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गुलाल उड़ाकर मुसलमान लगाते हैं देवी के जयकारे! Featured

संदीप पौराणिक

देश में इन दिनों 'भारत माता की जय' पर जिरह छिड़ी हुई है इतना ही नहीं जय के आधार पर ही देशभक्त और देशद्रोही तय किए जा रहे हैं, मगर बुंदेलखंड के झांसी जिले में 'वीरा' एक ऐसा गांव है, जहां होली के मौके पर हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी देवी के जयकारे लगाकर गुलाल उड़ाते हैं।

झांसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गांव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षो पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे।

मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है।

क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रागीलाल बताते हैं कि वीरा गांव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहां होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहां की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाली होती है।

जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो व क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है।

प्रागीलाल का कहना है कि इस होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है, क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं।

स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। यहां कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है।

यहां फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं।

व्यापारी हरिओम साहू के मुताबिक, होली के मौके पर इस गांव के लोग पुराने कपड़े नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह होली को बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहां के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है।

बुंदेलखंड के वीरा गांव की होली उन लोगों के लिए भी सीख देती है, जो धर्म और जय के नाम पर देश में देशभक्त और देशद्रोह की बहस को जन्म दे रहे हैं। अगर देश का हर गांव और शहर 'वीरा' जैसा हो जाए, तो विकास और तरक्की की नई परिभाषाएं गढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा।

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संदीप पौराणिक

लेखक देश की प्रमुख न्यूज़ एजेंसी IANS के मध्यप्रदेश के ब्यूरो चीफ हैं.

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  • मां होना ही सबसे बड़ा तोहफा (मदर्स डे विशेष)

    रीतू तोमर
    नई दिल्ली, 7 मई (आईएएनएस)। जब कोई भी बात या किस्सा मां से जुड़ा हुआ हो तो वह खास ही होता है। आठ मई को 'मदर्स डे' पर आप अनूठे तरीके से मां के प्रति अपने प्यार को जता सकते हैं। इस दिन को सेलिब्रेट करने के तरीकों में नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं।

    ग्रीटिंग कार्ड, फूलों और चॉकलेट के बजाए अब हाईटेक तरीकों से मां के प्रति प्यार को दर्शाने का चलन है। कई कंपनियां और संगठन अनूठे तरीकों से इस दिन को खास बनाने पर कई महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं।

    देश की मैसेंजिंग एप 'हाइक' ने अपने 10 करोड़ उपयोगकर्ताओं के लिए 'मदर्स डे' के दिन विशेष रूप से 'माइक्रोएप' शुरू किया है। इसके जरिए हाइक उपयोगकर्ता तस्वीर लगाने, सामग्री को संपादित करने और अपनी मां के प्रति प्यार दर्शाने के लिए संदेश लिख सकते हैं।

    फैशन डिजाइनर प्रीति घई ने आईएएनएस को बताया, "हमने मदर्स डे के लिए खास परिधान कलेक्शन तैयार किया है। सिंपल सूट से लेकर डिजाइनर साड़ियों का संग्रह तैयार है। इसे 'पावर वूमन' संग्रह का नाम दिया गया है। इसमें अनारकली, जिप साड़ी है। कामकाजी महिलाओं से लेकर घरेलू महिलाओं तक के लिए कुछ न कुछ तैयार किया गया है।"

    उन्होंने कहा, "हमने ग्राहकों की सलाह पर उनकी मां के पसंदीदा रंगों एवं डिजाइन को ध्यान में रखकर कलेक्शन तैयार किया गया है। इनकी 7,000 रुपये से लेकर 30,000 रुपये तक है।"

    अभिनेत्री व कमेंट्रेटर मंदिरा बेदी ने आईएएनएस को बताया, "मदर्स डे अपनी मां के प्रति प्यार दिखाने का दिन है, लेकिन इसे सिर्फ एक दिन की दायरे में नहीं बांधा जाना चाहिए। मां को कसकर एक प्यार की झप्पी दें और उनका ख्याल रखें। इससे बेहतर तोहफा और कुछ नहीं हो सकता।"

