिसात पर चुनी जाती हैं।

    पाकिस्तान में किसी दल की सरकार बने उसकी मजबूरी होती है कि वह भारत विरोधी अभियान में सेना और आतंकवाद की मदद करें। अगर ऐसा वह नहीं करती है तो खुद पाकिस्तानी सेना उसे स्थिर नहीं रहने देगी। भारत में आतंकी हमले की साजिश रचने वाले लखवी को पाक अदालत ने जमानत दे दिया है। एक ओर पाकिस्तान अच्छा और बुरा तालिबान में कोई फर्क नहीं की बात करता है। दूसरी तरफ एक देश पर हमले की साजिश रचने वाले आतंकी हाफिज सईद को जमानत मिल जाती है लेकिन बाद में गंभीर आलोचना और भारत के कड़े प्रतिबाद के बाद उसे पुन: जेल भेज दिया जाता है। पाकिस्तान को आतंकवाद पर अपना नजरिया बदलना चाहिए। एक बेहतर संकल्प के साथ आतंकवाद की साझा लड़ाई में दोनों देशों को एक साथ आना चाहिए। जिससे आतंक से जुझती दुनिया को एक नया संदेश जाए। (आईएएनएस/आईपीएन)

    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • मप्र : शौचालय नहीं तो बंदूक का लाइसेंस, पासपोर्ट नहीं!
    संदीप पौराणिक
    नीमच, 30 मार्च (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान में हर वर्ग से जुड़े लोग अपनी हिस्सेदारी निभाने को आतुर हैं। मध्य प्रदेश के नीमच जिले की पुलिस ने तय किया है कि बंदूक के लाइसेंस और पासपोर्ट उन्हीं लोगों के बनाए जाएंगे, जिनके घरों में शौचालय होंगे।

    देशव्यापी स्वच्छता अभियान चल रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर हर घर में शौचालय की मुहिम जारी है। इसके लिए सरकारी से लेकर निजी स्तर तक पर खुले में शौच से मुक्ति के लिए कोशिशों का दौर जारी है।

    इसी क्रम में नीमच की पुलिस ने उन्हीं लोगों के बंदूक के लाइसेंस और पासपोर्ट बनाने का फैसला लिया है, जिनके घर में शौचालय होंगे।

    अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राकेश सगर ने आईएएनएस को बताया कि पुलिस के पास ऐसे स्रोत कम होते हैं, जिसके जरिए समाज के अच्छे लोगों से संपर्क का मौका मिले। पुलिस ने राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान में हिस्सेदारी निभाने के लिए कार्य योजना बनाई है। इसके तहत बंदूक के लाइसेंस और पासपोर्ट उन्हीं लोगों के बनाए जाएंगे जो घर में शौचालय होने के प्रमाण देंगे।

    ज्ञात हो कि बंदूक के लाइसेंस और पासपोर्ट के लिए पुलिस का वेरीफिकेशन आवश्यक होता है, उसके बाद ही लाइसेंस और पासपोर्ट बनता है। इसी को ध्यान में रखकर पुलिस ने शौचालय की शर्त को अनिवार्य कर दिया है।

    सगर ने बताया कि बंदूक का लाइसेंस और पासपोर्ट समाज के प्रमुख व प्रतिष्ठित वर्ग से जुड़े लोग बनवाते हैं, लिहाजा ऐसे लोगों को शौचालय बनवाने की बाध्यता की जाएगी तो समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा। इसी बात को ध्यान में रखकर जिले में स्वच्छता के अभियान को कारगर बनाने के लिए पुलिस ने इस तरह की शर्त तय की है।

    उन्होंने आगे कहा कि स्वच्छता देश और समाज से जुड़ा हुआ है, लिहाजा पुलिस की भी जिम्मेदारी है कि वह इस अभियान में अपनी भूमिका निभाए।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • उत्तराखंड : हरीश को झटका, शक्ति परीक्षण पर रोक

    देहरादून, 30 मार्च (आईएएनएस)। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद भी यहां की सियासत में रोज नया मोड़ आ रहा है। नैनीताल उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश पर दो सदस्यीय पीठ ने बुधवार को रोक लगा दी। खंडपीठ के ताजा फैसले के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे। इस मामले में अगली सुनवाई छह अप्रैल को होगी।

    उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने के आदेश दिए थे। लेकिन बुधवार को आए खंडपीठ के इस फैसले के बाद हरीश रावत को झटका लगा है।

    केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय की खंडपीठ में याचिका दायर की गई थी।

    मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बी.के. बिष्ट और न्यायमूर्ति ए.एम. जोसफ की पीठ के समक्ष हुई। सुनवाई के तुरंत बाद पीठ ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी। अगली सुनवाई छह अप्रैल को होगी।

    केंद्र सरकार के महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि एकल पीठ का आदेश सही नहीं है। केंद्र ने विधानसभा भंग नहीं की है। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश साफ है कि धारा 356 में अंतरिम आदेश नहीं हो सकता है।

    उन्होंने कहा, "एकल पीठ ने शक्ति परीक्षण के लिए कहा है, जबकि विधानसभा निलंबित है। ऐसे में जब राष्ट्रपति शासन लागू है, तब किसका शक्ति परीक्षण होगा। विधानसभा अध्यक्ष ने राष्ट्रपति शासन लगने के बाद विधायकों की सदस्यता रद्द की।"

    रोहतगी के इस तर्क पर न्यायालय ने कहा कि धारा 356 लगाने का क्या औचित्य है। साथ ही यह भी पूछा कि जब 18 मार्च को सदन की बैठक चली तब राज्यपाल ने 28 मार्च को बहुमत साबित करने को क्यों कहा।

    इस पर केंद्र के अधिवक्ता ने एकल पीठ के आदेश पर स्थगन की मांग की। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने वीडियोग्राफी देखने के बाद ही अपनी रपट राष्ट्रपति को भेजी।

    पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने जब सदन की बैठक स्थगित करने की घोषणा कर दी, उसके बाद ही मत विभाजन की मांग की गई। इससे पहले वित्त विधेयक पारित हो गया था। इसके बाद 20 मार्च की रात राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की गई।

    उन्होंने तर्क दिया कि हरीश रावत 28 मार्च को बहुमत साबित करने के लिए तैयार थे। बागी विधायक 31 मार्च को शक्ति परीक्षण में वोट नहीं कर सकते, क्योंकि बागी विधायकों की याचिका एक बार खारिज हो चुकी है।

    इस बीच, विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के मामले में विधायकों ने आदेश को चुनौती देते हुए न्यायालय में याचिका दायर की है।

    न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए भोजनकाल के बाद का समय तय किया था। जिसके बाद सुनवाई शुरू हुई और एक अप्रैल को अगली सुनवाई की तारीख दी गई।

    विधायक सुबोध उनियाल व एक अन्य विधायक की तरफ से यह याचिका दायर की गई है।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • बिहार विधानसभा में विधायकों ने ली शराब न पीने की शपथ

    पटना, 30 मार्च (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा में बुधवार को शराबबंदी को लेकर 'बिहार उत्पाद संशोधन विधेयक 2016' सर्वसम्मति से पास हुआ।

    इस दौरान सदन में विधायकों ने भी शराब नहीं पीने की शपथ ली। विधेयक पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि एक अप्रैल से शराबबंदी को लेकर बिहार सरकार पूरी तरह तैयार है। सरकार का लक्ष्य बिहार में पूर्ण शराबबंदी की है। राज्य में चरणबद्ध तरीके से पूर्ण शराबबंदी लागू किया जाएगा।

    भोजनावकाश के बाद, मद्य एवं निशेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान ने बिहार उत्पाद संशोधन विधेयक 2016 को सदन में रखा और उसके प्रावधनों को बिंदुवार सदन को जानकारी दी।

    विधेयक पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने शराबबंदी को लेकर बड़ी पहल करते हुए कहा, "विधायक भी शराब नहीं पीने की शपथ लें।"

    इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने मुख्यमंत्री के इस प्रस्ताव को सदन में रखा। विधानसभा में संकल्प प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से मुहर लगने के बाद सदन में उपस्थित सभी सदस्यों ने खड़े होकर शराब नहीं पीने की शपथ ली।

    मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले चरण में ग्रामीण इलाकों में देसी और मसालेदार शराब पर एक अप्रैल से प्रतिबंध लगाया गया है। दूसरे चरण में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होगी।

    उन्होंने कहा, "शराबबंदी को सफल बनाने के लिए उत्पाद संशोधन विधेयक में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। जहरीली शराब बनाने वालों को मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है जबकि शराब पीकर कोई विकलांग हुआ तो शराब बनाने वाले को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।"

