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72 साल की अविवाहिता बनी महिलाओं के लिए 'ज्योति' Featured

मनोज पाठक

कहा जाता है कि अगर जिद और जज्बा हो तो उम्र किसी की मोहताज नहीं होती और इसी कहावत को चरितार्थ कर रही हैं बिहार के सारण में रहने वाली 72 वर्षीया अविवाहित ज्योति। बुजुर्ग ज्योति की जिद थी कि महिलाएं किसी की मोहताज न हों, वे घर से निकलें और उनका खुद का रोजगार हो।

आज ज्योति की इसी जिद ने न केवल इस क्षेत्र की 3,000 से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि सारण जिले के गांव-गांव तक शिक्षा व महिला सशक्तिकरण की 'ज्योति' जला रही हैं।

कई महिलाएं जो कल तक घर की चौखट से बाहर नहीं आती थीं, वे आज खेतों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। करीब 80 गांवों में महिलाएं खुद रोजगार करती हैं। 3,000 महिलाएं आज न केवल आत्मनिर्भर बन चुकी हैं बल्कि खुद से मोमबत्ती, सर्फ व दवा बना कर अपने परिवार का आधार स्तंभ बनी हैं।

केरल की रहने वाली समाज सेविका ज्योति करीब 20 साल पहले सारण की धरती पर आई थी और यहां की महिलाओं का दर्द देख यहीं की होकर रह गई।

ज्योति ने आईएएनएस को बताया, "मन में विश्वास और लगन हो तो कोई भी काम छोटा नहीं। शुरू में लोगों की समझ थी कि इस काम के पीछे ज्योति का ही लाभ होगा। लेकिन मैंने सरकार द्वारा मुर्त में प्रदान की जाने वाली चीजों की बजाय खुद के हाथों की कमाई पर भरोसे की सीख दी। जैसे-जैसे बात लोगों के जहन में बैठती गई वैसे-वैसे लोग आत्मनिर्भर बनते चले गए।"

महिलाओं के बीच सिस्टर ज्योति के नाम से प्रचलित ज्योति के प्रति आज यहां की महिलाएं निष्ठावान है। ज्योति के पहल पर महिलाओं ने 150 समूह बनाए हैं और युवाओं ने 30 समूह तैयार किए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाजसेवा के क्षेत्र में कई पुरस्कार पा चुकी ज्योति ने कहा कि आज समूह की सभी महिलाएं साक्षर और आत्मनिर्भर हैं। 72 महिला स्वयं सहायता समूहों ने मिलकर एक 'एकता सहकारी समिति बैंक' बनाया है और कल तक जो महिलाएं कर्ज में जी रही थी वह आज इसी बैंक के बदौलत दूसरों को कर्ज दे रही हैं।

उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में इस बैंक में महिलाओं ने मिलकर 60 लाख पूंजी जमा की है। जमा पूंजी से महिलाएं ऋण के तौर पर पैसा लेकर खेती करने व सर्फ, मोमबत्ती, पापड बनाने का काम करती हैं।

स्वयं सहायता समूह की महिला जयंती देवी ने कहा कि कई महिलाएं इस बैंक से ऋण लेकर अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रही हैं। ऋण लेकर निर्धन महिलाएं पट्टे पर जमीन लेकर खेती कर रही हैं।

ज्योति ने कहा कि इस बैंक में शुरू के दौर में 12 हजार ही पूंजी इकट्ठी थी, जो दो वर्ष में आज 60 लाख रुपये तक पहुंच गई है।

ज्योति ने कहा कि जब प्रारंभ में वे यहां आई थी तब उन्हें यहां की भाषा का ज्ञान भी नहीं था, परंतु आज स्थिति बदल गई है।

Read 84 times Last modified on Tuesday, 29 March 2016 11:06
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