    गैर सरकारी संगठन 'अस्तित्व' से जुड़े बच्चों ने मदर्स डे के लिए खास क्रोशिए से बने खूबसूरत डिजाइनर स्टॉल तैयार किए हैं। इन प्रिंटेड स्टॉल्स की कीमत 450 रुपये से शुरू हैं। इनकी खास बात यह है कि प्योर जॉर्जेट के प्रिंटेड स्टॉल्स पर कॉटन क्रोशिए धागे का काम किया गया है और इसे हाथों से आसानी से धोया जा सकता है।

    'अस्तित्व' की संचालिका अनामिका यदुवंशी ने आईएएनएस को बताया, "इस मदर्स डे पर इन प्यारे स्टॉल्स से बेहतर तोहफा एक मां के लिए और क्या हो सकता है।"

    मदर्स डे के मौके पर स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता पैदा कर रही 'कैंसर हीलर सेंटर' की निदेशिका दीपिका कृष्णा ने आईएएनएस से कहा, "मांओं को अपने बच्चों से तोहफे की जरूरत नहीं है। वे दिनभर के कामकाज में इतनी व्यस्त होती हैं कि उन्हें स्वयं की सेहत का ध्यान ही नहीं रहता। इस मदर्स डे अपनी मां का पूर्ण चेकअप कराने का प्रण लें।"

    फिल्म 'नीरजा' में दिल को छू जाने वाली महिला एवं मां का किरदार निभा चुकीं दिग्गज अदाकारा शबाना आजमी ने आईएएनएस को बताया, "एक मां होना ही महिला के लिए सबसे बड़ा तोहफा है। इस मदर्स डे महिलाओं में बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाएं। सर्वाइकल कैंसर और स्तन कैंसर के मामले महिलाओं में तेजी से बढ़ रहे हैं। इस दिशा में काम किया जाए।"

    मदर्स डे हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनियाभर में मनाया जाता है और इस एक दिन में ही दुनियाभर की कंपनियां अपनी विशेष सेवाओं से मोटा मुनाफा कमा लेती हैं।

    --आईएएनएस
  • सिंहस्थ कुंभ : व्यवस्थाएं दुरुस्त करने का अभियान जारी (फोटो सहित)
    उज्जैन, 7 मई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के दौरान गुरुवार को आंधी के बीच हुई तेज बारिश से मची तबाही के बाद के व्यवस्थाएं दुरुस्त करने का अभियान शनिवार को भी जारी रहा। पंडालों को संवारा जा रहा है, सड़कें सुधारी जा रही हैं। इस अभियान में सामाजिक संगठन, सुरक्षा बल से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक लगे हुए हैं।

    उज्जैन में गुरुवार को आई प्राकृतिक आपदा ने सात लोगों को मौत की नींद में सुलाने के साथ 100 से ज्यादा लोगों को घायल कर दिया था, सात सौ से अधिक टेंट को ढह गए थे। इतना ही नहीं, सड़कों पर भरे कीचड़ और गंदगी ने हर किसी को परेशान किया। उसके बाद प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य में तेजी लाई।

    मेला क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा से सबसे ज्यादा नुकसान मंगलनाथ क्षेत्र को हुआ था। इस क्षेत्र में तेजी से सुधार कार्य चल रहे हैं।

    आधिकारिक तौर पर दी गई जानकारी के अनुसार, मंगलनाथ खाक चौक क्षेत्र में धराशायी अस्थायी पंडाल पुनर्निर्माण का काम जारी है। बिजली, पानी, साफ-सफाई, गैस सिलेंडर सप्लाई, खाद्यान्न उपलब्धता एवं सीवरेज खाली करने की प्रक्रिया प्रभावी रूप से संचालित हो रही है।

    मच्छरों को भगाने के लिए फॉगिंग मशीन से छिड़काव किया जा रहा है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए चिकित्सकीय दल तत्पर हैं। श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए समुचित प्रबंध है। सुरक्षा व्यवस्था के भी विशेष प्रबंध किए गए हैं।

    इस अभियान में मुख्यमंत्री चौहान स्वयं न केवल नजर रखे हुए हैं, बल्कि लोगों का साथ भी दे रहे हैं। वे कई स्थानों पर श्रमदान और अन्य सहयेाग करने में पीछे नहीं रहे। उनके इस काम में उनकी पत्नी साधना सिंह ने भी उनका हाथ बंटाया।

    इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
  • जब सिंहस्थ कुंभ पर बरसी आफत
    प्रभुनाथ शुक्ल
    महाकाल की नगरी यानी सिंहस्थ कुंभ क्षेत्र में आसमान से बरसी आफत ने सब कुछ तबाह कर दिया। आस्था और विश्वास की भूमि क्षिप्रा की गोद में प्रकृति ने आस्थावानों का भरोसा डिगा दिया।

    भारी बारिश और तूफान की वजह से जहां सात से अधिक लोग मारे गए, वहीं 80 से अधिक श्रद्धालु घायल हो गए। धार्मिक आयोजनों में प्राकृति और अव्यवस्था का कहर हमारे लिए बेहद पीड़ादायी हैं।

    सिंहस्थ कुंभ में 30 फीसदी से अधिक नुकसान हुआ है। शुक्रवार को दूसरा शाही स्नान था। प्रशासन ने इसके लिए काफी तैयारियां की थीं, लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के आगे किसी नहीं चली। 30 फीसदी से अधिक तंबू उखड़ गए।

    इस चिलचिलाती धूप में देश के अनेक भागों से आए आस्थावान और श्रद्धालु खुले आमसान के नीचे हैं। अब उन्हें बसाने की नई मुसीबत आ गई है। तूफान इतना बेगवान था कि कई धमार्चार्यो के पंडाल उखड़ गए। संतों के पंडाल जलमग्न हो गए। मुख्द्वार धराशायी हो गए हैं। तूफानी बरिश के साथ ओले भी गिरे, जिससे और मुसीबत बढ़ गई। शाही स्नान की वजह से प्रशासन की मुश्किलें अधिक बढ़ गई हैं।

    धार्मिक अयोजनों को लेकर सरकारों की तरफ से काफी हो हल्ला किया जाता है। लेकिन जब किसी वजह से अव्यवस्था फैल जाती है तो सारे दावों की पोल खुल जाती है। धार्मिक अयोजन स्थलों पर अव्यवस्था कोई नई बात नहीं है। चलिए, यह प्राकृतिक आपदा ठहरी वरना सियासतबाज मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार और पीएम मोदी को बख्शने से बाज नहीं आते।

    लेकिन हमें आयोजनों से पहले इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि हम इस तरह पुख्ता इंतजाम की व्यवस्था करें, जिससे जन की हानि को रोका जाए।

    कुंभ धार्मिक मान्यता के अनुसार, चक्रिय व्यवस्था है। 12 साल पर कुंभ लगता है। प्रयाग और हरिद्वार में जहां यह गंगा के तट पर आयोजित होता है, वहीं उज्जैन में क्षिप्रा जबकि नासिक में पवित्र गोदावरी किनारे आयोजित होता है।

    हालांकि इस अव्यवस्था के पीछे मानवकृत अव्यस्था नहीं हैं। प्रकृति पर किसी का नियंत्रण नहीं है, इसलिए इन मौतों पर किसी को गुनाहगार ठहराना नाइंसाफी होगी। लेकिन धार्मिक आयोजनों में लापहरवाही और भगदड़ से होने वाला हादसा भी सच है, जिससे हम इनकार नहीं कर सकते।

    पिछले दिनों केरल के देवी मंदिर में आतिशबाजी के चलते हुई मौत हमारी आंख खोलने के लिए काफी है। दो साल पहले बिहार की राजधानी पटना में दशहरा उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 33 बेगुनाहों की मौत हुई थी। यह घटना अधिक भीड़ और भगदड़ मचने से हुई थी।

    इंटर नेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, देश में 79 फीसदी हादसे धार्मिक अयोजनों मंे मची भगदड़ और अफवाहों से होते हैं। 15 राज्यों में पांच दशकों में 34 से अधिक घटनाएं हुई हैं, जिनमें हजरों लोगों को जान गंवानी पड़ी है। दूसरे नंबर पर जहां अधिक भीड़ जुटती हैं, वहां 18 फीसदी घटनाएं भगदड़ से हुई हैं। तीसरे पायदान पर राजनैतिक आयोजन हैं, जहां भगदड़ और अव्यवस्था से तीन फीसदी लोगों की जान जाती है।

    नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार, देश 2000 से 2012 तक भगदड़ में 1823 से अधिक लोगों जान गंवानी पड़ी है। 2013 में तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर मची भगदड़ के दौरान 36 लोगों अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जबकि 1954 में इसी आयोजन में 800 लोगों की मौत हुई थी।

