बादल सरोज
कभी बचपन में त्रिभुज का नाप निकालने के लिए साइन, कॉज, थीटा के साथ डेल्टा, एक यूनानी शब्द और संकेत का उपयोग किया था । डेल्टा नामकी एक 17 साल की बच्ची की हत्या की खबर पढ़कर समझ नही आ रहा है कि किस त्रिभुज का मान निकालें । उस त्रिभुज का जो एक ऐसे पिरामिड की तरह खड़ा है जहां 0 से भी कम प्रतिशत वाले 99 से भी अधिक प्रतिशत वालों को आधार में दबोचे बैठे है । या उस त्रिभुज का जिस में सिर्फ नुकीले कोने हैं, कोई स्पेस नहीं । सांस लेने तक की हवा नहीं ।
डेल्टा, बाड़मेर के पास नोखा में स्कूल शिक्षिका बनने की पढ़ाई कर रही थी । मेधावी थी । सिद्धहस्त चित्रकार थी । 7 वर्ष की उम्र में बनाई उसकी पेंटिंग राजस्थान के सचिवालय द्वारा सम्मानित की गयी थी । तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि 17 की होने के पहले खुद उसकी पेंटिंग या कोई तस्वीर उसके घर में लटक जायेगी । उस डेल्टा को मार डाला गया है । सिर्फ मार ही नहीं डाला, अब सारे मामले को ही खुर्दबुर्द करने की साजिशें जारी हैं । डेल्टा के साथ पहले स्कूल के पीटीआई ने बलात्कार किया । कहते हैं कि इस बलात्कारी को डेल्टा के कमरे में खुद स्कूल की वार्डन प्रिंसिपल पहुंचा कर आयी थीं । यह कहानी बलात्कार के बाद डेल्टा ने ही फोन करके अपने पिता को सुनाई थी । पिता जब तक पहुंचते, डेल्टा मारी जा चुकी थी ।
अब दहशत है । लड़कियों को हॉस्टल के बाहर संपर्क नहीं करने दिया जा रहा । फोन छीन लिए गए हैं । मानवाधिकार आयोग के फोन को बीच में ही काट कर सारे कनेक्शन्स डिसकनेक्ट कर दिए गए हैं । पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ डेल्टा के फैंफडों में ज़रा सा भी पानी नहीं था । इससे पानी में कूदकर आत्महत्या की गढ़ी हुयी कहानी झूठी साबित हो गयी है । मगर कालेज के किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं हुयी है । कालेज मालिक बड़े रसूखदार लोग हैं । रसूखदारों की रसूखदार महारानी जयपुर में और रसूखदारों के चाकर दिल्ली में सत्ता पर आसीन है । त्रिभुज के नुकीलेपन का मान सर्वोच्चता को छू रहा है । किस में दम है जो बलात्कारियों हत्यारों को हाथ लगाए । डेल्टा, हमारी बच्ची सिर्फ डेल्टा नहीं थी । वह डेल्टा मेघवाल थी ।
उसका यह उपनाम बहुत गहरे मानी रखता है । यकीन न हो तो राजस्थान आकर देख लीजिये । राजस्थान दूर है तो अपने गाँव बस्ती में इससे मिलते जुलते उपनामो के संबोधनों के सर्वनाम विशेषण सुन लीजिए । जिस तरह डेल्टा यूनानी वर्णमाला में D है । चौथा शब्द । उसी तरह मेघवाल डेल्टा मनुस्मृति के विधान की चौथी और सबसे निचली सीढ़ी पर बैठी खबरों के बाहर हाशिये की लकीर थी । वैसे ज्योति निर्भया की दिल्ली वाले देश में अगर वह डेल्टा शुक्ला या त्रिपाठी या सहगल या भदौरिया या जैन भी होती तो उसकी सलामती की कोई गारंटी नहीं थी । मगर उसके मेघवाल होने ने यह पक्का कर दिया है कि मौत के बाद भी उसे इन्साफ दिलाना कितना मुश्किल होगा । इन्साफ तो इन्साफ, उसकी मौत भी खुद को नेशनल कहने वाले मीडिया के लिए शायद ही खबर बने ।
मगर अब यह सब नहीं चलेगा । अब बलात्कार को प्रारब्ध और ह्त्या को नियति मानने का खोटा फलसफा नहीं चलेगा । राजस्थान के युवा युवतियां आंदोलित हैं । दलित शोषण मुक्ति मंच संघर्ष के मैदान में है । वे लड़ेंगे और यकीनन जीतेंगे । मगर बाकी हम सब क्या करेंगे ? उनके एक लड़ाई जीतने और किसी दूसरी डेल्टा की खबर आने का इन्तजार ? उनके प्रति हमदर्दी का इजहार ? बहुत हुईं हमदर्दियाँ । मातमपुर्सी । संवेदनाएं । उठिए आवाज उठाइये डेल्टा के लिए, इससे पहले की हमारे आसपास या हमारे घर में किसी को डेल्टा बना दिया जाए । इसे नोखा, बाड़मेर, राजस्थान की लड़ाई मत मानिए । अपनी लड़ाई बनाइये । उसके बाद जाइयेगा 14 अप्रैल को 125 वी सालगिरह पर फूल चढाने ।