डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत के खिलाफ जहर उगलने के बावजूद सहानुभूति हासिल नहीं कर सके। उनके खिलाफ देशद्रोह के मुकदमे का जल्दी फैसला होगा। इसमें उन्हें सजा-ए-मौत भी मिल सकती है। सूत्रों के अनुसार मुशर्रफ के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। सरकार भी साक्ष्य पेश करने में कोई कसर नहीं छोडेगी। ऐसे में मुशर्रफ की उम्मीद सेना प्रमुख पर टिकी है। यह पाकिस्तानी व्यवस्था की हकीकत है। यदि वर्तमान सेना प्रमुख चाहें तो पूर्व सेनापति मुशर्रफ की जान बच सकती है।
चर्चा है कि पाकिस्तान छोड़कर चले जाने और राजनीति से तौबा करने की शर्त पर उन्हें सजा-ए-मौत की सजा से छुटकारा मिल सकता है। ऐसी सौदेबाजी की शुरुआत मुशर्रफ ने ही की थी। उन्होंने अपने सियासी प्रतिद्वन्द्वियों नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो को देश छोड़ने की शर्त पर मुकदमों से छूट दी थी, लेकिन सेना प्रमुख पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद जब मुशर्रफ की सत्ता कमजोर होने लगी थी, तब उन्हें नवाज और बेनजीर दोनों की मुल्क वापसी मंजूर करनी पड़ी थी। वर्तमान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कभी मुशर्रफ के हाथों मिले दर्द को भूल नहीं सकते। मुशर्रफ ने उन्हंे प्रधानमंत्री पद से अपदस्त करके सत्ता पर कब्जा किया था। इसके बाद शरीफ को जेल जाना पड़ा। अन्तत: देश छोड़ने की शर्त स्वीकार करनी पड़ी थी। अब नवाज शरीफ चाहते हैं कि कानून अपना काम करे, लेकिन सेना के प्रभाव को वह बखूबी जानते हैं।
यदि सेना मृत्युदण्ड का विरोध करेगी तो फिर देश छोड़ने पर समझौता हो सकता है। लेकिन इतना मानना पड़ेगा कि मुशर्रफ के लिये आने वाला समय तनावपूर्ण होगा। कुछ समय से वह भारत के खिलाफ जहर उगल रहे थे। इसका कारण यह था कि वह नए सिरे से सेना और गुप्तचर संस्था का विश्वास हासिल करना चाहते थे। भारत विरोधी बातों से सेना को संतुष्टि मिलती है। मुशर्रफ के ऐसे बयान पिंजरे में फड़फड़ाने जैसे थे। सत्ता से हटने के बाद पाकिस्तान में उनकी कोई अहमियत नहीं रह गयी थी फिर भी उन्होंने अपने भारत विरोधी इंटरव्यू प्रायोजित कराए। इस माध्यम से वह अपने विरुद्ध चल रही कानूनी कार्रवाई में सेना का सहयोग चाहते थे। उनको सुप्रीम कोर्ट के रुख का अनुमान था। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के मामले में उनके खिलाफ सुनवाई जल्दी पूरी करने और फैसला होने तक देश छोड़ने पर रोक लगा दी है। राष्ट्रपति रहते आपातकाल लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुशर्रफ के खिलाफ कार्रवाई में तेजी आएगी।
इस प्रकरण में क्या होगा यह भविष्य में पता चलेगा, लेकिन मुशर्रफ अपनी वाहवाही में ऐसी बात बता चुके हैं, जिनसे पाकिस्तान की हकीकत पुन: जगजाहिर हो गयी है। वहां की सेना आतंकी संगठनों को संरक्षण, ट्रेनिंग और वित्तीय सहायता देती है। गरीब मुसलमानों को मोहरा बना कर सीमा पार का आतंकवाद चलाया जाता है। देखना होगा ये बातें मुशर्रफ का जीवन बचाने में कितनी कारगर होंगी।
पाक को एफ-16 पर सवाल पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान देने के फैसले का अमेरिका में विरोध शुरू हो गया है। सरकार के इस फैसले से असहमति रखने वालों का मानना है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर नियंत्रण लगाने में विफल रहा है, ऐसे में उसे किसी प्रकार की सहायता देने का औचित्य नहीं है। इसके अलावा यह फैसला अमेरिका के विश्वव्यापी आतंकवाद विरोधी अभियान को कमजोर बनाएगा। पाकिस्तान के सीमावर्ती देश ही आतंकवाद से प्रभावित नहीं हैं, वरन् अमेरिका तथा यूरोप के देश भी आतंकी खतरे से मुक्त नहीं है।