    उस दौरान कुंभ में 50 लाख लोगों की भीड़ आई थी। 2005 से लेकर 2011 तक धार्मिक स्थल पर अफवाहों से मची भगदड़ में 300 लोग मारे जा चुके हैं। राजस्थान के चामुंडा देवी, हिमाचल के नैना देवी, केरल के सबरीमाला और महाराष्ट्र के मंडहर देवी मंदिर में इस तरह की घटनाएं हुई हैं।

    भारत में धर्म और आस्था को लेकर लोगों का खूब अटूट विश्वास है। धार्मिक भीरुता भी हादसों का करण बनती हैं। हम एक भूखे, नंगे और मजबूर की सहायता के बजाय दोनों हाथों से धार्मिक उत्सवों में दान करते हैं और अनीति, अधर्म और अनैतिकता का कार्य करते हुए भी हम भगवान और देवताओं से यह अपेक्षा रखते हैं कि हमारे सारे पापों धो डालेंगे।

    निश्चित तौर पर धर्म हमारी आस्था से जुड़ा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम धर्म की अंध श्रद्धा में अपनी और परिवार की जिंदगी ही दांव पर लगा बैठें। धार्मिक स्थलों पर हादसे हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं।

    धार्मिक आयोजनों में बेगुनाहों की मौत अपने आप में एक बड़ा सवाल है। धार्मिक स्थलों पर उमड़ी भीड़ के साथ इस तरह के हादसे दुनिया भर में होते हैं। लेकिन हादसे न हों अभी तक ऐसी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो सकी है, जिससे बेगुनाहों की मौत होती है।

    भीड़ को नियंत्रित करने का हमारे पास कोई सुव्यवस्थित तंत्र नहीं है। देश में जाए दिन इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं, जिससे दर्जनों बेगुनाहों की जान चली जाती है। सरकार की ओर से लोगों को मुआवजा देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है, लेकिन सरकार या व्यवस्था से जुड़े लोगों का ध्यान फिर इस ओर से हट जाता है। यही लापरवाही हमें दोबारा दूसरे हादसों के लिए जिम्मेदार बनाती है।

    अखिरकार सवाल उठता है कि धार्मिक उत्सवों और आयोजनों में ही भगदड़ क्यों मचती है? प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए पहले इंतजाम क्यों नहीं किए जाते हैं। उस तरह की पंडालों की डिजाइन क्यों बनाई जाती है। उन्हें मजबूती क्यों नहीं दी जाती है।

    मानक के विपरीत भारी भरकम पंडाल कैसे कर लिए जाते हैं। उस पर स्थानीय प्रशासन मौन रहता है, क्योंकि सवाल आस्था से जुड़ा होता है इसलिए सभी के मुंह और आखों पर पट्टी लग जाती है। दूसरी बात यहां की राजनीति धर्म से भी जुड़ी है। इस कारण लोगों को मनमानी करने की खुली छूट मिल जाती है। इस तहर के हादसे कई परिवारों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करते हैं, जहां से वे पुन: अपनी दुनिया में नहीं लौट पाते।

    अकारण की परिवार का मुखिया, बेटी, पत्नी, मां, या पिता शिकार हो जाते हैं, जिन पर पूरी जिंदगी के सपने टिके होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंहस्थ हादसे पर दुख जताया है। केरल हादसे के दौरान वे खुद घायलों को देखने अस्पताल पहुंच गए थे। यह अच्छी बात है। यह उनकी नैतिक जिम्मेवारी भी बनती है। लेकिन सरकार को भी इस तरह के हादसों पर नियंत्रण रखने के लिए मास्टर प्लान तैयार करना होगा।

    आयोजन स्थलों पर भीड़ की आमद को भी संयमित और संरक्षित करना होगा, ताकि बेगुनाहों की मौत को रोका जा सके। धार्मिक अयोजनों से पहले हमें मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के सभी पहलुओं पर विचार करना होगा। तभी हम इस तरह के धार्मिक आयोजनों को निर्विघ्न संपन्न करवाने में कामयाब होंगे। (आईएएनएस/आईपीएन)

    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं)

