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बंगाल में बेमतलब विधानसभा चुनाव लड़ रही है भाजपा Featured

प्रकाश चण्डालिया

अमित शाह की मौजूदगी में कोलकाता की एक सभा में चंद महीनों पहले भाग ममता भाग का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल सुप्रीमो के खिलाफ दो महीने पहले राजनीति में आए चंद्र कुमार बोस को उतार कर जता दिया है कि बंगाल विधानसभा के चुनाव में उसका इरादा क्या है। चंद्र कुमार बोस बंगाल की राजनीति में बिल्कुल अपरिचित नाम है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई के पौत्र होने के अलावा उनके नाम के साथ कोई ऐसा तमगा नहीं, जो ममता के खिलाफ वोटरों को लुभा सके।  पिछले लोकसभा चुनाव में भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को खासे वोट मिले थे, लेकिन इस बार चंद्र कुमार बोस अधिक वोट तो छोडि़ए, उन वोटों को भी प्राप्त कर सकेंगे, इसमें संदेह है। वैसे भी तृणमूल से नाराज वोटर यहां दूसरी पसन्द के रूप में वाममोरचा-कांग्रेस को ही पसन्द करेंगे।

ममता बनर्जी न सिर्फ मंझी हुई राजनीतिज्ञ हैं, बल्कि इन पांच सालों में उन्होंने बार-बार केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को अपमानित कर अपनी ताकत जताई है। भाजपा इस बार भवानीपुर तो क्या, पूरे राज्य में तृणमूल के खिलाफ जरा भी धारदार नहीं दिखेगी, यह साफ है।

चंद्र कुमार बोस को पार्टी में शामिल करने के बाद प्रदेश भाजपा ने उनका कोई राजनीतिक उपयोग भी नहीं किया। इसके बिपरीत, अभिनेत्री रूपा गांगुली जबसे पार्टी में शामिल हुई हैं, हर दिन सक्रिय रहती हैं। ममता बनर्जी के खिलाफ भाजपा यदि गंभीर होती तो रूपा गांगुली को उतारती, ऐसा गणितज्ञों का मानना है। रूपा गांगुली ने बंगाल की राजनीति में चंद महीनों में ही जबर्दस्त पहचान बनाई है। उनकी लोकप्रियता से तृणमूल भी कुढ़ती रही है। राज्य में उनकी जनप्रियता खूब तेजी से बढ़ी है। यदि कहा जाए कि बंगाल में वह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से अधिक जनप्रिय हैं, तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। दिलीप घोष को हाल ही में राहुल सिन्हा के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, और आज भी राज्य की जनता का अधिकांश उनके नाम औऱ शक्ल से नावाकिफ है। जबकि रूपा गांगुली ने इन चंद महीनों में कई आन्दोलन किए। उनकी लोकप्रियता से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा को कितनी चिढ़ है, यह भी बंगाल की जनता अच्छी तरह जानती है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ पंजा लड़ाने के मूड में ही नहीं है। वैसे भी गत लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को राज्य में वोटों का जो प्रतिशत हासिल हुआ था, वह इस चुनाव में धराशायी होने वाला है। लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लुभावने एवं तेजतर्रार रूख के कारण राज्य की जनता ने वोट डाले थे। लेकिन इस अप्रैल में शुरू होने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र में सत्तारूढ़ इस पार्टी के पास जनता का मन जीतने लायक कुछ भी नहीं है।

भाजपा की मजबूरियों की कई वजहें हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि राज्यसभा में बहुमत की कमी बंगाल में ममता के प्रति नरमी का प्रमुख कारण है। विधानसभा चुनाव में बहुमत में आती लग रही ममता अपनी अगली पारी में परोक्ष रूप से भाजपा के हितों की रक्षा कर सकती हैं। ऐसा करना उनकी भी मजबूरी होगी, क्योंकि अब उनके घुर विरोधी वामपंथी औऱ कांग्रेस ने उनके खिलाफ मोरचेबन्दी कर ली है। २०१९ में लोकसभा चुनाव होंगे। स्वाभाविक है, तब भी ममता कांग्रेस को साथ नहीं ले पाएंगी।

एक वर्ग तो यहां तक मानता है कि विधानसभा चुनाव निबटने के बाद केंद्र सरकार में शामिल भी हो सकती हैं। दबी जुबान से लोग चर्चा भी कर रहे हैं कि इस नए गणित के लिए मुकुल राय तैनात किए गए हैं। मुमकिन है, विधानसभा चुनाव के बाद केंद्र में मंत्रिमंडल में कुछ नए चेहरे लिए जाएं। उस दौरान तृणमूल से ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को  मुंहमांगा मंत्रालय दिया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

बहरहाल, २९४ सीटों वाली बंगाल विधानसभा में भाजपा का कुल जमा एक विधायक है। वह भी बसीरहाट से उपचुनाव में जीता हुआ। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा २४ सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी ५-७ सीटों पर जीत हासिल कर ले, तो भी बड़ी बात होगी। जारी हुई प्रत्याशियों की पहली फेहरिश्त में तो ऐसा एक भी नाम नहीं है, जो जीतता लगे।

(लेखक कोलकाता से प्रकाशित सांध्य दैनिक राष्ट्रीय महानगर के प्रधान सम्पादक हैं)

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