विदेश मंत्री जॉन कैरी जिस समय पाकिस्तान में एफ-16 डील पर वार्ता कर रहे थे, उसी समय अमेरिका में इसका विरोध चल रहा था। विरोध करने वालों में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के ही लोग शामिल नहीं थे, वरन् सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के अनेक लोग भी अपनी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। अमेरिका की महत्वपूर्ण व प्रभावशाली विदेश मामलों की समति के अध्यक्ष बॉब कॉर्कर ने कहा है कि आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान दोहरा रवैया अपनाता है। वह तालिबान, हक्कानी जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन करता है। पाकिस्तान अल-कायदा का सुरक्षित पनाहगार बना हुआ है। ऐसे में उसे लड़ाकू विमान देना सुरक्षित नहीं है। एक अन्य प्रमुख सीनेटर पॉल रैड ने पाकिस्तान को अविश्वसनीय देश बताया, जो कभी दोस्त दिखाई देता है, तो कभी दुश्मन की भूमिका में आ जाता है। इन सांसदों ने इस मुद्दे को जिस प्रकार उठाया है, उससे पूरे अमेरिका में बहस चल पड़ी है। क्योंकि सांसद बॉब कार्कर और पॉल रैंड ने इस मामले को अमेरिकी कर दाताओं से जोड़ दिया है। इनका आरोप है कि ओबामा प्रशासन करदाताओं का धन जिस प्रकार पाकिस्तान को दे रहा है, उससे अमेरिका को कोई फायदा नहंी होगा। इसके विपरीत विश्व में आतंकी तत्वों को संरक्षण देने के पाकिस्तानी रवैये को बल मिलेगा।
भारत और अमेरिकी सांसदों के तमाम विरोध के बावजूद अमेरिकी सरकार ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने के सौदे को स्वीकृति दे दी। जारी अधिसूचना में परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम आठ विमानों को बेचने को स्वीकृति दी गई है। सरकार ने इस सौदे को दक्षिण एशिया में अपनी नीति का हवाला देते हुए रणनीतिक सहयोगी के सुरक्षा हितों के लिए आवश्यक बताया है। इस सौदे पर नई दिल्ली में भारत सरकार ने अमेरिकी राजदूत को तलब करके आपत्ति व्यक्त की थी। अधिसूचना जारी होने से कुछ ही घंटे पहले रिपब्लिकन पार्टी के सिनेटर रेंड पॉल ने साथी सांसदों से इस सौदे को रद कराने लिए साथ आने का आह्वान किया था। इससे पहले पाकिस्तान के आतंकवाद के प्रति समर्थन के मद्देनजर कई वरिष्ठ अमेरिकी सांसदों ने सरकार से सौदा रद करने के लिए कहा था। इसी हफ्ते अमेरिकी दौरे पर गए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार ने कहा था कि उनके देश को आतंकवाद निरोधी अभियान के लिए 18 एफ-16 विमानों की जरूरत है लेकिन आर्थिक कारणों से फिलहाल वह आठ ही खरीद रहा है। आठ विमान करीब 700 मिलियन डॉलर (4690 करोड़ रुपये) में मिलेंगे।
अमेरिकी सरकार की अधिसूचना में कहा गया है कि पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ चल रहे अभियान में इन विमानों को शामिल किया जाएगा। इससे उसे और मजबूती मिलेगी। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के अफगानिस्तान की सीमा से सटे आदिवासी इलाकों में तीन साल से वहां की वायुसेना बमबारी कर रही है। इसमें हजारों लोग मारे गए हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।