    --आईएएनएस
  • रूसी पर्यटन विभाग को खल रही अंग्रेजी में अकुशलता
    मायाभूषण नागवेंकर
    मास्को, 7 मई (आईएएनएस)। रूसी पर्यटन प्राधिकरण का मानना है कि भाषा की समुचित जानकारी के अभाव में विशेष रूप से भारत से आने वाले अंग्रेजी भाषी पर्यटकों की संख्या बढ़ाने में परेशानी आ रही है। ऐसे में विभाग ने अपने कस्टम और इमीग्रेशन (आव्रजन) अधिकारियों से अंग्रेजी बोलने की शैली में सुधार लाने को कहा है।

    आव्रजन काउंटर पर अक्सर होने वाली देर और अंग्रेजी की जानकारी न होना रूसी अधिकारियों के लिए खतरे की घंटी बनी हुई है, जबकि रूसी पर्यटन विभाग को उम्मीद है कि 2020 तक भारतीय पर्यटकों से करीब 40 अरब डॉलर का व्यापार होगा।

    मॉस्को के डोमोडेडोवा हवाईअड्डे पर ट्रेवल एजेंटों के एक दल को करीब तीन घंटे तक रोके रखने की घटना के मद्देनजर पर्यटन विकास के लिए सेंट पीटर्सबर्ग समिति की उपाध्यक्ष रीमा सखुनोवा ने आईएएनएस को बताया कि कस्टम अधिकारियों की अंग्रेजी की जानकारी की कमी से ऐसी घटना घटी है।

    उन्होंने कहा, "हमें इसका खेद है कि पर्यटकों को काफी परेशानी हुई है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि रूसी कस्टम अधिकारियों को अपनी अंग्रेजी में सुधार लानी चाहिए।"

    रीमा ने कहा कि हम कस्टम सेवा को अधिकारिक रूप से पत्र लिखेंगे, क्योंकि हमें भारतीय पर्यटन बाजार से काफी उम्मीदें हैं।

    पर्यटन विशेषज्ञों को विश्वास है कि रूस पर्यटन के लिए सही मायने में अपने द्वार खोलेगा और यह बेहद जरूरी भी है। हालांकि रूस के लिए यह आसान काम नहीं है, क्योंकि एक ऐसा देश जो हमेशा लोहे की चारदीवारी में बंद रहा हो और अब लोकतंत्र की ओर अग्रसर होते हुए पर्यटन नियमों को सरल बनाने जा रहा है।

    भारतीय पर्यटकों को रूस यात्रा में अग्रणी भूमिका निभाने वाली इंडिगो टूर की मरीना सोकोलोव ने कहा कि हमें खुद को बदलने में थोड़ा समय जरूर लगेगा।

    मॉस्को पर्यटन कार्यालय से जुड़ी कैटेरीना बोरीसोवा ने आशा जताई कि संघीय सरकार मुख्य पारगमन केंद्रों पर एक पर्यटन कार्यालय स्थापित करने की योजना बना रही है। इससे रूसी कस्टम और आव्रजन काउंटर पर होने वाली अतिरिक्त देर को कम किया जा सकेगा।

    उन्होंने कहा, "हम कस्टम और आव्रजन को और खुला बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इसमें थोड़ा वक्त लग रहा है। आशा है कि जल्द ही हवाईअड्डा, रेलवे स्टेशन के अलावा जहां कहीं भी पर्यटकों की अधिक आवाजाही होगी, वहां पर एक पर्यटन कार्यालय खुल जाएगा।"

    सुखोनोवा ने बताया कि शहर की सड़कों और मेट्रो में अंग्रेजी में साइनबोर्ड लगाने का काम चल रहा है।

    उन्होंने कहा कि सेंट पीटर्सबर्ग में अंग्रेजी में लिखे और भी साइनबोर्ड लगाए जा रहे हैं। दरअसल, पूरे रूस में एक मात्र सेंट पीटर्सबर्ग ही एक ऐसा शहर है, जहां सभी मेट्रो स्टेशनों पर अंग्रेजी में साइनबोर्ड लगे हैं।

    हालांकि भारतीय पर्यटकों की संख्या के विकास में अधिकारियों और जनता में अंग्रेजी की जानकारी की कमी काफी खल रही है। भारतीय रूसी सूचना केंद्र के परेश नवानी का कहना है कि नियमों को यदि ठीक कर दिया जाए, तो भारतीय आसानी से रूस की यात्रा कर सकेंगे।