    उन्होंने बताया कि शराब पीकर घर में हंगामा करने वाले को 10 साल की सजा और सार्वजनिक जगहों पर हंगामा करने पर न्यूनतम पांच साल की सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने शराबबंदी के लिए सभी के सहयोग की अपील करते हुए कहा कि यह कानून बिना सभी लोगों के सहयोग के लागू नहीं हो सकता।

    मुख्यमंत्री ने कहा कि अवैध तरीके से शराब पिलाने वाले को न्यूनतम आठ वर्ष की सजा होगी, जबकि बच्चों को शराब पिलाने पर न्यूनतम सात साल की सजा का प्रावधान है। अवैध शराब कारोबार करने वालों की संपत्ति भी जब्त की जाएगी।

    उन्होंने कहा कि अबतक एक करोड़ से ज्यादा स्कूली बच्चों के अभिभावकों से शराब सेवन नहीं करने को लेकर शपथ पत्र भरवाया गया है और जन-जागरण अभियान के तहत सात लाख से ज्यादा दीवारों पर नारे लिखे गए हैं।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • उप्र : अखिलेश ने सैफई में 5 परियोजनाओं का उद्घाटन किया

    सैफई, 30 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुधवार को सैफई में मिनी पीजीआई में नई फैकल्टी, ट्रामा सेंटर, हॉस्टल सहित पांच परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि राज्य में तेजी से विकास हो रहा है।

    अखिलेश ने कहा कि डायल 100 सेवा को हमने और बेहतर किया है। किसानों की मूलभूत सुविधाओं के लिए भी हम काम कर रहे हैं। हर सेक्टर में सरकार अच्छा काम कर रही है।

    उन्होंने कहा, "उप्र में देश की सबसे बड़ी सड़क बना रहे हैं। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे से काफी तरक्की होगी और व्यापार बढ़ेगा। हम नौजवानों को नौकरी दे रहे हैं। पुलिस भर्ती प्रक्रिया को पहले से आसान किया गया है।"

    अखिलेश ने कहा कि "शिक्षा विभाग में लाखों लोगों को नौकरी दी गई है। पैरामेडिकल स्टाफ को नौकरी मिलेगी। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का काम किया जा रहा है। डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने का काम किया गया है। मेडिकल कॉलेज, ट्रामा सेंटर बनाए जा रहे हैं।"

    मुख्यमंत्री ने कहा, "सबसे ज्यादा काम स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रहा है। इसके अलावा, चीनी मिलों की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं। उच्च न्यायालय की नई इमारत बनाने का काम किया है।"

    उन्होंने कहा कि गरीब, किसानों की हर क्षेत्र में मदद हो रही है। "उनकी मूलभूत सुविधाओं के लिए हम काम कर रहे हैं। साइकिल चलाने से स्वास्थ्य बेहतर होता है। सैफई का नाम सबसे स्मार्ट गांव में शामिल हो रहा है।"

    इस मौके पर इससे पहले कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने कहा कि हम नेताजी के मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं। डॉक्टर बनकर छात्र देश की सेवा कर रहे हैं। सैफई में सबसे ज्यादा सुविधाएं हैं। यहां के बच्चे पूरे देश में नाम करेंगे।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

  • मप्र में विधायकों का वेतन बढ़ा

    भोपाल, 30 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में विधायकों के वेतन को 71 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख 10 हजार रुपये किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। गुरुवार को यह संशोधन प्रस्ताव विधानसभा में रखा जाएगा।

    राज्य सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कैबिनेट के फैसले की जानकारी दी और कहा कि विधायक, मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और विधायकों के वेतन में बढ़ोत्तरी की गई है।

    कैबिनेट के फैसले के मुताबिक, विधायकों का वेतन 71 हजार रुपये से बढ़कर एक लाख 10 हजार रुपये, मुख्यमंत्री का वेतन एक लाख 43 हजार से बढ़कर दो लाख रुपये किया गया है। इसी तरह मंत्रियों को एक लाख 70 हजार रुपये, राज्यमंत्रियों को एक लाख 50 हजार रुपये और विधान सभाध्यक्ष को एक लाख 85 हजार रुपये महीना वेतन मिलेगा। यह वेतन सभी भत्तों को मिलाकर होगा।

    कैबिनेट द्वारा विधायकों के वेतन बढ़ाने संबंधी संशोधन प्रस्ताव गुरुवार को विधानसभा में रखा जाएगा। विधानसभा में प्रस्ताव के पारित होने पर विधायकों को बढ़ा हुआ वेतन मिलेगा।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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