राकेश दीवान
पंद्रहवीं सदी के अंग्रेज नाटककार विलियम शेक्सपियर से लेकर अपने अनुपम मिश्र तक, सभी कहते हैं कि मुसीबत अकेले नहीं आती, उसके पहले इंसान की अक्ल डूबती है। खबरों को मान लिया जाए तो सिंहस्थ के दौरान होने वाले 'अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ' में चार विषयों-कृषि, कुटीर उद्योग, महिला सशक्तीकरण, स्वच्छता और सरिता पर संगोष्ठियां हाेंगी। अब आप बताइए इन्हीं विषयों पर ऐसी ही संगोष्ठियां साल में कितनी बार होती हैं? आप थोडा खंगालें तो सरकारी रिकॉर्ड रूम में इनकी बाकायदा रिपोर्टें भी प्राप्त कर सकते हैं।
क्या बारह साल में होने वाले राज्य के इस महापर्व पर ऐसी ही सरकारी किस्म की संगोष्ठियां होनी चाहिए? क्या ऐसे मौकों पर एक नागरिक, एक समाज और सरकार की हैसियत से अपनी-अपनी भूमिकाओं की समीक्षा करने के अलावा कोई ऐसी बात नहीं की जानी चाहिए कि जिससे लगे कि हम कुंभ के असर में रोजमर्रा की चकरघिन्नी से थोडा मुंह मोडकर वाकई समष्टि की चिंता भी कर सकते हैं?
चिंता के लिए लगातार बदहाल होता पानी का परिदृष्य हाजिर है। अब जलसंकट पर केवल बुंदेलखंड भर का कॉपीराइट नहीं रहा है, 'डग-डग नीर' वाला मालवा भी कोई ज्यादा पीछे नहीं है। वहां भी हफ्तों के अंतराल में पानी मिलना शुरु हो चुका है। ऐसे में क्या सिंहस्थ में जुटने वाले पांच करोड धर्मात्मा मिलजुलकर पानी के मौजूदा संकट को सदा के लिए बरकाने की कोई जुगत बना, बिठा सकते हैं?
मसलन-क्या थोडी देर के लिए 'स्मार्ट सिटी' बनाने की आपाधापी को छोडकर देश, विदेश में कुंभ के निमंत्रण बांटने वाला सरकारी अमला भोपाल के मरते तालाबों, बावडियों, कुंओं की सुध ले सकता है? सहमति के झूठे आंकडों की दम पर देश में नाम कमाने वाले दूसरे 'स्मार्ट सिटी' मोहल्लों वाले इंदौर, जबलपुर में भी पारंपरिक जलस्रोतों की हालत खस्ता है। क्या उन्हें भी पुनर्जीवित नहीं किया जाना चाहिए?
क्या ऐसे मामूली विचार 'स्मार्ट सिटी' खडी करने वाले उन अफसरों के दिमाग में भी नहीं आने चाहिए जिन्हें फिलहाल कुंभ की ड्यूटी बजाने के लिए उज्जैन में तैनात किया गया है? आखिर वे तो सीधे परमात्मा और तमाम शैव, वैष्णव अखाडों की जद में नर्मदा के पानी से लबालब क्षिप्रा में डुबकी लगाकर पुण्य कमाने वाले हैं?
आचार्य से भगवान और फिर ओशो तक पहुंचे अपने मध्यप्रदेश के रजनीश की ही एक कथा है-'' तुमने अजामिल की कहानी सुनी है ? उसने अपने जीवन में कभी परमात्मा का नाम नहीं लिया था, लेकिन उसके बेटे का नाम नारायण था। मरते आदत उसने बेटे को बुलाया-नारायण, तू कहां? ऊपर वाले नारायण समझे कि मुझे बुला रहा है। अपने बेटे को पुकारते अजामिल मर गया और ऊपर के नारायण धोखे में आकर उसे स्वर्ग पहुंचा गए।
यह कहानी जिन्होंने गढी है, उनसे सावधान रहना। ये वे लोग हैं जो परमात्मा को भी धोखाधडी में फंसा देंगे। और अगर तुम्हारा परमात्मा धोखे में आता है तो वह दो कौडी का परमात्मा है। तुम्हारी आत्मा जिस दशा में होगी, वही अंकित होगा, अस्तित्व पर।''
ऐसा कुंभ करने, करवाने वालों को नमन ! ! !