    नवानी का कहना है कि रूसी सरकार पर्यटन को सरल बनाने के लिए अपनी सीमाओं और नीतियों में परिवर्तन कर रही है, जिससे अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में भारतीय पर्यटक आराम से और कम खर्च में रूस की यात्रा कर सकेंगे।

    प्रतिवर्ष करीब 50 हजार भारतीय रूस की यात्रा करते हैं, जबकि करीब दो लाख रूसी यात्री भारत में मुख्य रूप से गोवा की यात्रा करते हैं।

    --आईएएनएस
  • लाइब्रेट लैब प्लस यानी ऑनलाइन जांच सुविधा
    नई दिल्ली, 7 मई (आईएएनएस)। ऑनलाइन डॉक्टरी परामर्श प्लेटफार्म लाइब्रेट ने 'लाइब्रेट लैब प्लस' लांच किया है, जो लोगों को डॉक्टरों से ऑनलाइन सलाह लेने, घर पर ही आवश्यक जांच करवाने और सीधे डॉक्टर के पास रिपोर्ट भेजने की सुविधा देती है।

    डॉक्टरों ने बताया कि लैब टेस्ट के झमेले की वजह से 70 प्रतिशत लोग बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए लाइब्रेट ने यह व्यपारिक फैसला लिया है।

    उन्होंने बताया कि लाइब्रेट लैब प्लस की सेवाएं दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू में शुरू हो गई हैं। अन्य शहरों में भी यह सेवा शुरू होने जा रही है।

    पूरे भारत के 80 शहरों में 100000 डॉक्टरों के साथ लाइब्रेट नई किस्म का 30 ऑनलाइन-ऑफलाइन मार्केट प्लेस तैयार कर रहा है।

    लाइब्रेट के संस्थापक तथा सीईओ सौरभ अरोड़ा का कहना है, "हमने देखा कि लैब टेस्ट की वजह से ऑनलाइन इलाज में रुकावट आती है और यह डॉक्टर से सलाह लेने का चक्र तोड़ देती है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने लैब टेस्ट को अपने प्लेटफार्म में शामिल करने का फैसला किया।"

    उन्होंने कहा कि लाइब्रेट लैब प्लस लोगों तक सीधे ऑनलाइन कंसल्टेशन की सेवाएं पहुंचाकर उन्हें अपनी सेहत के बारे में जागरूक करने की दिशा में एक अहम कदम है। इस सेवा के जरिए टेस्ट की बुकिंग, सैंम्पल पिकअप और डॉक्टर के पास सीधे रिपोर्ट भेजने की सुविधा भी प्राप्त की जा सकती है।

    उन्होंने कहा कि उचित समय पर लैब की जांच दिल के रोगों, थायरॉयड, हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी लंबी बीमारियों का पता लगाने, बचाव करने और उनका इलाज करने में मदद करती है।

    सौरभ अरोड़ा ने बताया कि 'लाइब्रेट लैब प्लस' ब्लड शूगर, कंप्लीट ब्लड काउंट, लिपिड प्रोफाइल, लिवर फंक्शन टेस्ट और थॉयरायड प्रोफाइल सहित करीब 2500 लैब टेस्ट उपलब्ध करवाएगा।

    लाइब्रेट ने यह प्लेटफार्म जनवरी, 2015 में शुरू किया था, जिसकी मदद से टेक्स्ट चैट के जरिए डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है। इसमें बाद में वॉयस और वीडियो कॉल की सुविधा भी दी गई।

    लाइब्रेट की हेल्थ फीड के अंतर्गत 400 विषयों पर डॉक्टरों द्वारा सलाह दी जाती है। डॉक्टरों के हेल्थ टिप्स लोगों को रोगों से बचाव के प्रति जागरूक कर रहे हैं और उन्हें स्वस्थ रहने के लिए भी उत्साहित कर रहे हैं।

    --आईएएनएस
  • मप्र के बुंदेलखंड को भी चाहिए सरकारों की दरियादिली
    संदीप पौराणिक
    भोपाल, 6 मई (आईएएनएस)। बुंदेलखंड सूखे और पानी की समस्या से जूझ रहा है। विडंबना है कि दो राज्यों में फैले इस क्षेत्र से सरकारें भी भेदभाव करने में पीछे नहीं हैं। क्षेत्र के लोगों को इंतजार है कि सरकारें कब उन पर भी दरियादिली दिखाएंगी।

    उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में खाद्य सामग्री मुफ्त मिल रही है। पानी देने का श्रेय लेने को दो सरकारें टकराने लगी हैं, मगर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड पर किसी की नजर नहीं है।

    बुंदेलखंड में मध्यप्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिले आते हैं। इस तरह बुंदेलखंड 13 जिलों को मिलाकर बनता है। सभी जिलों की कमोबेश एक जैसी हालत है। सूखे की मार ने किसान से लेकर मजदूर तक की कमर तोड़कर रख दी है। खेत सूखे हैं, तालाबों और कुओं में पानी नहीं है, इंसान को अनाज और जानवर को चारे के लिए जूझना पड़ रहा है।

    सामाजिक कार्यकर्ता मनोज बाबू चौबे का कहना है कि पूरे बुंदेलखंड का बुरा हाल है, कई मामलों में तो उत्तर प्रदेश के हिस्से से ज्यादा बुराहाल मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड का है। पानी के लिए कई कई किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ रहा है।

    वे कहते हैं कि गांव के गांव उजड़ गए हैं, रोजगार का इंतजाम नहीं है, मगर राज्य और केंद्र सरकार मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड से बेरुखी बनाए हुए है, जो कई सवाल खड़े कर रही हैं। सरकारों का रवैया यह बताने लगा है कि अब वोट की चाहत सवरेपरि हो गई है।

    उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में समाजवादी पार्टी की सरकार ने अंत्योदय परिवारों के लिए मुफ्त में राशन राहत पैकेट बांटना शुरू कर दिया है, वहीं केंद्र सरकार ने पानी मुहैया कराने के लिए ट्रेन तक भेज दी है, जिसे राज्य सरकार ने स्वीकारने से मना कर दिया है, मगर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के गरीबों पर न तो राज्य सरकार का ध्यान है और न ही केंद्र सरकार कुछ करती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार हैं।

    बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र व्यास का कहना है कि राजनीतिक दलों को सिर्फ चिंता चुनाव जीतने के लिए वोट हथियाने की रहती है। उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाला है, लिहाजा वहां की सरकार ने बुंदेलखंड के गरीब परिवारों को राहत पैकेट बांटना शुरू किया है।

    वहीं दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की मांग के बिना ही पानी की ट्रेन भेज दी, ताकि यहां के लोगों का दिल जीता जा सके, जो विशुद्ध तौर पर राजनीति का हिस्सा नजर आता है। दोनों ही दल राजनीतिक लाभ के लिए अपने को बुंदेलखंड का हितैषी बताने में लगे हैं। वास्तव में किसी को भी बुंदेलखंड के लोगों की चिंता नहीं है, अगर चिंता है तो सिर्फ वोट बटोरने की।

    छतरपुर जिले के पंचायत प्रतिनिधि रहे राम कृष्ण का कहना है कि बुंदेलखंड सूखा कई वर्षो से पड़ता आ रहा है। इस बार हालत पिछले वर्षो से कहीं ज्यादा खराब है। ऐसे में सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह इस क्षेत्र के लिए आवश्यक कदम उठाए। राजनीतिक लाभ की बजाय सरकारों को इस इलाके के लोगों की परेशानी को बेहतर तरीके से समझना होगा, नहीं तो यही जनता उन्हें सबक सिखाने मे पीछे नहीं रहेगी।

    उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के लोगों केा अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार और केंद्र सरकार की पहल ने मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोगों के मन-मस्तिष्क में एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि उनके साथ यह भेदभाव आखिर क्यों हो रहा है।

    उत्तर प्रदेश सरकार बुंदेलखंड के लिए पानी की ट्रेन लेना नहीं चाहती और केंद्र सरकार जिद किए हुए है, वहीं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड की केंद्र सरकार चर्चा तक नहीं कर रही। इतना ही नहीं, मध्यप्रदेश की सरकार ने भी कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जो बुंदेलखंड के लोगों के जख्मों को कम कर सके।

    --आईएएनएस

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